Wednesday, April 26, 2023

श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र जानिए इस चमत्कारिक यंत्र से अपनी समस्याओं का समाधान🕉

 🕉श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र जानिए इस चमत्कारिक यंत्र से अपनी समस्याओं का समाधान🕉

 हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है जैसे हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, राम श्लोकी प्रश्नावली, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि। इन यंत्रों की सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। इन्ही में से एक श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के बारे में हम आज आपको बता रहे है।

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।



उपयोग विधि

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जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।


1- आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।


2- आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार करें। गाय को चारा खिलाएं।


3- आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा करें।


4- आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल देवता की पूजा करें।


5- आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।


6- रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।


7- पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।


8- आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको लाभ होगा।


9- आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।


10- शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन पूजन करें।


11- यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता मिलेगी।


12- राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है। मान-सम्मान प्राप्त होगा।


13- कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ अनुकूल रहेगा।


14- जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से मिलाप होगा।


15- आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग भी बन रहे हैं।


16- आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।


17- आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।


18- यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।


19- आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें। कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।


20- शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।


21- आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन करें।


22- यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति का अनुभव होगा।


23- आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा करें।


24- आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी और लाभ मिलेगा।


25- पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी। आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।


26- यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।


27- आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।


28- आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।


29- आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर में सुख-शांति रहेगी।


30- रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको सफलता मिलेगी।


31- आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे बच्चों को मिठाई बांटें।


32- आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।


33- माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा पूरी होगी।


34- मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।


35- परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें। आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।


36- आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं रखें।


37- आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का पूजन करें।


38- लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।


39- आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी मिलेगी।


40- आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।


41- आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।


42- आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों का दान करें।


43- रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।


44- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन जाएंगे।


45- धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का चिंतन करें।


46- धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।


47- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी होगी।


48- आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी। पीपल को रोज जल चढ़ाएं।


49- अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी समस्या दूर होगी।


50- आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य करें।


51- आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।


52- एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को भोजन कराएं।


53- यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप श्रीगणेश का आराधना करें।


54- आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं। सफलता अवश्य मिलेगी।


55- आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।


56- परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह समस्या दूर हो जाएगी।


57- आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।


58- आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को नारियल चढ़ाएं।


59- जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप शनिदेव की उपासना करें।


60- आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में चौमुखी दीपक लगाएं।


61- यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।


62- आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो जाएंगे।


63- आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा करने से आपको सफलता मिलेगी।


64- आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो जाएगा।

Wednesday, July 06, 2022

24 gurus of Lord Dattatrey दत्तात्रेय

भगवान_दत्तात्रेय ने 24 गुरु_बनाए थे। 

 भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु कौन कौन हैं और उनसे क्या सीखा जा सकता है।

1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।

 2. पिंगला वेश्या- पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। वह वेश्या सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी, वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा, तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई। 

3. कबूतर- कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख ही वजह होता है। 

4. सूर्य- सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है। 

5. वायु- जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोडऩा नहीं चाहिए। 

6. हिरण- हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए। 

7. समुद्र- जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए। 

8. पतंगा- जिस प्रकार पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।

9. हाथी- हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी  को आसक्ति से बहुत दूर रहना चाहिए।

10. आकाश- दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।

11. जल- दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए। 

12. छत्ते से शहद निकालने वाला- मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए। 

13. मछली- हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो। 

14. कुरर पक्षी- कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है। 

15. बालक- छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए। 

16. आग- आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। 

17. चंद्रमा- आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है। 

18. कुमारी कन्या- कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूडिय़ां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूडिय़ों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूडिय़ों आवाज बंद करने के लिए चूडिय़ां ही तोड़ दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें ही एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए।

19. शरकृत या तीर बनाने वाला- अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ। 

20. सांप- दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए। 

21. मकड़ी- मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान भी माय जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं। 

22. भृंगी कीड़ा- इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है। 

23. भौंरा या मधुमक्खी- भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है। 

24. अजगर- अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।


सावन के आयुर्वेदिक नियम Do's and don't in monsoon

#सावन__के__आयुर्वेदिक__नियम
इस महीने में नहीं पीना चाहिए दूध, ये चीजें जरूर खाएं

तेज लू-लपट और झुलसा देने वाली तेज गर्मी के बाद बारिश का मौसम बहुत सुहाना लगता है। बारिश के मौसम की ठंडी हवाएं, फुहार और हरियाली माहौल खुशनुमा बना देती हैं। इस मौसम में बरसते पानी को देखते हुए पकौड़ों का लुत्फ उठाने का भी अपना मजा है।

👉🏽 #_आयुर्वेद के नजरिए से देखा जाए तो इस मौसम में जठराग्नि कमजोर रहती है और वात प्रकुपित रहता है। इसलिए आहार-विहार संबंधी नियमों का पालन भी जरूरी होता है। आइए, आज जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार किन चीजों को सावन में खाना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए।
 
▪️ #_न_करें_दूध_का_सेवन - आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। आप सोच रहे होंगे कि भला दूध से क्या नुकसान हो सकता है। दरअसल, सावन में बारिश के कारण हरियाली ज्यादा होती है। मौसम परिवर्तन के कारण हरियाली में जहरीले कीड़ेे-मकोड़ों की भी अधिकता होती है।

सावन के महीने में दूध से बनी चीजों को भी सावन में खाने से मना किया जाता है। सावन के महीने में कच्चा दूध नहीं पीना चाहिए। कच्चा दूध पीने से पित्त और कफ की परेशानी हो सकती है।  

यही कारण है कि गाय या भैंस घास के साथ कई कीड़े-मकोड़ों को भी खा जाते  है। इसलिए दूध हानिकारक हो जाता है। इस समय में दूध के सेवन से वात बढ़ता है, जिसके कारण बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए सावन में दूध नहीं पीना चाहिए। इस कारण दूध गुणकारी कम और हानिकारक ज्यादा हो जाता है।

▪️ #_कच्ची_हरी_सब्जियों_से_दूर_रहें- सावन के महीने में हरी सब्जियों का सेवन वर्जित माना गया है। दरअसल, आयुर्वेद के अनुसार बारिश की हरी सब्जियों में बीमारी फैलाने वाले कीटाणु बहुत अधिक होते हैं। इससे पेट व त्वचा से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं। इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए सावन में हरी सब्जियां नहीं खानी चाहिए।

▪️ #_बैंगन से करें तौबा - सावन के महीने में बैंगन भी नहीं खाना चाहिए। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। 

▪️ #_जरूर_खाएं ये चीजें- आयुर्वेद के अनुसार बारिश में सुपाच्य, ताजा, गर्म और जल्दी पचने वाली चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में पुराना गेहूं, चावल, मक्का, सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मूंग, अरहर की दाल, सब्जियों में लौकी, तुरई, टमाटर। फलों में सेब, केला, अनार, नाशपाती, पके जामुन, देशी आम और घी व तेल में बनी नमकीन चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में जामुन खाने के भी अनेक फायदे हैं। जामुन खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है, त्वचा रोग, प्रमेह रोग आदि दूर रहते हैं। भुट्टों का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। वैज्ञानिक तौर पर सावन के महीने में सलाद का सेवन नहीं करना चाहिए। बारिश के मौसम में सब्जियों में बैक्टीरिया पैदा हो जाता है इसलिए कच्ची सब्जियों का खाना वर्जित होता है। खास तौर पर सावन के महीने में मशरुम का सेवन एकदम नहीं करना चाहिए।

▪️ #_सावन के महीने में तली और भुनी चीजें सेहत के लिए नुकसान दायक होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि ऐसी चीजें इस मौसम में खाने से पेट में सूजन आ जाती है और साथ ही पाचन क्रिया भी कमजोर हो जाती है।

Saturday, May 21, 2022

कृष्ण के जाने के बाद राधा का क्या हुआ

राधा-कृष्ण

मंदिरों में केवल श्रीकृष्ण की अकेले मूर्ति देखना कम पाया जाता है, अमूमन हम उनकी मूर्ति के साथ राधा की मूर्ति जरूर देखते हैं। आप स्वयं वृंदावन के किसी भी मंदिर में प्रवेश कर लीजिए, वहां आपको राधे-कृष्ण की ही मूर्ति के दर्शन होंगे...

कृष्ण से राधा को और राधा से कृष्ण को कोई जुदा नहीं कर सकता, यह एक गहरा रिश्ता है लेकिन जब वास्तव में श्रीकृष्ण अपनी प्रिय राधा को छोड़कर मथुरा चले गए थे तब राधा का क्या हुआ? कृष्ण के बिना उन्होंने अपना जीवन कैसे बिताया? क्या जीवन बिताया भी था या....

यह सवाल काफी गहरे हैं लेकिन उससे भी गहराई में जाने के बाद इन सवालों का सही उत्तर सामने आया है। यह सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण का बचपन वृंदावन की गलियों में बीता। नटखट नंदलाल अपनी लीलाओं से सभी को प्रसन्न करते, कुछ को परेशान भी करते लेकिन कृष्ण के साथ ही तो वृंदावन में खुशियां थीं।

बड़े होकर कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता, लेकिन सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वह थीं राधा। परंतु राधा से कई अधिक स्वयं कृष्ण, राधा के दीवाने थे।

क्या आप जानते हैं कि राधा, कृष्ण से उम्र में पांच वर्ष बड़ी थीं। वे वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं लेकिन रोज़ाना कृष्ण की मधुर बांसुरी की आवाज़ से खींची चली वृंदावन पहुंच जाती थी।कृष्ण भी राधा से मिलने जाते

जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां उनके आसपास एकत्रित हो जातीं, उस मधुर संगीत को सुनते हुए सभी मग्न हो जाते। और इसी का फायदा पाकर कई बार कृष्ण चुपके से वहां से निकल जाते और राधा से मिलने उनके गांव पहुंच जाते। लेकिन धीरे-धीरे वह समय निकट आ रहा था जब कृष्ण को वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना था।

यह तब की बात थी जब कृष्ण के दुष्ट मामा कंस ने उन्हें और उनके भ्राता बलराम को मथुरा आमंत्रित किया। यह बात पूरी वृंदावन नगरी में फैल गई, सभी के भीतर एक डर पैदा हो गया मानो उनकी अपनी कोई चीज़ उनसे दूर जाने वाली हो।

वृंदावन में शोक का माहौल उत्पन्न हो गया, इधर कान्हा के घर में मां यशोदा तो परेशान थी हीं लेकिन कृष्ण की गोपियां भी कुछ कम उदास नहीं थीं। दोनों को लेने के लिए कंस द्वारा रथ भेजा गया, जिसके आते ही सभी ने उस रथ के आसपास घेरा बना लिया यह सोचकर कि वे कृष्ण को जाने नहीं देंगे।

उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए। फिर मिली उन्हें राधा, जिसे देखते ही वे कुछ कह ना सके। राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है।

दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे। राधा कृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं। कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती, इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी।

अंतत: कृष्ण, राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।

अखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, ना कोई चहल-पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे। परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन क्यों! क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।

शारीरिक रूप से जुदाई मिलना उनके लिए कोई महत्व नहीं रखता था, यदि कुछ महत्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़ा रहना। कृष्ण के जाने के बाद राधा पूरा दिन उन्हीं के बारे में सोचती रहती और ऐसे ही कई दिन बीत गए। लेकिन आने वाले समय में राधा की जिंदगी क्या मोड़ लेने वाली थी, उन्हें इसका अंदाज़ा भी नहीं था।

माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह करना पड़ा और विवाह के बाद अपना जीवन, संतान तथा घर-गृहस्थि के नाम करना पड़ा। लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी वे कृष्ण का ही नाम लेती थीं। दिन बीत गए, वर्ष बीत गए और समय आ गया था जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी। फिर एक रात वे चुपके से घर से निकल गई और घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची।

वहां पहुंचते ही उसने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वह मौका प्राप्त ना हुआ। परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला। राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन तब ही दोनों में कोई वार्तालाप ना हुई।

क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी उपस्थित थे, उन्हें लफ़्ज़ों की आवश्यक्ता नहीं थी। कहते हैं राधा कौन थी, यह द्वारिका नगरी में कोई नहीं जानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया, वे दिन भर महल में रहती, महल से संबंधित कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती।

लेकिन फिर भी ना जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था, जो बीतते समय के साथ बढ़ता जा रहा था। उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता, उनकी यह भवनाएं उन्हें कृष्ण के पास रहने न देतीं। साथ ही बढ़ती उम्र ने भी उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने को मजबूर कर दिया। अंतत: एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई और ना जाने किस ओर चल पड़ी।

वे नहीं जानती थीं कि वे कहां जा रही हैं, आगे मार्ग पर क्या मिलेगा, बस चलती जा रही थी। परंतु कृष्ण तो भगवान हैं, वे सब जानते थे इसलिए अपने अंतर्मन वे जानते थे कि राधा कहां जा रही है। फिर वह समय आया जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी, वह अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी और यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए।

कृष्ण को अपने सामने देख राधा अति प्रसन्न हो गई। परंतु दूसरी ओर वह समय निकट था जब राधा पाने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना चाहती थी। कृष्ण ने राधा से प्रश्न किया और कहा कि वे उनसे कुछ मांगे लेकिन राधा ने मना कर दिया।

कृष्ण ने फिर से कहा कि जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा, इसलिए राधा ने एक ही मांग की और वह यह कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’। कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया, बांसुरी बजाते-बजाते राधा ने अपने शरीर का त्याग किया और दुनिया से चली गई। उनके जाते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी और कोसों दूर फेंक दी।

Wednesday, May 04, 2022

पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत अपनावे ये घरेलू उपाय_*

*☘️ *_पहचाने अपनी पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत  अपनावे ये घरेलू उपाय_*

पेट के रोग और पेट की गर्मी

*हमारे पेट में गर्मी हो रही है, इस बात पता ऐसे लगाएं*

छाती या सीने में जलन होना
सांस लेने में तकलीफ होना
मुंह में खट्टा पानी और खट्टी डकारें आना
घबराहट और उल्टी जैसा महसूस होना
पेट में  जलन और दर्द होना
गले में जलन होना
पेट का फूल जाना (पेट में अफ़ारा होना)
कब्ज होना
सिर दर्द होना
पेट में गैस का बनना

 *पेट को ठंडा रखने के लिए क्या खाएं?*

पेट को ठंडा रखने के लिए हमें सबसे पहले अपने खान-पान के तरीकों में बदलाव लाना होगा. 

*पेट को ठंडा रखने के लिए करें ये उपाय:*

1. केला खाएं:
पेट की गर्मी को शांत करके उसे ठंडा रखने में केला बहुत मदद करता है. केले के पोटेशियम की मात्रा पेट में बनने वाले एसिड को नियंत्रित करती है और केले का पी एच तत्व  एसिड को कम करता है. साथ ही केला, पेट में एक चिकनी पर्त बना देता है जिससे एसिडिटी में कमी आती है. केले का फाइबर पाचन तंत्र को भी दुरुस्त रखता है.

 2. तुलसी के पत्तों का सेवन:
तुलसी के पत्तों का सेवन करने से पेट में पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेट के अतिरिक्त ऐसिड में कमी आती है. इसे खाने से मिर्च-मसाले वाला खाना भी सरलता से पच जाता है. रोज खाने के बाद पाँच-छह तुलसी के पत्ते खाने से एसिडिटी नहीं होती है.

 3. ठंडा दूध पियें:
दूध का कैल्शियम, पेट के एसिड को एब्जॉर्ब करके उसे बहुत आसानी से ख़त्म कर देता है. रोज सुबह एक कप ठंडा दूध पेट को ठंडा रखने का रामबाण इलाज है.

 4. सौंफ खाएं:
खाना खाने के बाद सौंफ का सेवन इसलिए अच्छा माना जाता है क्योंकि सौंफ की तासीर ठंडी होती है जो पेट की जलन और गरमी को शांत करती है. इसलिए अगर एसिडिटी की शिकायत ज्यादा हो तो सौंफ को पानी में उबालकर उसका सेवन करें.

Wednesday, February 16, 2022

पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...

श्री सत्यनारायण व्रत 
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पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?
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आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान  सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है । पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । 
जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें। 

सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है, भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ 
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पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।
सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की। शतानन्दअति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्तिअपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। 

वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ 

(इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुर में प्रवेश) की स्थिति में आए। काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरण किया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की। राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रती थे। वे नियमित रूप से भद्रशीलानदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना करते थे। सत्याचरण ही उनके जीवन का मूल मन्त्र था। दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरण किया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की। साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावती नामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्म के पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चाना से मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुर में श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु के कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामी से झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादन के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिक के मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने  को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावती को अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज तो पूजास्थल पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत:बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की और सत्याचरण का व्रत लिया। सत्यनारायण व्रतकथा के उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापा त्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से स्कंद पुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीन व्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही हो सकता है। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीन थे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिकनएवं राजा तुंगध्वज धन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धन सम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे। पूरी सत्यनारायण व्रत कथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिक हितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरण का व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरण का अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।
केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।
नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।

भगवान सत्यनारायण पूजा सामग्री
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भगवन सत्यनारायण की मूर्ति या फ़ोटो
1 चौकी या पटला तथा उस पर बिछाने के लिए एक मीटर पीला या सफ़ेद कपडा
अबीर
गुलाल
कुमकुम (रोली)
सिंदूर
हल्दी
मोली
धुप
अगरबत्ती
10 ग्राम लौंग
10 ग्राम इलायची
32 सुपारी
चन्दन
500 ग्राम चावल
250 गेहूँ
50 ग्राम कपूर
इत्र
कापूस
गंगाजल
गुलाबजल
गोमूत्र
पञ्च मेवा
5 जनेऊ
1 नारियल
भगवन के वस्त्र
250 ग्राम घी
10 ग्राम पीली राई
5 पान के पत्ते
5 आम के पत्ते
हार फूल तुलसी पत्र
4 केले के खम्बे
250 ग्राम मिठाई
1 लीटर दूध
250 ग्राम दही
100 ग्राम चीनी
50 ग्राम शहद
भगवन के भोग के लिये चूरमा, पंजीरी या हलुआ इत्यादि

हवन प्रकरण (यदि हवन करना हो तो )
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हवन सामग्री
तिल
चावल
जौ
चीनी
घी
नव ग्रह समिधा 2 बण्डल
1 किलो आम की लकड़ी

पूजा के पूर्व की तैयारी
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जिस दिन पूजा करनी हो एक या दो दिन पूर्व ही यतन अनुसार पूजा की सभी सामग्री बाजार से ला कर उसे चेक कर ले ताकि पूजा के समय असुविधा न हो।

पूजन विधि
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श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्तव को बतलाता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।

पूजन का मंडप तैयार करना
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पूर्वाभिमुख हो कर एक चोकी पर पीला कपडा बिछा कर केले के खम्बे को लगा दे उस के बाद चित्रानुसार भगवन श्री सत्यनाराण गणेश नवग्रह कलश षोडश मातृकाएँ वास्तुदेवता की स्थापना करें अष्टदल या स्वस्तिक बनाएं। बीच में चावल रखें। पान सुपारी से भगवान गणेश की स्थापना करें। अब भगवान सत्यनारायण की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या नारायण की प्रतिमा की भी स्थापना करें।
सत्यनारायण के दाहिनी ओर शंख की स्थापना करें। जल से भरा एक कलश भी दाहिनी ओर रखें। कलश पर शक्कर या चावल से भरी कटोरी रखें। कटोरी पर नारियल भी रखा जा सकता है। अब बायी ओर दीपक रखें। केले के पत्तों से पाटे के दोनो ओर सजावट करें।
अब पाटे के आगे एक सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रखें तथा नवग्रह मंडल बनाएं पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाना है। और उस के साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें तथा षोडशमातृका मंडल तैयार करने के बाद पूजन शुरु करें।
प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें। या जितना शक्ति हो उस अनुसार इकठ्ठा कर लें। भगवान की तस्वीर के आगे ये सभी पदार्थ रख दें।

सकंल्प ;
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संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

पवित्रकरण ;
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बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन शुद्धि
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निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।

ग्रंथि बंधन
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यदि यजमान या पूजा करने वाले भक्त सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-

यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्।

आचमन करें
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इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-
ऊँ केशवाय नमः
ऊँ नारायणाय नमः
ऊँ माधवाय नमः
यह मंत्र बोलकर हाथ धोएं
ऊँ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

स्वस्तिवाचन मंत्र
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सबसे पहले स्वस्तिवाचन किया जाना चाहिए।
स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्र्षयो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु।
अब सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमा महेश्वराभ्यां नमः ।
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः ।
कुलदेवताभ्यो नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।
सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्यहा गणाधिपतये नमः।

भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। जनेऊ अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। भगवान नारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें। अब दीपक प्रज्वलित करें। धूप, दीप करें। भगवान गणेश और सत्यनारायण धूप-दीप अर्पित करें। ‘‘ऊँ सत्यनारायण नमः’’ कहते हुए सत्यनारायण का पूजन करें।
अब चावल की ढेरी में नवग्रहों का पूजन करें। अष्टगंध, पुष्प को नवग्रहों को अर्पित करें।

नवग्रहों का पूजन का मंत्र
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ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।
इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें।
अब कलश में वरुण देव का पूजन करें। दीपक में अग्नि देव का पूजन करें।

कलश पूजन
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कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः। इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें।

दीपक
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दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत ।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः।

कथा-वाचन और आरती
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पूजन के बाद सत्यनारायण की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। कथा पूरी होने पर भगवान की आरती करें। प्रदक्षिणा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई, शक्कर का बूरा जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा करा हो। उन सभी पदार्थों का भगवान को भोग अर्पित करें। भगवान का प्रसाद सभी भक्तों को बांटे।

श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में 
श्रीसत्यनारायणव्रत कथा 
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पहला अध्याय ,,एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए. इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं. सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले – हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था. आप सब इसे ध्यान से सुनिए –
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे. यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा. उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए. इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए. वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे.
स्तुति करते हुए नारद जी बोले – हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं. आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है. निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है. नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले – हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो. इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं. हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।

श्रीहरि बोले – हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है. जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो. स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है. आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ।

श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है.
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ.  नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले – दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है. मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए. भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें. गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ। ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें. भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं. इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं. इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है.

।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण।।  
श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
दूसरा अध्याय
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सूत जी बोले ,, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था. भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था. ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा ,, हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला ,, मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ. भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ. हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए. वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो. इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है.
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए. ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा. यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई. वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया. उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला. जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है.
सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।

विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।

बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
तीसरा अध्याय 
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सूतजी बोले ,, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ. पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा – हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएँ।
राजा बोला – हे साधु! अपने बंधु-बाँधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ. राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला – हे राजन ! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए. आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा. मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी. राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुँगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनोंदिन वह ऎसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।
एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा. इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बाँधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें.
राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है?
कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।

।।इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
चतुर्थ अध्याय
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सूतजी बोले ,, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए. उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं. वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले – तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए. कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए. दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी. दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला – मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है. तू मेरी पूजा से विमुख हुआ. साधु बोला – हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ. आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा. मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए. जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया. दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई. प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया. कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई. नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें.
साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई – हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है. यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा. ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है. उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है. इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।

।।इति श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
पाँचवां अध्याय
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सूतजी बोले ,, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था. उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया. एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया. वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा. अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया. ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया.
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है. वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया. दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है.
सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा  कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।

श्री सत्यनारायणजी की आरती 
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जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥

भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी... ॥

Friday, October 22, 2021

27 nakshatra. all about them.

*नक्षत्र* 

*१) अश्विनी-* 
नक्षत्र - अश्विनी , नक्षत्र देवता - अश्विनीकुमार , नक्षत्र स्वामी - केतु  ,  नक्षत्र  पूज्य वृक्ष - वत्सनाग  , नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष - अडोसा ( अडूसा ) , नक्षत्र चरणाक्षर - चु, चे, चो, ला ४ चरण मेष राशी में  , नक्षत्र प्राणी- घोडा नक्षत्र तत्व - वायु , नक्षत्र गण- देव ,  नक्षत्र स्वभाव – मृदु.
अश्विनी नक्षत्र में जन्म हुए मनुष्य के गुण:- अलंकार प्रेमी , सुंदर, मनोहर -जिनको देखनेसे मन प्रसन्न हो, समर्थ, और बुद्धिमान होते है।
अश्विनी से जुड़े व्यवसाय:-  प्रेरक प्रशिक्षक, अभियान प्रबंधक,  एथलीट, खेल से संबंधित व्यवसाय, हवाई जहाज/ ऑटो / नाव / घोड़ा दौड़ी , सैन्य, कानून प्रवर्तन, इंजीनियरिंग, जौहरी, चिकित्सा व्यवसाय, फार्मासिस्ट,  सलाहकार , औषधि माहिर, शारीरिक रूप से साहसी क्षेत्र में कला प्रदर्शन , अन्वेषक, शोधकर्ता, और माली।
                                         
*२) भरणी-* 
नक्षत्र -भरणी ,  नक्षत्र देवता - यमाद्य पितर, नक्षत्र स्वामी -शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - आंवला, नक्षत्र ऐच्छिक  वृक्ष- काला कत्था ,  राशी व्याप्ती - ली, लु, ले, लो  ४ चरण मेष राशी में ,  नक्षत्र प्राणी - हाथी ,  नक्षत्र तत्व - अग्नी, नक्षत्र स्वभाव –क्रूर , नक्षत्र गण- मनुष्य।
भरणी नक्षत्र में पैदा हुए मनुष्य के गुण:- कार्य करनेकी क्षमता रखनेवाले , सत्य का मार्ग अपनानेवाले या सत्य बोलनेवले, निरोगी, चतुर और सुखी।
भरणी नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :- बच्चे से जुडी (शिक्षण, बच्चे की देखभाल, आदि), स्त्री रोग विशेषज्ञ, दाई, प्रजनन विशेषज्ञ, ताबूत बनानेवाला, संपत्ति सलाहकार, हत्या जासूसी, लेखक, अंतिम संस्कार सेवाओं के साथ जुड़े क्षेत्र,  मनोरंजन, मॉडल, विदेशी या यौनकर्मियों से जुड़े , न्यायाधीश, होटल उद्योग, खानपान, पशु चिकित्सक, आग सेनानी, सर्जन, फोटोग्राफर, चरम गोपनीयता, भूभौतिकी, भूकंप और ज्वालामुखी विशेषज्ञों की स्थिति।
                                                                           
*३) कृतिका-* 
नक्षत्र-  कृतिका , नक्षत्र देवता – अग्नी  , नक्षत्र स्वामी – रवि  , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष - गूलर (औदुंबर) ,
नक्षत्र ऐच्छिक  वृक्ष – बहेड़ा , राशी व्याप्ती – अ, १ चरण मेष राशि में . ई, ऊ, ऐ ३ चरण वृषभ राशी में
नक्षत्र प्राणी- बकरी  ,  नक्षत्र तत्व –अग्नी  , नक्षत्र गण- राक्षस,  नक्षत्र स्वभाव – क्रूर.
कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेनेवालोंके गुण:- अधिकतर भोजन में रूचि रखनेवाले , तेजस्वी और  जीवन में तरक्की के आसमान को छूते है।
कृत्तिका नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :-  प्राधिकारी या प्रबंधन की स्थिति, जनरल, आलोचक, अध्यापक, विश्वविद्यालय व्यवसाय, वकील, तकनीकी व्यवसाय, चाकू या तलवार, तलवारबाजी, आर्चर, लोहार, जौहरी, सर्जन, विस्फोटक या आग से जुड़े व्यवसायों के रूप में तेज वस्तुओं से संबंधित किसी भी क्षेत्र से , आग सेनानी, पुलिस, सेना, खनिक, पुनर्वास विशेषज्ञ, प्रेरक ट्रेनर, मिट्टी के बरतन, आध्यात्मिक शिक्षक, हेयर स्टाइलिस्ट, दर्जी, और अनाथालय के लिए काम करना।
                                          
*४ ) रोहिणी-* 
नक्षत्र- रोहिणी , नक्षत्र देवता –ब्रम्हा  , नक्षत्र स्वामी – चंद्र , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष -काला जामुन ( जांभळ)     नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष- बेल  , राशी व्याप्ती -  ओ, वा, वि, वू ४ चरण वृषभ राशी में , नक्षत्र प्राणी- सांप , नक्षत्र तत्व- पृथ्वी ,  नक्षत्र गण- मनुष्य  ,  नक्षत्र स्वभाव- मृदु.
रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेनेवालोंके गुण:- साफ-सफाई में ध्यान देनेवाले, सच बोलना पसंद करनेवाले, स्थिर बुद्धिवाले, मधुर भाषण करनेवाले और सुन्दर दिखनेवाले ! 
रोहिणी नक्षत्र से जुडी वृत्ति :- कृषि, धान्य प्रसंस्करण, वनस्पति, वैद्य, कलाकार, संगीतकार, मनोरंजन उद्योग, कॉस्मेटिक उद्योग,   जौहरी, रत्न व्यापारी, इंटीरियर डेकोरेटर, बैंकर, परिवहन व्यवसाय, पर्यटन, ऑटोमोबाइल उद्योग, तेल और पेट्रोलियम, वस्त्र उद्योग, शिपिंग उद्योग, पैकेजिंग और वितरण, और किसी भी जलीय उत्पादों और तरल पदार्थ के साथ जुड़ा हुआ पेशा !      

*5) मृगशीर्ष-* 
नक्षत्र-  मृगशीर्ष ,  नक्षत्र देवता- चंद्र  , नक्षत्र स्वामी-  मंगळ  , नक्षत्र पूजनीय वृक्ष - काला कत्था , नक्षत्र ऐच्छिक वृक्ष- पीपल  , राशी व्याप्ती - वे, वो, २ चरण वृषभ राशी में , का, की २ चरण मिथुन राशी में ,  नक्षत्र प्राणी – सांप  , नक्षत्र तत्व- वायु  , नक्षत्र गण- देव , नक्षत्र स्वभाव- मृदु।
मृगशीर्ष नक्षत्र वाले मनुष्य के गुण:-  चतुर-चपल, उमंग से भरपूर, धनि, और सुख का भोग लेनेवाले।
मृगशीर्ष नक्षत्र से सम्बंधित कार्य :-  कलाकार के  गायक, संगीतकार, लेखक, कवि, चित्रकार, दार्शनिक, रत्न उद्योग, उत्पाद या सामग्री पृथ्वी से संबंधित, भूमि अभिवृद्धि, सर्वेक्षक, यात्रि, खोजकर्ता, इमारत ठेकेदार, व्यापार मशीनरी या इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित, पशु चिकित्सक, पालतू जानवरों से संबंधित, फैशन और वस्त्र उद्योग, बिक्री प्रतिनिधि, विज्ञापन प्रसारक, शासन प्रबंध,  ज्योतिषि, शिक्षक की वृत्ति।

*६) आर्द्रा-* 
नक्षत्र –आर्द्रा, नक्षत्र देवता - रुद्र (शिव) , नक्षत्र स्वामी – राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - पिप्पली ( लम्बी काली मिर्च)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष – चंदन, नक्षत्र चरणाक्षर - कु,ख,ञ,छ. नक्षत्र प्राणी- कुत्ता, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र स्वभाव – तीक्ष्ण, नक्षत्र गण- मनुष्य।
जन्म नक्षत्र  फल:- जो अहंकार दिखाता हो, मदत करनेवालोंको भुला देनेवाला, हिंसा प्रेमी, और पाप कर्म करने वाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- शारीरिक श्रम से जुड़े काम,  इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बिजली इंजीनियर, ध्वनि तकनीशियन, इलेक्ट्रॉनिक संगीत, वीडियो गेम डेवलपर, विशेष प्रभाव और 3-डी प्रौद्योगिकी, विज्ञान कथा लेखक, भाषाकोविद, चित्रकार , दार्शनिक, भौतिक विज्ञानी, शोधकर्ता, सर्जन, फार्मासिस्ट, परमाणु ऊर्जा उद्योग, मनोचिकित्सक, न्यूरोलॉजिस्ट के साथ काम करता है; जासूसी, बिक्री विशेषज्ञ, विश्लेषक, राजनेता, चोर, शतरंज खिलाड़ी आदि विषयों का ज्ञाता।

*७) पुनर्वसु-* 
नक्षत्र- पुनर्वसु, नक्षत्र देवता- अदिती, नक्षत्र स्वामी- गुरू, नक्षत्र आराध्य वृक्ष – बांस, नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- बरगद
नक्षत्र चरणाक्षर- के,को,हा, ही, नक्षत्र प्राणी- बिल्ली, नक्षत्र तत्व- वायु,  नक्षत्र स्वभाव- सत्व, नक्षत्र गण- देव.
जन्म नक्षत्र फल:- सुखी, सुशिल, दमनशील, अल्प मेधावी, रोंगो से पीड़ित , अधिक प्यासा, और अल्प संतोषी ( थोड़ा मिलनेसेहि सतुंष्ट होनेवाला)।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- पर्यटन, यात्रा उद्योग, होटल प्रबंधक , व्यापार उद्योग, निर्माण, वास्तुकला, सिविल इंजीनियर्स, वैज्ञानिक, अध्यापक, लेखक, गूढ़ अध्ययन, दार्शनिक, मंत्रि, इतिहासकार, प्राचीन वस्तु का  व्यापारि, समाचार पत्र उद्योग, मकान मालिक, अंतरिक्ष यात्री, कोरियर, कारीगर, नवीन आविष्कार, तीरंदाजी, इनको अधिक तर अपने हाथों का उपयोग की आवश्यकता होती है।

*८) पुष्य-* 
नक्षत्र- पुष्य, नक्षत्र देवता- गुरु, नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- पीपल,नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- अंजीर
नक्षत्र चरणाक्षर- हु, हे, हो, डा, नक्षत्र प्राणी- बकरी, नक्षत्र तत्व- अग्नी, नक्षत्र स्वभाव- शुभ, नक्षत्र गण- देव
जन्म नक्षत्र फल:- जिनका मन सदा शांत रहता हो, महाज्ञानी, धनिक, सदा धर्म के मार्ग का अनुसरण करनेवाले और सुन्दर होते है।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:- राजनेता, रईस, खानपान, खाद्य या पेय उद्योग, परिचारिक, डेयरी उद्योग, सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, पादरी, पुजारि, पंडित,आध्यात्मिक सलाहकार, दान कार्यकर्ता, शिक्षक, बच्चे की देखभाल पेशेवर, कारीगर, अचल संपत्ति में व्यवसाय, किसान, पानी से संबंधित उद्योग, व्यापार रूढ़िवादी या पारंपरिक धर्मों से संबंधित कार्य में कुशल।

*९) आश्लेषा-* 
नक्षत्र- आश्लेषा, नक्षत्र देवता- सांप , नक्षत्र स्वामी - बुध, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नागकेसर ( लाल) , नक्षत्र पर्यायी वृक्ष -उंडी , नक्षत्र चरणाक्षर - डि,डू,डे,डो, नक्षत्र प्राणी- बिल्ली , नक्षत्र तत्व - जल , नक्षत्र स्वभाव- तीक्ष्ण  नक्षत्र गण- राक्षस।               नक्षत्र जन्मफल:- जिद्दी स्वाभववला, अधिक आशावादी, पापकर्म निरत, और कृतघ्न , मदतगार को भूलनेवला।
विशेष:- इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले मनुष्य की नक्षत्र शांति पूजा करना अनिवार्य है।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति - केमिस्ट या रासायनिक इंजीनियर, व्यवसाय जहर या खतरनाक सामग्री, पेट्रोलियम उद्योग, दवा उद्योग, ड्रग डीलर, तंबाकू उद्योग, चोर, गबन, वयस्क मनोरंजन उद्योग, सरीसृप, सपेरा, सर्जन, गुप्त आपरेशन-सर्विस, वकीलों के साथ काम करना, राजनीतिज्ञ सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, कृत्रिम निद्रावस्था में लानेवाला, योग प्रशिक्षक, और नीमहकीम।

*१०) मघा-* 
नक्षत्र- मघा, नक्षत्र देवता- पितर, नक्षत्र स्वामी- केतु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बरगद  , नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- रिठा
नक्षत्र चरणाक्षर- मा,मि,मू,मे, नक्षत्र प्राणी- चूहा , नक्षत्र तत्व- अग्नी , नक्षत्र स्वभाव- क्रूर , नक्षत्र गण- राक्षस
नक्षत्र जन्मफल :- दो से ज्यादा भाई-बहन के साथ रहनेवाला, धनिक, हर तरह के भोग भोगनेवाला, भगवान और माता-पिता की भक्ति करनेवाला, सदा उत्साह से भरपूर।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- प्रबंधक, कार्यकारी अधिकारी, अध्यक्ष, प्रशासन, रॉयल्टी, सरकारी अधिकारी, कथा लेखक, नौकरशाह, रईस, वकील, न्यायाधीश, रेफरी, राजनीतिज्ञ, लाइब्रेरियन, वक्ता, इतिहासकार, संग्रहालय में पदवी, एंटीक डीलर, पुरातत्व विद्वान जेनेटिक इंजीनियर, प्राचीन संस्कृति का शोध कर्ता, दस्तावेजीकरण  कलाकार, वक्ता, तांत्रिक।

*११) पुर्वा फाल्गुनी-* 
नक्षत्र- पुर्वा (फाल्गुनी) , नक्षत्र देवता -  भग ,  नक्षत्र स्वामी – शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष - पलाश (पळस)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष- बेल, नक्षत्र चरणाक्षर - मो,टा,टी,टु,  नक्षत्र प्राणी- चूहा , नक्षत्र तत्व- क्रुर, नक्षत्र स्वभाव - सत्व
नक्षत्र गण- मनुष्य
नक्षत्र जन्मफल:- सदा प्रिय वचन बोलनेवाला, दान-धर्म करनेवाला, आकर्षक व्यक्तित्व , यात्रा प्रेमी और राज सेवक ( उच्च स्थान का सेवक )
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:-  कार्यकारी, सरकारी अधिकारी, मनोरंजन, मेकअप कलाकार, मॉडल, फोटोग्राफर, चित्रकार, कला संग्रहालय या गैलरी, संगीतकार, शिक्षक, रत्न व्यापारी, शारीरिक फिटनेस ट्रेनर, इंटीरियर डेकोरेटर, महिला के उत्पादों के साथ काम करते हैं, गुप्त -चिकित्सक, नींद चिकित्सक, जीवविज्ञानी, पर्यटन, कपास और रेशम उद्योग।

*१२) उत्तरा फाल्गुनी-* 
नक्षत्र- उत्तरा (फाल्गुनी) , नक्षत्र देवता-  अर्यमा , नक्षत्र स्वामी-  रवि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- पिंपरी( प्लक्ष )
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष - श्वेत कनेर , नक्षत्र चरणाक्षर -  टे,टो,पा,पी, नक्षत्र प्राणी- गाय , नक्षत्र तत्व – वायु,       
नक्षत्र स्वभाव-  सत्व , नक्षत्र गण- मनुष्य
नक्षत्र जन्मफल:- दिखनेमें सुन्दर, अपनी विद्या से धन कमानेवाला, भोगी, और सुखोंका अनुभोग लेनेवाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- मनोरंजन, संगीतकार, कलाकार, प्रबंधक, नेता, सार्वजनिक आंकड़ा, खेल सुपरस्टार, संगठन के प्रमुख, शिक्षक, उपदेशक, परोपकारि, शादी सलाहकार, संयुक्त राष्ट्र के साथ काम, राजनायक, संस्थापक, बैंकर, लेनदार, सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकार , कमांडर।

*१३) हस्त-* 
नक्षत्र- हस्त, नक्षत्र देवता- सुर्य, नक्षत्र स्वामी- चंद्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- चमेली , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- रिठा
नक्षत्र चरणाक्षर- पू,ष,ण,ठ , नक्षत्र प्राणी- भैंस , नक्षत्र तत्व- वायु, नक्षत्र स्वभाव- रज  , नक्षत्र गण- देव
नक्षत्र जन्मफल:- उमंग से भरपूर, धैर्यवान, जो पेय- जल से सम्बंधित वस्तु का प्रेमी, दयावान, और कालांतर से बुद्धि में बदलाव आने से चोरी का मार्ग अपनानेवाला।
नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय:-  कारीगर, यांत्रिकी, गहने निर्मात विशेषज्ञ, शारीरिक श्रम, कसरत, सर्कस कलाकार, आविष्कारक, प्रकाशक, प्रिंटिंग उद्योग, कार्ड डीलर, जुआरी, बैंकर, लेखाकार, टाइपिस्ट  क्लीनर, नौकरानी, मालिश, रासायनिक उद्योग, वस्त्र उद्योग, टैरो कार्ड पाठक, ज्योतिषी, नीलामकर्ता, मिट्टी के बरतन कर्ता, इंटीरियर डेकोरेटर, माली, खाद्य उत्पादन, नावी, मूर्तिकार, पेशेवर हास्य अभिनेता, भाषण चिकित्सक, परीक्षण कलाकार, जादूगर और चोरी में माहिर।

*१४) चित्रा-* 
नक्षत्र- चित्रा, नक्षत्र देवता- त्वष्टा , नक्षत्र स्वामी- मंगळ, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बेल , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बकूल
नक्षत्र प्राणी- बाघ , नक्षत्र तत्व- वायु,  नक्षत्र स्वभाव- तीक्ष्ण ( तम),  नक्षत्र चरणाक्षर- पे,पो,रा,री,
नक्षत्र गण- राक्षस
नक्षत्र जन्मफल:- अधिक रंग-बेरंगी कपड़े, आभूषण, सजावट के वस्तु पहनना पसंद करनेवाला या पहननेवाला, बड़े तेजस्वी आँखे और सुंदर दिखने वाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति:- आर्किटेक्ट, डिजाइनर, मूर्तिकार, कारीगर, फैशन डिजाइनर, कॉस्मेटिक डिजाइनर, प्लास्टिक सर्जन, फोटोग्राफर, ग्राफिक कलाकार, संगीतकार, प्रसारक, इंटीरियर डिजाइनर, गहने डिजाइनर, फेंग शुई विशेषज्ञ, आविष्कारक, मशीनरी के उत्पादन का व्यापारी, बिल्डर, चित्रकार , पटकथा लेखक, सेट डिजाइनर, कला निर्देशक, थिएटर कलाकार, झांज संगीतकार, औषधि माहिर, विज्ञापन, बहुमुखी प्रतिभाशाली।

*१५) स्वाती-* 
नक्षत्र- स्वाती , नक्षत्र देवता- वायु ,  नक्षत्र स्वामी- राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- अर्जुन ,  नक्षत्र पर्याय वृक्ष- जरुल
नक्षत्र चरणाक्षर- रू,रे,रो,ता .  नक्षत्र प्राणी- भैंसा ,  नक्षत्र तत्व- अग्नी ,  नक्षत्र स्वभाव- सत्व ,  नक्षत्र गण- देव
नक्षत्र जन्मफल:- दमनशील इंद्रिय निग्रह रखनेवाला मेहनती व्यापारी, कृपा का पात्र धर्म का आचरण करके प्रिय वचन से सब का मन प्रसन्न करने वाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:-  व्यवसाय और व्यापार, खेल, गायक, संगीतकार, हवा उपकरण, अन्वेषक, स्वतंत्र उद्यमी, पायलट,  शोधकर्ता, सेवा व्यवसाय, सॉफ्टवेयर उद्योग, चरम खेल, शिक्षक, राजदूत, वकील, न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ, संघ के नेता, राजनयिक परिचारिक, योग प्रशिक्षक, से जुड़े काम में दिलचस्पी रखने वाले।

*१६) विशाखा-* 
नक्षत्र- विशाखा, नक्षत्र देवता- इंद्राग्नी ,  नक्षत्र स्वामी- गुरू , नक्षत्र आराध्य वृक्ष- बबूल ( नागकेशर )  नक्षत्र पर्याय वृक्ष- पारिजात,  नक्षत्र गण- राक्षस,  नक्षत्र प्राणी- बाघ , नक्षत्र चरणाक्षर- ती,तो,ते,तू .    
नक्षत्र तत्व-  वायु,   नक्षत्र स्वभाव- रज.
नक्षत्र जन्मफल:- द्वेषी जो दूसरे पर जलने वाला, लोभी, परन्तु तेजस्वी, बोलने में समर्थ वाग्मी, हरबात पर जघडनेवाला।
नक्षत्र से जुड़े काम और व्यवसाय:- शोधकर्ता, वैज्ञानिक, सैनिक, सैन्य नेता, लेखक, राजनेता, वकील, सार्वजनिक वक्ता, आव्रजन अधिकारि, पुलिस गार्ड, मजदूर, फैशन मॉडल, भाषण (प्रसारक) से जुड़े व्यवसाय, धार्मिक कट्टरपंथि, नर्तक, शराब का व्यापारी आदि विषयोंमें रूचि रखनेवाले हो सकते है।

*१७) अनुराधा-* 
नक्षत्र- अनुराधा, नक्षत्र देवता- मित्र , नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नागकेशर, नक्षत्र पर्याय वृक्ष-  बकुल ( मोलसिरि),  नक्षत्र चरणाक्षर- ना,नि,नू,ने .  नक्षत्र प्राणी- हिरन ,  नक्षत्र तत्व- पृथ्वी ,  नक्षत्र स्वभाव- सत्व ,   नक्षत्र गण- देव
जन्म नक्षत्रफल:-   जो अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेता है वह धनवान, विदेश वासी या विदेश से लगाव रहनेवाला, अधिक भूक से बाधित, और सदा घूमनेवाला, प्रयाणप्रिय !
नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय :-  कलाकार, संगीतकार, व्यवसाय प्रबंधन, पर्यटन उद्योग, दंत चिकित्सक, आपराधिक वकील, खनन इंजीनियर, वैज्ञानिक, सांख्यिकीविद्, गणितज्ञ, मानसिक माध्यम, ज्योतिषि, जासूस, फोटोग्राफर, सिनेमा, उद्योगपति, सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, खोजकर्ता, राजनयिक, विदेशी देशों से जुड़े व्यवसाय समूह की गतिविधि संगठन / संस्था के कार्यकारी।

*१८) जेष्ठा-* 
नक्षत्र- जेष्ठा, नक्षत्र देवता- इंद्र, नक्षत्र स्वामी- बुध,  नक्षत्र आराध्य वृक्ष- सांबर ( खजूर) ,  नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बेतस, नक्षत्र चरणाक्षर- नो,या,यी,यु .  नक्षत्र प्राणी- हिरन ,  नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- तम, नक्षत्र गण- राक्षस.
जन्म नक्षत्रफल:-  मित्रों की संख्या कम रहनेवाला , अर्थात कम-कम से मित्रता करनेवाला, सदा आनंद से परिपूर्ण, धर्म मार्ग से चलनेवाला, और गरम मिजाजवाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ :-  संगीतकार, सैन्य नेता, राजनेता, पुलिस जासूस, इंजीनियर, प्रबंधक, दार्शनिक, बुद्धिजीवी, स्वरोजगार, सरकारी अधिकारि, प्रशासनिक पद, पत्रकार, रेडियो और टीवी कमेंटेटर, टॉक शो होस्ट, अभिनेता,फायरब्रिगेड, माफिया, वन रेंजर, साल्वेशन आर्मी के साथ व्यवसाय, शारीरिक श्रम, एथलीट, हवाई यातायात नियंत्रण, रडार, सर्जन।

*१९) मूल-* 
नक्षत्र- मूळ, नक्षत्र देवता- निॠति (राक्षस),  नक्षत्र स्वामी- केतु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- राळ, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- बबूल, नक्षत्र चरणाक्षर- ये,यो,भा,भी .  नक्षत्र प्राणी- कुत्ता ,  नक्षत्र तत्व- जल,  नक्षत्र स्वभाव- तम,  नक्षत्र गण- राक्षस।
जन्म नक्षत्रफल:-  धनवान सम्मानित सुखी मनुष्य, परजन हिंसा से बाधित , स्थिर स्वभाववाला और सुख का अनुभाग लेनेवाला।
नक्षत्र से जुडी वृत्ति :-  व्यापार, बिक्री, डॉक्टर, फार्मासिस्ट, दार्शनिक, सार्वजनिक वक्ता, विवादकर्ता, प्रचारक, लेखक, वकील, राजनेता, आध्यात्मिक शिक्षक, चिकित्सक, औषधि माहिर, दंत चिकित्सक, दवा पुरुष, मनोचिकित्सक, संन्यासि, पुलिस अधिकारि, जांचकर्ता, सैनिक, आनुवंशिक शोधकर्ता, खगोल विज्ञानी , ताबूत बनानेवाला, रॉक संगीतकार, तांत्रिक अध्ययन, खनन उद्योग, विनाशकारी गतिविधि से संबंधित।

*२०) पूर्वाषाढा-* 
नक्षत्र- पूर्वाषाढा,  नक्षत्र देवता- जल, नक्षत्र स्वामी- शुक्र, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- वेत, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- गिलोय
नक्षत्र चरणाक्षर- भू,ध,प,ढ. नक्षत्र प्राणी- वानर,  नक्षत्र तत्व- जल ,  नक्षत्र स्वभाव- रज,  नक्षत्र गण- मनुष्य .
जन्म नक्षत्रफल:-  सुन्दर-सुशिल सदा आनंद में रहनेवाली स्त्री का पति , अर्थात मनचाही पत्नी के साथ रहनेवाला, सम्मानित और अचल स्नेह-दया से परिपूर्ण।
नक्षत्र से जुड़े कार्य:-  नेता, वकील, सार्वजनिक वक्ता, प्रेरक वक्ता, लेखक, अभिनेता, कलाकार, मनोरंजन, कवि, शिक्षक, पर्यटन उद्योग, विदेशी व्यापारि, शिपिंग उद्योग, नौसेना अधिकारी, समुद्री विशेषज्ञ, मत्स्य उद्योग, मनोचिकित्सक, कच्चे माल का उद्योग, पानी और तरल पदार्थ से सम्बंधित  व्यवसाय, रिफाइनर, युद्ध रणनीतिकार, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, हेयर स्टाइलिस्ट, वैद्यों के लिए करना।

*21) उत्तराषाढा-* 
नक्षत्र- उत्तराषाढा,  नक्षत्र देवता- विश्वदेव, नक्षत्र स्वामी- रवि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- कटहल,  नक्षत्र पर्याय वृक्ष- कांचन, नक्षत्र चरणाक्षर- भे, भो,जा,जी,   नक्षत्र प्राणी- मुंगुस,  नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- स्थिर नक्षत्र गण- मनुष्य।
जन्म नक्षत्र फल :-  धार्मिक देवभक्त, विनय गुण से संपन्न,भारी मात्रा में मित्र और अपने लोगोंमे रहनेवाला, कृतज्ञ और सुन्दर दिखनेवाले होते है।
नक्षत्र से जुड़े व्यापार;- बड़ी जिम्मेदारी और नैतिक प्रकृति, से सम्बंधित, वैज्ञानिक, सैन्य कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, सरकारी कर्मचारी, प्रचारक, पुजारि, सलाहकार, ज्योतिषि, वकील, न्यायाधीश, मनोवैज्ञानिक, घोड़े का व्यवसाय, खोजकर्ता, पहलवान, एथलीट, शिकारी, मुक्केबाज, व्यापार के अधिकारि के व्यवसाय , प्राधिकरण के आंकड़ों का व्यवसाय, सुरक्षा कर्मि, समग्र चिकित्सक।

*२२) श्रवण-* 
नक्षत्र- श्रवण, नक्षत्र देवता- विष्णु, नक्षत्र स्वामी- चंद्र,  नक्षत्र आराध्य वृक्ष- अर्क ,( दूधिया पौधा)  नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आम ,  नक्षत्र चरणाक्षर- शी,शू,शे,शो.  नक्षत्र प्राणी- वानर,  नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- चर,  नक्षत्र गण- देव।
जन्म नक्षत्रफल:-  धनवान हर तरह के आनंद से परिपूर्ण , वेद-शास्त्र का ज्ञाता, बड़े दिलवाला ,अपने परिवार जन के साथ प्रेम से रहनेवाला और प्रसिद्ध व्यक्ति कहलानेवाला !
नक्षत्र से जुड़े कार्य:- शिक्षक, भाषाविद्, भाषण चिकित्सक, भाषा अनुवादक, कथाकार  धार्मिक विद्वान, शिक्षक, नेता, शोधकर्ता, भूविज्ञानी, टेलीफोन ऑपरेटर, प्राचीन परंपरा का शोधकर्ता, हास्य अभिनेता, संगीत उद्योग, समाचार प्रसारक, टॉक शो होस्ट, सलाहकार, मनोचिकित्सकों के संरक्षण, मनोवैज्ञानिक, ज्योतिषि, रेडियो ऑपरेटर, परिवहन, पर्यटन, होटल और रेस्तरां उद्योग, चिकित्सक, समग्र चिकित्सा, दान कार्यकर्ता।

*२३) धनिष्ठा-* 
नक्षत्र- धनिष्ठा, नक्षत्र देवता- वसु, नक्षत्र स्वामी- मंगळ, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- शमी, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- नीम
नक्षत्र चरणाक्षर- गा,गी,गू,गे.  नक्षत्र प्राणी- सिंह,  नक्षत्र तत्व- पृथ्वी, नक्षत्र स्वभाव- शुभ , नक्षत्र गण- राक्षस.
जन्म नक्षत्रफल:- दान-धर्म करनेवाला, शूरता से धन कमानेवाला परंतु लोभी अर्थात  अनुभोग की अपेक्षा करनेवाला, संगीत प्रेमी और धनवान कहलानेवाला होगा !
नक्षत्र से जुडी वृत्ति:-  संगीतकार, नर्तकी, कलाकार, डॉक्टर, सर्जन, रियल एस्टेट एजेंट, संपत्ति प्रबंधन, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, भौतिक विज्ञानी, इंजीनियरिंग, खनन, धर्मार्थ कार्यकारी , कवि, मनोरंजन, व्यापार, गीतकार, संगीत वाद्ययंत्र, गायक, मणि डीलर के निर्माता, एथलीट, समूह समन्वयक, ज्योतिषि, समग्र चिकित्सक।

*२४) शततारका-* 
नक्षत्र- शततारका, नक्षत्र देवता- वरुण, नक्षत्र स्वामी- राहु, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- कदंब, नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आपटा
नक्षत्र प्राणी- घोडा, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र स्वभाव- चर, नक्षत्र चरणाक्षर- गो,सा,सी,सू.  नक्षत्र गण- राक्षस.
जन्म नक्षत्रफल:-  स्पष्टतासे सामने से बोलनेवाला, अच्छे-बुरे आदत से पीड़ित, अपने धैर्य से शत्रु का संहार करनेवाला अर्थात शत्रु पर विजय प्राप्त करनेवाला और किसी के हाथ नहीं आने वाला।
नक्षत्र से संबंधित व्यवसाय:- चिकित्सक, सर्जन, एक्स-रे तकनीशियन, खगोल विज्ञानी, ज्योतिषि, इंजीनियर, वैमानिकी, अंतरिक्ष इंजीनियर, पायलट, परमाणु विज्ञानि, शोधकर्ता, बिजली, लेखक, सचिव, फिल्म और टेलीविजन, दवा, जड़ी बूटियों का कार्य कर्ता, ड्रग डीलर, अपशिष्ट निपटान, प्लास्टिक और पेट्रोलियम, ऑटोमोबाइल उद्योग, अन्वेषक।

*२५) पुर्वाभाद्रपदा-* 
नक्षत्र- पुर्वाभाद्रपदा, नक्षत्र देवता- अजैक चरण, नक्षत्र स्वामी- गुरू, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- आम , नक्षत्र पर्याय वृक्ष- हिरडा,  नक्षत्र चरणाक्षर- से,सो,दा,दी.  नक्षत्र प्राणी- सिंह, नक्षत्र तत्व- अग्नी, नक्षत्र स्वभाव- सत्व           नक्षत्र गण- मनुष्य।
जन्म नक्षत्रफल:- दुःख से चिंतित रहनेवाला, स्त्रीवश, धनिक, दान देने में समर्थ कहलानेवाला और दान-धर्म करनेवाला कहलाएगा।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियां:- व्यापार, प्रशासन, संख्याकोविद ,ज्योतिषी, पुजारी, तपस्वी, ताबूत निर्माताओं, कब्रिस्तान के रखवाले, सर्जन, चिकित्सक, मनोचिकित्सक, कट्टरपंथि, कण, हॉरर या रहस्य कहानिकार, हथियार निर्माता, काला जादू, चमड़ा उद्योग के लेखक, हत्या जासूस, धातु उद्योग, आग, विषाक्त पदार्थों का व्यवसाय।

*२६) उत्तराभाद्रपदा-* 
नक्षत्र- उत्तराभाद्रपदा,  नक्षत्र देवता- अहिर्बुधन्य, नक्षत्र स्वामी- शनि, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- नीम
नक्षत्र पर्याय वृक्ष- आमला ,  नक्षत्र चरणाक्षर-,  नक्षत्र प्राणी- गाय, नक्षत्र तत्व- जल, नक्षत्र गण-  मनुष्य,  नक्षत्र स्वभाव- रज।
जन्म नक्षत्रफल:-  जिनका जन्म इस नक्षत्र में होता है वह व्यक्ति अधिक बोलनेवाले,सुखी, शत्रुपर विजय प्राप्त करनेवाले होंगे तथा धर्म पर निष्ठा रखकर  अपने पुत्र ,परिवार के साथ आनंद से रहेंगे।
नक्षत्र से जुड़े व्यवसाय:-  दार्शनिक, लेखक, शिक्षक, धर्मार्थ कार्य, आयात या निर्यात काम, पर्यटन उद्योग, धार्मिक कार्य, ज्योतिषि, योग और ध्यान के विशेषज्ञ, परामर्शदाता, चिकित्सक, आरोग्य, तांत्रिक व्यवसायी, साधु, संगीतकार, रात का चौकीदार, इतिहासकार, पुस्तकालय, विरासत पर रहने वाले लोगों के साथ रहना इत्यादि।

*२७) रेवती-* 
नक्षत्र- रेवती, नक्षत्र देवता- पूषा, नक्षत्र स्वामी- बुध, नक्षत्र आराध्य वृक्ष- मोह ( मधुक ), नक्षत्र पर्याय वृक्ष- जेष्ठमध या इमली ,  नक्षत्र चरणाक्षर- दे,दो,चा,चि, नक्षत्र प्राणी- हाथी ,  नक्षत्र तत्व- जल नक्षत्र स्वभाव- मृदु  नक्षत्र गण- देव।
जन्म नक्षत्रफल:-  सदा साफ सुतरा रहना पसंद करनेवाले, धैर्य और शौर्यता को प्रदर्शन करनेवाले धनि बनेंगे इनका शरीर भी मजबूत होगा।
नक्षत्र से जुडी वृत्तियाँ:-  धर्मार्थ कार्य, शहरी योजनाकार, सरकारी कर्मचारि, मनोविज्ञान, रहस्यमय या धार्मिक कार्य, कृत्रिम निद्रावस्था में लानेवाला, ट्रैवल एजेंट, विमान परिचारिका, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, अभिनेता, हास्य कलाकार, राजनेता, चित्रकार, संगीतकार, मनोरंजन, भाषाविद्, जादूगर,सड़क योजनाकार, ज्योतिषि, प्रबंधक, रत्न डीलर, शिपिंग उद्योग, अनाथालय या पालक की देखभाल, ड्राइविंग व्यवसाय, हवाई यातायात नियंत्रण, यातायात पुलिस, प्रकाश घर के काम से सम्बंधित हो सकते है।
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Tuesday, August 03, 2021

olympic medal ? secret to happiness

#Olympicmusings

Have you noticed that a bronze medalist is generally more happy than a silver medalist at the end of the game.

Its not incidental finding but proven fact in many research studies after studying reactions of silver medalists vs bronze medalists! 

Ideally, a silver medalist should be more happy than the bronze. But, human mind doesn't work like mathematics. 

This happens because of phenomenon of counterfactual thinking. 

A concept in psychology in which there is human tendency to create possible alternatives to life events that have already happened, that would be contrary to what happened.

Sliver medalist thinks, "Oh I couldn't win the gold medal." Bronze medalist thinks, "At least I got a medal."

Silver medal is won after losing, but Bronze medal is won after Winning.

This happens in our life also, we don't appreciate what we have but feel sad with what we don't have. Let's be grateful for our blessings, they far outweigh our problems if we start counting.

Friday, May 21, 2021

100 उपाय अच्छे स्वास्थ्य के 100 tips to good health

*आरोग्य निधि*
दूध ना पचे तो ~ सोंफ
दही ना पचे तो ~ सोंठ
छाछ ना पचे तो ~जीरा व काली मिर्च
अरबी व मूली ना पचे तो ~ अजवायन
कड़ी ना पचे तो ~ कड़ी पत्ता,
तैल, घी, ना पचे तो ~  कलौंजी...
पनीर ना पचे तो ~ भुना जीरा,
भोजन ना पचे तो ~ गर्म जल
केला ना पचे तो  ~ इलायची             
ख़रबूज़ा ना पचे तो ~ मिश्री का उपयोग करें...

1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।
2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।
3. हाई वी पी में -  स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
4. लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।
6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं 
7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।
8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।
9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।
10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।
11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी ।
12. जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें,  लोटे का कम  सर्फेसटेन्स होता है ।
16. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
17. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
18. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
19. पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है । 
20. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।
21. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
22. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है । 
23. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
24. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
25. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
26. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है । 
27. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
28. वात के असर में नींद कम आती है ।
29. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
30. कफ के असर में पढाई कम होती है ।
31. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।
33. आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
34. शाम को वात -नाशक चीजें खानी चाहिए ।
35. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए ।
36. सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।
37. व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
38. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
39. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।
40. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास(लंघन) से बुखार शांत होता है ।
41. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
42. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों , 
43. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
44. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
45.छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।
46. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
47.मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए । 
48.सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
49. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है । 
50.भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें । 
51. अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है 
52. पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
53. छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
54.रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
55.  हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
56. एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
57. ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें । 
58. मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
59. अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
60. चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है । 
61. दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
62. गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।
63. जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए 
64. गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।
65. गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है।
66.मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे  गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
67.रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।
68.भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।
69.भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
70.अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है 
71.अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें 
72. कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए । 
73. रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए । 
74. जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।
75. बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
76.स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
77.भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
78.सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दही व रात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए । 
79. रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि । 
80. शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें । 
81.मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए । 
82. जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।
83. जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।
84.एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है । 
85. खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है । 
86 .रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग । 
87 .छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए 
88. जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है । 
89.बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं । 
90. चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।
91.गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।
92. प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती  है ।
93. रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा 
94. दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए।
95.जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है । 
96.सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।।
97.स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है।।
98 .तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है 
99. त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं , इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना ।।
100. इस विश्व की सबसे मँहगी दवा लार है , 
जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,
इसे ना थूके।।
#naturopathy #astrorrachita

Monday, May 10, 2021

SPECIAL RELATIONSHIP Love & Sex MOMENTS WITH YOUR SOULMATE #JOTTINGS Stand for the truth #love #sex #chakras #union by Author Rrachita

SPECIAL RELATIONSHIP MOMENTS WITH YOUR SOULMATE 11 aug 2019 #JOTTINGS 

Stand for the truth #love #sex #chakras #union 
When you open up via your sacral to the truth of the divinity, you also should stand up for the truth within you. Your partner may be inhabiting a different body but when you allow him to enter your sacred canal, you are allowing all his past experiences and DNA imprints too. Its not casual, its deep and chemically stirring union. Be careful of what adulteration you bring inside your system. Take time out before the union to unite at levels of honesty and full disclosure. If any experience of his bothers you from surrendering totally, its within your moral right to want to discuss it freely and candidly with your partner. Candour is definitely a 2 way street and unless you open out your heart to each other and more importantly the throat chakras are speaking the truth without any fear how can complete union even occur. Say the truth with confidence, citing your reason for why you did something , explaining the reasons and context to your partner. In tantra since the partner accepts you as a soul consort, it will be his/duty also to accept you after the truth is spoken.  Soul baggage needs to be unburdened before the cosmic union. Fear and hesistation have no place in such a union. And if you have a fear of being judged for your past actions then you have no business seeking such a high vibration union. Thats why foreplay in tantra union begins with the forehead uniting, then the heart chakras and finally the sacral. The intellect, the heart and then the sexual unions take place. To be transparent in front of your partener requires courage and a divine strength. Clothes are only the outer covering, its the ability to look into each others eyes unflinchingly, baring your soul for the other and saying your innermost fears and dreams that can make the explosion occur.