Saturday, November 26, 2016

एक चुटकी चावल में छुपी है , महत्वपूर्ण बातें

एक चुटकी चावल में छुपी है , महत्वपूर्ण बातें

चावल यानी अक्षत हमारे ग्रंथों में सबसे पवित्र अनाज माना गया है। अगर पूजा पाठ में किसी सामग्री की कमी रह जाए तो उस सामग्री का स्मरण करते हुए चावल चढ़ाए जा सकते हैं। किसी ना किसी सामग्री को किसी ना किसी भगवान को चढ़ाना निषेध है जैसे तुलसी को कुंकु नहीं चढ़ता और शिव को हल्दी नहीं चढ़ती। गणेश तो तुलसी नहीं चढ़ती तो दुर्गा को दूर्वा नहीं चढ़ती लेकिन चावल हर भगवान को चढ़ते हैं। चावल से जुड़ी कुछ खास जानकारियां :

भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों। अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए। मात्र 5 दाने चावल रोज चढ़ाने से अपार ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
चावल साफ एवं स्वच्छ होने चाहिए। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं और भक्तों अखंडित चावल की तरह अखंडित धन, मान-सम्मान प्रदान करते हैं।
घर में अन्नपूर्णा माता की प्रतिमा को चावल की ढेरी पर पर स्थापि‍त करना चाहिए। जीवनभर धन-धान्य की कमी नहीं होती हैं।
पूजन के समय अक्षत इस मंत्र के साथ भगवान को समर्पित किए जाते हैं :
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकमाक्ता: सुशोभिता:. मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे ईश्वर, पूजा में कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित कर रहा हूं, कृपया आप इसे स्वीकार करें। अन्न में अक्षत यानि चावल को श्रेष्ठ माना जाता है। इसे देवान्न भी कहा गया है। देवताओं का प्रिय अन्न है चावल। इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको अर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण कर आप भक्त की भावना को स्वीकार करें।
पूजा में अक्षत चढ़ाने का अभिप्राय यह है कि हमारा पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो। अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव रहता है कि जो कुछ भी अन्न हमें प्राप्त होता है वह भगवान की कृपा से ही मिलता है। अत: हमारे अंदर यह भावना भी बनी रहे। इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। अत: हमारे प्रत्येक कार्य की पूर्णता ऐसी हो कि उसका फल हमें शांति प्रदान करे। इसीलिए पूजन में अक्षत एक अनिवार्य सामग्री है।
चावल के 5 दाने भी उतना ही फल देते हैं जितना एक चुटकी चावल या एक मुट्ठी चावल.... अमीरी के कठिनतम उपाय से बेहतर है मात्र एक चुटकी चावल। पूरी श्रद्धा से प्रतिदिन अर्पित करें अपने इष्टदेव को और देखें चमत्कार...

Sunday, November 06, 2016

विश्वासघात का परिणाम-महाभारत युद्ध

विश्वासघात का परिणाम-
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महाभारत युद्ध समाप्त होने पर धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से पूछा- मैं अंधा पैदा हुआ, सौ पुत्र मारे गए भगवन मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसकी सजा मिल रही है. श्रीकृष्ण ने बताना शुरू किया- पिछले जन्म में आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक तपस्वी ब्राह्मण थे. उनके पास हंसों का एक जोड़ा था जिसके चार बच्चे थे.



ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की चिंता में वह जा नहीं पा रहे थे. उसने अपनी चिंता एक साधु को बताई. साधु ने कहा- तीर्थ में हंसों को बाधक बताकर हंसों का अगला जन्म खराब क्यों करते हो. राजा प्रजापालक होता है. तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो. हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तीर्थ को जाओ.

ब्राह्मण हंस और उसके बच्चे आपके पास रखकर तीर्थ को गए. आपको एक दिन मांस खाने की इच्छा हुई. आपने सोचा सभी जीवों का मांस खाया है पर हंस का मांस नहीं खाया. आपने हंस के दो बच्चे भूनकर खा लिए. आपको हंस के मांस का स्वाद लग गया. हंस के एक-एक कर सौ बच्चे हुए और आप सबको खाते गए.अंततः हंस का जोड़ा मर गया.

कई साल बाद वह ब्राह्मण लौटा और हंसों के बारे में पूछा तो आपने कह दिया कि हंस बीमार होकर मर गए. आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आप पर अंधविश्वास किया था. आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया.

जिह्वा के लालच में पड़कर हंस के सौ बच्चे भूनकर खाने के पाप से आपके सौ पुत्र हुए जो लालच में पड़कर मारे गए. आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले से झूठ बोलने और राजधर्म का पालन नहीं करने के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए.

श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे है

Friday, November 04, 2016

रोगों में लग्नस्थ राशि की भूमिका

रोगों में लग्नस्थ राशि की भूमिका

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न कुण्डली के प्रथम भाव के नाम आत्मा, शरीर, होरा, देह, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय है। इस भाव से रूप, जातिजा आयु, सुख-दुख, विवेक, शील, स्वभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। लग्न भाव में मिथुन, कन्या, तुला व कुम्भ राशियाँ बलवान मानी जाती हैं। इसी प्रकार षष्ठम भाव का नाम आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, रिपु, शत्रु, क्षत, वैरी, रोग, द्वेष और नष्ट है तथा इस भाव से रोग, शत्रु, चिन्ता, शंका, जमींदारी, मामा की स्थिति आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। प्रथम भाव के कारक ग्रह सूर्य व छठे भाव के कारक ग्रह शनि और मंगल हैं। जैसा कि स्पष्ट है कि देह निर्धारण में प्रथम भाव ही महत्वपूर्ण है ओर शारीरिक गठन, विकास व रोगों का पता लगाने के लिए लग्न, इसमें स्थित राशि, इन्हें देखने वाले ग्रहों की स्थिति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके अलावा सूर्य व चन्द्रमा की स्थिति तथा कुण्डली के 6, 8 व 12वां भाव भी स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। लग्न में स्थित राशि व इनसे संबंधित ग्रह किस प्रकार व किस अंग को पी़डा प्रदान करते हैं, आइए अब इसके बारे में जानते हैं-
1. मेष राशि :- इस राशि का स्वामी मंगल है। यह सिर या मस्तिष्क की कारक है और इसके कारक ग्रह मंगल और गुरू हैं। मकर राशि में 28 अंश पर मंगल उच्चा के होते हैं तथा कर्क राशि में नीच के होते हैं। मंगल वीर, योद्धा, खूनी स्वभाव और लाल रंग के हैं। अगिA तत्व व पुरूष प्रधान तथा क्षत्रिय गुणों से युक्त है। यह राशि मस्तिष्क, मेरूदण्ड तथा शरीर की आंतरिक तंत्रिकाओं पर विपरीत प्रभाव डालती है। लग्न में यह राशि स्थित हो तथा मंगल नीच के हो या बुरे ग्रहों की इस पर दृष्टि हो तो ऎसा जातक उच्चा रक्तचाप का रोगी होगा। आजीवन छोटी-मोटी चोटों का सामना करता रहेगा। सीने में दर्द की शिकायत रहती है और ऎसे जातक के मन में हमेशा इस बात की शंका रहती है कि मुझे कोई जहरीला जानवर ना काट ले। परिणाम यह होता है कि ऎसे जातक का आत्म विश्वास कमजोर हो जाता है और उसकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है जो अनावश्यक रूप से विविध ्रप्रकार की मानसिक बीमारियों का कारण होती है।
2. वृषभ राशि :- इस राशि का स्वामी शुक्र है। यह मुख की कारक राशि है व लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्र, बुध और शनि होते हैं। शुक्र 27 अंश पर मीन में उच्चा के तथा कन्या राशि में नीच के होते हैं(परम उच्चाांश व परम नीचांश)। शुक्र ग्रह कलात्मक गुणों से भरपूर, रसिक व आशिक मिजाज, रंग सफेद तथा भूमि व वायु से युक्त है। वृषभ राशि लग्न में स्थित हो, शुक्र या कारक ग्रह नीच के हो तो जातक हमेशा नियमों के खिलाफ चलने वाला होता है। ऎसे जातक को मुख संबंधी बीमारी छाले, तुतलाकर बोलना आदि की शिकायत रहती है तथा जातक की संतान को आजीवन बुरे स्वास्थ्य का सामना करना प़डता है।
3. मिथुन राशि :- मिथुन राशि का स्वामी बुध है। यह वक्ष, छाती, भुजाएं व श्वास नली की कारक है। लग्न मेे स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्र, बुध व चन्द्रमा होते हैं। बुध के परमोच्चाांश व परम नीचांश 15 होते हैं जो कन्या राशि में उच्चा के तथा मीन राशि में नीच के होते हैं। बुध ग्रह को नपुंसक, स्त्री तत्व युक्त, राजकुमार आदि की संज्ञा दी गई है। रंग हरा व इसमें पृथ्वी व वायु तत्व मौजूद है। इसकी वणिक वृत्ति रहती है। यदि बुध कुण्डली में नीच का हो या अन्य क्रूर ग्रहों से पीç़डत हो तो जातक फेफ़डों से संबंधित रोग जैसे टी.बी., श्वास नली में खराबी, वायु प्रकोप (गैस व अपच), जी घबराना, हाथ व माँस पेशियों पर विपरीत प्रभाव प़्ाडता है।
4. कर्क राशि :-कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है। यह राशि ह्वदय की कारक है। इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह चन्द्रमा और मंगल होते हैं। 3 अंश पर वृषभ राशि में चन्द्रमा उच्च् के तथा वृश्चिक राशि मेंं परम नीच के माने जाते हैं। चन्द्रमा सौम्य ग्रह है। जल तत्व, सफेद रंग, स्त्री प्रधान तथा ब्राrाण व वैश्य के गुण इनमें मौजूद हैं। यदि कुण्डली के लग्न में र्क राशि हो व चन्द्रमा नीच के या पीç़डत हो तो जातक की त्वचा व पाचन संस्थान पर विपरीत प्रभाव रहता है एवं जातक में आत्म विश्वास की कमी रहती है। मानसिक अवसाद, कुण्ठा व जातक कमजोर दिल का होता है। ऎसे जातक की संतान भी नीच विचारों की होती है।
5. सिंह राशि :-सिंह राशि का स्वामी सूर्य है जो नक्षत्र-मण्डल का स्वामी है। यह राशि गर्भ व पेट की कारक है। इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्य और मंगल होते हैं। 10 अंश पर मेष राशि में ये परम उच्च के तथा तुला राशि में परम नीच के होते हैं। सूर्य उग्र स्वभाव के, अगिA तत्व तथा इनका रंग हल्का लाल व पीला है। यदि कुण्डली के लग्न में सिंह राशि है तथा यह या सूर्य नीच के हो या अन्यथा किसी प्रकार पीç़डत हो तो शरीर में रक्त संचार एवं जीवनी शक्ति प्रभावित होती है। जातक को ह्वदयाघात, हडि्डयों की बीमारी व नेत्र रोगों से ग्रसित हो सकता है। ऎसा जातक अपने लक्ष्यों से भटक जाता है तथा नीच कर्मरत रहता है।
6. कन्या राशि :- न्या राशि के स्वामी बुध है तथा यह पेट व कमर के कारक हैं। इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह बुध तथा शुक्र होते हैं। नीच का या अन्यथा बुध पीç़डत होने पर पेट, पाचन क्रियाएं, यकृत संबंधित रोग व शुक्र के प्रभाव या संयोग के कारण गुप्त रोगों का व किडनी, गुदा से संबंधित रोग जातक को प्रदान करता है।
7. तुला राशि :-तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं तथा यह राशि मृत्राशय की कारक है। लग्न में यह राशि स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्र, शनि व बुध होते हैं एवं स्वामी के किसी भी प्रकार से पीç़डत होने पर या नीच का होने पर यह जातक को जननांग व मूत्राशय संबंधित रोगों से पीç़डत रखता है। महिलाओं के मासिक धर्म व गर्भ धारण संबंधी क्रिया भी इसी के कारण प्रभावित होती है।
8. वृश्चिक राशि :-वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल हैं। यह राशि गुप्तांगों (लिंग व गुदा) की कारक है। लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह मंगल, गुरू व चंद्रमा होते हैं। इस राशि के लग्न में स्थित होने पर व राशि स्वामी के पीç़डत होने पर या नीच में स्थित होने पर या मंगल बद होने पर गुदा, लिंग, जननांग, यकृत, मस्तिष्क संबंधी व आंतों की बीमारियों से जातक को ग्रसित करती हैं।
9. धनु राशि :-धनु राशि के स्वामी देवगुरू बृहस्पति हैं। यह राशि जांघों व नितम्ब की कारक है। गुरू पुरूष प्रधान, शांत व मौन प्रकृति के, रंग पीला तथा इनमें जल व अगिA दोनों तत्व मौजूद है। लग्न में स्थित होने पर इस राशि के कारक ग्रह गुरू व चन्द्रमा होते हैं। 5 अंश पर कर्क में परमोच्चा व मकर राशि में परम नीच के होते हैं। नीचस्थ व पीç़डत गुरू जातक को लीवर, ह्वदय, आंत, जंघा, कूल्हे व बवासीर रोगों से ग्रसित रखते हैं।
10. मकर राशि :-मकर राशि के स्वामी शनि है। यह राशि घुटनों की कारक है। शनि क्रूर ग्रह है। इसका रंग काला तथा इसमें वायु व पृथ्वी तत्व मौजूद है। शनि 20 अंश पर तुला राशि में परमोच्चा व मेष राशि में परम नीच के होते हैं। लग्न में मकर राशि स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शनि, शुक्र व बुध होते हैं। शनि नीचस्थ या पीç़डत होने पर जातक को घुटनों, जांघ, कफ व पाचन तंत्र संबंधी बीमारियों से ग्रसित रखता है। इसके अलावा पुरानी बीमारी यदि कोई है तो उस पर भी इसी राशि का प्रभाव रहता है।
11. कुम्भ राशि :-कुम्भ राशि के स्वामी भी शनि है। यह राशि पिण्डलियों की कारक है। कुम्भ राशि लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह गुरू, शुक्र व शनि होते हैं। शनि के पीç़डत या नीचस्थ होने पर व इस राशि के पीç़डत होने पर जातक पिण्डलियों, उच्च रक्तचाप, हर्निया व कई प्रकार की अन्य बीमारियों से ग्रसित रहता है क्योंकि ऎसा जातक खराब आदतों वाला व किसी भी प्रकार के नशे का आदि होता है जिसके परिणामस्वरूप वह कई प्रकार की व्याधियां पाल लेता है।
12. मीन :- न राशि का स्वामी देवगुरू बृहस्पति होते हैं। यह राशि पैर के पंजों की कारक है। लग्न में मीन राशि स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्य, मंगल व गुरू होते हैं। राशि स्वामी के पीç़डत या नीचस्थ होने पर जातक लीवर, पंजों, तंत्रिका से संबंधी बीमारी व घुटनों संबंधी परेशानी जातक को रहती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कुण्डली में रोगों का अध्ययन करते समय उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए व ग्रहों की युति, प्रकृति, दृष्टि, उनका परमोच्चा या परम नीच की स्थिति का गहन अध्ययन कर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में पंचक नक्षत्र हैं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।

किसे कहते हैं पंचक
ज्योतिष शास्त्र में पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। ये नक्षत्र हैं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार चंद्रमा अपनी माध्यम गति से 27 दिनों में सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। इसलिए प्रत्येक माह में लगभग 27 दिनों के अंतराल पर पंचक नक्षत्र आते रहते हैं।

(1) रोग पंचक
रविवार को शुरू होने वाला पंचक को रोग पंचक कहा जाता है। इसके प्रभाव से शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।

(2) राज पंचक
सोमवार को शुरू हुआ पंचक राज पंचक कहलाता है। ये अति शुभ पंचक माना जाता है। इस समय शुरू किए गए सभी कार्यों में सुनिश्चित सफलता मिलती है। इस समय राजकार्य तथा जमीन-जायदाद से जुड़े कार्य करना शुभ रहता है।

(3) अग्नि पंचक
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इस पंचक के दौरान किसी भी तरह का निर्माण करना अशुभ रहता है। वरन यह समय मुकदमेबाजी तथा कोर्ट कचहरी के लिए अतिउपयुक्त माना जाता है।

(4) मृत्यु पंचक
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। जैसाकि नाम से ही जाहिर होता है, इस पंचक के दौरान किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा मरण तुल्य कष्ट होता है।

(5) चोर पंचक
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। यह पंचक भी अशुभ ही माना जाता है। विशेष तौर पर इस समय लेन-देन, व्यापार, किसी भी तरह के सौदे या नई यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए अन्यथा धन और समय की हानि होती है।
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Tuesday, November 01, 2016

WHY PUT OIL IN YOUR BELLY BUTTON?

Our belly button is an amazing gift given to us by God.A 62 year old man had poor vision in his left eye. He could hardly see especially at night and was told by eye specialists that his eyes were in a good condition but the only problem was that the veins supplying blood to his eyes were dried up and he would never be able to see again.

Homeopathy has a cure for this condition. Infact it not only has a cure for this condition but for veins which have dried up to any part of the body such as the ears, the brain, legs, arms, pancreas, lips, jaw etc.

According to Science, in all of Gods creation, the first part created after the clot is formed is the belly button. After it’s created, it joins to the mother’s belly button through the umbilical chord. 

Through this incredible gift that god has given to us, which we may seem it to be insignificant, a new life is formed. SUBHANALLAH!

Our belly button is surely an amazing thing! According to science, after a person has passed away, the belly button is still warm for 3 hours the reason being when a woman conceives a child, her belly button supplies nourishment to the child through the child’s belly button. And a fully grown child is formed in 270 days = 9 months. This is the reason all our veins are connected to our belly button which makes it the focal point of our body. Belly button is life itself!

The “PECHOTI” is situated behind the belly button which has 72,000 plus veins over it. The total amount of blood vessels we have in our body are equal to twice the circumference of the earth.
CURES:

For dryness of eyes, poor eyesight, pancreas over or under working, cracked heels and lips, for glowing face, shiny hair, knee pain, shivering, lethargy, joint pains, dry skin.

REMEDY:

For dryness of eyes, poor eyesight, fungus in nails, glowing skin, shiny hair. At night before bed time, put 3 drops of pure ghee or coconut oil in your belly button and spread it 1 and half inches around your belly button

For knee pain At night before bed time, put 3 drops of castor oil in your belly button and spread it 1 and half inches around your belly button.

For shivering and lethargy, relief from joint pain, dry skin at night before bed time, put 3 drops of mustard oil in your belly button and spread it 1 and half inches around your belly button.

WHY PUT OIL IN YOUR BELLY BUTTON?

You belly button can detect which veins have dried up and pass this oil to it hence open them up.
When a baby has a stomach ache, we normally mix asafoetida (hing) and water or oil and apply around the naval. Within minutes the ache is cured. Oil works the same way.