Saturday, February 22, 2020

भगवान शिव कौन है ? शिव तो का स्वरूप है भारत का उत्सव है WHO IS THE SHIVA IN SPIRIT ? Some fascinating facts and ancient beliefs in this article.

"शिव तो भारत का आद्य-लोकमनस् का उत्स हैं।
वह आर्य भी है ,अनार्य भी है , वह द्रविड भी है , वह कोलकिरात भी है ।
वह क्या नहीं है ?
वह जितना देवों का है उतना ही असुरों का है ।
शिव मानो भारतीयता की मूर्तिमान व्याख्या हैं ।
इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ? शिव भारत भावरूप हैं ।
पशुपति है ।वह शिव है और रुद्र भी है ।

तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में ।
स्मशानवासी हैं।वह विषपायी हैं।
सबको अमृत बांट कर वह जहर पी जाते हैं।
शिव आदि काल से ही गुरु माने जाते हैं | उनकी चर्चा हो और ताण्डव नृत्य की बात ना हो ऐसा नहीं हो सकता | आम तौर पर तांडव का अर्थ विध्वंस के रूप में ही लिया जाता है | नृत्य की दृष्टि से देखें तो उग्र स्वभाव को दर्शाता हुआ रूद्र तांडव है | वहीँ इसका एक और कोमल रूप, आनंद तांडव कहलाता है | शैव सिद्धांतो के मत में जहाँ शिव को नटराज यानि नृत्य के राजा माना जाता है, वहां तांडव का नाम “तण्डु” नाम से आया हुआ मानते हैं |

मान्यता है कि नाट्य शास्त्र के रचियेता भरत मुनि को #अंगहार और 108 कारणों की शिक्षा तण्डु ने शिव के आदेश पर दी थी | शैव मतों की कई मान्यताएं, नृत्य की मुद्राओं से मिलती जुलती भी हैं | हवाई के कौअई में मौजूद कदवुल मंदिर में नटराज के 108 कारणों की मूर्तियाँ हैं | ठीक ऐसा ही भारत के चिदंबरम मंदिर में भी देखा जा सकता है | वहां भी करीब 12 इंच ऊँची मूर्तियों में सभी 108 #कारणों को दर्शाया गया है | मान्यता ये भी है कि चिदंबरम मंदिर ही वो स्थान है जहाँ नटराज भक्तों के आग्रह पर, पार्वती के साथ, आनंद #तांडव करने आये थे |

भरत के #नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय का नाम “ताण्डव लक्षणम्” है | सभी 32 अंगहार और 108 कारणों की चर्चा इसी अध्याय में है | हाथों और पैरों की विशिष्ट मुद्राओं को कारण कहते हैं | सात या उस से अधिक कारण मिलकर एक अंगराग बनते हैं | कारणों का प्रयोग नृत्य के साथ साथ सम्मुख युद्ध में और द्वन्द युद्ध में भी किया जा सकता है |

ताण्डव पांच मुख्य उर्जाओं की अभिव्यक्ति है | इस से सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह के भावों की अभिव्यक्ति होती है | जहाँ सृष्टि, स्थिति, और संहार विश्व के निर्माण और विध्वंस के द्योतक हैं वहीँ, तिरोभाव और अनुग्रह वो भाव हैं जिनसे जन्म और मृत्यु संचालित होती है |

हिन्दुओं के ग्रन्थ सात मुख्य प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हैं | आनन्द तांडव, त्रिपुर ताण्डव, संध्या ताण्डव, संहार ताण्डव, कालिका ताण्डव, उमा ताण्डव और गौरी तांडव मुख्य प्रकार हैं | आनंद कुमारस्वामी जैसे कुछ विद्वान सोलह प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हुए कहते हैं, शिव के कितने तांडवों का उनके भक्तों को पता है इसके बारे में निश्चय करना कठिन है |

शिव के ताण्डव का प्रत्युत्तर पार्वती लास्य से देती हैं | पार्वती के नृत्य को सौम्य, भावपूर्ण और कई मुद्राओं में कामोद्दीपक भी माना जा सकता है | लास्य के दो मुख्य प्रकार, जरित लास्य और यौविक लास्य अभी भी आसानी से देखने को मिलते हैं | #ताण्डव का जिक्र कई धर्म ग्रंथों में भी है | सती के अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में कूद जाने पर शिव संताप और क्रोध में रूद्र ताण्डव करते हैं | शिवप्रदोषस्तोत्र के अनुसार जब शिव संध्या ताण्डव करते हैं तो ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, और इंद्र आदि देवता वाद्य यंत्र बजा रहे होते हैं |

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ शिव के तांडव का ही जिक्र आता हो | भगवान् गणेश भी कई मूर्तियों में अष्टभुज, ताण्डव मुद्राओं में दिखते हैं | भागवत पुराण में जब कृष्ण कालिया नाग का दमन करते हैं तो वो उसके फन पर ताण्डव कर रहे होते हैं | ज्यादातर कालिया दमन की पेंटिग और मूर्तियों में आपने यही ताण्डव मुद्रा देखि होगी | यहाँ तक की जैन मान्यताओं में माना जाता है कि इन्द्र ने भी ऋषभ देव के जन्म पर ख़ुशी दर्शाने के लिए ताण्डव नृत्य किया था | स्कन्द पुराण में भी ताण्डव का जिक्र आता है |

शिव के ताण्डव पर आनंद कुमारस्वामी ने एक विस्तृत किताब The Dance of Shiva: Fourteen Indian Essays, के एक अध्याय  "The Dance of Shiva" में विस्तार से लिखा है |

#महाशिवरात्रि भगवान् शिव के ताण्डव और उसके विभिन्न रूपों को याद करने के लिए भी मनाया जाता है |

भगवान् शिव के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों के बारे में आपने कभी न कभी सुना ही होगा | इनमें प्रभु रामेश्वरम् की स्थापना श्री राम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी | जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिव लिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा-
रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: ||
मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव,  माता सती को सुनाने लगे तो बोले के प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी | माता सती के ऐसा कैसे, पूछने पर देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए, उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया- 
रामा: ईश्वरो: य: रामेश्वर: ||
यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

जिस सनातन धर्म के आराध्य भी एक दूसरे का सम्मान करते है, उस हिन्दू समाज के सभी धर्मानुरागियों को #महाशिवरात्रि की शुभकामनायें |
ॐ नमः शिवाय ||

शिव नटराज भी कहे जाते हैं। कहते हैं कि एक बार शिव नृत्य करने लगे तो साथ ही पार्वती भी नृत्य में उनका साथ देने लगीं। समस्या ये हुई की हर ताल पर पार्वती का नृत्य बेहतर होता और शिव हार जाते !

शिव के नृत्य का नाम ज्यादातर लोगों को पता ही है। देवाधिदेव का नृत्य जहाँ तांडवकहलाता है, वहीँ उसका प्रतिरूप जैसा पार्वती का नृत्य लास्य कहा जाता है। देवी के रुकने तक शिव जीत नहीं पाए थे।

अगर कभी, कहीं, किसी जगह, किसी के बोलना बंद ना करने के कारण आप नहीं जीत पाते तो ज्यादा अफ़सोस मत कीजिये। #महाशिवरात्रि ये भी याद दिला देती है कि वामांगी के रुकने से पहले तक, अर्धनारीश्वर भी नहीं जीत पाए थे।

ये कहानी शिव पुराण में आती है और शायद जालंधर नाम के असुर की है। ध्यान रहे, असुर बताया गया है राक्षस नहीं था, कम से कम इस कहानी तक तो नहीं। शक्ति-सामर्थ्य में अक्सर असुर देवों यानि सुरों से ऊपर ही होते थे। असुर ने भी थोड़े ही समय में इन्द्रासन कब्ज़ा लिया और जैसा कि आसुरी प्रवृत्ति होती है वैसे ही उसने भी सोचा कि अब मैं सबसे महान हूँ, तो सभी सबसे अच्छी चीज़ों पर मेरा अधिकार है।

इसी मद में असुर पहुंचा कैलाश पर और शिव के साथ पार्वती को देखकर कहा, सबसे सुन्दर स्त्री पर मेरा अधिकार है, तो लाओ इसे मेरे हवाले करो ! आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान कभी आपका नुकसान नहीं करते। वो सिर्फ आपकी मति भ्रष्ट कर देते हैं, फिर आप अपने शत्रु स्वयं हैं, भगवान को आपका नुकसान करने की जरूरत नहीं। भगवान शिव ने भी असुर के साथ यही किया।

असुर की भूख को पलटा कर उसपर छोड़ दिया ! भगवान शिव से प्रकट हुई वो प्रचंड क्षुधा रास्ते की सभी चीज़ों को निगलती असुर की ओर बढ़ी तो उसने पहले तो इस शक्ति का अपनी शक्तियों से प्रतिकार करने का प्रयास किया। लेकिन उन सभी प्रतिरोधों को निगलता वो जब असुर को लीलने को हुआ तो बेचारा असुर भागा। यहाँ-वहां कहीं शरण नहीं पाने पर बेचारा असुर अपनी मूर्खता पर पछताता आखिर भगवान शिव की ही शरण में पहुंचा और लगा प्राणों की भीख मांगने।

भगवान शिव ने जैसे ही उसे क्षमा करके सबकुछ निगलते पीछे ही आ रही शक्ति को रुकने कहा तो वो दैवी शक्ति बोली भगवान एक तो मुझे इसे ही खाने के लिए ऐसी भूख बना कर पैदा किया ! अब आप मेरा आहार ही छीन रहे हैं ? मैं अब खाऊंगा क्या ? भगवान ने एक क्षण सोचा और कहा, ऐसा करो स्वयं को ही खा जाओ ! आदेश पाते ही उसने पूँछ की ओर से खुद को खाना शुरू किया और अंत में केवल उसका मुख ही बचा। अक्सर हिन्दुओं के मंदिरों के द्वार पर यही मुख दिखता है।

भगवान शिव ने आदेश पालन के लिए स्वयं को खा लेने की उसकी क्षमता के लिए उसके मुख को ‘कीर्तिमुख’ नाम दिया था। उसे देवताओं से भी ऊपर स्थान मिला था।

कहानियां केवल प्रतीक होती हैं और ये कहानी भी खुद को ‘मैं’ को खा जाने की कहानी है। प्रतीक के माध्यम से ये वही कहा गया है जो काफी बाद के दोहे में ‘जो घर बारे आपना, सो चले हमारे साथ’ में कहा गया है। अपने अहंकार को खा जाने का ये आदेश कई बार कई ग्रंथों में कई साधू देते रहे हैं। ये अहंकार का आभाव सबसे आसानी से छोटे बच्चों में दिखेगा, इसी लिए बच्चों के रूप को शिव के पर्यायवाची की तरह भी इस्तेमाल किया जाना दिख जाएगा। दिगंबर, भोले जैसे नाम इसी लिए इस्तेमाल होते हैं।

इसी बच्चों वाले तरीके का इस्तेमाल कई जाने माने विद्वान अभी हाल में #SanskritAppreciationHour में करते हुए भी दिखे हैं। वो लोग पञ्च-चामर छन्द
में रचित शिवताण्डवस्तोत्र सीखने-सिखाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे। जैसे बच्चे किसी चीज़ को पहचाने, समझने के लिए उसे उल्टा पलटा कर तोड़ कर खोल कर देखने लगते हैं बिलकुल वही इसपर भी इस्तेमाल किया गया था। चर्चा अंग्रेजी में थी तो उनके तरीके को हमने सिर्फ हिंदी में कर देने की कोशिश की है। अगर पञ्च-चामर छन्द फ़ौरन याद ना आये तो बचपन में पढ़ी कविता याद कर लीजिये :

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।
~ जय शंकर प्रसाद
ये चार चरणों का वर्णिका छन्द होता है।

अब शिव ताण्डव का पहला श्लोक:
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

‘जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले’ से स्थले का मतलब स्थान, जगह होगा, ‘जल-प्रवाह-पावित’ का अर्थ पवित्र जल का बहना, प्रवाह होगा (शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र तीनों अलग अर्थ के शब्द हैं ध्यान रखिये)। ‘जटा-अटवी-गलत्’ यानि जटाओं के वन से बहती हुई, घनी जटाओं की तुलना वन से की गई जो कि अंग्रेजी के simily जैसा अलंकार है। अटवी का सही अर्थ विहार करने योग्य स्थान होता है, जो अट् धातु से बना है, इसी अट् से पर्यटन बनता है जिसका मतलब घूमने देखने के उद्देश्य से कहीं जाना होता है।

यहाँ ‘गलत्’ सन्धि में जल से मिलकर ‘गलज्’ हो जाता है। ये वर्तमान कृदन्त है जो वर्तमान काल में चल रही क्रिया का बोध कराता है। ‘गले ऽवलम्ब्य’ यानि गले से लटकता हुआ, ‘भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्’ भव्य साँपों की माला, और ‘लम्बिताम्’ एक विशेषण है जो माला के लिए इस्तेमाल किया गया है, जैसे हमलोग अभी भी किसी काम के अटके पड़े होने के लिए लटका हुआ या लम्बित कहते हैं। अगले वाक्य में फिर पीछे से ‘अयम्’ यानि ये ‘डमरु’ जो ‘निनादवत्’ अपनी ध्वनि यानि ‘डमड् डमड् डमड् डमड्’ से पहचाना जा रहा है।

अब यहीं ‘निनादवत्’ के अंत में ‘वत्’ आ रहा है लेकिन सन्धि होते ही वो ‘न्निनादवड्डमर्वयं’ हो जाता है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे भागवत गीता एक साथ जोड़ते ही भगवद्गीता हो जाती है, ‘त’ का ‘द’ जैसा हो जाना। अब इसमें जितना एक श्लोक के साथ सिखाया गया है उतने के लिए हमें पांच-छह बार तो किताबें पलटनी ही पड़ेंगी, लेकिन अच्छी चीज़ ये है कि किसी भी समय में अगर आप कुछ सीखना चाहते हैं तो सीख लेना आसान ही है। पहला कदम होता है अहंकार को खा जाना। मैं नहीं जानता ये स्वीकारना मुश्किल काम है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं है।

अंतिम वाक्य के ‘चकार’ का अर्थ वो कर चुके जैसा होगा, क्या किया वो खुद देखने की कोशिश कीजिये। बाकी शिवरात्रि शिव से जुड़ने के लिए योगियों को प्रिय रही है, अपनी उन्नति के साथ-साथ आप ज्ञान को एक पीढ़ी आगे भी बढ़ा रहे होंगे। अगर आप एक स्तोत्र भी सीखते हैं तो ये संयोग भी उत्पन्न होगा। प्रयास कीजिये !

Sunday, February 16, 2020

मन्त्र जाप का प्रभाव

मन्त्र जाप का प्रभाव 
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कलयुग में होने का एक फायदा है की हम मन्त्र जप कर बड़े बड़े तप अनुष्ठान का लाभ पा सकते है। मन्त्र अगर गुरु ने दीक्षा दे कर दिया हो तो और प्रभावी होता है।जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों के द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुँचाने में सक्षम होता है। सदगुरु से मिला हुआ मंत्र ‘सबीज मंत्र’ कहलाता है क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है।मन्त्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है जो मन को उर्ध्व गामी बनाते है।जिस तरह पानी हमेशा नीचे की बहता है उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है अगर उसे मन्त्र जप की तरंग का बल ना मिले।
 कई लोग टीका टिप्पणी करते है की क्या हमें किसी से कुछ चाहिए तो क्या उसका नाम बार बार लेते है ? पर वे नासमझ है और मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान है।
 
मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है। जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका। हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था, किंतु ज्योंहि वह रेख को लाँघने की इच्छा करता त्योंहि उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी।

मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है।

मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं।सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है।
 
जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं, ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धयाँ आने लगती हैं, किन्तु साधक को चाहिए कि इन सिद्धियों के चक्कर में न पड़े, वरन् अंतिम लक्ष्य परमात्म-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे।
 
मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है।मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है।
 
इसलिए रोज़ किसी एक मन्त्र का हो सके उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें.

Sunday, February 09, 2020

What happens after Death? Garuda Puranam glimpses

*So, what happens after death?*

Death is actually a very interesting process!!

*Disconnection of the earth sole chakras*
Approximately 4-5 hours before death, the earth sole chakras situated below the feet gets detached ... symbolizing disconnection from the earth plane!!

A few hours before an individual dies, their feet turn cold. 
When the actual time to depart arrives, it is said that Yama, the God of death appears to guide the soul.

*The Astral Cord*

Death severs the astral cord, which is the connection of the soul to the body. 
Once this cord is cut the soul becomes free of the body and moves up and out of the body.

If the soul is attached to the physical body it occupied for this lifetime, 
it refuses to leave and tries to get into the body and move it and stay in it. 
We may observe this as a very subtle or slight movement of the face, hand or leg after the person has died.

The soul is unable to accept that it is dead. 
There is still a feeling of being alive. 
Since the astral cord has been severed, the soul cannot stay here and is pushed upwards and out of the body. 
There is a pull from above ... a magnetic pull to go up.

*End of the physical body*

At this stage the soul hears many voices, all at the same time. 
These are the thoughts of all the individuals present in the room.

The soul on its part talks to his loved ones like he always did n shouts out "I am not dead" !!

But alas, nobody hears him.

Slowly and steadily the soul realizes that it is dead and there is no way back. 
At this stage, the soul is floating at approx 12 feet or at the height of the ceiling, seeing and hearing everything happening around.

Generally the soul floats around the body till it is cremated. 
So, the next time if you see a body being carried for cremation, be informed that *the soul is also part of the procession* seeing, hearing and witnessing everything and everyone.

*Detachment from the body*

Once the cremation is complete, the soul is convinced that  the main essence of its survival on earth is lost and the body it occupied for so many years has merged into the five elements.

The soul experiences complete freedom, the boundaries it had while being in the body are gone and it can travel anywhere by mere thought.

For 7 days the soul, moves about its places of interest like its favorite joint, morning walk garden, office, etc. 
If the soul is possessive of his money, it will just stay near his cupboard, or if he is possessive of his children, it will just be in their room, clinging on to them.

*By the end of the 7th day,* the soul says bye to his family and moves further upwards to the periphery of the earth plane to cross over to the other side.

*The Tunnel*

Its said that there is a big tunnel here which it has to cross before reaching the astral plane. 
Hence its said that the *first 12 days after death are extremely crucial.* 

We have to carry out the rituals correctly and pray and ask forgiveness from the soul, so that it does not carry negative emotions like hurt, hatred, anger, etc atleast from the near and dear ones.

All the rituals, prayers and positive energy act like food for the soul which will help it in its onward journey. 
At the end of the tunnel is a huge bright light signifying the entry into the astral world.

*Meeting the Ancestors*

On the 11th & 12th day, Hindus conduct homas and prayers and rituals through which the soul is united with its ancestors, close friends, relatives and the guides.

All the passed away ancestors welcome the soul to the upper plane and they greet and hug them exactly like we do here on seeing our family members after a long time.

The soul then along with its guides are taken for a thorough life review of the life just completed on earth in the presence of the *Great Karmic Board.* 
It is here in the pure light that the whole past life is viewed !!

*Life Review*

There is no judge, there is no God here. 
The soul judges himself, the way he judged others in his lifetime. 
He asks for revenge for people who troubled him in that life, he experiences  guilt for all wrongdoings he did to people and asks for self punishment to learn that lesson. Since the soul is not bound by the body and  the ego, the final judgment becomes the basis of the next lifetime.

Based on this, a complete life structure is created by the soul himself, called the blue print. 
All the incidents to be faced, all problems to be faced, all challenges to be overcome are written in this agreement.

In fact the soul chooses all the minute details like age, person and circumstances for all incidents to be experienced.

Example : An individual had severe headache in his present birth, nothing helped him, no medicines, no way out. In a session of past life regression, he saw himself killing his neighbour in a previous birth by smashing his head with a huge stone.

In the life review, when he saw this he became very guilty and  asked for the same pain to be experienced by him by way of a never ending headache in this life.

*Blue print*

This is the way we judge ourselves and in guilt ask for punishment. 
The amount of guilt in the soul, decides the severity of the punishment n level of suffering. 
Hence forgiveness is very vital. 
*We must forgive and seek forgiveness!!* 

Clear your thoughts and emotions, as we carry them forward to the other side too. 
Once this review is done and our blue print for the next life is formed, then there is a cooling period.

*The re-birth*

We are born depending on what we have asked for in the agreement. 
The cooling off period also depends on our urgency to evolve.

*We choose our parents* and enter the mothers womb either at the time of egg formation or during the 4-5th month or sometimes even at the last moment just before birth.

The universe is so perfect, so beautifully designed that the time and  place of birth constitutes our horoscope, which actually is a blue print of this life. 
Most of us think that our stars are bad and we are unlucky but in actuality, they just mirror your agreement.

*Once we are reborn, for around 40 days the baby remembers its past life and laughs and cries by itself without anyone forcing it to.* 
The memory of the past life is completely cut after this and we experience life as though we did not exist in the past.

*The agreement starts..*

Its here that we are completely in the earth plane and the contract comes into full effect. 
We then blame God/people for our difficult situations and  curse God for giving us such a difficult life …

So, the next time before pointing to the Divine, understand that our circumstances are just helping us complete and honor our agreement, which is fully and completely written by us. 
Whatever we have asked for and pre decided is exactly what we receive !!

Friends, relatives, foes, parents, spouses all have been selected by us in the blue print and come in our lives based on this agreement. 
 *They are just playing their parts and are merely actors in this film written, produced and directed by us!!* 

*Do the Dead need healing / prayers / protection ?*

The dead always need serious healing and  prayers for a variety of reasons, the most important one being ... To be free and not earthbound !! ... that is stuck in the earth plane and unable to leave.

There are many reasons for the soul to be earthbound like unfinished business, excessive grief, trauma on death, sudden death, fear of moving on to the astral plane, guilt, one of the most important being improper finishing of last rites and rituals.

The soul feels it needs a little more time to wait and finish before moving on.  This keeps them hovering on the earth plane. 
But the time is limited and it is very very important that they cross over within 12 days to their astral plane of existence, as the entry to the astral world closes a few days after this.

*Earthbound spirits lead a very miserable existence* as they are neither in their actual plane nor in a body to lead an earthly life. 
They may not be negative or harmful but they are stuck and miserable. 
Hence healing and prayers are of utmost importance during this period so that the departed soul crosses over to the designated astral plane peacefully.

Prayers by the whole family is very vital to help the dead cross over. 
The protection of the soul to help it reach its destination in the astral world is achieved through prayers.

*Please Do Not Take Death Lightly ...* 
Now more than ever most souls are stuck on the earth plane due to lack of belief and family neglect.

Finally, for someone who has lost a near and dear one, don’t feel sad ... 
We never die, we live on, death does not end anything, it is just a little break before we meet again !!

(This article has been extracted from ...
*The Garuda Puranam*)

Monday, February 03, 2020

मीन मे शुक्र ग्रह का प्रभाव VENUS IN PISCES transit for all 12 zodiac signs

*शुक्र आज 3 तारीख को  अपनी राशि बदल रहा हैं ओर मीन राशि मे जा रहे हैं जो उस की उच्च राशि हैं*

*शुक्र का मीन राशि में गोचर देगा उच्च राशि के प्रभाव (3 फरवरी, 2020)*

शुक्र को जीवन में सुख सुविधा प्रदान करने वाला मुख्य ग्रह माना गया है। शुक्र के प्रभाव से जीवन में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं की बढ़ोतरी होती है और व्यक्ति अपने जीवन में राज योग भोगता है। प्रेमियों के लिए भी शुक्र देव बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में शुक्र का अपनी उच्च राशि मीन में 3 फरवरी 2020 को गोचर करना कई जातकों के लिए वरदान साबित होने वाला है।

*शुक्र देंगे प्रेमियों को वैलेंटाइन डे उपहार*

इस चलते वैलेंटाइन डे पर कई राशि के जातक अपने प्रियतम संग प्रेम के इस दिवस का आनंद लेते दिखाई देंगे। आपकी सभी सुंदर परियोजनाएँ सही कर्म में होंगी। ऐसे में आप अपने साथी या प्रेमी को खुश करने के लिए उन्हें खाने के लिए बाहर लेकर जा सकते हैं क्योंकि आपका साथी आपको इस विशेष दिन बेहद ख़ास अनुभव कराएगा। इस समय अगर आपको उनके हर वक़्त फ़ोन में लगे रहने से दिक्कत महसूस होती थी तो आपकी ये शिकायत भी इस दौरान दूर होगी। कुल मिलाकर कहें तो शुक्र का मीन में गोचर प्रेमियों के लिए सोने पर सुहागे का कार्य करेगा।

*शुक्र गोचर का समय*

जीवन में सुखों का प्रदाता और प्रेम को बढ़ाने वाला शुक्र ग्रह 3 फरवरी, सोमवार की सुबह 02:13 बजे कुम्भ राशि से निकलकर देव गुरु बृहस्पति के स्वामित्व वाली मीन राशि में प्रवेश कर चुके हैं 
। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र के गोचर की अवधि काफी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसके शुभ प्रभाव से अनेक प्रकार के शुभ कार्य संपन्न होते हैं। मीन राशि में शुक्र के गोचर का प्रभाव सभी बारह राशियों पर देखने को मिलेगा क्योंकि यह शुक्र की उच्च राशि है।

तो आईये जानते हैं कि शुक्र के मीन राशि में गोचर का सभी राशि के जातकों पर कैसा प्रभाव पड़ने की संभावना है:

*यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।*

मेष राशि
आपके लिए शुक्र दूसरे और सातवें भाव के स्वामी हैं और इस गोचर की अवधि में आपके बारहवें भाव में विराजमान हो जाएंगे। इसके परिणाम स्वरूप आपके खर्चों में एकाएक वृद्धि होने लगेगी, जिसका असर आपकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा, लेकिन यह खर्चे आपकी सुख सुविधाओं को बढ़ाने वाले होंगे और आपको खुशी देंगे, जिससे आप आसानी से इस खर्च को वहन कर पाएंगे। आप की आमदनी भी बढ़ेगी आपके व्यापार में विदेशी संपर्कों का आपको लाभ हासिल होगा और धन निवेश के लिए भी यह समय काफी उन्नति दायक साबित होगा। आपको व्यसनों से बचने का प्रयास करना चाहिए। कुछ लोगों को व्यापार के सिलसिले में विदेश जाने का मौका भी मिल सकता है। इसके अलग कुछ ऐसे लोग, जिनका विवाह होने वाला है, उन्हें विवाह के बाद विदेश जाने की संभावना बनेगी। इस दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा क्योंकि अति व्यस्त दिनचर्या और अनियमित खान-पान के कारण आपको स्वास्थ्य कष्ट हो सकते हैं। यह समय धन निवेश करने के लिए अनुकूल रहेगा।

उपायः प्रत्येक शुक्रवार के दिन किसी धार्मिक स्थान पर मिश्री का दान करें।

वृषभ राशि
शुक्र देव आपकी राशि के स्वामी हैं यानि कि आप के पहले भाव के स्वामी होने के साथ-साथ आप के छठे भाव के स्वामी भी हैं। मीन राशि में शुक्र देव के इस गोचर की अवधि में वे आप के ग्यारहवें भाव में जाएंगे, जिसकी वजह से आपकी आमदनी में जबरदस्त इजाफा होगा। आपकी मनोनुकूल इच्छाएं पूरी होंगी और आपको खुशी मिलेगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा और पुरानी चली आ रही किसी बीमारी से मुक्ति मिलेगी। इस दौरान आपकी मित्र मंडली में इजाफा होगा। प्रेम संबंध के मामलों में यह गोचर काफी अनुकूल साबित होगा और आपके प्रेम जीवन को प्रेम से सराबोर कर देगा। आप अपने प्रियतम के साथ बेहतरीन पलों का आनंद लेंगे और आपको खुशी का एहसास होगा। आपकी शिक्षा में वृद्धि होगी और नौकरी के क्षेत्र में भी आपको इस दौरान अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। व्यापार में लाभ होने से आप काफी प्रसन्नता महसूस करेंगे।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन अरंड मूल धारण करनी चाहिए।

मिथुन राशि
मिथुन राशि के स्वामी बुध शुक्र के परम मित्र हैं। आपकी राशि के लिए शुक्र देव पाँचवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आपके दशम भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के प्रभाव से आपके परिवार में सुख शांति की बयार बहेगी। परिवार में ख़ुशियाँ आएँगी। परिवार के लोग कोई नया वाहन खरीदने का विचार करेंगे, जिसमें उन्हें सफलता हासिल होगी। लोगों के बीच प्रेम बढ़ेगा। यदि कार्य क्षेत्र की बात की जाए तो उसमें आपको अच्छे नतीजे मिलेंगे, लेकिन आप अति आत्मविश्वास के शिकार हो सकते हैं, जिसकी वजह से आपका काम बिगड़ सकता है, इसलिए से बचने का प्रयास करें। आपकी वाणी में मिठास बढ़ेगी और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आप का दबदबा बढ़ेगा। अपनी विद्या के बल पर आप अपने कार्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और इस सिलसिले में की गई यात्राएं भी आपके लिए फ़ायदेमंद साबित होंगी। बेवजह की बातों से अपना मन अलग रखें, नहीं तो काम में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करें।

कर्क राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव चौथे भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी होकर गोचर की इस अवधि में आपके नौवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको लंबी यात्राओं पर जाने का मौका मिलेगा। यह यात्राएं आपके सुख और आनंद में वृद्धि करेंगी। आप परिवार के लोगों के साथ या ऑफिस के सहकर्मियों के साथ किसी पिकनिक पर अच्छे रमणीक स्थान पर घूमने जा सकते हैं। आपके मान और सम्मान में बढ़ोतरी होगी। आपकी आमदनी भी बढ़ेगी और लोगों के बीच आपकी पूछ बढ़ेगी। कुछ लोगों को इस दौरान सुदूर स्थान पर जाकर प्रॉपर्टी का लाभ मिलेगा, यानि कि अपने जन्म स्थान से दूर कुछ लोग प्रॉपर्टी बना पाएंगे। इसके अतिरिक्त व्यापार के सिलसिले में आपको जबरदस्त लाभ होने के भी योग बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन चीनी दान में दें।

सिंह राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और दसवें भाव के स्वामी हैं और मीन राशि में गोचर करते हुए आपके आठवें भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने साथ काम करने वाले लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना होगा, अन्यथा आपको अपने पद से विमुक्त किया जा सकता है। इस दौरान अनचाहे ट्रांसफर के भी योग बन सकते हैं। गुप्त सुखों को भोगने की लालसा जागेगी, जिसकी वजह से आप काफी धन भी खर्च करेंगे। हालांकि मर्यादित आचरण करना ही बेहतर रहेगा। भाई बहनों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और यात्राओं में बेवजह का तनाव और खर्चे आपको परेशान करेंगे। अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान आपको इस दौरान रखना चाहिए।

उपायः आप को शुक्रवार के दिन गौमाता को आटे की लोई अपने हाथ से खिलानी चाहिए।

कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों के लिए शुक्र देव आपके दूसरे और नौवें भाव के स्वामी होने के बाद गोचर की इस अवधि में आप के सातवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको अपने दांपत्य जीवन में अनेक सुखों का लाभ मिलेगा आप उत्तम दांपत्य जीवन का सुख भोगेंगे। आपका जीवन साथी आपके लिए लाभ का माध्यम भी बनेगा और आपको इच्छित सुख प्रदान करेगा। आप दोनों के बीच संबंध बेहतर बनेंगे और परिवार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न करेंगे। व्यापार के सिलसिले में इस दौरान आपको जबरदस्त लाभ होने के योग बन रहे हैं, इसलिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं। यात्राओं से आपको लाभ मिलेगा। मान व सम्मान की बढ़ोतरी होगी और जनता की नजर में आपकी छवि बेहतर बनेगी। अपने संचित धन को व्यवसाय में निवेश कर सकते हैं। मानसिक रूप से आप काफी मजबूत रहेंगे और लोगों के प्रति स्नेह की भावना आपके मन में रहेगी, जिससे आप लोगों के प्रिय बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन माता महालक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।

तुला राशि
आपकी राशि के स्वामी शुक्र देव हैं। अर्थात आप के प्रथम भाव के साथ-साथ आपके अष्टम भाव के स्वामी शुक्र देव अपने मीन राशि में गोचर की समय अवधि में आपके छठे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपके खर्चों में यकायक वृद्धि होगी और यह आपकी जेब पर काफी भारी पड़ सकती है, इसलिए आपको काफी सोच समझकर अपना बजट प्लान करना होगा। स्वास्थ्य के मामले में यह समय बेहतर नहीं रहेगा और आपको अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि आपको इस दौरान असंतुलित दिनचर्या के चलते या व्यर्थ खान पान के चलते स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं। ये परेशानियाँ लंबे समय तक चल सकती हैं। धन हानि होने की संभावना रहेगी लेकिन इस दौरान यदि आपका कोई कर्ज़ है तो वह चुकता हो जाएगा, जिससे आपको आर्थिक रूप से कमज़ोरी तो होगी, लेकिन राहत की सांस भी मिलेगी। कार्य क्षेत्र में यह समय आँख और कान खोल कर अपने काम पर फोकस करने का है, तभी आपको अच्छे नतीजे हासिल होंगे। इस समय को बेहतर बनाने के लिए आपको एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा और खूब मेहनत करनी पड़ेगी ।

उपायः आपको उत्तम गुणवत्ता का ओपल रत्न शुक्रवार के दिन चाँदी की अंगूठी में अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।

वृश्चिक राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव सातवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आप के पांचवे भाव में गोचर करेंगे, जिसकी वजह से आपके प्रेम संबंधों में खुशबू बिखर जाएगी और आपका प्रेम जीवन काफी मजबूती से आगे बढ़ेगा। आप और आपके प्रियतम के बीच की सभी ग़लतफहमियाँ दूर हो जाएंगी और आप प्रेम के बंधन में बंध कर अपने जीवन को एक खुशनुमा राह पर आगे बढ़ाएंगे। इस दौरान आपकी शिक्षा में आपको बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे और आपकी गणना विद्वानों में होगी। अपनी क्रिएटिविटी के कारण आपको सब की प्रशंसा मिलेगी और आपका धन बढ़ेगा। अर्थात् प्रचुर धन लाभ के योग बनेंगे। दोस्तों और विपरीत लिंगी जातको में आप खासे लोकप्रिय हो जाएंगे और आपके सोशल सर्किल में इजाफा होगा। इस समय में आप कोई क्रिएटिव काम करेंगे, जिससे आपको प्रसिद्धि भी प्राप्त होगी। कुछ भाग्यशाली लोगों को इस दौरान संतान प्राप्ति के योग भी बनेंगे। व्यापार के सिलसिले में लाभ प्राप्ति का अवसर आपको अवश्य मिलेगा।

उपायः शुक्रवार को लौंग वाला पान माता महालक्ष्मी को अर्पित करें।

धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए शुक्र महाराज छठे भाव के साथ-साथ ग्यारहवें भाव के स्वामी भी होते हैं और गोचर की इस अवधि में वे आप के चौथे भाव में प्रवेश करेंगे, जिससे परिवार में खुशियाँ आएँगी। कोई अच्छा समारोह या फिर कोई फंक्शन या शुभ कार्य आपके घर में संपन्न होगा, जिसमें अतिथियों के आगमन से घर में हर्ष और उल्लास की स्थिति बनेगी। मेहमानों का आगमन होगा जिसकी वजह से परिवार में नई चेतना और लोगों में एक दूसरे के प्रति स्नेह की भावना बढ़ेगी। कार्य क्षेत्र में भी आपको उत्तम नतीजे प्राप्त होंगे। आपके काम में आपको प्रशंसा मिलेगी और आपकी सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ जाएगी। आपको अनेक प्रकार के सुख मिलेंगे। इस दौरान परिवार में कोई नया वाहन आ सकता है और अपने घर को सजाने संवारने पर भी आप खासा ध्यान देंगे।

उपायः शुक्रवार के दिन किसी महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करें।

मकर राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं और इस प्रकार आपके लिए ये एक योगकारक ग्रह हैं। गोचर की इस अवधि में यह आपके तीसरे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको अनेक सुखद यात्राओं पर जाना पड़ेगा। गोचर की इस अवधि में आप मौज मस्ती के लिए या मित्रों के साथ घूमने करने के प्लान बनाएँगे, जिससे आपको खूब खुशी का अनुभव होगा और अपने आप को ऊर्जावान महसूस करेंगे। इस दौरान यात्राओं से आपको कुछ नए संपर्क जुड़ेंगे, जो भविष्य में आपके काम आएँगे। प्रेम जीवन में वृद्धि होगी। यदि आप अभी तक सिंगल हैं, तो आपके जीवन में कोई खास व्यक्ति आ सकता है, जिससे आपको प्रेम हो जायेगा। यदि आप विवाहित हैं तो आपकी संतान को इस दौरान प्रगति मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल रहेगा। कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों से आप यदि अपने व्यवहार को बेहतर बनाएँगे तो उससे आपको उनका सहयोग भी समय समय पर मिलता रहेगा और आप तरक्की की राह पर आगे बढ़ेंगे।

उपायः भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें और उन्हें दूर्वांकुर (दूब घास) चढ़ाएँ।

कुंभ राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव आपके चौथे और नौवें भाव के स्वामी होकर योगकारक ग्रह हैं और आपके दूसरे भाव में गोचर की अवधि में विराजमान होंगे। इस गोचर के फल स्वरूप आपको अनेक अच्छे नतीजे मिलेंगे। आप अच्छे भोजन का आनंद लेंगे और स्वादिष्ट व्यंजनों का जी भर कर मजा लेंगे। कोई सुख शांति पूर्ण काम होगा, जिससे घर में रौनक लौट आएगी। इस दौरान भाग्य का आपको पूरा साथ मिलेगा और आपकी योजनाएं आपको धन प्रदान करेंगी। धन संचित करने में भी आपको इस दौरान सफलता मिलेगी और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। यह समय आपको सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी समृद्ध बनाएगा। इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों से भी आपको लाभ होगा और कोई प्रॉपर्टी या फिर वाहन से आपको उत्तम प्रकृति के लाभ के योग बनेंगे। इस प्रकार यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल साबित होगा और आपकी भाग्य वृद्धि के साथ-साथ मान सम्मान में भी बढ़ोतरी लेकर आएगा।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन घर की स्त्रियों को कोई सफ़ेद मिठाई खिलानी चाहिए।

मीन राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और आठवें भाव के स्वामी हैं और गोचर की इस अवधि में आप के प्रथम भाव में विराजमान होंगे। इन दोनों ही भावों के स्वामी होने से आपको शारीरिक तौर पर कुछ परेशानियां झेलनी पड़ेंगी और आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना होगा। वहीं अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे और आपका मन किसी प्रकार के शोध या छुपी हुई बातों को जानने में होगा। आप अपने किसी टैलेंट को समाज के सामने लेकर आएँगे, जिससे आपको मान सम्मान मिलेगा। इस दौरान आपके भाई बहनों से आपको अच्छे लाभ मिलेंगे और वे हर काम में आपके साथ खड़े नजर आएँगे। दांपत्य जीवन के लिहाज से यह समय काफी अनुकूल रहेगा और आप और आपके जीवनसाथी के मध्य प्रेम बढ़ेगा, जिससे आपको दांपत्य सुख की प्राप्ति होगी और व्यापार के सिलसिले में भी लाभ मिलेगा। इसका सबसे अच्छा लाभ यह होगा कि आपके व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ेगा और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आपको उनकी नजर में अपने आप को सिद्ध करने का मौका मिलेगा।

उपायः आपको दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए और मां दुर्गा को लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए।
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