tag:blogger.com,1999:blog-42769930736874413022024-03-14T14:25:35.658+05:30Astrorrachita(Rachita) - WWW.ASTRORRACHITA.INAstrorrachita Divinations is the Complete solution at one point for LIFE,PROFESSIONAL AND PERSONAL COACHING THROUGH DIVINATION SCIENCES.
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Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.comBlogger285125tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-10705680374880820382023-04-26T15:23:00.001+05:302023-04-26T15:23:41.059+05:30श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र जानिए इस चमत्कारिक यंत्र से अपनी समस्याओं का समाधान🕉<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjkT6zNFLRkOuCLc8RNvDUjCHhQkiGSE8p5pgwG0kcw_y_b5HRbS2FQ6u-eq9xqfPAJZqzx1-DCYkEP74D5B4P2Nmxh-YzfAGQ0Wg4sXsqrj01pRvAxiZs0kUmHIINvrsm7CETDMkcARud6QQh5iA4vuEc4vix4dUxlJndS_ebihZ0ItuYMSEjShmPn" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjkT6zNFLRkOuCLc8RNvDUjCHhQkiGSE8p5pgwG0kcw_y_b5HRbS2FQ6u-eq9xqfPAJZqzx1-DCYkEP74D5B4P2Nmxh-YzfAGQ0Wg4sXsqrj01pRvAxiZs0kUmHIINvrsm7CETDMkcARud6QQh5iA4vuEc4vix4dUxlJndS_ebihZ0ItuYMSEjShmPn" width="400">
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</div><p> 🕉श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र जानिए इस चमत्कारिक यंत्र से अपनी समस्याओं का समाधान🕉</p><p> हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है जैसे हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, राम श्लोकी प्रश्नावली, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि। इन यंत्रों की सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। इन्ही में से एक श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के बारे में हम आज आपको बता रहे है।</p><p>हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।</p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="" border="0" class="placeholder" height="240" id="f5f00f5f983cc" src="https://www.blogger.com/img/transparent.gif" style="background-color: #d8d8d8; background-image: url('https://fonts.gstatic.com/s/i/materialiconsextended/insert_photo/v6/grey600-24dp/1x/baseline_insert_photo_grey600_24dp.png'); background-position: center; background-repeat: no-repeat; opacity: 0.6;" width="320"></div><br><br><p></p><p>उपयोग विधि</p><p>〰️🌼🌼〰️</p><p>जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।</p><p><br></p><p>1- आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।</p><p><br></p><p>2- आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार करें। गाय को चारा खिलाएं।</p><p><br></p><p>3- आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा करें।</p><p><br></p><p>4- आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल देवता की पूजा करें।</p><p><br></p><p>5- आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।</p><p><br></p><p>6- रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।</p><p><br></p><p>7- पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।</p><p><br></p><p>8- आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको लाभ होगा।</p><p><br></p><p>9- आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।</p><p><br></p><p>10- शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन पूजन करें।</p><p><br></p><p>11- यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता मिलेगी।</p><p><br></p><p>12- राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है। मान-सम्मान प्राप्त होगा।</p><p><br></p><p>13- कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ अनुकूल रहेगा।</p><p><br></p><p>14- जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से मिलाप होगा।</p><p><br></p><p>15- आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग भी बन रहे हैं।</p><p><br></p><p>16- आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।</p><p><br></p><p>17- आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।</p><p><br></p><p>18- यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।</p><p><br></p><p>19- आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें। कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।</p><p><br></p><p>20- शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।</p><p><br></p><p>21- आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन करें।</p><p><br></p><p>22- यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति का अनुभव होगा।</p><p><br></p><p>23- आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा करें।</p><p><br></p><p>24- आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी और लाभ मिलेगा।</p><p><br></p><p>25- पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी। आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।</p><p><br></p><p>26- यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।</p><p><br></p><p>27- आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।</p><p><br></p><p>28- आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।</p><p><br></p><p>29- आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर में सुख-शांति रहेगी।</p><p><br></p><p>30- रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको सफलता मिलेगी।</p><p><br></p><p>31- आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे बच्चों को मिठाई बांटें।</p><p><br></p><p>32- आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।</p><p><br></p><p>33- माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा पूरी होगी।</p><p><br></p><p>34- मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।</p><p><br></p><p>35- परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें। आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।</p><p><br></p><p>36- आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं रखें।</p><p><br></p><p>37- आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का पूजन करें।</p><p><br></p><p>38- लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।</p><p><br></p><p>39- आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी मिलेगी।</p><p><br></p><p>40- आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।</p><p><br></p><p>41- आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।</p><p><br></p><p>42- आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों का दान करें।</p><p><br></p><p>43- रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।</p><p><br></p><p>44- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन जाएंगे।</p><p><br></p><p>45- धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का चिंतन करें।</p><p><br></p><p>46- धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।</p><p><br></p><p>47- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी होगी।</p><p><br></p><p>48- आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी। पीपल को रोज जल चढ़ाएं।</p><p><br></p><p>49- अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी समस्या दूर होगी।</p><p><br></p><p>50- आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य करें।</p><p><br></p><p>51- आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।</p><p><br></p><p>52- एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को भोजन कराएं।</p><p><br></p><p>53- यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप श्रीगणेश का आराधना करें।</p><p><br></p><p>54- आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं। सफलता अवश्य मिलेगी।</p><p><br></p><p>55- आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।</p><p><br></p><p>56- परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह समस्या दूर हो जाएगी।</p><p><br></p><p>57- आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।</p><p><br></p><p>58- आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को नारियल चढ़ाएं।</p><p><br></p><p>59- जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप शनिदेव की उपासना करें।</p><p><br></p><p>60- आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में चौमुखी दीपक लगाएं।</p><p><br></p><p>61- यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।</p><p><br></p><p>62- आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो जाएंगे।</p><p><br></p><p>63- आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा करने से आपको सफलता मिलेगी।</p><p><br></p><p>64- आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो जाएगा।</p>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-65285694735301332992022-07-06T19:29:00.001+05:302022-07-06T19:31:08.530+05:3024 gurus of Lord Dattatrey दत्तात्रेय <div>भगवान_दत्तात्रेय ने 24 गुरु_बनाए थे। </div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCHCzr4Wva_qN6DAY2-5OpNm2vDZ0-bwpdfWmRC5V84anBjo-VX66LZMtVs4b-GkwdzQTIPYnLn4YqzuPw3T0IXFQLxdVUZf2Kw5Vm5tZu4m9kkfriCvbWGV1SbEL97WnGoRis4OGS6SM/s1600/1657115978935070-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div> <b>भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु कौन कौन हैं</b> और उनसे क्या सीखा जा सकता है।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbLH9EFmeZxxP5qJI8UtJaZNCbZO2kOiHwgHOcyD245ShnYuVA1Kpo0rKLZErBZnqYxq6q3_AwplEukVCD46wZmtH1QGxuEOf0lT1JrWus88cSdR8UnZBmJnagIB1skgVb2G8h_EUvf8A/s1600/1657116063183891-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div><br></div><div>1. <b>पृथ्वी-</b> सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।</div><div><br></div><div> 2. <b>पिंगला वेश्या</b>- पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। वह वेश्या सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी, वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा, तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई। </div><div><br></div><div>3. <b>कबूतर</b>- कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख ही वजह होता है। </div><div><br></div><div>4. <b>सूर्य-</b> सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है। </div><div><br></div><div>5. <b>वायु</b>- जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोडऩा नहीं चाहिए। </div><div><br></div><div>6. <b>हिरण</b>- हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए। </div><div><br></div><div>7. <b>समुद्र</b>- जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए। </div><div><br></div><div>8. <b>पतंगा</b>- जिस प्रकार पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।</div><div><br></div><div>9. <b>हाथी</b>- हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी को आसक्ति से बहुत दूर रहना चाहिए।</div><div><br></div><div>10. <b>आकाश</b>- दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।</div><div><br></div><div>11. <b>जल</b>- दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए। </div><div><br></div><div>12. <b>छत्ते से शहद निकालने वाला</b>- मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए। </div><div><br></div><div>13. <b>मछली</b>- हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो। </div><div><br></div><div>14. <b>कुरर पक्षी</b>- कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है। </div><div><br></div><div>15. <b>बालक-</b> छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए। </div><div><br></div><div>16. <b>आग-</b> आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। </div><div><br></div><div>17. <b>चंद्रमा</b>- आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है। </div><div><br></div><div>18. <b>कुमारी कन्या</b>- कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूडिय़ां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूडिय़ों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूडिय़ों आवाज बंद करने के लिए चूडिय़ां ही तोड़ दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें ही एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए।</div><div><br></div><div>19. <b>शरकृत या तीर बनाने वाला</b>- अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ। </div><div><br></div><div>20. <b>सांप-</b> दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए। </div><div><br></div><div>21. <b>मकड़ी</b>- मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान भी माय जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं। </div><div><br></div><div>22. <b>भृंगी कीड़ा</b>- इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है। </div><div><br></div><div>23.<b> भौंरा या मधुमक्खी</b>- भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है। </div><div><br></div><div>24. <b>अजगर</b>- अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-72665435728680245922022-07-06T07:54:00.001+05:302022-07-06T07:54:36.963+05:30सावन के आयुर्वेदिक नियम Do's and don't in monsoon <div>#सावन__के__आयुर्वेदिक__नियम</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSlM1m7pX7lzVu3mPkhDh5DUxJu7HhmPo1xH5h_d1Mr2BJ7w-1W7_TUy1au-nkoeJAwU-n9qdHsP5z6SE6ssUSC-0_Fp00SdkpGsPGyaFEtEcCAfFjahwRAw1Uv_pekgkit_0SxcHCPqs/s1600/1657074273694363-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>इस महीने में नहीं पीना चाहिए दूध, ये चीजें जरूर खाएं</div><div><br></div><div>तेज लू-लपट और झुलसा देने वाली तेज गर्मी के बाद बारिश का मौसम बहुत सुहाना लगता है। बारिश के मौसम की ठंडी हवाएं, फुहार और हरियाली माहौल खुशनुमा बना देती हैं। इस मौसम में बरसते पानी को देखते हुए पकौड़ों का लुत्फ उठाने का भी अपना मजा है।</div><div><br></div><div>👉🏽 #_आयुर्वेद के नजरिए से देखा जाए तो इस मौसम में जठराग्नि कमजोर रहती है और वात प्रकुपित रहता है। इसलिए आहार-विहार संबंधी नियमों का पालन भी जरूरी होता है। आइए, आज जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार किन चीजों को सावन में खाना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए।</div><div> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHutpTe4SF8siLTKM1QSFTCYCfXHcNpIAxCxlVVB180-FJCKZk42wU4G3V4H5i0kiFBQXraX4YbGcRf3dBAC4Mta461pS0yEpO50IFXxPDwetcwQQsiqBb4qJdWdgKs8L5WRDhrnqDLDw/s1600/1657074269528412-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div><div>▪️ #_न_करें_दूध_का_सेवन - आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। आप सोच रहे होंगे कि भला दूध से क्या नुकसान हो सकता है। दरअसल, सावन में बारिश के कारण हरियाली ज्यादा होती है। मौसम परिवर्तन के कारण हरियाली में जहरीले कीड़ेे-मकोड़ों की भी अधिकता होती है।</div><div><br></div><div>सावन के महीने में दूध से बनी चीजों को भी सावन में खाने से मना किया जाता है। सावन के महीने में कच्चा दूध नहीं पीना चाहिए। कच्चा दूध पीने से पित्त और कफ की परेशानी हो सकती है। </div><div><br></div><div>यही कारण है कि गाय या भैंस घास के साथ कई कीड़े-मकोड़ों को भी खा जाते है। इसलिए दूध हानिकारक हो जाता है। इस समय में दूध के सेवन से वात बढ़ता है, जिसके कारण बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए सावन में दूध नहीं पीना चाहिए। इस कारण दूध गुणकारी कम और हानिकारक ज्यादा हो जाता है।</div><div><br></div><div>▪️ #_कच्ची_हरी_सब्जियों_से_दूर_रहें- सावन के महीने में हरी सब्जियों का सेवन वर्जित माना गया है। दरअसल, आयुर्वेद के अनुसार बारिश की हरी सब्जियों में बीमारी फैलाने वाले कीटाणु बहुत अधिक होते हैं। इससे पेट व त्वचा से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं। इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए सावन में हरी सब्जियां नहीं खानी चाहिए।</div><div><br></div><div>▪️ #_बैंगन से करें तौबा - सावन के महीने में बैंगन भी नहीं खाना चाहिए। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। </div><div><br></div><div>▪️ #_जरूर_खाएं ये चीजें- आयुर्वेद के अनुसार बारिश में सुपाच्य, ताजा, गर्म और जल्दी पचने वाली चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में पुराना गेहूं, चावल, मक्का, सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मूंग, अरहर की दाल, सब्जियों में लौकी, तुरई, टमाटर। फलों में सेब, केला, अनार, नाशपाती, पके जामुन, देशी आम और घी व तेल में बनी नमकीन चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में जामुन खाने के भी अनेक फायदे हैं। जामुन खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है, त्वचा रोग, प्रमेह रोग आदि दूर रहते हैं। भुट्टों का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। वैज्ञानिक तौर पर सावन के महीने में सलाद का सेवन नहीं करना चाहिए। बारिश के मौसम में सब्जियों में बैक्टीरिया पैदा हो जाता है इसलिए कच्ची सब्जियों का खाना वर्जित होता है। खास तौर पर सावन के महीने में मशरुम का सेवन एकदम नहीं करना चाहिए।</div><div><br></div><div>▪️ #_सावन के महीने में तली और भुनी चीजें सेहत के लिए नुकसान दायक होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि ऐसी चीजें इस मौसम में खाने से पेट में सूजन आ जाती है और साथ ही पाचन क्रिया भी कमजोर हो जाती है।</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-901033586610525272022-05-21T09:13:00.001+05:302022-05-21T09:13:37.398+05:30कृष्ण के जाने के बाद राधा का क्या हुआ <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkg0vsSe62-mRtZVC-M9yEeUUBXMPbhT_gUkHtpDVO2GViWPvu3uOwdPJDFMtttZvzAaj5uHj94VI3o559fjgLUBEtVhTFls2Q3C2yEY4FaMdrabMR-L7WSlpILsqgVXwGWMmhAJo7Aos/s1600/1653104613150263-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><div>राधा-कृष्ण</div><div><br></div><div>मंदिरों में केवल श्रीकृष्ण की अकेले मूर्ति देखना कम पाया जाता है, अमूमन हम उनकी मूर्ति के साथ राधा की मूर्ति जरूर देखते हैं। आप स्वयं वृंदावन के किसी भी मंदिर में प्रवेश कर लीजिए, वहां आपको राधे-कृष्ण की ही मूर्ति के दर्शन होंगे...</div><div><br></div><div>कृष्ण से राधा को और राधा से कृष्ण को कोई जुदा नहीं कर सकता, यह एक गहरा रिश्ता है लेकिन जब वास्तव में श्रीकृष्ण अपनी प्रिय राधा को छोड़कर मथुरा चले गए थे तब राधा का क्या हुआ? कृष्ण के बिना उन्होंने अपना जीवन कैसे बिताया? क्या जीवन बिताया भी था या....</div><div><br></div><div>यह सवाल काफी गहरे हैं लेकिन उससे भी गहराई में जाने के बाद इन सवालों का सही उत्तर सामने आया है। यह सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण का बचपन वृंदावन की गलियों में बीता। नटखट नंदलाल अपनी लीलाओं से सभी को प्रसन्न करते, कुछ को परेशान भी करते लेकिन कृष्ण के साथ ही तो वृंदावन में खुशियां थीं।</div><div><br></div><div>बड़े होकर कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता, लेकिन सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वह थीं राधा। परंतु राधा से कई अधिक स्वयं कृष्ण, राधा के दीवाने थे।</div><div><br></div><div>क्या आप जानते हैं कि राधा, कृष्ण से उम्र में पांच वर्ष बड़ी थीं। वे वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं लेकिन रोज़ाना कृष्ण की मधुर बांसुरी की आवाज़ से खींची चली वृंदावन पहुंच जाती थी।कृष्ण भी राधा से मिलने जाते</div><div><br></div><div>जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां उनके आसपास एकत्रित हो जातीं, उस मधुर संगीत को सुनते हुए सभी मग्न हो जाते। और इसी का फायदा पाकर कई बार कृष्ण चुपके से वहां से निकल जाते और राधा से मिलने उनके गांव पहुंच जाते। लेकिन धीरे-धीरे वह समय निकट आ रहा था जब कृष्ण को वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना था।</div><div><br></div><div>यह तब की बात थी जब कृष्ण के दुष्ट मामा कंस ने उन्हें और उनके भ्राता बलराम को मथुरा आमंत्रित किया। यह बात पूरी वृंदावन नगरी में फैल गई, सभी के भीतर एक डर पैदा हो गया मानो उनकी अपनी कोई चीज़ उनसे दूर जाने वाली हो।</div><div><br></div><div>वृंदावन में शोक का माहौल उत्पन्न हो गया, इधर कान्हा के घर में मां यशोदा तो परेशान थी हीं लेकिन कृष्ण की गोपियां भी कुछ कम उदास नहीं थीं। दोनों को लेने के लिए कंस द्वारा रथ भेजा गया, जिसके आते ही सभी ने उस रथ के आसपास घेरा बना लिया यह सोचकर कि वे कृष्ण को जाने नहीं देंगे।</div><div><br></div><div>उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए। फिर मिली उन्हें राधा, जिसे देखते ही वे कुछ कह ना सके। राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है।</div><div><br></div><div>दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे। राधा कृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं। कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती, इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी।</div><div><br></div><div>अंतत: कृष्ण, राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।</div><div><br></div><div>अखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, ना कोई चहल-पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे। परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन क्यों! क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।</div><div><br></div><div>शारीरिक रूप से जुदाई मिलना उनके लिए कोई महत्व नहीं रखता था, यदि कुछ महत्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़ा रहना। कृष्ण के जाने के बाद राधा पूरा दिन उन्हीं के बारे में सोचती रहती और ऐसे ही कई दिन बीत गए। लेकिन आने वाले समय में राधा की जिंदगी क्या मोड़ लेने वाली थी, उन्हें इसका अंदाज़ा भी नहीं था।</div><div><br></div><div>माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह करना पड़ा और विवाह के बाद अपना जीवन, संतान तथा घर-गृहस्थि के नाम करना पड़ा। लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी वे कृष्ण का ही नाम लेती थीं। दिन बीत गए, वर्ष बीत गए और समय आ गया था जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी। फिर एक रात वे चुपके से घर से निकल गई और घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची।</div><div><br></div><div>वहां पहुंचते ही उसने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वह मौका प्राप्त ना हुआ। परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला। राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन तब ही दोनों में कोई वार्तालाप ना हुई।</div><div><br></div><div>क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी उपस्थित थे, उन्हें लफ़्ज़ों की आवश्यक्ता नहीं थी। कहते हैं राधा कौन थी, यह द्वारिका नगरी में कोई नहीं जानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया, वे दिन भर महल में रहती, महल से संबंधित कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती।</div><div><br></div><div>लेकिन फिर भी ना जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था, जो बीतते समय के साथ बढ़ता जा रहा था। उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता, उनकी यह भवनाएं उन्हें कृष्ण के पास रहने न देतीं। साथ ही बढ़ती उम्र ने भी उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने को मजबूर कर दिया। अंतत: एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई और ना जाने किस ओर चल पड़ी।</div><div><br></div><div>वे नहीं जानती थीं कि वे कहां जा रही हैं, आगे मार्ग पर क्या मिलेगा, बस चलती जा रही थी। परंतु कृष्ण तो भगवान हैं, वे सब जानते थे इसलिए अपने अंतर्मन वे जानते थे कि राधा कहां जा रही है। फिर वह समय आया जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी, वह अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी और यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए।</div><div><br></div><div>कृष्ण को अपने सामने देख राधा अति प्रसन्न हो गई। परंतु दूसरी ओर वह समय निकट था जब राधा पाने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना चाहती थी। कृष्ण ने राधा से प्रश्न किया और कहा कि वे उनसे कुछ मांगे लेकिन राधा ने मना कर दिया।</div><div><br></div><div>कृष्ण ने फिर से कहा कि जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा, इसलिए राधा ने एक ही मांग की और वह यह कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’। कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया, बांसुरी बजाते-बजाते राधा ने अपने शरीर का त्याग किया और दुनिया से चली गई। उनके जाते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी और कोसों दूर फेंक दी।</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-66263529126777827912022-05-04T09:27:00.001+05:302022-05-04T09:27:19.763+05:30 पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत अपनावे ये घरेलू उपाय_*<div>*☘️ *_पहचाने अपनी पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत अपनावे ये घरेलू उपाय_*</div><div><br></div><div>पेट के रोग और पेट की गर्मी</div><div><br></div><div>*हमारे पेट में गर्मी हो रही है, इस बात पता ऐसे लगाएं*</div><div><br></div><div>छाती या सीने में जलन होना</div><div>सांस लेने में तकलीफ होना</div><div>मुंह में खट्टा पानी और खट्टी डकारें आना</div><div>घबराहट और उल्टी जैसा महसूस होना</div><div>पेट में जलन और दर्द होना</div><div>गले में जलन होना</div><div>पेट का फूल जाना (पेट में अफ़ारा होना)</div><div>कब्ज होना</div><div>सिर दर्द होना</div><div>पेट में गैस का बनना</div><div><br></div><div> *पेट को ठंडा रखने के लिए क्या खाएं?*</div><div><br></div><div>पेट को ठंडा रखने के लिए हमें सबसे पहले अपने खान-पान के तरीकों में बदलाव लाना होगा. </div><div><br></div><div>*पेट को ठंडा रखने के लिए करें ये उपाय:*</div><div><br></div><div>1. केला खाएं:</div><div>पेट की गर्मी को शांत करके उसे ठंडा रखने में केला बहुत मदद करता है. केले के पोटेशियम की मात्रा पेट में बनने वाले एसिड को नियंत्रित करती है और केले का पी एच तत्व एसिड को कम करता है. साथ ही केला, पेट में एक चिकनी पर्त बना देता है जिससे एसिडिटी में कमी आती है. केले का फाइबर पाचन तंत्र को भी दुरुस्त रखता है.</div><div><br></div><div> 2. तुलसी के पत्तों का सेवन:</div><div>तुलसी के पत्तों का सेवन करने से पेट में पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेट के अतिरिक्त ऐसिड में कमी आती है. इसे खाने से मिर्च-मसाले वाला खाना भी सरलता से पच जाता है. रोज खाने के बाद पाँच-छह तुलसी के पत्ते खाने से एसिडिटी नहीं होती है.</div><div><br></div><div> 3. ठंडा दूध पियें:</div><div>दूध का कैल्शियम, पेट के एसिड को एब्जॉर्ब करके उसे बहुत आसानी से ख़त्म कर देता है. रोज सुबह एक कप ठंडा दूध पेट को ठंडा रखने का रामबाण इलाज है.</div><div><br></div><div> 4. सौंफ खाएं:</div><div>खाना खाने के बाद सौंफ का सेवन इसलिए अच्छा माना जाता है क्योंकि सौंफ की तासीर ठंडी होती है जो पेट की जलन और गरमी को शांत करती है. इसलिए अगर एसिडिटी की शिकायत ज्यादा हो तो सौंफ को पानी में उबालकर उसका सेवन करें.</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-86819278666388584082022-02-16T21:16:00.001+05:302022-02-16T21:16:14.703+05:30पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्यनारायण व्रत कथा...<div>श्री सत्यनारायण व्रत </div><div>〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰️〰️</div><div>पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्यनारायण व्रत कथा...?</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है । पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । </div><div>जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें। </div><div><br></div><div>सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है, भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।</div><div>सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की। शतानन्दअति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्तिअपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। </div><div><br></div><div>वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ </div><div><br></div><div>(इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुर में प्रवेश) की स्थिति में आए। काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरण किया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की। राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रती थे। वे नियमित रूप से भद्रशीलानदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना करते थे। सत्याचरण ही उनके जीवन का मूल मन्त्र था। दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरण किया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की। साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावती नामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्म के पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चाना से मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुर में श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु के कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामी से झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादन के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिक के मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावती को अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज तो पूजास्थल पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत:बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की और सत्याचरण का व्रत लिया। सत्यनारायण व्रतकथा के उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापा त्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से स्कंद पुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीन व्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही हो सकता है। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीन थे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिकनएवं राजा तुंगध्वज धन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धन सम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे। पूरी सत्यनारायण व्रत कथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिक हितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरण का व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरण का अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :</div><div><br></div><div>यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।</div><div>केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।</div><div>नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।</div><div><br></div><div>अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।</div><div><br></div><div>भगवान सत्यनारायण पूजा सामग्री</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>भगवन सत्यनारायण की मूर्ति या फ़ोटो</div><div>1 चौकी या पटला तथा उस पर बिछाने के लिए एक मीटर पीला या सफ़ेद कपडा</div><div>अबीर</div><div>गुलाल</div><div>कुमकुम (रोली)</div><div>सिंदूर</div><div>हल्दी</div><div>मोली</div><div>धुप</div><div>अगरबत्ती</div><div>10 ग्राम लौंग</div><div>10 ग्राम इलायची</div><div>32 सुपारी</div><div>चन्दन</div><div>500 ग्राम चावल</div><div>250 गेहूँ</div><div>50 ग्राम कपूर</div><div>इत्र</div><div>कापूस</div><div>गंगाजल</div><div>गुलाबजल</div><div>गोमूत्र</div><div>पञ्च मेवा</div><div>5 जनेऊ</div><div>1 नारियल</div><div>भगवन के वस्त्र</div><div>250 ग्राम घी</div><div>10 ग्राम पीली राई</div><div>5 पान के पत्ते</div><div>5 आम के पत्ते</div><div>हार फूल तुलसी पत्र</div><div>4 केले के खम्बे</div><div>250 ग्राम मिठाई</div><div>1 लीटर दूध</div><div>250 ग्राम दही</div><div>100 ग्राम चीनी</div><div>50 ग्राम शहद</div><div>भगवन के भोग के लिये चूरमा, पंजीरी या हलुआ इत्यादि</div><div><br></div><div>हवन प्रकरण (यदि हवन करना हो तो )</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>हवन सामग्री</div><div>तिल</div><div>चावल</div><div>जौ</div><div>चीनी</div><div>घी</div><div>नव ग्रह समिधा 2 बण्डल</div><div>1 किलो आम की लकड़ी</div><div><br></div><div>पूजा के पूर्व की तैयारी</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>जिस दिन पूजा करनी हो एक या दो दिन पूर्व ही यतन अनुसार पूजा की सभी सामग्री बाजार से ला कर उसे चेक कर ले ताकि पूजा के समय असुविधा न हो।</div><div><br></div><div>पूजन विधि</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्तव को बतलाता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।</div><div><br></div><div>पूजन का मंडप तैयार करना</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>पूर्वाभिमुख हो कर एक चोकी पर पीला कपडा बिछा कर केले के खम्बे को लगा दे उस के बाद चित्रानुसार भगवन श्री सत्यनाराण गणेश नवग्रह कलश षोडश मातृकाएँ वास्तुदेवता की स्थापना करें अष्टदल या स्वस्तिक बनाएं। बीच में चावल रखें। पान सुपारी से भगवान गणेश की स्थापना करें। अब भगवान सत्यनारायण की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या नारायण की प्रतिमा की भी स्थापना करें।</div><div>सत्यनारायण के दाहिनी ओर शंख की स्थापना करें। जल से भरा एक कलश भी दाहिनी ओर रखें। कलश पर शक्कर या चावल से भरी कटोरी रखें। कटोरी पर नारियल भी रखा जा सकता है। अब बायी ओर दीपक रखें। केले के पत्तों से पाटे के दोनो ओर सजावट करें।</div><div>अब पाटे के आगे एक सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रखें तथा नवग्रह मंडल बनाएं पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाना है। और उस के साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें तथा षोडशमातृका मंडल तैयार करने के बाद पूजन शुरु करें।</div><div>प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें। या जितना शक्ति हो उस अनुसार इकठ्ठा कर लें। भगवान की तस्वीर के आगे ये सभी पदार्थ रख दें।</div><div><br></div><div>सकंल्प ;</div><div>〰️〰️〰️</div><div>संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।</div><div><br></div><div>पवित्रकरण ;</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-</div><div>अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।</div><div>यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।</div><div>पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।</div><div><br></div><div>आसन शुद्धि</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-</div><div><br></div><div>पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।</div><div>त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।</div><div><br></div><div>ग्रंथि बंधन</div><div>〰️〰️〰️</div><div>यदि यजमान या पूजा करने वाले भक्त सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-</div><div><br></div><div>यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।</div><div>तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्।</div><div><br></div><div>आचमन करें</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-</div><div>ऊँ केशवाय नमः</div><div>ऊँ नारायणाय नमः</div><div>ऊँ माधवाय नमः</div><div>यह मंत्र बोलकर हाथ धोएं</div><div>ऊँ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।</div><div><br></div><div>स्वस्तिवाचन मंत्र</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>सबसे पहले स्वस्तिवाचन किया जाना चाहिए।</div><div>स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।</div><div>स्वस्ति नस्ताक्र्षयो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।</div><div>द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः</div><div>शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः</div><div>शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा</div><div>मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।</div><div>शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु।</div><div>अब सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-</div><div>श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।</div><div>लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।</div><div>उमा महेश्वराभ्यां नमः ।</div><div>वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।</div><div>शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।</div><div>मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः ।</div><div>इष्टदेवताभ्यो नमः ।</div><div>कुलदेवताभ्यो नमः ।</div><div>ग्रामदेवताभ्यो नमः ।</div><div>वास्तुदेवताभ्यो नमः ।</div><div>स्थानदेवताभ्यो नमः ।</div><div>सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः ।</div><div>सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।</div><div>सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्यहा गणाधिपतये नमः।</div><div><br></div><div>भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। जनेऊ अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। भगवान नारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें। अब दीपक प्रज्वलित करें। धूप, दीप करें। भगवान गणेश और सत्यनारायण धूप-दीप अर्पित करें। ‘‘ऊँ सत्यनारायण नमः’’ कहते हुए सत्यनारायण का पूजन करें।</div><div>अब चावल की ढेरी में नवग्रहों का पूजन करें। अष्टगंध, पुष्प को नवग्रहों को अर्पित करें।</div><div><br></div><div>नवग्रहों का पूजन का मंत्र</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।</div><div>इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें।</div><div>अब कलश में वरुण देव का पूजन करें। दीपक में अग्नि देव का पूजन करें।</div><div><br></div><div>कलश पूजन</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।</div><div>ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः। इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें।</div><div><br></div><div>दीपक</div><div>〰️〰️</div><div>दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-</div><div>भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत ।</div><div>यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः।</div><div><br></div><div>कथा-वाचन और आरती</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>पूजन के बाद सत्यनारायण की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। कथा पूरी होने पर भगवान की आरती करें। प्रदक्षिणा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई, शक्कर का बूरा जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा करा हो। उन सभी पदार्थों का भगवान को भोग अर्पित करें। भगवान का प्रसाद सभी भक्तों को बांटे।</div><div><br></div><div>श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में </div><div>श्रीसत्यनारायणव्रत कथा </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>पहला अध्याय ,,एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए. इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं. सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले – हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था. आप सब इसे ध्यान से सुनिए –</div><div>एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे. यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा. उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए. इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए. वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे.</div><div>स्तुति करते हुए नारद जी बोले – हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं. आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है. निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है. नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले – हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो. इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं. हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।</div><div><br></div><div>श्रीहरि बोले – हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है. जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो. स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है. आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ।</div><div><br></div><div>श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है.</div><div>श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ. नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले – दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है. मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए. भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें. गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ। ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें. भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं. इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं. इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है.</div><div><br></div><div>।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण।। </div><div>श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।</div><div> </div><div>दूसरा अध्याय</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>सूत जी बोले ,, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था. भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था. ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा ,, हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला ,, मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ. भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ. हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए. वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो. इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है.</div><div>वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए. ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा. यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई. वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया. उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला. जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।</div><div>भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।</div><div>सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है.</div><div>सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।</div><div><br></div><div>विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।</div><div><br></div><div>बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया.</div><div><br></div><div>।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।</div><div> </div><div>तीसरा अध्याय </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>सूतजी बोले ,, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ. पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा – हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएँ।</div><div>राजा बोला – हे साधु! अपने बंधु-बाँधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ. राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला – हे राजन ! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए. आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा. मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी. राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।</div><div>साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुँगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनोंदिन वह ऎसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।</div><div>एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा. इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बाँधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।</div><div>इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें.</div><div>राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है?</div><div>कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।</div><div><br></div><div>।।इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।</div><div> </div><div>चतुर्थ अध्याय</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>सूतजी बोले ,, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए. उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं. वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले – तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए. कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए. दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।</div><div>मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी. दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला – मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है. तू मेरी पूजा से विमुख हुआ. साधु बोला – हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ. आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा. मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।</div><div>साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए. जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया. दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।</div><div>दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई. प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया. कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई. नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें.</div><div>साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई – हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है. यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा. ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है. उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है. इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।</div><div><br></div><div>।।इति श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण ।।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।</div><div> </div><div>पाँचवां अध्याय</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>सूतजी बोले ,, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था. उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया. एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया. वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा. अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया. ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया.</div><div>जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है. वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया. दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।</div><div><br></div><div>जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है.</div><div>सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.</div><div><br></div><div>।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।</div><div><br></div><div>कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।</div><div><br></div><div>श्री सत्यनारायणजी की आरती </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।</div><div>सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।</div><div>नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो ।</div><div>बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div><br></div><div>दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।</div><div>चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं ।</div><div>सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div><br></div><div>भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्यो ।</div><div>श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।</div><div>मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।</div><div>धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥</div><div>सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।</div><div>तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी... ॥</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-40291330319843481412021-10-22T17:52:00.001+05:302021-10-22T17:52:58.632+05:3027 nakshatra. all about them.<div>*नक्षत्र* </div><div><br></div><div>*१) अश्विनी-* </div><div>नक्षत्र - अश्विनी , नक्षत्र देवता - अश्विनीकुमार , नक्षत्र स्वामी - केतु , नक्षत्र पूज्य वृक्ष - वत्सनाग , नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष - अडोसा ( अडूसा ) , नक्षत्र चरणाक्षर - चु, चे, चो, ला ४ चरण मेष राशी में , नक्षत्र प्राणी- घोडा नक्षत्र तत्व - वायु , नक्षत्र गण- देव , नक्षत्र स्वभाव – मृदु.</div><div>अश्विनी नक्षत्र में जन्म हुए मनुष्य के गुण:- अलंकार प्रेमी , सुंदर, मनोहर -जिनको देखनेसे मन प्रसन्न हो, समर्थ, और बुद्धिमान होते है।</div><div>अश्विनी से जुड़े व्यवसाय:- प्रेरक प्रशिक्षक, अभियान प्रबंधक, एथलीट, खेल से संबंधित व्यवसाय, हवाई जहाज/ ऑटो / नाव / घोड़ा दौड़ी , सैन्य, कानून प्रवर्तन, इंजीनियरिंग, जौहरी, चिकित्सा व्यवसाय, फार्मासिस्ट, सलाहकार , औषधि माहिर, शारीरिक रूप से साहसी क्षेत्र में कला प्रदर्शन , अन्वेषक, शोधकर्ता, और माली।</div><div> </div><div>*२) भरणी-* </div><div>नक्षत्र -भरणी , नक्षत्र देवता - यमाद्य पितर, नक्षत्र स्वामी -शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - आंवला, नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष- काला कत्था , राशी व्याप्ती - ली, लु, ले, लो ४ चरण मेष राशी में , नक्षत्र प्राणी - हाथी , नक्षत्र तत्व - अग्नी, नक्षत्र स्वभाव –क्रूर , नक्षत्र गण- मनुष्य।</div><div>भरणी नक्षत्र में पैदा हुए मनुष्य के गुण:- कार्य करनेकी क्षमता रखनेवाले , सत्य का मार्ग अपनानेवाले या सत्य बोलनेवले, निरोगी, चतुर और सुखी।</div><div>भरणी नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :- बच्चे से जुडी (शिक्षण, बच्चे की देखभाल, आदि), स्त्री रोग विशेषज्ञ, दाई, प्रजनन विशेषज्ञ, ताबूत बनानेवाला, संपत्ति सलाहकार, हत्या जासूसी, लेखक, अंतिम संस्कार सेवाओं के साथ जुड़े क्षेत्र, मनोरंजन, मॉडल, विदेशी या यौनकर्मियों से जुड़े , न्यायाधीश, होटल उद्योग, खानपान, पशु चिकित्सक, आग सेनानी, सर्जन, फोटोग्राफर, चरम गोपनीयता, भूभौतिकी, भूकंप और ज्वालामुखी विशेषज्ञों की स्थिति।</div><div> </div><div>*३) कृतिका-* </div><div>नक्षत्र- कृतिका , नक्षत्र देवता – अग्नी , नक्षत्र स्वामी – रवि , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष - गूलर (औदुंबर) ,</div><div>नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष – बहेड़ा , राशी व्याप्ती – अ, १ चरण मेष राशि में . ई, ऊ, ऐ ३ चरण वृषभ राशी में</div><div>नक्षत्र प्राणी- बकरी , नक्षत्र तत्व –अग्नी , नक्षत्र गण- राक्षस, नक्षत्र स्वभाव – क्रूर.</div><div>कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेनेवालोंके गुण:- अधिकतर भोजन में रूचि रखनेवाले , तेजस्वी और जीवन में तरक्की के आसमान को छूते है।</div><div>कृत्तिका नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :- प्राधिकारी या प्रबंधन की स्थिति, जनरल, आलोचक, अध्यापक, विश्वविद्यालय व्यवसाय, वकील, तकनीकी व्यवसाय, चाकू या तलवार, तलवारबाजी, आर्चर, लोहार, जौहरी, सर्जन, विस्फोटक या आग से जुड़े व्यवसायों के रूप में तेज वस्तुओं से संबंधित किसी भी क्षेत्र से , आग सेनानी, पुलिस, सेना, खनिक, पुनर्वास विशेषज्ञ, प्रेरक ट्रेनर, मिट्टी के बरतन, आध्यात्मिक शिक्षक, हेयर स्टाइलिस्ट, दर्जी, और अनाथालय के लिए काम करना।</div><div> </div><div>*४ ) रोहिणी-* </div><div>नक्षत्र- रोहिणी , नक्षत्र देवता –ब्रम्हा , नक्षत्र स्वामी – चंद्र , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष -काला जामुन ( जांभळ) नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष- बेल , राशी व्याप्ती - ओ, वा, वि, वू ४ चरण वृषभ राशी में , नक्षत्र प्राणी- सांप , नक्षत्र तत्व- पृथ्वी , नक्षत्र गण- मनुष्य , नक्षत्र स्वभाव- मृदु.</div><div>रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेनेवालोंके गुण:- साफ-सफाई में ध्यान देनेवाले, सच बोलना पसंद करनेवाले, स्थिर बुद्धिवाले, मधुर भाषण करनेवाले और सुन्दर दिखनेवाले ! </div><div>रोहिणी नक्षत्र से जुडी वृत्ति :- कृषि, धान्य प्रसंस्करण, वनस्पति, वैद्य, कलाकार, संगीतकार, मनोरंजन उद्योग, कॉस्मेटिक उद्योग, जौहरी, रत्न व्यापारी, इंटीरियर डेकोरेटर, बैंकर, परिवहन व्यवसाय, पर्यटन, ऑटोमोबाइल उद्योग, तेल और पेट्रोलियम, वस्त्र उद्योग, शिपिंग उद्योग, पैकेजिंग और वितरण, और किसी भी जलीय उत्पादों और तरल पदार्थ के साथ जुड़ा हुआ पेशा ! </div><div><br></div><div>*5) मृगशीर्ष-* </div><div>नक्षत्र- मृगशीर्ष , नक्षत्र देवता- चंद्र , नक्षत्र स्वामी- मंगळ , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष - काला कत्था , नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष- पीपल , राशी व्याप्ती - वे, वो, २ चरण वृषभ राशी में , का, की २ चरण मिथुन राशी में , नक्षत्र प्राणी – सांप , नक्षत्र तत्व- वायु , नक्षत्र गण- देव , नक्षत्र स्वभाव- मृदु।</div><div>मृगशीर्ष नक्षत्र वाले मनुष्य के गुण:- चतुर-चपल, उमंग से भरपूर, धनि, और सुख का भोग लेनेवाले।</div><div>मृगशीर्ष नक्षत्र से सम्बंधित कार्य :- कलाकार के गायक, संगीतकार, लेखक, कवि, चित्रकार, दार्शनिक, रत्न उद्योग, उत्पाद या सामग्री पृथ्वी से संबंधित, भूमि अभिवृद्धि, सर्वेक्षक, यात्रि, खोजकर्ता, इमारत ठेकेदार, व्यापार मशीनरी या इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित, पशु चिकित्सक, पालतू जानवरों से संबंधित, फैशन और वस्त्र उद्योग, बिक्री प्रतिनिधि, विज्ञापन प्रसारक, शासन प्रबंध, ज्योतिषि, शिक्षक की वृत्ति।</div><div><br></div><div>*६) आर्द्रा-* </div><div>नक्षत्र –आर्द्रा, नक्षत्र देवता - रुद्र (शिव) , नक्षत्र स्वामी – राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - पिप्पली ( लम्बी काली मिर्च)</div><div>नक्षत्र पर्यायी वृक्ष – चंदन, नक्षत्र चरणाक्षर - कु,ख,ञ,छ. नक्षत्र प्राणी- कुत्ता, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र स्वभाव – तीक्ष्ण, नक्षत्र गण- मनुष्य।</div><div>जन्म नक्षत्र फल:- जो अहंकार दिखाता हो, मदत करनेवालोंको भुला देनेवाला, हिंसा प्रेमी, और पाप कर्म करने वाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- शारीरिक श्रम से जुड़े काम, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बिजली इंजीनियर, ध्वनि तकनीशियन, इलेक्ट्रॉनिक संगीत, वीडियो गेम डेवलपर, विशेष प्रभाव और 3-डी प्रौद्योगिकी, विज्ञान कथा लेखक, भाषाकोविद, चित्रकार , दार्शनिक, भौतिक विज्ञानी, शोधकर्ता, सर्जन, फार्मासिस्ट, परमाणु ऊर्जा उद्योग, मनोचिकित्सक, न्यूरोलॉजिस्ट के साथ काम करता है; जासूसी, बिक्री विशेषज्ञ, विश्लेषक, राजनेता, चोर, शतरंज खिलाड़ी आदि विषयों का ज्ञाता।</div><div><br></div><div>*७) पुनर्वसु-* </div><div>नक्षत्र- पुनर्वसु, नक्षत्र देवता- अदिती, नक्षत्र स्वामी- गुरू, नक्षत्र आराध्य वृक्ष – बांस, नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- बरगद</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- के,को,हा, ही, नक्षत्र प्राणी- बिल्ली, नक्षत्र तत्व- वायु, नक्षत्र स्वभाव- सत्व, नक्षत्र गण- देव.</div><div>जन्म नक्षत्र फल:- सुखी, सुशिल, दमनशील, अल्प मेधावी, रोंगो से पीड़ित , अधिक प्यासा, और अल्प संतोषी ( थोड़ा मिलनेसेहि सतुंष्ट होनेवाला)।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- पर्यटन, यात्रा उद्योग, होटल प्रबंधक , व्यापार उद्योग, निर्माण, वास्तुकला, सिविल इंजीनियर्स, वैज्ञानिक, अध्यापक, लेखक, गूढ़ अध्ययन, दार्शनिक, मंत्रि, इतिहासकार, प्राचीन वस्तु का व्यापारि, समाचार पत्र उद्योग, मकान मालिक, अंतरिक्ष यात्री, कोरियर, कारीगर, नवीन आविष्कार, तीरंदाजी, इनको अधिक तर अपने हाथों का उपयोग की आवश्यकता होती है।</div><div><br></div><div>*८) पुष्य-* </div><div>नक्षत्र- पुष्य, नक्षत्र देवता- गुरु, नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- पीपल,नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- अंजीर</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- हु, हे, हो, डा, नक्षत्र प्राणी- बकरी, नक्षत्र तत्व- अग्नी, नक्षत्र स्वभाव- शुभ, नक्षत्र गण- देव</div><div>जन्म नक्षत्र फल:- जिनका मन सदा शांत रहता हो, महाज्ञानी, धनिक, सदा धर्म के मार्ग का अनुसरण करनेवाले और सुन्दर होते है।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- राजनेता, रईस, खानपान, खाद्य या पेय उद्योग, परिचारिक, डेयरी उद्योग, सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, पादरी, पुजारि, पंडित,आध्यात्मिक सलाहकार, दान कार्यकर्ता, शिक्षक, बच्चे की देखभाल पेशेवर, कारीगर, अचल संपत्ति में व्यवसाय, किसान, पानी से संबंधित उद्योग, व्यापार रूढ़िवादी या पारंपरिक धर्मों से संबंधित कार्य में कुशल।</div><div><br></div><div>*९) आश्लेषा-* </div><div>नक्षत्र- आश्लेषा, नक्षत्र देवता- सांप , नक्षत्र स्वामी - बुध, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नागकेसर ( लाल) , नक्षत्र पर्यायी वृक्ष -उंडी , नक्षत्र चरणाक्षर - डि,डू,डे,डो, नक्षत्र प्राणी- बिल्ली , नक्षत्र तत्व - जल , नक्षत्र स्वभाव- तीक्ष्ण नक्षत्र गण- राक्षस। नक्षत्र जन्मफल:- जिद्दी स्वाभववला, अधिक आशावादी, पापकर्म निरत, और कृतघ्न , मदतगार को भूलनेवला।</div><div>विशेष:- इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले मनुष्य की नक्षत्र शांति पूजा करना अनिवार्य है।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति - केमिस्ट या रासायनिक इंजीनियर, व्यवसाय जहर या खतरनाक सामग्री, पेट्रोलियम उद्योग, दवा उद्योग, ड्रग डीलर, तंबाकू उद्योग, चोर, गबन, वयस्क मनोरंजन उद्योग, सरीसृप, सपेरा, सर्जन, गुप्त आपरेशन-सर्विस, वकीलों के साथ काम करना, राजनीतिज्ञ सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, कृत्रिम निद्रावस्था में लानेवाला, योग प्रशिक्षक, और नीमहकीम।</div><div><br></div><div>*१०) मघा-* </div><div>नक्षत्र- मघा, नक्षत्र देवता- पितर, नक्षत्र स्वामी- केतु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बरगद , नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- रिठा</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- मा,मि,मू,मे, नक्षत्र प्राणी- चूहा , नक्षत्र तत्व- अग्नी , नक्षत्र स्वभाव- क्रूर , नक्षत्र गण- राक्षस</div><div>नक्षत्र जन्मफल :- दो से ज्यादा भाई-बहन के साथ रहनेवाला, धनिक, हर तरह के भोग भोगनेवाला, भगवान और माता-पिता की भक्ति करनेवाला, सदा उत्साह से भरपूर।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- प्रबंधक, कार्यकारी अधिकारी, अध्यक्ष, प्रशासन, रॉयल्टी, सरकारी अधिकारी, कथा लेखक, नौकरशाह, रईस, वकील, न्यायाधीश, रेफरी, राजनीतिज्ञ, लाइब्रेरियन, वक्ता, इतिहासकार, संग्रहालय में पदवी, एंटीक डीलर, पुरातत्व विद्वान जेनेटिक इंजीनियर, प्राचीन संस्कृति का शोध कर्ता, दस्तावेजीकरण कलाकार, वक्ता, तांत्रिक।</div><div><br></div><div>*११) पुर्वा फाल्गुनी-* </div><div>नक्षत्र- पुर्वा (फाल्गुनी) , नक्षत्र देवता - भग , नक्षत्र स्वामी – शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - पलाश (पळस)</div><div>नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- बेल, नक्षत्र चरणाक्षर - मो,टा,टी,टु, नक्षत्र प्राणी- चूहा , नक्षत्र तत्व- क्रुर, नक्षत्र स्वभाव - सत्व</div><div>नक्षत्र गण- मनुष्य</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- सदा प्रिय वचन बोलनेवाला, दान-धर्म करनेवाला, आकर्षक व्यक्तित्व , यात्रा प्रेमी और राज सेवक ( उच्च स्थान का सेवक )</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- कार्यकारी, सरकारी अधिकारी, मनोरंजन, मेकअप कलाकार, मॉडल, फोटोग्राफर, चित्रकार, कला संग्रहालय या गैलरी, संगीतकार, शिक्षक, रत्न व्यापारी, शारीरिक फिटनेस ट्रेनर, इंटीरियर डेकोरेटर, महिला के उत्पादों के साथ काम करते हैं, गुप्त -चिकित्सक, नींद चिकित्सक, जीवविज्ञानी, पर्यटन, कपास और रेशम उद्योग।</div><div><br></div><div>*१२) उत्तरा फाल्गुनी-* </div><div>नक्षत्र- उत्तरा (फाल्गुनी) , नक्षत्र देवता- अर्यमा , नक्षत्र स्वामी- रवि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- पिंपरी( प्लक्ष )</div><div>नक्षत्र पर्यायी वृक्ष - श्वेत कनेर , नक्षत्र चरणाक्षर - टे,टो,पा,पी, नक्षत्र प्राणी- गाय , नक्षत्र तत्व – वायु, </div><div>नक्षत्र स्वभाव- सत्व , नक्षत्र गण- मनुष्य</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- दिखनेमें सुन्दर, अपनी विद्या से धन कमानेवाला, भोगी, और सुखोंका अनुभोग लेनेवाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- मनोरंजन, संगीतकार, कलाकार, प्रबंधक, नेता, सार्वजनिक आंकड़ा, खेल सुपरस्टार, संगठन के प्रमुख, शिक्षक, उपदेशक, परोपकारि, शादी सलाहकार, संयुक्त राष्ट्र के साथ काम, राजनायक, संस्थापक, बैंकर, लेनदार, सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकार , कमांडर।</div><div><br></div><div>*१३) हस्त-* </div><div>नक्षत्र- हस्त, नक्षत्र देवता- सुर्य, नक्षत्र स्वामी- चंद्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- चमेली , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- रिठा</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- पू,ष,ण,ठ , नक्षत्र प्राणी- भैंस , नक्षत्र तत्व- वायु, नक्षत्र स्वभाव- रज , नक्षत्र गण- देव</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- उमंग से भरपूर, धैर्यवान, जो पेय- जल से सम्बंधित वस्तु का प्रेमी, दयावान, और कालांतर से बुद्धि में बदलाव आने से चोरी का मार्ग अपनानेवाला।</div><div>नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय:- कारीगर, यांत्रिकी, गहने निर्मात विशेषज्ञ, शारीरिक श्रम, कसरत, सर्कस कलाकार, आविष्कारक, प्रकाशक, प्रिंटिंग उद्योग, कार्ड डीलर, जुआरी, बैंकर, लेखाकार, टाइपिस्ट क्लीनर, नौकरानी, मालिश, रासायनिक उद्योग, वस्त्र उद्योग, टैरो कार्ड पाठक, ज्योतिषी, नीलामकर्ता, मिट्टी के बरतन कर्ता, इंटीरियर डेकोरेटर, माली, खाद्य उत्पादन, नावी, मूर्तिकार, पेशेवर हास्य अभिनेता, भाषण चिकित्सक, परीक्षण कलाकार, जादूगर और चोरी में माहिर।</div><div><br></div><div>*१४) चित्रा-* </div><div>नक्षत्र- चित्रा, नक्षत्र देवता- त्वष्टा , नक्षत्र स्वामी- मंगळ, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बेल , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बकूल</div><div>नक्षत्र प्राणी- बाघ , नक्षत्र तत्व- वायु, नक्षत्र स्वभाव- तीक्ष्ण ( तम), नक्षत्र चरणाक्षर- पे,पो,रा,री,</div><div>नक्षत्र गण- राक्षस</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- अधिक रंग-बेरंगी कपड़े, आभूषण, सजावट के वस्तु पहनना पसंद करनेवाला या पहननेवाला, बड़े तेजस्वी आँखे और सुंदर दिखने वाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- आर्किटेक्ट, डिजाइनर, मूर्तिकार, कारीगर, फैशन डिजाइनर, कॉस्मेटिक डिजाइनर, प्लास्टिक सर्जन, फोटोग्राफर, ग्राफिक कलाकार, संगीतकार, प्रसारक, इंटीरियर डिजाइनर, गहने डिजाइनर, फेंग शुई विशेषज्ञ, आविष्कारक, मशीनरी के उत्पादन का व्यापारी, बिल्डर, चित्रकार , पटकथा लेखक, सेट डिजाइनर, कला निर्देशक, थिएटर कलाकार, झांज संगीतकार, औषधि माहिर, विज्ञापन, बहुमुखी प्रतिभाशाली।</div><div><br></div><div>*१५) स्वाती-* </div><div>नक्षत्र- स्वाती , नक्षत्र देवता- वायु , नक्षत्र स्वामी- राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- अर्जुन , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- जरुल</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- रू,रे,रो,ता . नक्षत्र प्राणी- भैंसा , नक्षत्र तत्व- अग्नी , नक्षत्र स्वभाव- सत्व , नक्षत्र गण- देव</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- दमनशील इंद्रिय निग्रह रखनेवाला मेहनती व्यापारी, कृपा का पात्र धर्म का आचरण करके प्रिय वचन से सब का मन प्रसन्न करने वाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- व्यवसाय और व्यापार, खेल, गायक, संगीतकार, हवा उपकरण, अन्वेषक, स्वतंत्र उद्यमी, पायलट, शोधकर्ता, सेवा व्यवसाय, सॉफ्टवेयर उद्योग, चरम खेल, शिक्षक, राजदूत, वकील, न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ, संघ के नेता, राजनयिक परिचारिक, योग प्रशिक्षक, से जुड़े काम में दिलचस्पी रखने वाले।</div><div><br></div><div>*१६) विशाखा-* </div><div>नक्षत्र- विशाखा, नक्षत्र देवता- इंद्राग्नी , नक्षत्र स्वामी- गुरू , नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बबूल ( नागकेशर ) नक्षत्र पर्याय वृक्ष- पारिजात, नक्षत्र गण- राक्षस, नक्षत्र प्राणी- बाघ , नक्षत्र चरणाक्षर- ती,तो,ते,तू . </div><div>नक्षत्र तत्व- वायु, नक्षत्र स्वभाव- रज.</div><div>नक्षत्र जन्मफल:- द्वेषी जो दूसरे पर जलने वाला, लोभी, परन्तु तेजस्वी, बोलने में समर्थ वाग्मी, हरबात पर जघडनेवाला।</div><div>नक्षत्र से जुड़े काम और व्यवसाय:- शोधकर्ता, वैज्ञानिक, सैनिक, सैन्य नेता, लेखक, राजनेता, वकील, सार्वजनिक वक्ता, आव्रजन अधिकारि, पुलिस गार्ड, मजदूर, फैशन मॉडल, भाषण (प्रसारक) से जुड़े व्यवसाय, धार्मिक कट्टरपंथि, नर्तक, शराब का व्यापारी आदि विषयोंमें रूचि रखनेवाले हो सकते है।</div><div><br></div><div>*१७) अनुराधा-* </div><div>नक्षत्र- अनुराधा, नक्षत्र देवता- मित्र , नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नागकेशर, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बकुल ( मोलसिरि), नक्षत्र चरणाक्षर- ना,नि,नू,ने . नक्षत्र प्राणी- हिरन , नक्षत्र तत्व- पृथ्वी , नक्षत्र स्वभाव- सत्व , नक्षत्र गण- देव</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- जो अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेता है वह धनवान, विदेश वासी या विदेश से लगाव रहनेवाला, अधिक भूक से बाधित, और सदा घूमनेवाला, प्रयाणप्रिय !</div><div>नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :- कलाकार, संगीतकार, व्यवसाय प्रबंधन, पर्यटन उद्योग, दंत चिकित्सक, आपराधिक वकील, खनन इंजीनियर, वैज्ञानिक, सांख्यिकीविद्, गणितज्ञ, मानसिक माध्यम, ज्योतिषि, जासूस, फोटोग्राफर, सिनेमा, उद्योगपति, सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, खोजकर्ता, राजनयिक, विदेशी देशों से जुड़े व्यवसाय समूह की गतिविधि संगठन / संस्था के कार्यकारी।</div><div><br></div><div>*१८) जेष्ठा-* </div><div>नक्षत्र- जेष्ठा, नक्षत्र देवता- इंद्र, नक्षत्र स्वामी- बुध, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- सांबर ( खजूर) , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बेतस, नक्षत्र चरणाक्षर- नो,या,यी,यु . नक्षत्र प्राणी- हिरन , नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- तम, नक्षत्र गण- राक्षस.</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- मित्रों की संख्या कम रहनेवाला , अर्थात कम-कम से मित्रता करनेवाला, सदा आनंद से परिपूर्ण, धर्म मार्ग से चलनेवाला, और गरम मिजाजवाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ :- संगीतकार, सैन्य नेता, राजनेता, पुलिस जासूस, इंजीनियर, प्रबंधक, दार्शनिक, बुद्धिजीवी, स्वरोजगार, सरकारी अधिकारि, प्रशासनिक पद, पत्रकार, रेडियो और टीवी कमेंटेटर, टॉक शो होस्ट, अभिनेता,फायरब्रिगेड, माफिया, वन रेंजर, साल्वेशन आर्मी के साथ व्यवसाय, शारीरिक श्रम, एथलीट, हवाई यातायात नियंत्रण, रडार, सर्जन।</div><div><br></div><div>*१९) मूल-* </div><div>नक्षत्र- मूळ, नक्षत्र देवता- निॠति (राक्षस), नक्षत्र स्वामी- केतु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- राळ, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बबूल, नक्षत्र चरणाक्षर- ये,यो,भा,भी . नक्षत्र प्राणी- कुत्ता , नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र स्वभाव- तम, नक्षत्र गण- राक्षस।</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- धनवान सम्मानित सुखी मनुष्य, परजन हिंसा से बाधित , स्थिर स्वभाववाला और सुख का अनुभाग लेनेवाला।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति :- व्यापार, बिक्री, डॉक्टर, फार्मासिस्ट, दार्शनिक, सार्वजनिक वक्ता, विवादकर्ता, प्रचारक, लेखक, वकील, राजनेता, आध्यात्मिक शिक्षक, चिकित्सक, औषधि माहिर, दंत चिकित्सक, दवा पुरुष, मनोचिकित्सक, संन्यासि, पुलिस अधिकारि, जांचकर्ता, सैनिक, आनुवंशिक शोधकर्ता, खगोल विज्ञानी , ताबूत बनानेवाला, रॉक संगीतकार, तांत्रिक अध्ययन, खनन उद्योग, विनाशकारी गतिविधि से संबंधित।</div><div><br></div><div>*२०) पूर्वाषाढा-* </div><div>नक्षत्र- पूर्वाषाढा, नक्षत्र देवता- जल, नक्षत्र स्वामी- शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- वेत, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- गिलोय</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- भू,ध,प,ढ. नक्षत्र प्राणी- वानर, नक्षत्र तत्व- जल , नक्षत्र स्वभाव- रज, नक्षत्र गण- मनुष्य .</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- सुन्दर-सुशिल सदा आनंद में रहनेवाली स्त्री का पति , अर्थात मनचाही पत्नी के साथ रहनेवाला, सम्मानित और अचल स्नेह-दया से परिपूर्ण।</div><div>नक्षत्र से जुड़े कार्य:- नेता, वकील, सार्वजनिक वक्ता, प्रेरक वक्ता, लेखक, अभिनेता, कलाकार, मनोरंजन, कवि, शिक्षक, पर्यटन उद्योग, विदेशी व्यापारि, शिपिंग उद्योग, नौसेना अधिकारी, समुद्री विशेषज्ञ, मत्स्य उद्योग, मनोचिकित्सक, कच्चे माल का उद्योग, पानी और तरल पदार्थ से सम्बंधित व्यवसाय, रिफाइनर, युद्ध रणनीतिकार, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, हेयर स्टाइलिस्ट, वैद्यों के लिए करना।</div><div><br></div><div>*21) उत्तराषाढा-* </div><div>नक्षत्र- उत्तराषाढा, नक्षत्र देवता- विश्वदेव, नक्षत्र स्वामी- रवि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- कटहल, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- कांचन, नक्षत्र चरणाक्षर- भे, भो,जा,जी, नक्षत्र प्राणी- मुंगुस, नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- स्थिर नक्षत्र गण- मनुष्य।</div><div>जन्म नक्षत्र फल :- धार्मिक देवभक्त, विनय गुण से संपन्न,भारी मात्रा में मित्र और अपने लोगोंमे रहनेवाला, कृतज्ञ और सुन्दर दिखनेवाले होते है।</div><div>नक्षत्र से जुड़े व्यापार;- बड़ी जिम्मेदारी और नैतिक प्रकृति, से सम्बंधित, वैज्ञानिक, सैन्य कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, सरकारी कर्मचारी, प्रचारक, पुजारि, सलाहकार, ज्योतिषि, वकील, न्यायाधीश, मनोवैज्ञानिक, घोड़े का व्यवसाय, खोजकर्ता, पहलवान, एथलीट, शिकारी, मुक्केबाज, व्यापार के अधिकारि के व्यवसाय , प्राधिकरण के आंकड़ों का व्यवसाय, सुरक्षा कर्मि, समग्र चिकित्सक।</div><div><br></div><div>*२२) श्रवण-* </div><div>नक्षत्र- श्रवण, नक्षत्र देवता- विष्णु, नक्षत्र स्वामी- चंद्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- अर्क ,( दूधिया पौधा) नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आम , नक्षत्र चरणाक्षर- शी,शू,शे,शो. नक्षत्र प्राणी- वानर, नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- चर, नक्षत्र गण- देव।</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- धनवान हर तरह के आनंद से परिपूर्ण , वेद-शास्त्र का ज्ञाता, बड़े दिलवाला ,अपने परिवार जन के साथ प्रेम से रहनेवाला और प्रसिद्ध व्यक्ति कहलानेवाला !</div><div>नक्षत्र से जुड़े कार्य:- शिक्षक, भाषाविद्, भाषण चिकित्सक, भाषा अनुवादक, कथाकार धार्मिक विद्वान, शिक्षक, नेता, शोधकर्ता, भूविज्ञानी, टेलीफोन ऑपरेटर, प्राचीन परंपरा का शोधकर्ता, हास्य अभिनेता, संगीत उद्योग, समाचार प्रसारक, टॉक शो होस्ट, सलाहकार, मनोचिकित्सकों के संरक्षण, मनोवैज्ञानिक, ज्योतिषि, रेडियो ऑपरेटर, परिवहन, पर्यटन, होटल और रेस्तरां उद्योग, चिकित्सक, समग्र चिकित्सा, दान कार्यकर्ता।</div><div><br></div><div>*२३) धनिष्ठा-* </div><div>नक्षत्र- धनिष्ठा, नक्षत्र देवता- वसु, नक्षत्र स्वामी- मंगळ, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- शमी, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- नीम</div><div>नक्षत्र चरणाक्षर- गा,गी,गू,गे. नक्षत्र प्राणी- सिंह, नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- शुभ , नक्षत्र गण- राक्षस.</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- दान-धर्म करनेवाला, शूरता से धन कमानेवाला परंतु लोभी अर्थात अनुभोग की अपेक्षा करनेवाला, संगीत प्रेमी और धनवान कहलानेवाला होगा !</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- संगीतकार, नर्तकी, कलाकार, डॉक्टर, सर्जन, रियल एस्टेट एजेंट, संपत्ति प्रबंधन, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, भौतिक विज्ञानी, इंजीनियरिंग, खनन, धर्मार्थ कार्यकारी , कवि, मनोरंजन, व्यापार, गीतकार, संगीत वाद्ययंत्र, गायक, मणि डीलर के निर्माता, एथलीट, समूह समन्वयक, ज्योतिषि, समग्र चिकित्सक।</div><div><br></div><div>*२४) शततारका-* </div><div>नक्षत्र- शततारका, नक्षत्र देवता- वरुण, नक्षत्र स्वामी- राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- कदंब, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आपटा</div><div>नक्षत्र प्राणी- घोडा, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र स्वभाव- चर, नक्षत्र चरणाक्षर- गो,सा,सी,सू. नक्षत्र गण- राक्षस.</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- स्पष्टतासे सामने से बोलनेवाला, अच्छे-बुरे आदत से पीड़ित, अपने धैर्य से शत्रु का संहार करनेवाला अर्थात शत्रु पर विजय प्राप्त करनेवाला और किसी के हाथ नहीं आने वाला।</div><div>नक्षत्र से संबंधित व्यवसाय:- चिकित्सक, सर्जन, एक्स-रे तकनीशियन, खगोल विज्ञानी, ज्योतिषि, इंजीनियर, वैमानिकी, अंतरिक्ष इंजीनियर, पायलट, परमाणु विज्ञानि, शोधकर्ता, बिजली, लेखक, सचिव, फिल्म और टेलीविजन, दवा, जड़ी बूटियों का कार्य कर्ता, ड्रग डीलर, अपशिष्ट निपटान, प्लास्टिक और पेट्रोलियम, ऑटोमोबाइल उद्योग, अन्वेषक।</div><div><br></div><div>*२५) पुर्वाभाद्रपदा-* </div><div>नक्षत्र- पुर्वाभाद्रपदा, नक्षत्र देवता- अजैक चरण, नक्षत्र स्वामी- गुरू, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- आम , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- हिरडा, नक्षत्र चरणाक्षर- से,सो,दा,दी. नक्षत्र प्राणी- सिंह, नक्षत्र तत्व- अग्नी, नक्षत्र स्वभाव- सत्व नक्षत्र गण- मनुष्य।</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- दुःख से चिंतित रहनेवाला, स्त्रीवश, धनिक, दान देने में समर्थ कहलानेवाला और दान-धर्म करनेवाला कहलाएगा।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियां:- व्यापार, प्रशासन, संख्याकोविद ,ज्योतिषी, पुजारी, तपस्वी, ताबूत निर्माताओं, कब्रिस्तान के रखवाले, सर्जन, चिकित्सक, मनोचिकित्सक, कट्टरपंथि, कण, हॉरर या रहस्य कहानिकार, हथियार निर्माता, काला जादू, चमड़ा उद्योग के लेखक, हत्या जासूस, धातु उद्योग, आग, विषाक्त पदार्थों का व्यवसाय।</div><div><br></div><div>*२६) उत्तराभाद्रपदा-* </div><div>नक्षत्र- उत्तराभाद्रपदा, नक्षत्र देवता- अहिर्बुधन्य, नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नीम</div><div>नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आमला , नक्षत्र चरणाक्षर-, नक्षत्र प्राणी- गाय, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र गण- मनुष्य, नक्षत्र स्वभाव- रज।</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- जिनका जन्म इस नक्षत्र में होता है वह व्यक्ति अधिक बोलनेवाले,सुखी, शत्रुपर विजय प्राप्त करनेवाले होंगे तथा धर्म पर निष्ठा रखकर अपने पुत्र ,परिवार के साथ आनंद से रहेंगे।</div><div>नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय:- दार्शनिक, लेखक, शिक्षक, धर्मार्थ कार्य, आयात या निर्यात काम, पर्यटन उद्योग, धार्मिक कार्य, ज्योतिषि, योग और ध्यान के विशेषज्ञ, परामर्शदाता, चिकित्सक, आरोग्य, तांत्रिक व्यवसायी, साधु, संगीतकार, रात का चौकीदार, इतिहासकार, पुस्तकालय, विरासत पर रहने वाले लोगों के साथ रहना इत्यादि।</div><div><br></div><div>*२७) रेवती-* </div><div>नक्षत्र- रेवती, नक्षत्र देवता- पूषा, नक्षत्र स्वामी- बुध, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- मोह ( मधुक ), नक्षत्र पर्याय वृक्ष- जेष्ठमध या इमली , नक्षत्र चरणाक्षर- दे,दो,चा,चि, नक्षत्र प्राणी- हाथी , नक्षत्र तत्व- जल नक्षत्र स्वभाव- मृदु नक्षत्र गण- देव।</div><div>जन्म नक्षत्रफल:- सदा साफ सुतरा रहना पसंद करनेवाले, धैर्य और शौर्यता को प्रदर्शन करनेवाले धनि बनेंगे इनका शरीर भी मजबूत होगा।</div><div>नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- धर्मार्थ कार्य, शहरी योजनाकार, सरकारी कर्मचारि, मनोविज्ञान, रहस्यमय या धार्मिक कार्य, कृत्रिम निद्रावस्था में लानेवाला, ट्रैवल एजेंट, विमान परिचारिका, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, अभिनेता, हास्य कलाकार, राजनेता, चित्रकार, संगीतकार, मनोरंजन, भाषाविद्, जादूगर,सड़क योजनाकार, ज्योतिषि, प्रबंधक, रत्न डीलर, शिपिंग उद्योग, अनाथालय या पालक की देखभाल, ड्राइविंग व्यवसाय, हवाई यातायात नियंत्रण, यातायात पुलिस, प्रकाश घर के काम से सम्बंधित हो सकते है।</div><div>🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-57694540078312920962021-08-03T11:36:00.001+05:302021-08-03T11:36:31.903+05:30olympic medal ? secret to happiness <div>#Olympicmusings</div><div><br></div><div>Have you noticed that a bronze medalist is generally more happy than a silver medalist at the end of the game.</div><div><br></div><div>Its not incidental finding but proven fact in many research studies after studying reactions of silver medalists vs bronze medalists! </div><div><br></div><div>Ideally, a silver medalist should be more happy than the bronze. But, human mind doesn't work like mathematics. </div><div><br></div><div>This happens because of phenomenon of counterfactual thinking. </div><div><br></div><div>A concept in psychology in which there is human tendency to create possible alternatives to life events that have already happened, that would be contrary to what happened.</div><div><br></div><div>Sliver medalist thinks, "Oh I couldn't win the gold medal." Bronze medalist thinks, "At least I got a medal."</div><div><br></div><div>Silver medal is won after losing, but Bronze medal is won after Winning.</div><div><br></div><div>This happens in our life also, we don't appreciate what we have but feel sad with what we don't have. Let's be grateful for our blessings, they far outweigh our problems if we start counting.</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-53454926303658318692021-05-21T17:36:00.001+05:302021-05-21T17:36:51.588+05:30100 उपाय अच्छे स्वास्थ्य के 100 tips to good health <div>*आरोग्य निधि*</div><div>दूध ना पचे तो ~ सोंफ</div><div>दही ना पचे तो ~ सोंठ</div><div>छाछ ना पचे तो ~जीरा व काली मिर्च</div><div>अरबी व मूली ना पचे तो ~ अजवायन</div><div>कड़ी ना पचे तो ~ कड़ी पत्ता,</div><div>तैल, घी, ना पचे तो ~ कलौंजी...</div><div>पनीर ना पचे तो ~ भुना जीरा,</div><div>भोजन ना पचे तो ~ गर्म जल</div><div>केला ना पचे तो ~ इलायची </div><div>ख़रबूज़ा ना पचे तो ~ मिश्री का उपयोग करें...</div><div><br></div><div>1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।</div><div>2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।</div><div>3. हाई वी पी में - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।</div><div>4. लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।</div><div>5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।</div><div>6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं </div><div>7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।</div><div>8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।</div><div>9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।</div><div>10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।</div><div>11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी ।</div><div>12. जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।</div><div>13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।</div><div>14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।</div><div>15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।</div><div>16. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।</div><div>17. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।</div><div>18. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।</div><div>19. पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है । </div><div>20. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।</div><div>21. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।</div><div>22. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है । </div><div>23. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।</div><div>24. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।</div><div>25. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।</div><div>26. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है । </div><div>27. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।</div><div>28. वात के असर में नींद कम आती है ।</div><div>29. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।</div><div>30. कफ के असर में पढाई कम होती है ।</div><div>31. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।</div><div>33. आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।</div><div>34. शाम को वात -नाशक चीजें खानी चाहिए ।</div><div>35. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए ।</div><div>36. सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।</div><div>37. व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।</div><div>38. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।</div><div>39. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।</div><div>40. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास(लंघन) से बुखार शांत होता है ।</div><div>41. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।</div><div>42. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों , </div><div>43. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।</div><div>44. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।</div><div>45.छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।</div><div>46. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।</div><div>47.मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए । </div><div>48.सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।</div><div>49. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है । </div><div>50.भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें । </div><div>51. अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है </div><div>52. पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।</div><div>53. छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।</div><div>54.रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।</div><div>55. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।</div><div>56. एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।</div><div>57. ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें । </div><div>58. मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।</div><div>59. अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।</div><div>60. चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है । </div><div>61. दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।</div><div>62. गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।</div><div>63. जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए </div><div>64. गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।</div><div>65. गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है।</div><div>66.मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।</div><div>67.रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।</div><div>68.भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।</div><div>69.भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।</div><div>70.अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है </div><div>71.अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें </div><div>72. कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए । </div><div>73. रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए । </div><div>74. जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।</div><div>75. बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।</div><div>76.स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।</div><div>77.भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।</div><div>78.सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दही व रात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए । </div><div>79. रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि । </div><div>80. शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें । </div><div>81.मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए । </div><div>82. जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।</div><div>83. जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।</div><div>84.एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है । </div><div>85. खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है । </div><div>86 .रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग । </div><div>87 .छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए </div><div>88. जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है । </div><div>89.बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं । </div><div>90. चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।</div><div>91.गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।</div><div>92. प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।</div><div>93. रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा </div><div>94. दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए।</div><div>95.जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है । </div><div>96.सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।।</div><div>97.स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है।।</div><div>98 .तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है </div><div>99. त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं , इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना ।।</div><div>100. इस विश्व की सबसे मँहगी दवा लार है , </div><div>जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,</div><div>इसे ना थूके।।</div><div>#naturopathy #astrorrachita</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-12837219505338977752021-05-10T11:40:00.001+05:302021-05-10T11:40:37.359+05:30SPECIAL RELATIONSHIP Love & Sex MOMENTS WITH YOUR SOULMATE #JOTTINGS Stand for the truth #love #sex #chakras #union by Author Rrachita<div>SPECIAL RELATIONSHIP MOMENTS WITH YOUR SOULMATE 11 aug 2019 #JOTTINGS </div><div><br></div><div>Stand for the truth #love #sex #chakras #union <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYMU8t0__dn_vdPiRsRpxXph5X44ofet25P2B9mI4s8G874kIEQksfGbrOZf-TAzFc_nUD-9bTygOb5yCg8POwdpiGIrVLNJ7Dz95_0n9TBhzY5oEbjRzvVU8JIFP-LphgxnCZ7AaZM5o/s1600/1620627007012451-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div><div>When you open up via your sacral to the truth of the divinity, you also should stand up for the truth within you. Your partner may be inhabiting a different body but when you allow him to enter your sacred canal, you are allowing all his past experiences and DNA imprints too. Its not casual, its deep and chemically stirring union. Be careful of what adulteration you bring inside your system. Take time out before the union to unite at levels of honesty and full disclosure. If any experience of his bothers you from surrendering totally, its within your moral right to want to discuss it freely and candidly with your partner. Candour is definitely a 2 way street and unless you open out your heart to each other and more importantly the throat chakras are speaking the truth without any fear how can complete union even occur. Say the truth with confidence, citing your reason for why you did something , explaining the reasons and context to your partner. In tantra since the partner accepts you as a soul consort, it will be his/duty also to accept you after the truth is spoken. Soul baggage needs to be unburdened before the cosmic union. Fear and hesistation have no place in such a union. And if you have a fear of being judged for your past actions then you have no business seeking such a high vibration union. Thats why foreplay in tantra union begins with the forehead uniting, then the heart chakras and finally the sacral. The intellect, the heart and then the sexual unions take place. To be transparent in front of your partener requires courage and a divine strength. Clothes are only the outer covering, its the ability to look into each others eyes unflinchingly, baring your soul for the other and saying your innermost fears and dreams that can make the explosion occur.</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-26557138810470891472020-11-03T22:17:00.001+05:302020-11-03T23:53:28.890+05:30करवा चौथ नवंबर 4, 2020<div>करवा चौथ नवंबर 4, 2020 विशेष</div><div><br><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0IebT3wtNzw7znTazZRgmoxMNVxTj11KBVTC-5xhDK2ab7m9R2vlz5K2DtMHycPsQ3ydXETJELLvD0S47yPaUA8B8ytG6PDS0qS4gWH1OYhL_y87Fz287lLEpGXbLUQgTjes968AbSjU/s1600/1604422025241180-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️</div><div>करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती है। </div><div><br></div><div>करवा चाैथ पर इस वर्ष बुध के साथ सूर्य ग्रह भी विद्यमान होंगे, दोनों की युति बुधादित्य योग बनाएगी। इसके अलावा इस दिन शिवयोग के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि, सप्त कीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि में चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो रही है, जबकि इस तिथि का अंत मृगशिरा नक्षत्र में होगा।</div><div>पहली बार करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत अच्छा है।</div><div><br></div><div>करवा चौथ महात्म्य</div><div>〰️〰️🔸🔸〰️〰️</div><div>छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।</div><div><br></div><div>महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।</div><div><br></div><div>सरगी का महत्त्व</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।</div><div><br></div><div>महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।</div><div><br></div><div>चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇</div><div><br></div><div>कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। </div><div><br></div><div>व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।</div><div><br></div><div>करवा चौथ पूजन विधि</div><div>〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️</div><div>प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।</div><div>व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।</div><div>व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-</div><div>प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- </div><div><br></div><div>'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'</div><div><br></div><div>अथवा👇</div><div>ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, </div><div>'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, </div><div>'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा </div><div>'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।</div><div><br></div><div>शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।</div><div>भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।</div><div>सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।</div><div><br></div><div>करवा चौथ प्रथम कथा </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।</div><div>शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।</div><div>सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।</div><div>इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।</div><div><br></div><div>वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।</div><div><br></div><div>उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।</div><div>सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।</div><div><br></div><div>एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।</div><div><br></div><div>इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।</div><div>सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।</div><div><br></div><div>अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।</div><div><br></div><div>करवाचौथ द्वितीय कथा </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।</div><div><br></div><div>परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।</div><div><br></div><div>करवा चौथ तृतीय कथा </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।</div><div><br></div><div>उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।</div><div>यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।</div><div><br></div><div>करवाचौथ चौथी कथा </div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।</div><div><br></div><div>पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।</div><div>तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।</div><div><br></div><div>एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।</div><div>भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।</div><div>भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।</div><div><br></div><div>पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 4 नवंबर को 13 घंटे 35 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 35 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।</div><div><br></div><div>चतुर्थी तिथि आरंभ- 03:23 सायं (04 नवंबर)</div><div><br></div><div>चतुर्थी तिथि समाप्त- 05:12 प्रातः (5 नवंबर)</div><div><br></div><div>चंद्रोदय- 08:12 रात्री</div><div><br></div><div>पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.33 से 6.51 शाम तक।</div><div><br></div><div>करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:12 बजे से 8:51 तक है।</div><div><br></div><div>प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। </div><div><br></div><div>चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।</div><div><br></div><div>"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।</div><div>गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"</div><div><br></div><div>इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।</div><div><br></div><div>सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>मेष राशि👉 मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा। </div><div><br></div><div>वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी। </div><div><br></div><div>मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी। </div><div><br></div><div>कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा। </div><div><br></div><div>सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है। </div><div><br></div><div>कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।</div><div><br></div><div>तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा। </div><div><br></div><div>वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा। </div><div><br></div><div>धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें। </div><div><br></div><div>मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी। </div><div><br></div><div>कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी। </div><div><br></div><div>मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।</div><div><br></div><div>WWW.ASTRORRACHITA.IN </div><div>91.9958067960</div><div>Acharya Rrachita </div><div>Acharya Shailender ji</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-69887611532272314212020-08-11T09:43:00.001+05:302020-08-11T09:43:24.457+05:30नाभि NAVEL में तेल OIL डालने से फायदे <div>नाभि शरीर का केंद्र बिंदु होता है।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixjglF5h5trNEncQVYHaeErny3jmyX_ru0TfuhAqejKH7pbJPqVcfOGPLZQKGjMKwh0Dx7fc7DssoMXzB5jSdMAPPtEXTvFtZvizSxgr57OwPmLKp1VVW1-_1gweDKaMpCR2G-EhF9u0I/s1600/1597119197168460-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div> ह र रात सोने से पहले अगर आप मात्र दो बूंद तेल भी नाभि में डालते हैं तो सेहत के कई आश्चर्यजनक फायदे मिल सकते हैं। यह त्वचा, प्रजनन, आंखों और मस्तिष्क के लिए अत्यंत उपयोगी है। आइए जानते हैं नाभि में तेल डालने से क्या और कौन से फायदे मिलते हैं... </div><div><br></div><div>नाभि में रोजाना तेल लगाने से फटे हुए होंठ नर्म और गुलाबी हो जाते हैं।</div><div> </div><div>-इससे आंखों की जलन, खुजली और सूखापन भी ठीक हो जाता है।</div><div> </div><div>-नाभि में तेल लगाने से शरीर के किसी भी भाग में सूजन की समस्या खत्म हो जाती है। </div><div> </div><div>-सरसों का तेल नाभि पर लगाने से घुटने के दर्द में राहत मिलती है।</div><div> </div><div>-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारे चेहरे की रंगत बढ़ जाती है, इसलिए आपको रोजाना नाभि पर सरसो तेल लगाना चाहिए।</div><div><br></div><div>नाभि पर सरसो तेल लगाने से पिंपल्स और दाग-धब्बे ठीक होते है।</div><div> </div><div>-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारा पाचन तंत्र भी मजबूत होता है।</div><div> </div><div>- बादाम का तेल लगाने से त्वचा की रंगत निखर जाती है। </div><div> </div><div>- नाभि में तेल लगाने से पेट का दर्द कम होता है। </div><div> </div><div>-इससे अपच, फ़ूड पॉइजनिंग, दस्त, मतली जैसी बीमारियों से भी राहत मिलती है। </div><div> </div><div>-इस तरह की समस्याओं के लिए पिपरमिंट आइल और जिंजर आइल को किसी अन्य तेल के साथ पतला करके नाभि में लगाना चाहिए। </div><div> </div><div>- अगर आप मुहांसों की समस्या से परेशान हैं तो आपको नीम के तेल को नाभि में लगाना चाहिए। इससे आपके कील-मुहांसे दूर होने लगेंगे। </div><div> </div><div>-अगर आपके चेहरे पर कई तरह के दाग की समस्या है तो नीम का तेल नाभि में डालने से ये दाग दूर होंगे। नाभि में लेमन आयल लगाने से भी दाग धब्बे भी दूर होते हैं। </div><div> </div><div>-नाभि प्रजनन तंत्र से जुड़ी हुई होती है। इसलिए नाभि में तेल लगाने से प्रजनन क्षमता विकसित होती है। </div><div> </div><div>- कोकोनट या ऑलिव आइल को नाभि में लगाने से महिलाओं के हार्मोन संतुलित होते हैं और गर्भधारण की संभावना बढ़ती है। </div><div>नाभि में तेल लगाने से पुरुषों के शरीर में शुक्राणुओं की वृद्धि और सुरक्षा होती है। </div><div> </div><div>- माहवारी से संबंधित समस्याओं से आजकल हर दूसरी-तीसरी महिला ग्रस्त मिलती है। अगर पीरियड्स के दौरान ज्यादा दर्द हो तो रूई के फाहे में थोड़ी सी ब्रांडी लगाकर नाभि में लगाने से ये दर्द तुरंत दूर हो जाता है। </div><div> </div><div>नाभि की नियमित रूप से सफाई बहुत जरूरी है इसके लिए कुसुम, जोजोबा, ग्रेप्स सीड, या इसी तरह के अन्य हल्के तेलों को रूई में लगाकर नाभि में लगायें और धीरे-धीरे मैल साफ़ करें।</div><div><br></div><div>नाभि में मौजूद मैल के कारण बैक्टीरिया और फंगस के पनपने की संभावना होती है। इसलिए कोई भी संक्रमण बढ़ सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि आप संक्रमण को दूर करने वाले असरदार तेलों का प्रयोग करके नाभि को नम बनाकर रखें। इन तेलों में टी ट्री आइल और मस्टर्ड आइल सबसे असरदार हैं।</div><div><br></div><div>Compiled WWW.ASTRORRACHITA.IN </div><div>09958067960</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-12877225503508359872020-07-12T14:48:00.001+05:302020-07-12T14:48:39.998+05:30तुलसी की दो सेवायें<div>तुलसी की दो सेवायें हैं</div><div> </div><div>प्रथम सेवा -</div><div>तुलसी की जड़ो में प्रतिदिन जल अर्पण करते रहना !केवल एकादशी को छोड़ कर। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaU0xXmnxCBJJHsHcp6Ilb2yBD97M2Jf448R6ltp6ysfJr47AJ2jM6MVqYuK0lqt2d12qkoMR8urKWQQYtKjMXtXOXEe_KgVSWaOkzi_d9fiu27fZbM2VAwpj30bwRhvkbkwhnb56_y7U/s1600/1594545513523598-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div><div><br></div><div>द्वितीय सेवा तुलसी की मंजरियों को तोड़कर तुलसी को पीड़ा मुक्त करते रहना ,क्योंकि ये मंजरियाँ तुलसी जी को बीमार करके सुखा देती हैं !जब तक ये मंजरियाँ तुलसी जी के शीश पर रहती हैं , तब तक तुलसी माता घोर कष्ट पाती हैं !</div><div><br></div><div>इन दो सेवाओं को ...</div><div> श्री ठाकुर जी की सेवा से कम नहीं माना गया है ! </div><div> इनमें कुछ सावधानियाँ रखने की आवश्यक्ता है !</div><div><br></div><div>जैसे तुलसी दल तोड़ने से पहले तुलसी जी की आज्ञा ले लेनी चाहिए !</div><div> सच्चा वैष्णव बिना आज्ञा लिए तुलसी दल को स्पर्श भी नहीं करता है !</div><div><br></div><div> रविवार और द्वादशी के दिन तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए , तथा कभी भी नाखूनों से तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए ! न ही एकादशी को जल देना चाहिये क्यो की इस दिन तुलसी महारानी भी ठाकुर जी के लिये निर्जल व्रत रखती हैं। ऐसा करने से महापाप लगता है !</div><div><br></div><div>कारण -- तुलसीजी श्री ठाकुर जी की आज्ञा से केवल इन्ही दो दिनों विश्राम और निंद्रा लेती हैं !</div><div>बाकी के दिनों में वो एक छण के लिए भी सोती नही हैं और ना ही विश्राम लेती हैं !</div><div> आठों पहर ठाकुर जी की ही सेवा में लगी रहती हैं !!</div><div><br></div><div> रचिता गुप्ता रवेरा</div><div>WWW.ASTRORRACHITA.IN</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-4664692824826109012020-06-29T09:26:00.001+05:302020-06-29T09:26:17.435+05:30Ayurveda tips for Teeth & Gums to be healthy shiny<div>जाने दांतो का इलाज करने वाले आयुर्वेदिक दंतमंजन के बारे में, जिन्हें आप खुद अपने घर पर ही बना सकते हो।</div><div>〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️</div><div>सेंधा नमक</div><div>〰️〰️〰️</div><div> पिसा हुआ सेंधा नमक को दांतों पर मलते रहने से दांत जड़ों से मजबूत होते हैं। सेंधा नमक दांतों में जमी गंदगी को दूर करता है साथ ही कैमिकल रूप से जमें हुए एसिड़ को भी खत्म करता है।</div><div><br></div><div>नींबू का मंजन बनाने का तरीका</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>नींबू को आप छाया में सुखा लें फिर इन्हें कूट लें और पाउडर तैयार करें। इस पाउडर को आप दांतों पर मंजन करें। यह दांतों को मोती जैसी चमक दिलवाता है।</div><div><br></div><div>बादाम का मंजन कैसे बनाएं</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>बादामों के छिलकों को जलाकर उन्हें पीस लें और उसमें थोड़ा सेंधा नमक डालकर मंजन बना लें। इस मंजन के प्रयोग से दांतों की चमक बढ़ती है।</div><div><br></div><div>आम का पत्तों का मंजन</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>आम के ताजे पत्तों को चबा-चबा कर खाएं और थूकते रहें। नियमित रूप से कुछ दिनों तक करते रहने से दांत जड़ से मजबूत हो जाते है। यदि आम के पत्तों को छांव में सुखाकर उन्हें जला लें फिर उसका चूर्ण बनाकर दांतों पर लगाने से दांतों की उम्र लंबी होती है।</div><div><br></div><div> बेकिंग सोडा</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>सेंधा नमक, बेकिंग सोडा, सिरका के साथ फिटकरी को मिला कर दांतों पर मंजन के तौर पर प्रयोग करें।</div><div><br></div><div>नारियल का तेल</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>कुल्ला तेल से करें यह प्राचीन समय का नुस्खा है जो दांतों की गंदगी को दूर करता है। नारियल तेल से कुल्ला करने से दांत साफ होते हैं।</div><div>कुछ देर तक कुल्ला करने के बाद दांतों को मुलायाम और सूखे ब्रश से दांतों को साफ करना चाहिए।</div><div><br></div><div>प्राकृतिक तेल का प्रयोग</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>दांतों के लिए पुदीने का तेल, दालचीनी का तेल, लौंग का तेल आदि एंटीबैक्टीरियल हैं जिनका इस्तेमाल दांतों की सफाई के रूप में किया जा सकता है।</div><div><br></div><div>सरसों का तेल</div><div>〰️〰️〰️〰️</div><div>दांतों को जड़ से मजबूत करने में सरसों का तेल का प्रयोग करना चाहिए यह भी एक प्राचीन उपाय है। सरसों के तेल में नमक, हल्दी को मिलाकर डेली दांत मांजने चाहिए।</div><div><br></div><div>मिट्टी का प्रयोग</div><div>〰️〰️〰️〰️〰️</div><div>चिकनी मिट्टी को रात को पानी में भिगो कर रखें और सुबह और शाम मसूड़ों पर लगाते रहने से थोड़े ही दिनों में आपके दांत मजबूज हो जाएगें।</div><div>यदि मसूड़ों में दर्द और सूजन है तो एलोवेरा और हल्दी का पाउडर को मिलाकर बना हुआ पेस्ट को मसूड़ों पर लगाने से मसूड़े ठीक होते हैं।</div><div>पानी से भी ब्रश कर सकते हो। एैसा करने से दांत में फंसे खाने को आराम से निकाला जा सकता है।</div><div><br></div><div>दालचीनी </div><div>〰️〰️〰️</div><div>दालचीनी मुंह की बदबू को कम करती है साथ ही मुंह में किसी तरह के कीड़े को नहीं लगने देती है। दालचीनी पूरी तरह से एंटी बैक्टीरियल है।</div><div><br></div><div>जीरा</div><div>〰️〰️</div><div>जीरे को हल्की आग में सेक लें और इसका नित्य सेवन करें। यह मुंह की दुर्गन्ध को कुछ ही दिनों में जड़ से खत्म कर देगा।</div><div><br></div><div>इन आसान तरीकों से आप अपने घर में ही प्राकृतिक दांतमंजन बना सकते हो। यदि दांत ठीक हैं तो आपकी सेहत भी ठीक हैं।</div><div><br></div><div>WWW.ASTRORRACHITA.IN </div><div>Acharya Rrachita Gupta +919958067960<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUWUgxxahNGPxyODzbt4IU0E50U-ATuDfkmzyN6QuWWP1KJ8TUSECrrTLSP7aiFgZ1IgL-VXGc0WaBH7qxK5DwGKJYI6MCFCsuL2ivsN2Big35jKpKF0hHD9PghnjgX5Rz5pOD55OPwPs/s1600/1593402972557043-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-40385423991637143712020-05-17T17:10:00.001+05:302020-05-17T17:10:20.330+05:30 कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है<div>आरती, भजन अथवा कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है...????? </div><div>〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️</div><div>हम अक्सर ही यह देखते है कि जब भी आरती, भजन अथवा कीर्तन होता है तो, उसमें सभी लोग तालियां जरुर बजाते हैं!</div><div><br></div><div>लेकिन, हममें से अधिकाँश लोगों को यह नहीं मालूम होता है कि.... आखिर यह तालियां बजाई क्यों जाती है?????</div><div><br></div><div>इसीलिए हम से अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने-समझे ही तालियां बजाया करते हैं क्योंकि, हम अपने बचपन से ही अपने बाप-दादाओं को ऐसा करते देखते रहे हैं!</div><div><br></div><div>हमारी आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जिस प्रकार व्यक्ति अपने बगल में कोई वस्तु छिपा ले और, यदि दोनों हाथ ऊपर करे तो वह वस्तु नीचे गिर जायेगी।</div><div><br></div><div>ठीक उसी प्रकार जब हम दोनों हाथ ऊपर उठकर ताली बजाते है। तो, जन्मो से संचित पाप जो हमने स्वयं अपने बगल में दबा रखे है, नीचे गिर जाते हैं अर्थात नष्ट होने लगते है!</div><div><br></div><div>कहा तो यहाँ तक जाता है कि जब हम संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ ऊपर उठा कर ताली बजाना) में काफी शक्ति होती है। और, संकीर्तन से हमारे हाथो की रेखाएं तक बदल जाती है!</div><div><br></div><div>परन्तु यदि हम आध्यात्मिकता की बात को थोड़ी देर के छोड़ भी दें तो</div><div><br></div><div>एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को हाथों में पूरे शरीर के अंग व प्रत्यंग के दबाव बिंदु होते हैं, जिनको दबाने पर सम्बंधित अंग तक खून व ऑक्सीजन का प्रवाह पहुंचने लगता है... और, धीरे-धीरे वह रोग ठीक होने लगता है।</div><div><br></div><div>और, यह जानकार आप सभी को बेहद ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य होगा कि इन सभी दबाव बिंदुओं को दबाने का सबसे सरल तरीका होता है ताली!</div><div><br></div><div>असल में ताली दो तीन प्रकार से बजायी जाती है:-</div><div><br></div><div>1👉 ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि ....दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आए!</div><div><br></div><div>इस प्रकार की ताली से बाएं हथेली के फेफड़े, लीवर, पित्ताशय, गुर्दे, छोटी आंत व बड़ी आंत तथा दाएं हाथ की अंगुली के साइनस के दबाव बिंदु दबते हैं... और, इससे इन अंगों तक खून का प्रवाह तीव्र होने लगता है!</div><div><br></div><div>इस प्रकार की ताली को तब तक बजाना चाहिए जब तक कि, हथेली लाल न हो जाए!</div><div><br></div><div>इस प्रकार की ताली कब्ज, एसिडिटी, मूत्र, संक्रमण, खून की कमी व श्वांस लेने में तकलीफ जैसे रोगों में लाभ पहुंचाती है</div><div><br></div><div>2 थप्पी ताली👉 ताली में दोनों हाथों के अंगूठा-अंगूठे से कनिष्का-कनिष्का से तर्जनी-तर्जनी से यानी कि सभी अंगुलियां अपने समानांतर दूसरे हाथ की अंगुलियों पर पड़ती हो, हथेली-हथेली पर पड़ती हो.!</div><div><br></div><div>इस प्रकार की ताली की आवाज बहुत तेज व दूर तक जाती है!</div><div><br></div><div>एवं, इस प्रकार की ताली कान, आंख, कंधे, मस्तिष्क, मेरूदंड के सभी बिंदुओं पर दबाव डालती है!</div><div><br></div><div>इस ताली का सर्वाधिक लाभ फोल्डर एंड सोल्जर, डिप्रेशन, अनिद्रा, स्लिप डिस्क, स्पोगोलाइसिस, आंखों की कमजोरी में पहुंचता है!</div><div><br></div><div>एक्यूप्रेशर चिकित्सकों की राय में इस ताली को भी तब तक बजाया जाए जब तक कि हथेली लाल न हो जाए!</div><div><br></div><div>इस ताली से अन्य अंगों के दबाव बिंदु सक्रिय हो उठते हैं तथा, यह ताली सम्पूर्ण शरीर को सक्रिय करने में मदद करती है!</div><div><br></div><div>यदि इस ताली को तेज व लम्बा बजाया जाता है तो शरीर में पसीना आने लगता है ...जिससे कि, शरीर के विषैले तत्व पसीने से बाहर आकर त्वचा को स्वस्थ रखते हैं।</div><div><br></div><div>और तो और ताली बजाने से न सिर्फ रोगों से रक्षा होती है, बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है!</div><div><br></div><div>जिस तरह कोई ताला खोलने के लिए चाबी की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह कई रोगों को दूर करने में यह ताली ना सिर्फ चाभी का ही काम नहीं करती है बल्कि, कई रोगों का ताला खोलने वाली होने से इसे ""मास्टर चाभी"" भी कहा जा सकता है।</div><div><br></div><div>क्योंकि हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं एवं, स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है!</div><div><br></div><div>इस तरह ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है और, यदि प्रतिदिन यदि नियमित रूप स क्योंकि हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं एवं, स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है!</div><div><br></div><div>इस तरह ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है।</div><div>〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-36378760875176390382020-05-04T14:47:00.001+05:302020-05-04T14:47:26.854+05:30*मंगल का कुम्भ राशि में गोचर और प्रभावी उपाय (4 मई, 2020)*<p dir="ltr">*<b>मंगल का कुम्भ राशि में गोचर और प्रभावी उपाय (4 मई, 2020)</b>*</p>
<p dir="ltr">मंगल ग्रह 4 मई, सोमवार को रात्रि 19:59 बजे अपनी उच्च राशि मकर से निकल कर कुम्भ राशि में प्रवेश करेगा। यह मंगल के शत्रु शनि के स्वामित्व की राशि है। मंगल एक अग्नि तत्व प्रधान ग्रह है और कुम्भ एक वायु तत्त्व की राशि है। इस प्रकार एक अग्नि तत्त्व प्रधान ग्रह का प्रवेश वायु तत्व प्रधान राशि में होगा तो वातावरण में गर्म हवाओं की वृद्धि होगी। आईये अब जानते हैं कि मंगल के कुम्भ राशि में गोचर का फल सभी बारह राशियों के लोगों को किस प्रकार प्रभावित करने वाला है।<br><br></p>
<p dir="ltr">*<b>मंगल का कुम्भ राशि में गोचर</b>*</p>
<p dir="ltr">यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।</p>
<p dir="ltr">मेष राशि<br>
आपकी राशि का स्वामी मंगल आपके ग्यारहवें भाव में गोचर करेगा। यह आपकी राशि से आठवें भाव का स्वामी भी है। मंगल का गोचर आपके लिए अनुकूलताओं के द्वार खोल देगा और आपको अनेक अवसरों की प्राप्ति होगी। इस गोचर काल में मंगल आपके लिए अनेक प्रकार की आर्थिक योजनाओं को फलीभूत करेगा, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और आप धन का निवेश करके अच्छा मुनाफ़ा कमा पाएंगे। प्रॉपर्टी से भी लाभ होने के प्रबल योग बनेंगे, जिससे आप का दबदबा बढ़ेगा। कार्य क्षेत्र में आप अपने वरिष्ठ अधिकारियों के कृपा पात्र बनेंगे और आपको विशेष सुविधाएँ मिल सकती हैं। इस गोचर का नकारात्मक प्रभाव यह होगा कि आपके प्रेम जीवन में चुनौतियाँ आएँगी और संभव है कि एक दूसरे से विचार ना मिलने या मत भिन्नता होने के कारण आप दोनों में आपसी खींचतान बढ़ जाए। यदि आप शादीशुदा हैं तो संतान के लिए यह गोचर सामान्य रहेगा। हालांकि उनका स्वास्थ्य खराब हो सकता है और यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको इस गोचर के अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। आप अपने धन की बचत करने में भी सफल रहेंगे और अपने विरोधियों पर भी भारी पड़ेंगे। इस समय में किए गए आपके प्रयास आपको हर तरफ से लाभ पहुंचाएंगे और यह कहा जा सकता है कि आप जिस काम में भी हाथ डालेंगे, वही चमकने लगेगा।<br><br><br><br></p>
<p dir="ltr">वृषभ राशि<br>
वृषभ राशि के लोगों के लिए मंगल का गोचर दशम भाव में होगा और यह आपके लिए कार्य क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ने वाला समय होगा। मंगल आपकी राशि के लिए सातवें तथा बारहवें भाव का स्वामी है। मंगल की यह स्थिति गोचर काल में आपको कार्यक्षेत्र में सिरमौर बनाएगी और आपके अधिकारों तथा कर्तव्यों के साथ-साथ वेतन में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। आपका आपके कार्यालय में दबदबा रहेगा और आपके अधिकार बढ़ेंगे, जिससे आपके साथ काम करने वाले कुछ लोग आपके विरुद्ध षड्यंत्र रच सकते हैं और आप की छवि को खराब करने का प्रयास करेंगे। इससे बचने के लिए आपको अभिमान और अति आत्मविश्वास से बचना होगा। इस गोचर के प्रभाव से आप अपने काम को ज्यादा अहमियत देंगे लेकिन शरीर को कम अहमियत देने से स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ आ सकती हैं। समस्याएं आ सकती हैं और आप थकान का अनुभव करेंगे। इस गोचर के प्रभाव से परिवार में कुछ उथल पुथल जरूर रहेगी और घर के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति आप थोड़े चिंतित रहेंगे। प्रेम जीवन के दृष्टिकोण से यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं रहेगा, इसलिए इस समय काल में अपने प्रियतम से मिलने का प्रयास कम से कम करें ताकि आपके बीच कोई विवाद ना होने पाए। आप अपने शरीर सौष्ठव पर भी ध्यान देंगे और संभव है इस समय में जिम ज्वाइन करें।<br><br></p>
<p dir="ltr">मिथुन राशि<br>
मंगल का गोचर आपकी राशि से नवें भाव में होगा। यह आपके लिए छठे तथा ग्यारहवें भाव का स्वामी है। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि आपका तबादला हो सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपके पिताजी से आपके संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है और उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। इसके अतिरिक्त यह गोचर आपको सामान्यतः आर्थिक लाभ पहुंचाएगा, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। आमदनी बढ़ाने की दिशा में आप अधिक प्रयास करेंगे और नए अवसरों की खोज करेंगे। इस समय काल में आपको लंबी यात्राओं पर जाने का भी अवसर मिलेगा जो कि आप भविष्य में किसी खास सोच के साथ करेंगे। गोचर के प्रभाव से आपके भाई बहनों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन इससे आपकी निर्णय लेने की शक्ति प्रबल होगी और आपके आत्मबल की बढ़ोतरी होगी, जिससे कामों में सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। पारिवारिक तौर पर यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं रहेगा और आपके परिवार में विशेष रूप से माताजी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है और उनके स्वभाव में भी तल्ख़ियां बढ़ सकती हैं। मंगल का यह गोचर कठिन प्रयासों के बाद ही सफलता को इंगित कर रहा है, इसलिए आपको अधिक प्रयास करने होंगे। विरोधियों के दृष्टिकोण से यह गोचर कमजोर रहेगा और आप उन पर भारी पड़ेंगे।<br><br></p>
<p dir="ltr">कर्क राशि<br>
कर्क राशि के अष्टम भाव में मंगल का गोचर होगा। मंगल आपके पंचम भाव अर्थात त्रिकोण तथा दशम भाव अर्थात केंद्र भाव का स्वामी होकर आपके लिए योगकारक ग्रह है, इसलिए इसका गोचर काफी महत्वपूर्ण होगा। मंगल के अष्टम भाव में गोचर करने से आपको स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। अनियमित रक्तचाप, दुर्घटना, चोट, एक्सीडेंट जैसी समस्याएं आ सकती हैं, इसलिए गाड़ी या वाहन बेहद सावधानी से चलाएँ। गुप्त तरीकों से धन प्राप्ति के रास्ते आप तलाशेंगे और आंशिक तौर पर आपको उसमें सफलता भी मिल सकती है। मंगल के गोचर के दौरान कुछ ऐसी यात्राएं करनी पड़ सकती हैं, जिनके बारे में आपने कोई विचार ना किया हो। इससे शारीरिक और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। आपके परिवार में इस गोचर से कुछ शांति का माहौल रह सकता है तथा परिवार में भाई बहनों को किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। आपके कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं के बाद सफलता दायक समय की प्राप्ति होगी। आपको कुछ भी बोलने से पहले सोच समझना होगा क्योंकि आपके ससुराल पक्ष से आपके रिश्ते बिगड़ सकते हैं। इस गोचर के प्रभाव से जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी पीड़ित होगा और आपको मानसिक चिंताएं घेरे रखेंगी लेकिन इनको खुद पर हावी न होने दें।<br></p>
<p dir="ltr">सिंह राशि<br>
सिंह राशि के लोगों के लिए मंगल एक योगकारक ग्रह हैं क्योंकि यह आपके चौथे (केंद्र भाव) तथा नवें (त्रिकोण भाव) के स्वामी हैं। मंगल का गोचर आपकी राशि से सातवें भाव में होगा जो कि आपके लिए अधिक अनुकूल नहीं माना जाएगा। इस गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में तनाव और झगड़े की संभावनाएं बढ़ेंगी और आप दोनों के रिश्ते सामान्य नहीं रह पाएंगे। आपके जीवनसाथी के व्यवहार में भी आपको बदलाव देखने को मिलेगा और वे कुछ उखड़े उखड़े तथा गुस्सैल स्वभाव को लेकर आगे बढ़ेंगे, जिससे जरा जरा सी बात पर आपका रिश्ता बिगड़ सकता है। इस गोचर के प्रभाव का सकारात्मक पक्ष यह रहेगा कि व्यापार के मामले में आपको उत्तम लाभ की प्राप्ति होगी। आपके पिताजी भी इस समय अपने जीवन में अच्छे उन्नति प्राप्त करेंगे और आपके कार्यक्षेत्र में भी आप को प्रगति मिलेगी। यदि आप जॉब भी करते हैं तो आपको उन्नति मिल सकती है। इसके अतिरिक्त आपका स्वास्थ्य भी मजबूत बनेगा और स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। गोचर के प्रभाव से आप को आंशिक तौर पर धन लाभ होने की भी संभावना बनेगी। सुदूर यात्राओं से आपको अच्छा लाभ मिलेगा तथा प्रॉपर्टी संबंधित लाभ होने की भी संभावना रहेगी। हालांकि इस समय में आपकी माता जी का आपके जीवन साथी से किसी बात को लेकर झगड़ा हो सकता है, जिससे परिवार में तनाव बना रह सकता है।<br></p>
<p dir="ltr">कन्या राशि<br>
आपकी राशि के लिए मंगल तीसरे तथा आठवें भाव का स्वामी होकर अधिक अनुकूल ग्रह नहीं है और यह आपकी राशि से छठे भाव में गोचर करेगा, जिसकी वजह से आपके प्रयासों में सफलता मिलेगी लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। इस समय अवधि में आप रक्त संबंधित किसी भी शारीरिक समस्या से ग्रसित हो सकते हैं। इस गोचर का अनुकूल पक्ष यह होगा कि आपको आर्थिक तौर पर कुछ मुनाफ़े की प्राप्ति होगी और आप अपने सिर पर चढ़े किसी भी प्रकार के लोन या कर्ज को चुकाने में पूरा जोर लगाएंगे और उससे आपको मुक्ति मिल सकती है। इस समय काल में आप अपने शत्रुओं पर भारी पड़ेंगे तथा यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो वह भी आपके पक्ष में आ सकता है लेकिन आपको दूसरों के ऐसे मामलों में पड़ने से बचना चाहिए, जिससे आपका कोई संबंध ना हो। आप यदि नौकरी करते हैं तो यह मंगल का गोचर आपको अच्छे परिणाम प्रदान करेगा और आपकी नौकरी में स्थिति मजबूत होगी। आपको अत्यधिक तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए तथा ठंडे पदार्थ लें, जिससे शरीर में पित्त प्रकृति शांत रह सके और आप बीमार ना हों।<br><br></p>
<p dir="ltr">तुला राशि<br>
मंगल का गोचर तुला राशि के पांचवें भाव में आकार लेगा। मंगल आपकी राशि के लिए दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होने के कारण मारक भी है तथा पंचम भाव में मंगल का गोचर अनुकूल नहीं होता। इसी को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपकी नौकरी में कुछ बदलाव आएँगे और आप अपनी चलती हुई नौकरी को छोड़ सकते हैं और दूसरी नौकरी के लिए प्रयासरत रहेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी रहेगी लेकिन आपकी संतान को शारीरिक कष्ट हो सकते हैं। विद्यार्थियों के मामले में यह गोचर ज्यादा अनुकूल नहीं रहेगा क्योंकि यहाँ स्थित मंगल आपकी एकाग्रता को भंग करेगा और पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न करेगा। यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो प्रेम जीवन के लिहाज से भी यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं है। हालांकि कुछ विशेष स्थितियों में यह गोचर प्रेम विवाह की स्थिति भी बनाएगा। मंगल का गोचर शारीरिक रूप से आपको परेशान कर सकता है लेकिन आर्थिक तौर पर यह आपको अच्छे परिणाम देगा और आपकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। यदि आप व्यापार करते हैं तो व्यापार के मामलों में आपका दिमाग सरपट दौड़ेगा और आपकी बिज़नेस डील सक्सेसफुल रहेंगी। खर्चे आपके नियंत्रण में रहेंगे, जिससे आर्थिक तौर पर आप प्रसन्नचित्त रहेंगे।<br><br></p>
<p dir="ltr">वृश्चिक राशि<br>
वृश्चिक राशि के लोगों का राशि स्वामी मंगल होता है, इसलिए इसका गोचर आपके लिए काफी महत्वपूर्ण रहेगा। यह आपके छठे भाव का स्वामी भी है और मंगल का गोचर आपकी राशि से चौथे भाव में होगा, जहां इसकी स्थिति अधिक अनुकूल नहीं मानी जाती। इस स्थिति में आपको पारिवारिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। घर में लोग एक दूसरे के प्रति गुस्से की भावना रखेंगे तथा वाद-विवाद बढ़ेगा। माताजी का स्वास्थ्य कमजोर रहेगा और वे बीमार हो सकती हैं। उनके स्वभाव में भी उग्रता देखने को मिलेगी। आपको इस वजह से मानसिक रूप से अशांति महसूस होगी। इस गोचर के प्रभाव से किसी विवाद के कारण आपको सुख मिल सकता है, विशेषकर प्रॉपर्टी विवाद में सफलता मिल सकती है। इसके अतिरिक्त आप कोई नई चल व अचल संपत्ति खरीदने की दिशा में सफल हो सकते हैं। मंगल के गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में तनाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न होगी, इसलिए वाद-विवाद से दूर रहना ही बेहतर होगा। हालांकि मंगल का गोचर आपके कार्य क्षेत्र में बेहतर स्थितियों का निर्माण करेगा और आप अपने काम में मजबूत बनेंगे। आपको इस गोचर के परिणाम स्वरूप आंशिक तौर पर धन लाभ भी होगा। हालांकि आप उसको खर्च ही कर डालेंगे, जिससे स्थिति जस की तस रहेगी।<br><br></p>
<p dir="ltr">धनु राशि<br>
धनु राशि के लोगों के लिए मंगल पंचम भाव तथा द्वादश भाव का स्वामी है। यह आपकी राशि के स्वामी बृहस्पति का परम मित्र है और गोचर के समय में आप के तीसरे भाव में प्रवेश करेगा। मंगल का गोचर तीसरे भाव में अनुकूल माना जाता है, इसलिए इस गोचर के प्रभाव से आप की ऊर्जा को पंख लगेंगे और आप अपनी कार्य कुशलता तथा तकनीकी क्षमता की बदौलत अनेक क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ देंगे। आपके प्रयासों को सफलता मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन परिणाम प्राप्त होने से आप काफी खुश रहेंगे। इस समय में आपके प्रेम जीवन में भी बहार आएगी और आपके जीवन में किसी व्यक्ति का प्रवेश हो सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपका मानसिक तनाव दूर होगा और आप स्वयं पर अधिक भरोसा करेंगे, इसलिए हर काम को स्वयं ही निपटाना चाहेंगे। इससे कामों की प्रगति में शीघ्रता होगी और आप अपनी परियोजनाओं को समय रहते निपटाने में कामयाब रहेंगे। आप अपने विरोधियों को हानि पहुंचाएंगे और उनसे बिल्कुल भी नहीं घबराएंगे। यदि आप खिलाड़ी हैं तो आपको इस गोचर का बहुत अच्छा परिणाम मिलेगा और आपकी खेल क्षमता मजबूत होगी। यात्राओं की संभावना बनेगी। हालाँकि यात्राएं आपको थोड़ा थका जरूर देंगी लेकिन आर्थिक तौर पर लाभदायक साबित होंगी। कार्यक्षेत्र के लिए भी यह गोचर अनुकूल परिणाम देने वाला साबित होगा।<br><br></p>
<p dir="ltr">मकर राशि<br>
मकर राशि के लोगों के लिए मंगल सुख भाव अर्थात चतुर्थ तथा आय भाव अर्थात एकादश भाव का स्वामी है। मंगल का गोचर आपकी राशि से दूसरे भाव में होगा, जिससे आपकी आर्थिक उन्नति के दरवाज़े खुलेंगे और कम प्रयासों से ही आर्थिक सफलता प्राप्त होगी तथा आपका सामाजिक स्तर भी ऊंचा उठेगा। इस गोचर का कमजोर पक्ष यह है कि परिवार में तनाव देखने को मिल सकता है और आपकी वाणी में भी कुछ कड़वापन तथा गुस्सा जाहिर तौर पर दिखाई देगा, जिससे आपको कुछ परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं। प्रॉपर्टी के मामले में यह गोचर अनुकूल रहेगा और आपको उससे लाभ होगा। शिक्षा के क्षेत्र में यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं कहा जाएगा और आपकी पढ़ाई में विघ्न पड़ सकते हैं। स्वास्थ्य के मामले में भी अधिक अनुकूलता नहीं रहेगी और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से आप शीघ्र ही बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। इस समय में अधिक तेल मसाले वाला भोजन करने से बचें तथा परिवार में शांति स्थापित करने का प्रयास करें। आपके बड़े भाई बहन आवश्यकता होने पर इस समय में आपकी आर्थिक तौर पर मदद भी करेंगे, जिससे आपके रिश्ते बेहतर बनेंगे। जीवन साथी के स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिल सकती है। उनका ख़ास ख्याल रखें और आवश्यक होने पर डॉक्टर को भी दिखाएं</p>
<p dir="ltr">कुंभ राशि<br>
मंगल का गोचर आपकी राशि से प्रथम भाव में होगा अर्थात आपकी ही राशि में मंगल का गोचर होने से आपको इस गोचर के विशेष प्रभाव मिलेंगे। मंगल आपकी राशि के लिए तीसरे और दसवें भाव का स्वामी है। इस गोचर के प्रभाव से आपके स्वभाव में विशेष परिवर्तन देखने को मिलेंगे। आप स्वभाविक रूप से कुछ गुस्से वाले तथा हठी और जिद्दी हो सकते हैं। वाहन चलाने में भी आपको सावधानी बरतनी अपेक्षित होगी। इस गोचर के प्रभाव से आपके भाई बहनों का सहयोग आपको मिलेगा तथा आप स्वयं आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। आपके कार्यक्षेत्र में भी इस गोचर का अच्छा लाभ आपको प्राप्त होगा। आप अपने काम को बड़ी ही चुस्ती और फुर्ती से समय रहते निपटाएंगे, जिससे प्रशंसा के पात्र बनेंगे। गोचर का यह प्रभाव आपके पारिवारिक जीवन को कुछ परेशान और अशांत करेगा तथा परिवार के बुजुर्गों का स्वास्थ्य पीड़ित हो सकता है, विशेषकर आपकी माताजी बीमार हो सकती हैं। इस गोचर का प्रभाव आपके दांपत्य जीवन पर भी पड़ेगा क्योंकि मंगल की सप्तम दृष्टि आपके दांपत्य भाव पर है, जिसकी वजह से कड़वे वचन और गुस्से के कारण आप दोनों में अहम का टकराव हो सकता है और इसका प्रभाव दांपत्य जीवन को पीड़ित करेगा। इस गोचर के प्रभाव से आपका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है और आप बीमार पड़ सकते हैं, इसलिए विशेष तौर पर स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने से बचें।<br><br></p>
<p dir="ltr">मीन राशि<br>
मीन राशि के लोगों के लिए मंगल दूसरे और नवें भाव का स्वामी होता है तथा मंगल का गोचर आपकी राशि से बारहवें भाव में होगा। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको विदेशी स्रोतों से लाभ होगा और आप कार्य विशेष के लिए देश से बाहर गमन कर सकते हैं। यह गोचर विदेशी भूमि पर आपको काफी लाभ दे सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में कुछ चुनौतियाँ आएँगी, जिनका सामना आपको पूरी ही हिम्मत से करना चाहिए क्योंकि आप दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। इस समय में जीवन साथी का व्यवहार आप को आश्चर्यचकित कर सकता है क्योंकि आपको उनसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं होगी। यह गोचर आपके भाई बहनों के लिए भी अधिक अनुकूल नहीं रहेगा, इसलिए उनका ध्यान भी अवश्य रखें। इस गोचर के प्रभाव से आमदनी में सामान्य रूप से इज़ाफा होगा लेकिन खर्चे थोड़े बढ़ सकते हैं। हांलाकि अपने विरोधियों के प्रति आपको परेशान होने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि वह आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएँगे। आप इस समय काल में निवेश करने का विचार कर सकते हैं। आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति थोड़ा चिंतित होना चाहिए क्योंकि नेत्र संबंधित पीड़ा अथवा नींद ना आhना जैसी समस्याएं आपको l गोचर काल में परेशान कर सकती हैं। <br>
Love, light & energy </p>
<p dir="ltr">🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏</p>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-45225982538317494672020-04-24T13:19:00.001+05:302020-04-24T13:19:17.048+05:30कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है।<div>*आइये जानते है कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है।* </div><div><br></div><div> *सोना* </div><div><br></div><div>सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।</div><div><br></div><div> *चाँदी* </div><div><br></div><div>चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।</div><div><br></div><div> *कांसा* </div><div><br></div><div>काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।</div><div><br></div><div> *तांबा* </div><div><br></div><div>तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।</div><div><br></div><div> *पीतल* </div><div><br></div><div>पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।</div><div><br></div><div> *लोहा* </div><div><br></div><div>लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।</div><div><br></div><div> *स्टील* </div><div><br></div><div>स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।</div><div><br></div><div> *एलुमिनियम* </div><div><br></div><div>एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।</div><div><br></div><div> *मिट्टी* </div><div><br></div><div>मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।</div><div><br></div><div>पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है।</div><div><br></div><div>जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।</div><div>पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।</div><div>काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।</div><div>(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)</div><div><br></div><div>अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।</div><div><br></div><div>🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-46899037285973392322020-03-17T08:22:00.001+05:302020-03-17T08:22:02.231+05:30हनुमान जी की उपासना Do and Don't <div>हनुमान जी की उपासना सम्बंधित संशय समाधान</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg36Rd-6lviFhEbF18i0DlM_wBLkxORXMRq5aqCOGS36Y7FUuj6RhD1k4qfg2zXkqI9jTo69UraVGTD8GFJaT1dvzKTHCfIY6ObdMVXV76XpQS5vXMoHaQjpvJV-RRx9MU8DeZYgv9mmlA/s1600/1584413516532843-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg36Rd-6lviFhEbF18i0DlM_wBLkxORXMRq5aqCOGS36Y7FUuj6RhD1k4qfg2zXkqI9jTo69UraVGTD8GFJaT1dvzKTHCfIY6ObdMVXV76XpQS5vXMoHaQjpvJV-RRx9MU8DeZYgv9mmlA/s1600/1584413516532843-0.png" width="400">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsO4XFO4iUsW7B1PqY_txAxSGc2m81o06C-f79TIpBYqFEpos9xviRLWM2X8ZpHciasyU44Q1YTG01ekhAfJC_U3iXo82gPEVs76Ji8rRnNNPo9hUt00aYZkPGjLUrFC-lblP64E09eaY/s1600/1583758407581433-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div><div><br></div><div>My moment is NOW to speak up. My moment is NOW to love myself.</div><div>My moment is NOW to honor my heart. My moment is NOW to love my beautiful life giving body. My moment is NOW to choose again.</div><div>My moment is NOW to believe I can. My moment is NOW to be willing. My moment is NOW to forgive. My moment is NOW to let go.</div><div>My moment is NOW to trust. My moment is NOW to believe in all that’s possible. My moment is NOW to start. My moment is NOW to stop. My moment is NOW to listen. My moment is NOW to ask.</div><div>My moment is NOW.</div><div>My moment is NOW.</div><div>My moment is NOW.</div><div>I speak it.</div><div>I live it.</div><div>I love it.</div><div>Fully.</div><div>My moment is NOW in the big and small.</div><div><br></div><div>My moment is NOW.</div><div><br></div><div>Grab the moment.</div><div>It matters.</div><div><br></div><div>Our moment is Now...!!!</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-8923124922966252552020-03-09T18:03:00.001+05:302020-03-09T18:03:39.950+05:30रवींद्रनाथ के एक उपन्यास मे प्रेम क्या है <div>रवींद्रनाथ के एक उपन्यास में एक युवती अपने प्रेमी से कहती है कि मैं विवाह करने को तो राजी हूं, लेकिन तुम झील के उस तरफ रहोगे और मैं झील के इस तरफ।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimvhEpuCi8h7yarEkGrEeiRb7eKvz_Ru1ovSMZ9uZzHu0Srhd8RemPnTEs8d2AKeK3DWkF-Mr92Bj-n3fQpWYKK5hXewuGTWe7CyYETDFKLU8yb0-LdnIIu17zIpKGooPOU0Q3E3JHFFI/s1600/1583757214048995-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimvhEpuCi8h7yarEkGrEeiRb7eKvz_Ru1ovSMZ9uZzHu0Srhd8RemPnTEs8d2AKeK3DWkF-Mr92Bj-n3fQpWYKK5hXewuGTWe7CyYETDFKLU8yb0-LdnIIu17zIpKGooPOU0Q3E3JHFFI/s1600/1583757214048995-0.png" width="400">
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</div></div><div><br></div><div>प्रेमी की बात समझ के बाहर है। वह कहता है: तू पागल हो गई है? </div><div>प्रेम करने के बाद लोग एक ही घर में रहते हैं।</div><div>उसने कहा कि प्रेम करने के पहले भला एक घर में रहें, प्रेम करने के बाद एक घर में रहना ठीक नहीं, खतरे से खाली नहीं। एक-दूसरे के आकाश में बाधाएं पड़नी शुरू हो जाती हैं। मैं झील के उस पार, तुम झील के इस पार। यह शर्त है तो विवाह होगा। हां, कभी तुम निमंत्रण भेज देना तो मैं आऊंगी। या मैं निमंत्रण भेजूंगी तो तुम आना। या कभी झील पर नौका-विहार करते अचानक मिलना हो जाएगा। या झील के पास खड़े वृक्षों के पास सुबह के भ्रमण के लिए निकले हुए अचानक हम मिल जाएंगे, चौंक कर, तो प्रीतिकर होगा। लेकिन गुलामी नहीं होगी। तुम्हारे बिना बुलाए मैं न आऊंगी, मेरे बिना बुलाए तुम न आना। तुम आना चाहो तो ही आना, मेरे बुलाने से मत आना। मैं आना चाहूं तो ही आऊंगी, तुम्हारे बुलाने भर से न आऊंगी। इतनी स्वतंत्रता हमारे बीच रहे, तो स्वतंत्रता के इस आकाश में ही प्रेम का फूल खिल सकता है।</div><div><br></div><div>एक तो साधारण प्रेम है जिसको तुम जानते हो। इस प्रेम ने तुम्हारे जीवन को नरक बना दिया है। इस प्रेम की बात नहीं कर रहा प्रेम-पंथ ऐसो कठिन! यह तो कठिन है ही नहीं। यह तो बड़ा सरल है। दुनिया में सभी इसको सम्हाल लेते हैं। इसमें कठिनाई क्या होगी? हर घर में चल रहा है, हर परिवार में चल रहा है, हर व्यक्ति में चल रहा है। यह तो बड़ा सरल है।</div><div><br></div><div>इससे ऊंचा एक प्रेम होता है। उसको प्रेम में गिरना नहीं कह सकते। उसको हम कहेंगे: प्रेम में होना, बीइंग इन लव। वह बड़ी और बात है। उसका स्वभाव मैत्री का है। खलील जिब्रान ने ठीक कहा है कि सच्चे प्रेमी मंदिर के दो स्तंभों की भांति होते हैं। बहुत पास भी नहीं, क्योंकि बहुत पास हों तो मंदिर गिर जाए। बहुत दूर भी नहीं, क्योंकि बहुत दूर हों तो भी मंदिर गिर जाए।...देखते हो ये स्तंभ, जिन्होंने च्वांग्त्सु-मंडप को सम्हाला हुआ है? ये बहुत पास भी नहीं हैं, बहुत दूर भी नहीं हैं। थोड़ी दूरी, थोड़े पास। तो ही छप्पर सम्हला रह सकता है। एकदम पास आ जाएं तो छप्पर गिर जाए; बहुत दूर हो जाएं तो छप्पर गिर जाए। एक संतुलन चाहिए।</div><div><br></div><div>असली प्रेमी न तो एक-दूसरे के बहुत पास होते हैं, न बहुत दूर होते हैं। थोड़ा सा फासला रखते हैं, ताकि एक-दूसरे की स्वतंत्रता जीवित रहे। ताकि एक-दूसरे की स्वतंत्रता में व्याघात न हो, अतिक्रमण न हो। ताकि एक-दूसरे की सीमा में अकारण हस्तक्षेप न हो।</div><div><br></div><div>प्रेम में होने का अर्थ होता है: हम पास भी होंगे इतने कि हमें एक-दूसरे से कोई भय का कारण नहीं, और हम इतने दूर भी होंगे कि हम एक-दूसरे को रौंद भी न डालेंगे, हमारे बीच आकाश होगा। और तुम्हारा निमंत्रण होगा तो मैं आऊंगा, और मेरा निमंत्रण होगा तो तुम मेरे भीतर आओगे। मगर निमंत्रण पर। यह हक न होगा, अधिकार न होगा।</div><div><br></div><div>प्रेम—पंथ ऐसो कठिन !!</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-17968253166879356162020-03-05T20:00:00.001+05:302020-03-05T20:00:46.637+05:30Rahu in horoscope indicates what craving ? an analysis of past birth <div>*#राहु* in whichever house rahu sits in present horoscope, denotes the area you lost in while in previous birth and you are now born again to reclaim what was taken away from you. Example rahu in 2nd house means loss of wealth in previous birth so always craving for it now, 10th house loss of identity and stable career so now seeking accomplishments in that field are being craved. </div><div>Rrachita </div><div><br></div><div>राहु एक शरारती ग्रह है। यह इंसान के मन में जन्म जन्मांतरों की एकत्रित की गaई समझ का कारक है। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX25ahpT2r5MGpJHCKCoKfaqwDgD-8BTtkzS5O96vVpkabbKSdyA6uxaxgnICl7ldSdk0Z6c4YQSg2yWdZPHeBTVIGiKtd_IAY2JswccAt1thHARXzzjcKnYHboSPHKJAM9pS-bwhyGMo/s1600/1583418641379018-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX25ahpT2r5MGpJHCKCoKfaqwDgD-8BTtkzS5O96vVpkabbKSdyA6uxaxgnICl7ldSdk0Z6c4YQSg2yWdZPHeBTVIGiKtd_IAY2JswccAt1thHARXzzjcKnYHboSPHKJAM9pS-bwhyGMo/s1600/1583418641379018-0.png" width="400">
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</div></div><div>यह बहुत गंभीर चिंतन या गहराई का प्रतीक है। यह दिमाग में अचानक कोई ख्याल पैदा करता है। इसलिए राहु की इष्ट देवी सरस्वती को माना गया है। आठवें घर के राहु के बारे में बातें कही जाती हैं ।ऐसा राहु इंसान को कई तरह के धोखे, भुलावे में डाल सकता है साथ ही यह भी कहा जाता है कि जिसके आठवें घर में राहु हो समय का राजा और विद्ववान उसका आदर करते हैं। राहु का व्यवहार ऐसा है कि इंसान अपना घर बार छोड़कर कहीं चला जाता है और उसका कोई अता-पता नहीं मिलता, न ही घर छोड़ने का कोई कारण मिलता है।</div><div>राहु मतलब आप की कोशिश जिस चीज की आप अपने जीवन मे कमी मह्सुश कर रहे है वो राहु की स्थिति से पता चलता है। कूण्डली के जिस भाव मे राहु होगा इसका अर्थ ये है कि उस भाव से सम्बंधित चीजे आप से पिछले जन्म में छीन ली गई थी।</div><div>उन्ही चीजों को दुबारा पाने के लिए आप का जन्म हुआ है। जहाँ आप शाम दाम दंड भेद हर चीज़ को use करते है। उसे दुबारा पाने के लिए क्यों कि वो चीजे past लाइफ में आप से छीन ली गई थी। किसी ने आप के साथ धोखा किया होगा किसी ने आप के साथ चीट किया होगा।</div><div>हमारी जो इच्छाएं जो उमीदें अधूरी छूट जाती है उनी सब चीजों के लिए हमारा जन्म वापस होता है।</div><div>ओर तब राहु से पता चलता है। कि आप की कोनसी इच्छाएं अधूरी रह गई पिछले जन्म से जिस से आप पाने के लिए इस जन्म में आते है।</div><div><br></div><div>उदारण के लिय मान लीजिय की किसी के लग्न चार्ट में राहु 2nd हाउस में बैठा है। </div><div>मतलब आप की जो सोच है वे हमेशा वेल्थी अमीर बनने वाली रहेगी पैसा पैसा </div><div>क्यों कि पिछले जन्म में ये सब आप स छीन लिया गया था जिस पाने के लिए आप फिंर आये है।</div><div> राहु जिस भाव मे है मतलब ये है कि पिछले जन्म में उस भाव की चीजें आप स छीन ली गई थी। ओर जिस से पाने के लिए आप वापस आये है।।</div><div> सिंगला पलवल <br></div><div>🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹</div><div>उपाय काम क्यू नही करते।</div><div>क्यों की करने वाला इसे अलग अलग समय करता है।</div><div>बीच में एक आधे दिन का गैप भी हो जाता है।</div><div>जो उपाय दिए होते है उनमें से सभी पूरे नहीं करता है।</div><div>उपाय केसे करे?</div><div>लगातार कम से कम 2 महीने</div><div>एक निश्चित समय पर</div><div>सभी उपाय करने पर</div><div>जब आप उपाय करते है तो नेगेटिविटी देने वाले ग्रह व्यवधान उत्तपन कर सकते है लेकिन फिर भी आप को उपाय पूरे करने है।</div><div>फायदा या नुकसान होने पर अपने मार्गदर्शक को सूचित करे</div><div>भटकने की आदत का त्याग करे किसी एक पर पूर्ण विश्वास और श्रद्धा रखे।</div><div>ज्योतिष कोई चमत्कार नहीं है केवल सही रास्ता दिखाने का कार्य करता है।</div><div>आपका फायदा आपकी श्रद्धा विश्वास और भाव पर होता है। बाकी फल देने वाला परमात्मा ही ही है हम केवल माध्यम है 🙏</div><div>🙏🌹हम भाग्य के ज्ञाता है</div><div>भाग्य विधाता नही।🌹🙏</div><div>🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-22825482387394143782020-03-02T09:59:00.001+05:302020-03-02T09:59:42.917+05:30होलाष्टक क्या होता है holashtak 3 to 9 march 2020<div>(होलाष्टक 3मार्च से 9मार्च तक)</div><div><br></div><div>होलाष्टक क्या होता है ?</div><div><br></div><div>मित्रो होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते है </div><div><br></div><div>यह इस बार 2मार्च से लग जायँगे और 9 मार्च तक रहेंगे </div><div><br></div><div>यह दिन अच्छे नही माने जाते है और इन दिनों में कोई भी शुभ काम नही किया जाता है </div><div><br></div><div>कहा जाता है इन दिन अगर कोई शुभ काम करो तो उसका फल नही मिलता है </div><div><br></div><div>इसलिए शादी विवाह सगाई नामकरण संस्कार ग्रह प्रवेश महूर्त और जो भी शुभ कार्य होते है उनको नही करना चाहिए </div><div><br></div><div>इसके पीछे बहुत सी कहानियां है </div><div><br></div><div>कहते है कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या इन दिनों ही भंग करने की कोशिश की थी और भगवान शिव ने गुस्से में कामदेव को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्ठमी तिथि को भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी ने भगवान शिव की तपस्या की थी भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवन दान दिया था जिस दिन कामदेव को जीवन दान मिला था वो धुलेंडी बड़ी होली का दिन था </div><div><br></div><div>जो यह आठ दिन है इसमें कामदेव की पत्नी रति विरह की अग्नि में जली थी इसलिए इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम खास तौर पर शादी के विवाह महूर्त नही निकाले जाते है </div><div><br></div><div>कुछ लोगो का यह भी कहना है होली से आठ दिन पहले प्रह्लाद को बहुत यातनाये दी गई थी जिसकी वजह से इन आठ दिन अच्छे नही माने जाते है यह दिन अशुभ कहे जाते है </div><div><br></div><div>होलाष्टक के पहले दिन जहाँ पर होली का जलाना है वहाँ गोबर की लिपाई की जाती है गंगाजल से उसको शुद्ध किया जाता है और होली के जलने की प्रतीक्षा की जाती है </div><div><br></div><div>और जब होली जल जाती है बुराई का अन्त भी हो जाता है और सभी शुभ कामो के लिए महूर्त खुल जाते है </div><div><br></div><div>होली से आठ दिन पहले इन दिनों में कोई भी शुभ काम हमको नही करना चाहिए कोई नई चीज खरीदने से भी बचना चाहिए </div><div>WWW.ASTRORRACHITA.IN </div><div><br></div><div><br></div><div>🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-32897675367763208012020-02-22T06:19:00.001+05:302020-02-22T06:19:05.112+05:30भगवान शिव कौन है ? शिव तो का स्वरूप है भारत का उत्सव है WHO IS THE SHIVA IN SPIRIT ? Some fascinating facts and ancient beliefs in this article.<div>"शिव तो भारत का आद्य-लोकमनस् का उत्स हैं।</div><div>वह आर्य भी है ,अनार्य भी है , वह द्रविड भी है , वह कोलकिरात भी है ।</div><div>वह क्या नहीं है ?</div><div>वह जितना देवों का है उतना ही असुरों का है ।</div><div>शिव मानो भारतीयता की मूर्तिमान व्याख्या हैं ।</div><div>इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ? शिव भारत भावरूप हैं ।</div><div>पशुपति है ।वह शिव है और रुद्र भी है ।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><br></div><div>तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में ।</div><div>स्मशानवासी हैं।वह विषपायी हैं।</div><div>सबको अमृत बांट कर वह जहर पी जाते हैं।</div><div>शिव आदि काल से ही गुरु माने जाते हैं | उनकी चर्चा हो और ताण्डव नृत्य की बात ना हो ऐसा नहीं हो सकता | आम तौर पर तांडव का अर्थ विध्वंस के रूप में ही लिया जाता है | नृत्य की दृष्टि से देखें तो उग्र स्वभाव को दर्शाता हुआ रूद्र तांडव है | वहीँ इसका एक और कोमल रूप, आनंद तांडव कहलाता है | शैव सिद्धांतो के मत में जहाँ शिव को नटराज यानि नृत्य के राजा माना जाता है, वहां तांडव का नाम “तण्डु” नाम से आया हुआ मानते हैं |</div><div><br></div><div>मान्यता है कि नाट्य शास्त्र के रचियेता भरत मुनि को #अंगहार और 108 कारणों की शिक्षा तण्डु ने शिव के आदेश पर दी थी | शैव मतों की कई मान्यताएं, नृत्य की मुद्राओं से मिलती जुलती भी हैं | हवाई के कौअई में मौजूद कदवुल मंदिर में नटराज के 108 कारणों की मूर्तियाँ हैं | ठीक ऐसा ही भारत के चिदंबरम मंदिर में भी देखा जा सकता है | वहां भी करीब 12 इंच ऊँची मूर्तियों में सभी 108 #कारणों को दर्शाया गया है | मान्यता ये भी है कि चिदंबरम मंदिर ही वो स्थान है जहाँ नटराज भक्तों के आग्रह पर, पार्वती के साथ, आनंद #तांडव करने आये थे |</div><div><br></div><div>भरत के #नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय का नाम “ताण्डव लक्षणम्” है | सभी 32 अंगहार और 108 कारणों की चर्चा इसी अध्याय में है | हाथों और पैरों की विशिष्ट मुद्राओं को कारण कहते हैं | सात या उस से अधिक कारण मिलकर एक अंगराग बनते हैं | कारणों का प्रयोग नृत्य के साथ साथ सम्मुख युद्ध में और द्वन्द युद्ध में भी किया जा सकता है |</div><div><br></div><div>ताण्डव पांच मुख्य उर्जाओं की अभिव्यक्ति है | इस से सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह के भावों की अभिव्यक्ति होती है | जहाँ सृष्टि, स्थिति, और संहार विश्व के निर्माण और विध्वंस के द्योतक हैं वहीँ, तिरोभाव और अनुग्रह वो भाव हैं जिनसे जन्म और मृत्यु संचालित होती है |</div><div><br></div><div>हिन्दुओं के ग्रन्थ सात मुख्य प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हैं | आनन्द तांडव, त्रिपुर ताण्डव, संध्या ताण्डव, संहार ताण्डव, कालिका ताण्डव, उमा ताण्डव और गौरी तांडव मुख्य प्रकार हैं | आनंद कुमारस्वामी जैसे कुछ विद्वान सोलह प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हुए कहते हैं, शिव के कितने तांडवों का उनके भक्तों को पता है इसके बारे में निश्चय करना कठिन है |</div><div><br></div><div>शिव के ताण्डव का प्रत्युत्तर पार्वती लास्य से देती हैं | पार्वती के नृत्य को सौम्य, भावपूर्ण और कई मुद्राओं में कामोद्दीपक भी माना जा सकता है | लास्य के दो मुख्य प्रकार, जरित लास्य और यौविक लास्य अभी भी आसानी से देखने को मिलते हैं | #ताण्डव का जिक्र कई धर्म ग्रंथों में भी है | सती के अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में कूद जाने पर शिव संताप और क्रोध में रूद्र ताण्डव करते हैं | शिवप्रदोषस्तोत्र के अनुसार जब शिव संध्या ताण्डव करते हैं तो ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, और इंद्र आदि देवता वाद्य यंत्र बजा रहे होते हैं |</div><div><br></div><div>ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ शिव के तांडव का ही जिक्र आता हो | भगवान् गणेश भी कई मूर्तियों में अष्टभुज, ताण्डव मुद्राओं में दिखते हैं | भागवत पुराण में जब कृष्ण कालिया नाग का दमन करते हैं तो वो उसके फन पर ताण्डव कर रहे होते हैं | ज्यादातर कालिया दमन की पेंटिग और मूर्तियों में आपने यही ताण्डव मुद्रा देखि होगी | यहाँ तक की जैन मान्यताओं में माना जाता है कि इन्द्र ने भी ऋषभ देव के जन्म पर ख़ुशी दर्शाने के लिए ताण्डव नृत्य किया था | स्कन्द पुराण में भी ताण्डव का जिक्र आता है |</div><div><br></div><div>शिव के ताण्डव पर आनंद कुमारस्वामी ने एक विस्तृत किताब The Dance of Shiva: Fourteen Indian Essays, के एक अध्याय "The Dance of Shiva" में विस्तार से लिखा है |</div><div><br></div><div>#महाशिवरात्रि भगवान् शिव के ताण्डव और उसके विभिन्न रूपों को याद करने के लिए भी मनाया जाता है |</div><div><br></div><div>भगवान् शिव के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों के बारे में आपने कभी न कभी सुना ही होगा | इनमें प्रभु रामेश्वरम् की स्थापना श्री राम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी | जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिव लिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा-</div><div>रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: ||</div><div>मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।</div><div><br></div><div>बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव, माता सती को सुनाने लगे तो बोले के प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी | माता सती के ऐसा कैसे, पूछने पर देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए, उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया- </div><div>रामा: ईश्वरो: य: रामेश्वर: ||</div><div>यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।</div><div><br></div><div>जिस सनातन धर्म के आराध्य भी एक दूसरे का सम्मान करते है, उस हिन्दू समाज के सभी धर्मानुरागियों को #महाशिवरात्रि की शुभकामनायें |</div><div>ॐ नमः शिवाय ||</div><div><br></div><div>शिव नटराज भी कहे जाते हैं। कहते हैं कि एक बार शिव नृत्य करने लगे तो साथ ही पार्वती भी नृत्य में उनका साथ देने लगीं। समस्या ये हुई की हर ताल पर पार्वती का नृत्य बेहतर होता और शिव हार जाते !</div><div><br></div><div>शिव के नृत्य का नाम ज्यादातर लोगों को पता ही है। देवाधिदेव का नृत्य जहाँ तांडवकहलाता है, वहीँ उसका प्रतिरूप जैसा पार्वती का नृत्य लास्य कहा जाता है। देवी के रुकने तक शिव जीत नहीं पाए थे।</div><div><br></div><div>अगर कभी, कहीं, किसी जगह, किसी के बोलना बंद ना करने के कारण आप नहीं जीत पाते तो ज्यादा अफ़सोस मत कीजिये। #महाशिवरात्रि ये भी याद दिला देती है कि वामांगी के रुकने से पहले तक, अर्धनारीश्वर भी नहीं जीत पाए थे।</div><div><br></div><div>ये कहानी शिव पुराण में आती है और शायद जालंधर नाम के असुर की है। ध्यान रहे, असुर बताया गया है राक्षस नहीं था, कम से कम इस कहानी तक तो नहीं। शक्ति-सामर्थ्य में अक्सर असुर देवों यानि सुरों से ऊपर ही होते थे। असुर ने भी थोड़े ही समय में इन्द्रासन कब्ज़ा लिया और जैसा कि आसुरी प्रवृत्ति होती है वैसे ही उसने भी सोचा कि अब मैं सबसे महान हूँ, तो सभी सबसे अच्छी चीज़ों पर मेरा अधिकार है।</div><div><br></div><div>इसी मद में असुर पहुंचा कैलाश पर और शिव के साथ पार्वती को देखकर कहा, सबसे सुन्दर स्त्री पर मेरा अधिकार है, तो लाओ इसे मेरे हवाले करो ! आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान कभी आपका नुकसान नहीं करते। वो सिर्फ आपकी मति भ्रष्ट कर देते हैं, फिर आप अपने शत्रु स्वयं हैं, भगवान को आपका नुकसान करने की जरूरत नहीं। भगवान शिव ने भी असुर के साथ यही किया।</div><div><br></div><div>असुर की भूख को पलटा कर उसपर छोड़ दिया ! भगवान शिव से प्रकट हुई वो प्रचंड क्षुधा रास्ते की सभी चीज़ों को निगलती असुर की ओर बढ़ी तो उसने पहले तो इस शक्ति का अपनी शक्तियों से प्रतिकार करने का प्रयास किया। लेकिन उन सभी प्रतिरोधों को निगलता वो जब असुर को लीलने को हुआ तो बेचारा असुर भागा। यहाँ-वहां कहीं शरण नहीं पाने पर बेचारा असुर अपनी मूर्खता पर पछताता आखिर भगवान शिव की ही शरण में पहुंचा और लगा प्राणों की भीख मांगने।</div><div><br></div><div>भगवान शिव ने जैसे ही उसे क्षमा करके सबकुछ निगलते पीछे ही आ रही शक्ति को रुकने कहा तो वो दैवी शक्ति बोली भगवान एक तो मुझे इसे ही खाने के लिए ऐसी भूख बना कर पैदा किया ! अब आप मेरा आहार ही छीन रहे हैं ? मैं अब खाऊंगा क्या ? भगवान ने एक क्षण सोचा और कहा, ऐसा करो स्वयं को ही खा जाओ ! आदेश पाते ही उसने पूँछ की ओर से खुद को खाना शुरू किया और अंत में केवल उसका मुख ही बचा। अक्सर हिन्दुओं के मंदिरों के द्वार पर यही मुख दिखता है।</div><div><br></div><div>भगवान शिव ने आदेश पालन के लिए स्वयं को खा लेने की उसकी क्षमता के लिए उसके मुख को ‘कीर्तिमुख’ नाम दिया था। उसे देवताओं से भी ऊपर स्थान मिला था।</div><div><br></div><div>कहानियां केवल प्रतीक होती हैं और ये कहानी भी खुद को ‘मैं’ को खा जाने की कहानी है। प्रतीक के माध्यम से ये वही कहा गया है जो काफी बाद के दोहे में ‘जो घर बारे आपना, सो चले हमारे साथ’ में कहा गया है। अपने अहंकार को खा जाने का ये आदेश कई बार कई ग्रंथों में कई साधू देते रहे हैं। ये अहंकार का आभाव सबसे आसानी से छोटे बच्चों में दिखेगा, इसी लिए बच्चों के रूप को शिव के पर्यायवाची की तरह भी इस्तेमाल किया जाना दिख जाएगा। दिगंबर, भोले जैसे नाम इसी लिए इस्तेमाल होते हैं।</div><div><br></div><div>इसी बच्चों वाले तरीके का इस्तेमाल कई जाने माने विद्वान अभी हाल में #SanskritAppreciationHour में करते हुए भी दिखे हैं। वो लोग पञ्च-चामर छन्द</div><div>में रचित शिवताण्डवस्तोत्र सीखने-सिखाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे। जैसे बच्चे किसी चीज़ को पहचाने, समझने के लिए उसे उल्टा पलटा कर तोड़ कर खोल कर देखने लगते हैं बिलकुल वही इसपर भी इस्तेमाल किया गया था। चर्चा अंग्रेजी में थी तो उनके तरीके को हमने सिर्फ हिंदी में कर देने की कोशिश की है। अगर पञ्च-चामर छन्द फ़ौरन याद ना आये तो बचपन में पढ़ी कविता याद कर लीजिये :</div><div><br></div><div>हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।</div><div>स्वयंप्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती।</div><div>अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।</div><div>प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।</div><div>~ जय शंकर प्रसाद</div><div>ये चार चरणों का वर्णिका छन्द होता है।</div><div><br></div><div>अब शिव ताण्डव का पहला श्लोक:</div><div>जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।</div><div>डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।</div><div><br></div><div>‘जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले’ से स्थले का मतलब स्थान, जगह होगा, ‘जल-प्रवाह-पावित’ का अर्थ पवित्र जल का बहना, प्रवाह होगा (शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र तीनों अलग अर्थ के शब्द हैं ध्यान रखिये)। ‘जटा-अटवी-गलत्’ यानि जटाओं के वन से बहती हुई, घनी जटाओं की तुलना वन से की गई जो कि अंग्रेजी के simily जैसा अलंकार है। अटवी का सही अर्थ विहार करने योग्य स्थान होता है, जो अट् धातु से बना है, इसी अट् से पर्यटन बनता है जिसका मतलब घूमने देखने के उद्देश्य से कहीं जाना होता है।</div><div><br></div><div>यहाँ ‘गलत्’ सन्धि में जल से मिलकर ‘गलज्’ हो जाता है। ये वर्तमान कृदन्त है जो वर्तमान काल में चल रही क्रिया का बोध कराता है। ‘गले ऽवलम्ब्य’ यानि गले से लटकता हुआ, ‘भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्’ भव्य साँपों की माला, और ‘लम्बिताम्’ एक विशेषण है जो माला के लिए इस्तेमाल किया गया है, जैसे हमलोग अभी भी किसी काम के अटके पड़े होने के लिए लटका हुआ या लम्बित कहते हैं। अगले वाक्य में फिर पीछे से ‘अयम्’ यानि ये ‘डमरु’ जो ‘निनादवत्’ अपनी ध्वनि यानि ‘डमड् डमड् डमड् डमड्’ से पहचाना जा रहा है।</div><div><br></div><div>अब यहीं ‘निनादवत्’ के अंत में ‘वत्’ आ रहा है लेकिन सन्धि होते ही वो ‘न्निनादवड्डमर्वयं’ हो जाता है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे भागवत गीता एक साथ जोड़ते ही भगवद्गीता हो जाती है, ‘त’ का ‘द’ जैसा हो जाना। अब इसमें जितना एक श्लोक के साथ सिखाया गया है उतने के लिए हमें पांच-छह बार तो किताबें पलटनी ही पड़ेंगी, लेकिन अच्छी चीज़ ये है कि किसी भी समय में अगर आप कुछ सीखना चाहते हैं तो सीख लेना आसान ही है। पहला कदम होता है अहंकार को खा जाना। मैं नहीं जानता ये स्वीकारना मुश्किल काम है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं है।</div><div><br></div><div>अंतिम वाक्य के ‘चकार’ का अर्थ वो कर चुके जैसा होगा, क्या किया वो खुद देखने की कोशिश कीजिये। बाकी शिवरात्रि शिव से जुड़ने के लिए योगियों को प्रिय रही है, अपनी उन्नति के साथ-साथ आप ज्ञान को एक पीढ़ी आगे भी बढ़ा रहे होंगे। अगर आप एक स्तोत्र भी सीखते हैं तो ये संयोग भी उत्पन्न होगा। प्रयास कीजिये !</div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-83874755574571804402020-02-16T14:26:00.000+05:302020-02-16T14:26:24.400+05:30मन्त्र जाप का प्रभाव <div><span style="font-size: 16px;">मन्त्र जाप का प्रभाव </span></div><div><span style="font-size: 16px;">〰️〰️🌼🌼〰️〰️</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> </span></div><div><span style="font-size: 16px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxeEqgk3ePAiMj5MyonSqYSxbFgbsaJzvECbIayTQFIhKth-jBed3JdvGYsrI-Ohywt3QbsKD63Aq4TKpzWJDYyqW_0hS_jkpDYxtWU61NP0zs8NduVrXq8rZBKo4nqxkFUsUDQx7FHlE/s1600/1581843378571357-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxeEqgk3ePAiMj5MyonSqYSxbFgbsaJzvECbIayTQFIhKth-jBed3JdvGYsrI-Ohywt3QbsKD63Aq4TKpzWJDYyqW_0hS_jkpDYxtWU61NP0zs8NduVrXq8rZBKo4nqxkFUsUDQx7FHlE/s1600/1581843378571357-0.png" width="400">
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</div><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">कलयुग में होने का एक फायदा है की हम मन्त्र जप कर बड़े बड़े तप अनुष्ठान का लाभ पा सकते है। मन्त्र अगर गुरु ने दीक्षा दे कर दिया हो तो और प्रभावी होता है।जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों के द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुँचाने में सक्षम होता है। सदगुरु से मिला हुआ मंत्र ‘सबीज मंत्र’ कहलाता है क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है।मन्त्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है जो मन को उर्ध्व गामी बनाते है।जिस तरह पानी हमेशा नीचे की बहता है उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है अगर उसे मन्त्र जप की तरंग का बल ना मिले।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> कई लोग टीका टिप्पणी करते है की क्या हमें किसी से कुछ चाहिए तो क्या उसका नाम बार बार लेते है ? पर वे नासमझ है और मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान है।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> </span></div><div><span style="font-size: 16px;">मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है। जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका। हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था, किंतु ज्योंहि वह रेख को लाँघने की इच्छा करता त्योंहि उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं।सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> </span></div><div><span style="font-size: 16px;">जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं, ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धयाँ आने लगती हैं, किन्तु साधक को चाहिए कि इन सिद्धियों के चक्कर में न पड़े, वरन् अंतिम लक्ष्य परमात्म-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> </span></div><div><span style="font-size: 16px;">मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है।मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है।</span></div><div><span style="font-size: 16px;"> </span></div><div><span style="font-size: 16px;">इसलिए रोज़ किसी एक मन्त्र का हो सके उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें.</span></div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4276993073687441302.post-21226706812776159062020-02-09T16:51:00.001+05:302020-02-09T16:51:14.521+05:30What happens after Death? Garuda Puranam glimpses<div><span style="font-size: 16px;">*So, what happens after death?*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Death is actually a very interesting process!!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Disconnection of the earth sole chakras*</span></div><div><span style="font-size: 16px;">Approximately 4-5 hours before death, the earth sole chakras situated below the feet gets detached ... symbolizing disconnection from the earth plane!!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">A few hours before an individual dies, their feet turn cold. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">When the actual time to depart arrives, it is said that Yama, the God of death appears to guide the soul.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*The Astral Cord*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Death severs the astral cord, which is the connection of the soul to the body. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Once this cord is cut the soul becomes free of the body and moves up and out of the body.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">If the soul is attached to the physical body it occupied for this lifetime, </span></div><div><span style="font-size: 16px;">it refuses to leave and tries to get into the body and move it and stay in it. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">We may observe this as a very subtle or slight movement of the face, hand or leg after the person has died.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul is unable to accept that it is dead. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">There is still a feeling of being alive. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Since the astral cord has been severed, the soul cannot stay here and is pushed upwards and out of the body. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">There is a pull from above ... a magnetic pull to go up.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*End of the physical body*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">At this stage the soul hears many voices, all at the same time. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">These are the thoughts of all the individuals present in the room.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul on its part talks to his loved ones like he always did n shouts out "I am not dead" !!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">But alas, nobody hears him.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Slowly and steadily the soul realizes that it is dead and there is no way back. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">At this stage, the soul is floating at approx 12 feet or at the height of the ceiling, seeing and hearing everything happening around.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Generally the soul floats around the body till it is cremated. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">So, the next time if you see a body being carried for cremation, be informed that *the soul is also part of the procession* seeing, hearing and witnessing everything and everyone.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Detachment from the body*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Once the cremation is complete, the soul is convinced that the main essence of its survival on earth is lost and the body it occupied for so many years has merged into the five elements.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul experiences complete freedom, the boundaries it had while being in the body are gone and it can travel anywhere by mere thought.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">For 7 days the soul, moves about its places of interest like its favorite joint, morning walk garden, office, etc. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">If the soul is possessive of his money, it will just stay near his cupboard, or if he is possessive of his children, it will just be in their room, clinging on to them.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*By the end of the 7th day,* the soul says bye to his family and moves further upwards to the periphery of the earth plane to cross over to the other side.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*The Tunnel*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Its said that there is a big tunnel here which it has to cross before reaching the astral plane. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Hence its said that the *first 12 days after death are extremely crucial.* </span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">We have to carry out the rituals correctly and pray and ask forgiveness from the soul, so that it does not carry negative emotions like hurt, hatred, anger, etc atleast from the near and dear ones.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">All the rituals, prayers and positive energy act like food for the soul which will help it in its onward journey. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">At the end of the tunnel is a huge bright light signifying the entry into the astral world.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Meeting the Ancestors*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">On the 11th & 12th day, Hindus conduct homas and prayers and rituals through which the soul is united with its ancestors, close friends, relatives and the guides.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">All the passed away ancestors welcome the soul to the upper plane and they greet and hug them exactly like we do here on seeing our family members after a long time.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul then along with its guides are taken for a thorough life review of the life just completed on earth in the presence of the *Great Karmic Board.* </span></div><div><span style="font-size: 16px;">It is here in the pure light that the whole past life is viewed !!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Life Review*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">There is no judge, there is no God here. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul judges himself, the way he judged others in his lifetime. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">He asks for revenge for people who troubled him in that life, he experiences guilt for all wrongdoings he did to people and asks for self punishment to learn that lesson. Since the soul is not bound by the body and the ego, the final judgment becomes the basis of the next lifetime.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Based on this, a complete life structure is created by the soul himself, called the blue print. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">All the incidents to be faced, all problems to be faced, all challenges to be overcome are written in this agreement.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">In fact the soul chooses all the minute details like age, person and circumstances for all incidents to be experienced.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Example : An individual had severe headache in his present birth, nothing helped him, no medicines, no way out. In a session of past life regression, he saw himself killing his neighbour in a previous birth by smashing his head with a huge stone.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">In the life review, when he saw this he became very guilty and asked for the same pain to be experienced by him by way of a never ending headache in this life.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Blue print*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">This is the way we judge ourselves and in guilt ask for punishment. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">The amount of guilt in the soul, decides the severity of the punishment n level of suffering. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Hence forgiveness is very vital. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">*We must forgive and seek forgiveness!!* </span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Clear your thoughts and emotions, as we carry them forward to the other side too. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Once this review is done and our blue print for the next life is formed, then there is a cooling period.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*The re-birth*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">We are born depending on what we have asked for in the agreement. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">The cooling off period also depends on our urgency to evolve.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*We choose our parents* and enter the mothers womb either at the time of egg formation or during the 4-5th month or sometimes even at the last moment just before birth.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The universe is so perfect, so beautifully designed that the time and place of birth constitutes our horoscope, which actually is a blue print of this life. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Most of us think that our stars are bad and we are unlucky but in actuality, they just mirror your agreement.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Once we are reborn, for around 40 days the baby remembers its past life and laughs and cries by itself without anyone forcing it to.* </span></div><div><span style="font-size: 16px;">The memory of the past life is completely cut after this and we experience life as though we did not exist in the past.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*The agreement starts..*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Its here that we are completely in the earth plane and the contract comes into full effect. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">We then blame God/people for our difficult situations and curse God for giving us such a difficult life …</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">So, the next time before pointing to the Divine, understand that our circumstances are just helping us complete and honor our agreement, which is fully and completely written by us. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Whatever we have asked for and pre decided is exactly what we receive !!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Friends, relatives, foes, parents, spouses all have been selected by us in the blue print and come in our lives based on this agreement. </span></div><div><span style="font-size: 16px;"> *They are just playing their parts and are merely actors in this film written, produced and directed by us!!* </span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Do the Dead need healing / prayers / protection ?*</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The dead always need serious healing and prayers for a variety of reasons, the most important one being ... To be free and not earthbound !! ... that is stuck in the earth plane and unable to leave.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">There are many reasons for the soul to be earthbound like unfinished business, excessive grief, trauma on death, sudden death, fear of moving on to the astral plane, guilt, one of the most important being improper finishing of last rites and rituals.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">The soul feels it needs a little more time to wait and finish before moving on. This keeps them hovering on the earth plane. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">But the time is limited and it is very very important that they cross over within 12 days to their astral plane of existence, as the entry to the astral world closes a few days after this.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Earthbound spirits lead a very miserable existence* as they are neither in their actual plane nor in a body to lead an earthly life. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">They may not be negative or harmful but they are stuck and miserable. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Hence healing and prayers are of utmost importance during this period so that the departed soul crosses over to the designated astral plane peacefully.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Prayers by the whole family is very vital to help the dead cross over. </span></div><div><span style="font-size: 16px;">The protection of the soul to help it reach its destination in the astral world is achieved through prayers.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">*Please Do Not Take Death Lightly ...* </span></div><div><span style="font-size: 16px;">Now more than ever most souls are stuck on the earth plane due to lack of belief and family neglect.</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">Finally, for someone who has lost a near and dear one, don’t feel sad ... </span></div><div><span style="font-size: 16px;">We never die, we live on, death does not end anything, it is just a little break before we meet again !!</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span></div><div><span style="font-size: 16px;">(This article has been extracted from ...</span></div><div><span style="font-size: 16px;">*The Garuda Puranam*)</span></div>Astro Rrachitahttp://www.blogger.com/profile/17871390060217213204noreply@blogger.com2