Tuesday, November 03, 2020

करवा चौथ नवंबर 4, 2020

करवा चौथ नवंबर 4, 2020 विशेष
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती  है। 

करवा चाैथ पर इस वर्ष बुध के साथ सूर्य ग्रह भी विद्यमान होंगे, दोनों की युति बुधादित्य योग बनाएगी। इसके अलावा इस दिन शिवयोग के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि, सप्त कीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि में चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो रही है, जबकि इस तिथि का अंत मृगशिरा नक्षत्र में होगा।
पहली बार करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत अच्छा है।

करवा चौथ महात्म्य
〰️〰️🔸🔸〰️〰️
छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।

महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।

सरगी का महत्त्व
〰️〰️〰️〰️〰️
करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।

महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि   
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇

कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। 

व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।

करवा चौथ पूजन विधि
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।
व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 

'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'

अथवा👇
ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 
'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 
'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 
'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।

शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।
भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।
सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।

करवा चौथ प्रथम कथा 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

करवाचौथ द्वितीय कथा 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।

परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।

करवा चौथ तृतीय कथा 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

करवाचौथ चौथी कथा 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।

पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।

एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।

पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 4 नवंबर को 13 घंटे 35 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 35 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।

चतुर्थी तिथि आरंभ- 03:23 सायं (04 नवंबर)

चतुर्थी तिथि समाप्त- 05:12 प्रातः (5 नवंबर)

चंद्रोदय- 08:12 रात्री

पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.33 से 6.51 शाम तक।

करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:12 बजे से 8:51 तक है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। 

चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य  करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।

"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"

इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।

सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मेष राशि👉  मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।  

वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी। 

मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।  

कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा। 

सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है। 

कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।

तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा। 

वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा। 

धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।  

मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी। 

कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी। 

मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।

WWW.ASTRORRACHITA.IN 
91.9958067960
Acharya Rrachita 
Acharya Shailender ji

Tuesday, August 11, 2020

नाभि NAVEL में तेल OIL डालने से फायदे

नाभि शरीर का केंद्र बिंदु होता है। ह र रात सोने से पहले अगर आप मात्र दो बूंद तेल भी नाभि में डालते हैं तो सेहत के कई आश्चर्यजनक फायदे मिल सकते हैं। यह त्वचा, प्रजनन, आंखों और मस्तिष्क के लिए अत्यंत उपयोगी है। आइए जानते हैं नाभि में तेल डालने से क्या और कौन से फायदे मिलते हैं... 

नाभि में रोजाना तेल लगाने से फटे हुए होंठ नर्म और गुलाबी हो जाते हैं।
 
-इससे आंखों की जलन, खुजली और सूखापन भी ठीक हो जाता है।
 
-नाभि में तेल लगाने से शरीर के किसी भी भाग में सूजन की समस्या खत्म हो जाती है। 
 
-सरसों का तेल नाभि पर लगाने से घुटने के दर्द में राहत मिलती है।
 
-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारे चेहरे की रंगत बढ़ जाती है, इसलिए आपको रोजाना नाभि पर सरसो तेल लगाना चाहिए।

नाभि पर सरसो तेल लगाने से पिंपल्स और दाग-धब्बे ठीक होते है।
 
-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारा पाचन तंत्र भी मजबूत होता है।
 
- बादाम का तेल लगाने से त्वचा की रंगत निखर जाती है। 
 
- नाभि में तेल लगाने से पेट का दर्द कम होता है। 
 
-इससे अपच, फ़ूड पॉइजनिंग, दस्त, मतली जैसी बीमारियों से भी राहत मिलती है। 
 
-इस तरह की समस्याओं के लिए पिपरमिंट आइल और जिंजर आइल को किसी अन्य तेल के साथ पतला करके नाभि में लगाना चाहिए। 
 
- अगर आप मुहांसों की समस्या से परेशान हैं तो आपको नीम के तेल को नाभि में लगाना चाहिए। इससे आपके कील-मुहांसे दूर होने लगेंगे। 
 
-अगर आपके चेहरे पर कई तरह के दाग की समस्या है तो नीम का तेल नाभि में डालने से ये दाग दूर होंगे। नाभि में लेमन आयल लगाने से भी दाग धब्बे भी दूर होते हैं। 
 
-नाभि प्रजनन तंत्र से जुड़ी हुई होती है। इसलिए नाभि में तेल लगाने से प्रजनन क्षमता विकसित होती है। 
 
- कोकोनट या ऑलिव आइल को नाभि में लगाने से महिलाओं के हार्मोन संतुलित होते हैं और गर्भधारण की संभावना बढ़ती है। 
नाभि में तेल लगाने से पुरुषों के शरीर में शुक्राणुओं की वृद्धि और सुरक्षा होती है। 
 
- माहवारी से संबंधित समस्याओं से आजकल हर दूसरी-तीसरी महिला ग्रस्त मिलती है। अगर पीरियड्स के दौरान ज्यादा दर्द हो तो रूई के फाहे में थोड़ी सी ब्रांडी लगाकर नाभि में लगाने से ये दर्द तुरंत दूर हो जाता है।  
 
नाभि की नियमित रूप से सफाई बहुत जरूरी है इसके लिए कुसुम, जोजोबा, ग्रेप्स सीड, या इसी तरह के अन्य हल्के तेलों को रूई में लगाकर नाभि में लगायें और धीरे-धीरे मैल साफ़ करें।

नाभि में मौजूद मैल के कारण बैक्टीरिया और फंगस के पनपने की संभावना होती है। इसलिए कोई भी संक्रमण बढ़ सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि आप संक्रमण को दूर करने वाले असरदार तेलों का प्रयोग करके नाभि को नम बनाकर रखें। इन तेलों में टी ट्री आइल और मस्टर्ड आइल सबसे असरदार हैं।

Compiled WWW.ASTRORRACHITA.IN 
09958067960

Sunday, July 12, 2020

तुलसी की दो सेवायें

तुलसी की दो सेवायें हैं
 
प्रथम सेवा -
तुलसी की जड़ो में प्रतिदिन जल अर्पण करते रहना !केवल एकादशी को छोड़ कर। 

द्वितीय सेवा तुलसी की मंजरियों को तोड़कर तुलसी को पीड़ा मुक्त करते रहना ,क्योंकि ये मंजरियाँ तुलसी जी को बीमार करके सुखा देती हैं !जब तक ये मंजरियाँ तुलसी जी के शीश पर रहती हैं , तब तक तुलसी माता घोर कष्ट पाती हैं !

इन दो सेवाओं को ...
 श्री ठाकुर जी की सेवा से कम नहीं माना गया है !   
 इनमें कुछ सावधानियाँ रखने की आवश्यक्ता है !

जैसे तुलसी दल तोड़ने से पहले तुलसी जी की आज्ञा ले लेनी चाहिए !
 सच्चा वैष्णव बिना आज्ञा लिए तुलसी दल को स्पर्श भी नहीं करता है !

 रविवार और द्वादशी के दिन तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए , तथा कभी भी नाखूनों से तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए ! न ही एकादशी को जल देना चाहिये क्यो की इस दिन तुलसी महारानी भी ठाकुर जी के लिये निर्जल व्रत रखती हैं। ऐसा करने से महापाप लगता है !

कारण -- तुलसीजी श्री ठाकुर जी की आज्ञा से केवल इन्ही दो दिनों विश्राम और निंद्रा लेती हैं !
बाकी के दिनों में वो एक छण के लिए भी सोती नही हैं और ना ही विश्राम लेती हैं !
 आठों पहर ठाकुर जी की ही  सेवा में लगी रहती हैं !!

 रचिता गुप्ता रवेरा
WWW.ASTRORRACHITA.IN

Monday, June 29, 2020

Ayurveda tips for Teeth & Gums to be healthy shiny

जाने दांतो का इलाज करने वाले आयुर्वेदिक दंतमंजन के बारे में, जिन्हें आप खुद अपने घर पर ही बना सकते हो।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
सेंधा नमक
〰️〰️〰️
 पिसा हुआ सेंधा नमक को दांतों पर मलते रहने से दांत जड़ों से मजबूत होते हैं। सेंधा नमक दांतों में जमी गंदगी को दूर करता है साथ ही कैमिकल रूप से जमें हुए एसिड़ को भी खत्म करता है।

नींबू का मंजन बनाने का तरीका
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
नींबू को आप छाया में सुखा लें फिर इन्हें कूट लें और पाउडर तैयार करें। इस पाउडर को आप दांतों पर मंजन करें। यह दांतों को मोती जैसी चमक दिलवाता है।

बादाम का मंजन कैसे बनाएं
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
बादामों के छिलकों को जलाकर उन्हें पीस लें और उसमें थोड़ा सेंधा नमक डालकर मंजन बना लें। इस मंजन के प्रयोग से दांतों की चमक बढ़ती है।

आम का पत्तों का मंजन
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
आम के ताजे पत्तों को चबा-चबा कर खाएं और थूकते रहें। नियमित रूप से कुछ दिनों तक करते रहने से दांत जड़ से मजबूत हो जाते है। यदि आम के पत्तों को छांव में सुखाकर उन्हें जला लें फिर उसका चूर्ण बनाकर दांतों पर लगाने से दांतों की उम्र लंबी होती है।

 बेकिंग सोडा
〰️〰️〰️〰️
सेंधा नमक, बेकिंग सोडा, सिरका के साथ फिटकरी को मिला कर दांतों पर मंजन के तौर पर प्रयोग करें।

नारियल का तेल
〰️〰️〰️〰️〰️
कुल्ला तेल से करें यह प्राचीन समय का नुस्खा है जो दांतों की गंदगी को दूर करता है। नारियल तेल से कुल्ला करने से दांत साफ होते हैं।
कुछ देर तक कुल्ला करने के बाद दांतों को मुलायाम और सूखे ब्रश से दांतों को साफ करना चाहिए।

प्राकृतिक तेल का प्रयोग
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
दांतों के लिए पुदीने का तेल, दालचीनी का तेल, लौंग का तेल आदि एंटीबैक्टीरियल हैं जिनका इस्तेमाल दांतों की सफाई के रूप में किया जा सकता है।

सरसों का तेल
〰️〰️〰️〰️
दांतों को जड़ से मजबूत करने में सरसों का तेल का प्रयोग करना चाहिए यह भी एक प्राचीन उपाय है। सरसों के तेल में नमक, हल्दी को मिलाकर डेली दांत मांजने चाहिए।

मिट्टी का प्रयोग
〰️〰️〰️〰️〰️
चिकनी मिट्टी को रात को पानी में भिगो कर रखें और सुबह और शाम मसूड़ों पर लगाते रहने से थोड़े ही दिनों में आपके दांत मजबूज हो जाएगें।
यदि मसूड़ों में दर्द और सूजन है तो एलोवेरा और हल्दी का पाउडर को मिलाकर बना हुआ पेस्ट को मसूड़ों पर लगाने से मसूड़े ठीक होते हैं।
पानी से भी ब्रश कर सकते हो। एैसा करने से दांत में फंसे खाने को आराम से निकाला जा सकता है।

दालचीनी 
〰️〰️〰️
दालचीनी मुंह की बदबू को कम करती है साथ ही मुंह में किसी तरह के कीड़े को नहीं लगने देती है। दालचीनी पूरी तरह से एंटी बैक्टीरियल है।

जीरा
〰️〰️
जीरे को हल्की आग में सेक लें और इसका नित्य सेवन करें। यह मुंह की दुर्गन्ध को कुछ ही दिनों में जड़ से खत्म कर देगा।

इन आसान तरीकों से आप अपने घर में ही प्राकृतिक दांतमंजन बना सकते हो। यदि दांत ठीक हैं तो आपकी सेहत भी ठीक हैं।

WWW.ASTRORRACHITA.IN 
Acharya Rrachita Gupta +919958067960

Sunday, May 17, 2020

कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है

आरती, भजन अथवा कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है...????? 
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
हम अक्सर ही यह देखते है कि जब भी आरती, भजन अथवा कीर्तन होता है तो, उसमें सभी लोग तालियां जरुर बजाते हैं!

लेकिन, हममें से अधिकाँश लोगों को यह नहीं मालूम होता है कि.... आखिर यह तालियां बजाई क्यों जाती है?????

इसीलिए हम से अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने-समझे ही तालियां बजाया करते हैं क्योंकि, हम अपने बचपन से ही अपने बाप-दादाओं को ऐसा करते देखते रहे हैं!

हमारी आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जिस प्रकार व्यक्ति अपने बगल में कोई वस्तु छिपा ले और, यदि दोनों हाथ ऊपर करे तो वह वस्तु नीचे गिर जायेगी।

ठीक उसी प्रकार जब हम दोनों हाथ ऊपर उठकर ताली बजाते है। तो, जन्मो से संचित पाप जो हमने स्वयं अपने बगल में दबा रखे है, नीचे गिर जाते हैं अर्थात नष्ट होने लगते है!

कहा तो यहाँ तक जाता है कि जब हम संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ ऊपर उठा कर ताली बजाना) में काफी शक्ति होती है। और, संकीर्तन से हमारे हाथो की रेखाएं तक बदल जाती है!

परन्तु यदि हम आध्यात्मिकता की बात को थोड़ी देर के छोड़ भी दें तो

एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को हाथों में पूरे शरीर के अंग व प्रत्यंग के दबाव बिंदु होते हैं, जिनको दबाने पर सम्बंधित अंग तक खून व ऑक्सीजन का प्रवाह पहुंचने लगता है... और, धीरे-धीरे वह रोग ठीक होने लगता है।

और, यह जानकार आप सभी को बेहद ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य होगा कि इन सभी दबाव बिंदुओं को दबाने का सबसे सरल तरीका होता है ताली!

असल में ताली दो तीन प्रकार से बजायी जाती है:-

1👉  ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि ....दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आए!

इस प्रकार की ताली से बाएं हथेली के फेफड़े, लीवर, पित्ताशय, गुर्दे, छोटी आंत व बड़ी आंत तथा दाएं हाथ की अंगुली के साइनस के दबाव बिंदु दबते हैं... और, इससे इन अंगों तक खून का प्रवाह तीव्र होने लगता है!

इस प्रकार की ताली को तब तक बजाना चाहिए जब तक कि, हथेली लाल न हो जाए!

इस प्रकार की ताली कब्ज, एसिडिटी, मूत्र, संक्रमण, खून की कमी व श्वांस लेने में तकलीफ जैसे रोगों में लाभ पहुंचाती है

2 थप्पी ताली👉 ताली में दोनों हाथों के अंगूठा-अंगूठे से कनिष्का-कनिष्का से तर्जनी-तर्जनी से यानी कि सभी अंगुलियां अपने समानांतर दूसरे हाथ की अंगुलियों पर पड़ती हो, हथेली-हथेली पर पड़ती हो.!

इस प्रकार की ताली की आवाज बहुत तेज व दूर तक जाती है!

एवं, इस प्रकार की ताली कान, आंख, कंधे, मस्तिष्क, मेरूदंड के सभी बिंदुओं पर दबाव डालती है!

इस ताली का सर्वाधिक लाभ फोल्डर एंड सोल्जर, डिप्रेशन, अनिद्रा, स्लिप डिस्क, स्पोगोलाइसिस, आंखों की कमजोरी में पहुंचता है!

एक्यूप्रेशर चिकित्सकों की राय में इस ताली को भी तब तक बजाया जाए जब तक कि हथेली लाल न हो जाए!

इस ताली से अन्य अंगों के दबाव बिंदु सक्रिय हो उठते हैं तथा, यह ताली सम्पूर्ण शरीर को सक्रिय करने में मदद करती है!

यदि इस ताली को तेज व लम्बा बजाया जाता है तो शरीर में पसीना आने लगता है ...जिससे कि, शरीर के विषैले तत्व पसीने से बाहर आकर त्वचा को स्वस्थ रखते हैं।

और तो और ताली बजाने से न सिर्फ रोगों से रक्षा होती है, बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है!

जिस तरह कोई ताला खोलने के लिए चाबी की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह कई रोगों को दूर करने में यह ताली ना सिर्फ चाभी का ही काम नहीं करती है बल्कि, कई रोगों का ताला खोलने वाली होने से इसे ""मास्टर चाभी"" भी कहा जा सकता है।

क्योंकि हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं एवं, स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है!

इस तरह ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है और, यदि प्रतिदिन यदि नियमित रूप स क्योंकि हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं एवं, स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है!

इस तरह ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

Monday, May 04, 2020

*मंगल का कुम्भ राशि में गोचर और प्रभावी उपाय (4 मई, 2020)*

*मंगल का कुम्भ राशि में गोचर और प्रभावी उपाय (4 मई, 2020)*

मंगल ग्रह 4 मई, सोमवार को रात्रि 19:59 बजे अपनी उच्च राशि मकर से निकल कर कुम्भ राशि में प्रवेश करेगा। यह मंगल के शत्रु शनि के स्वामित्व की राशि है। मंगल एक अग्नि तत्व प्रधान ग्रह है और कुम्भ एक वायु तत्त्व की राशि है। इस प्रकार एक अग्नि तत्त्व प्रधान ग्रह का प्रवेश वायु तत्व प्रधान राशि में होगा तो वातावरण में गर्म हवाओं की वृद्धि होगी। आईये अब जानते हैं कि मंगल के कुम्भ राशि में गोचर का फल सभी बारह राशियों के लोगों को किस प्रकार प्रभावित करने वाला है।

*मंगल का कुम्भ राशि में गोचर*

यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।

मेष राशि
आपकी राशि का स्वामी मंगल आपके ग्यारहवें भाव में गोचर करेगा। यह आपकी राशि से आठवें भाव का स्वामी भी है। मंगल का गोचर आपके लिए अनुकूलताओं के द्वार खोल देगा और आपको अनेक अवसरों की प्राप्ति होगी। इस गोचर काल में मंगल आपके लिए अनेक प्रकार की आर्थिक योजनाओं को फलीभूत करेगा, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और आप धन का निवेश करके अच्छा मुनाफ़ा कमा पाएंगे। प्रॉपर्टी से भी लाभ होने के प्रबल योग बनेंगे, जिससे आप का दबदबा बढ़ेगा। कार्य क्षेत्र में आप अपने वरिष्ठ अधिकारियों के कृपा पात्र बनेंगे और आपको विशेष सुविधाएँ मिल सकती हैं। इस गोचर का नकारात्मक प्रभाव यह होगा कि आपके प्रेम जीवन में चुनौतियाँ आएँगी और संभव है कि एक दूसरे से विचार ना मिलने या मत भिन्नता होने के कारण आप दोनों में आपसी खींचतान बढ़ जाए। यदि आप शादीशुदा हैं तो संतान के लिए यह गोचर सामान्य रहेगा। हालांकि उनका स्वास्थ्य खराब हो सकता है और यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको इस गोचर के अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। आप अपने धन की बचत करने में भी सफल रहेंगे और अपने विरोधियों पर भी भारी पड़ेंगे। इस समय में किए गए आपके प्रयास आपको हर तरफ से लाभ पहुंचाएंगे और यह कहा जा सकता है कि आप जिस काम में भी हाथ डालेंगे, वही चमकने लगेगा।



वृषभ राशि
वृषभ राशि के लोगों के लिए मंगल का गोचर दशम भाव में होगा और यह आपके लिए कार्य क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ने वाला समय होगा। मंगल आपकी राशि के लिए सातवें तथा बारहवें भाव का स्वामी है। मंगल की यह स्थिति गोचर काल में आपको कार्यक्षेत्र में सिरमौर बनाएगी और आपके अधिकारों तथा कर्तव्यों के साथ-साथ वेतन में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। आपका आपके कार्यालय में दबदबा रहेगा और आपके अधिकार बढ़ेंगे, जिससे आपके साथ काम करने वाले कुछ लोग आपके विरुद्ध षड्यंत्र रच सकते हैं और आप की छवि को खराब करने का प्रयास करेंगे। इससे बचने के लिए आपको अभिमान और अति आत्मविश्वास से बचना होगा। इस गोचर के प्रभाव से आप अपने काम को ज्यादा अहमियत देंगे लेकिन शरीर को कम अहमियत देने से स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ आ सकती हैं। समस्याएं आ सकती हैं और आप थकान का अनुभव करेंगे। इस गोचर के प्रभाव से परिवार में कुछ उथल पुथल जरूर रहेगी और घर के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति आप थोड़े चिंतित रहेंगे। प्रेम जीवन के दृष्टिकोण से यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं रहेगा, इसलिए इस समय काल में अपने प्रियतम से मिलने का प्रयास कम से कम करें ताकि आपके बीच कोई विवाद ना होने पाए। आप अपने शरीर सौष्ठव पर भी ध्यान देंगे और संभव है इस समय में जिम ज्वाइन करें।

मिथुन राशि
मंगल का गोचर आपकी राशि से नवें भाव में होगा। यह आपके लिए छठे तथा ग्यारहवें भाव का स्वामी है। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि आपका तबादला हो सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपके पिताजी से आपके संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है और उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। इसके अतिरिक्त यह गोचर आपको सामान्यतः आर्थिक लाभ पहुंचाएगा, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। आमदनी बढ़ाने की दिशा में आप अधिक प्रयास करेंगे और नए अवसरों की खोज करेंगे। इस समय काल में आपको लंबी यात्राओं पर जाने का भी अवसर मिलेगा जो कि आप भविष्य में किसी खास सोच के साथ करेंगे। गोचर के प्रभाव से आपके भाई बहनों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन इससे आपकी निर्णय लेने की शक्ति प्रबल होगी और आपके आत्मबल की बढ़ोतरी होगी, जिससे कामों में सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। पारिवारिक तौर पर यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं रहेगा और आपके परिवार में विशेष रूप से माताजी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है और उनके स्वभाव में भी तल्ख़ियां बढ़ सकती हैं। मंगल का यह गोचर कठिन प्रयासों के बाद ही सफलता को इंगित कर रहा है, इसलिए आपको अधिक प्रयास करने होंगे। विरोधियों के दृष्टिकोण से यह गोचर कमजोर रहेगा और आप उन पर भारी पड़ेंगे।

कर्क राशि
कर्क राशि के अष्टम भाव में मंगल का गोचर होगा। मंगल आपके पंचम भाव अर्थात त्रिकोण तथा दशम भाव अर्थात केंद्र भाव का स्वामी होकर आपके लिए योगकारक ग्रह है, इसलिए इसका गोचर काफी महत्वपूर्ण होगा। मंगल के अष्टम भाव में गोचर करने से आपको स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। अनियमित रक्तचाप, दुर्घटना, चोट, एक्सीडेंट जैसी समस्याएं आ सकती हैं, इसलिए गाड़ी या वाहन बेहद सावधानी से चलाएँ। गुप्त तरीकों से धन प्राप्ति के रास्ते आप तलाशेंगे और आंशिक तौर पर आपको उसमें सफलता भी मिल सकती है। मंगल के गोचर के दौरान कुछ ऐसी यात्राएं करनी पड़ सकती हैं, जिनके बारे में आपने कोई विचार ना किया हो। इससे शारीरिक और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। आपके परिवार में इस गोचर से कुछ शांति का माहौल रह सकता है तथा परिवार में भाई बहनों को किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। आपके कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं के बाद सफलता दायक समय की प्राप्ति होगी। आपको कुछ भी बोलने से पहले सोच समझना होगा क्योंकि आपके ससुराल पक्ष से आपके रिश्ते बिगड़ सकते हैं। इस गोचर के प्रभाव से जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी पीड़ित होगा और आपको मानसिक चिंताएं घेरे रखेंगी लेकिन इनको खुद पर हावी न होने दें।

सिंह राशि
सिंह राशि के लोगों के लिए मंगल एक योगकारक ग्रह हैं क्योंकि यह आपके चौथे (केंद्र भाव) तथा नवें (त्रिकोण भाव) के स्वामी हैं। मंगल का गोचर आपकी राशि से सातवें भाव में होगा जो कि आपके लिए अधिक अनुकूल नहीं माना जाएगा। इस गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में तनाव और झगड़े की संभावनाएं बढ़ेंगी और आप दोनों के रिश्ते सामान्य नहीं रह पाएंगे। आपके जीवनसाथी के व्यवहार में भी आपको बदलाव देखने को मिलेगा और वे कुछ उखड़े उखड़े तथा गुस्सैल स्वभाव को लेकर आगे बढ़ेंगे, जिससे जरा जरा सी बात पर आपका रिश्ता बिगड़ सकता है। इस गोचर के प्रभाव का सकारात्मक पक्ष यह रहेगा कि व्यापार के मामले में आपको उत्तम लाभ की प्राप्ति होगी। आपके पिताजी भी इस समय अपने जीवन में अच्छे उन्नति प्राप्त करेंगे और आपके कार्यक्षेत्र में भी आप को प्रगति मिलेगी। यदि आप जॉब भी करते हैं तो आपको उन्नति मिल सकती है। इसके अतिरिक्त आपका स्वास्थ्य भी मजबूत बनेगा और स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। गोचर के प्रभाव से आप को आंशिक तौर पर धन लाभ होने की भी संभावना बनेगी। सुदूर यात्राओं से आपको अच्छा लाभ मिलेगा तथा प्रॉपर्टी संबंधित लाभ होने की भी संभावना रहेगी। हालांकि इस समय में आपकी माता जी का आपके जीवन साथी से किसी बात को लेकर झगड़ा हो सकता है, जिससे परिवार में तनाव बना रह सकता है।

कन्या राशि
आपकी राशि के लिए मंगल तीसरे तथा आठवें भाव का स्वामी होकर अधिक अनुकूल ग्रह नहीं है और यह आपकी राशि से छठे भाव में गोचर करेगा, जिसकी वजह से आपके प्रयासों में सफलता मिलेगी लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। इस समय अवधि में आप रक्त संबंधित किसी भी शारीरिक समस्या से ग्रसित हो सकते हैं। इस गोचर का अनुकूल पक्ष यह होगा कि आपको आर्थिक तौर पर कुछ मुनाफ़े की प्राप्ति होगी और आप अपने सिर पर चढ़े किसी भी प्रकार के लोन या कर्ज को चुकाने में पूरा जोर लगाएंगे और उससे आपको मुक्ति मिल सकती है। इस समय काल में आप अपने शत्रुओं पर भारी पड़ेंगे तथा यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो वह भी आपके पक्ष में आ सकता है लेकिन आपको दूसरों के ऐसे मामलों में पड़ने से बचना चाहिए, जिससे आपका कोई संबंध ना हो। आप यदि नौकरी करते हैं तो यह मंगल का गोचर आपको अच्छे परिणाम प्रदान करेगा और आपकी नौकरी में स्थिति मजबूत होगी। आपको अत्यधिक तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए तथा ठंडे पदार्थ लें, जिससे शरीर में पित्त प्रकृति शांत रह सके और आप बीमार ना हों।

तुला राशि
मंगल का गोचर तुला राशि के पांचवें भाव में आकार लेगा। मंगल आपकी राशि के लिए दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होने के कारण मारक भी है तथा पंचम भाव में मंगल का गोचर अनुकूल नहीं होता। इसी को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपकी नौकरी में कुछ बदलाव आएँगे और आप अपनी चलती हुई नौकरी को छोड़ सकते हैं और दूसरी नौकरी के लिए प्रयासरत रहेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी रहेगी लेकिन आपकी संतान को शारीरिक कष्ट हो सकते हैं। विद्यार्थियों के मामले में यह गोचर ज्यादा अनुकूल नहीं रहेगा क्योंकि यहाँ स्थित मंगल आपकी एकाग्रता को भंग करेगा और पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न करेगा। यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो प्रेम जीवन के लिहाज से भी यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं है। हालांकि कुछ विशेष स्थितियों में यह गोचर प्रेम विवाह की स्थिति भी बनाएगा। मंगल का गोचर शारीरिक रूप से आपको परेशान कर सकता है लेकिन आर्थिक तौर पर यह आपको अच्छे परिणाम देगा और आपकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। यदि आप व्यापार करते हैं तो व्यापार के मामलों में आपका दिमाग सरपट दौड़ेगा और आपकी बिज़नेस डील सक्सेसफुल रहेंगी। खर्चे आपके नियंत्रण में रहेंगे, जिससे आर्थिक तौर पर आप प्रसन्नचित्त रहेंगे।

वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के लोगों का राशि स्वामी मंगल होता है, इसलिए इसका गोचर आपके लिए काफी महत्वपूर्ण रहेगा। यह आपके छठे भाव का स्वामी भी है और मंगल का गोचर आपकी राशि से चौथे भाव में होगा, जहां इसकी स्थिति अधिक अनुकूल नहीं मानी जाती। इस स्थिति में आपको पारिवारिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। घर में लोग एक दूसरे के प्रति गुस्से की भावना रखेंगे तथा वाद-विवाद बढ़ेगा। माताजी का स्वास्थ्य कमजोर रहेगा और वे बीमार हो सकती हैं। उनके स्वभाव में भी उग्रता देखने को मिलेगी। आपको इस वजह से मानसिक रूप से अशांति महसूस होगी। इस गोचर के प्रभाव से किसी विवाद के कारण आपको सुख मिल सकता है, विशेषकर प्रॉपर्टी विवाद में सफलता मिल सकती है। इसके अतिरिक्त आप कोई नई चल व अचल संपत्ति खरीदने की दिशा में सफल हो सकते हैं। मंगल के गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में तनाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न होगी, इसलिए वाद-विवाद से दूर रहना ही बेहतर होगा। हालांकि मंगल का गोचर आपके कार्य क्षेत्र में बेहतर स्थितियों का निर्माण करेगा और आप अपने काम में मजबूत बनेंगे। आपको इस गोचर के परिणाम स्वरूप आंशिक तौर पर धन लाभ भी होगा। हालांकि आप उसको खर्च ही कर डालेंगे, जिससे स्थिति जस की तस रहेगी।

धनु राशि
धनु राशि के लोगों के लिए मंगल पंचम भाव तथा द्वादश भाव का स्वामी है। यह आपकी राशि के स्वामी बृहस्पति का परम मित्र है और गोचर के समय में आप के तीसरे भाव में प्रवेश करेगा। मंगल का गोचर तीसरे भाव में अनुकूल माना जाता है, इसलिए इस गोचर के प्रभाव से आप की ऊर्जा को पंख लगेंगे और आप अपनी कार्य कुशलता तथा तकनीकी क्षमता की बदौलत अनेक क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ देंगे। आपके प्रयासों को सफलता मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन परिणाम प्राप्त होने से आप काफी खुश रहेंगे। इस समय में आपके प्रेम जीवन में भी बहार आएगी और आपके जीवन में किसी व्यक्ति का प्रवेश हो सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपका मानसिक तनाव दूर होगा और आप स्वयं पर अधिक भरोसा करेंगे, इसलिए हर काम को स्वयं ही निपटाना चाहेंगे। इससे कामों की प्रगति में शीघ्रता होगी और आप अपनी परियोजनाओं को समय रहते निपटाने में कामयाब रहेंगे। आप अपने विरोधियों को हानि पहुंचाएंगे और उनसे बिल्कुल भी नहीं घबराएंगे। यदि आप खिलाड़ी हैं तो आपको इस गोचर का बहुत अच्छा परिणाम मिलेगा और आपकी खेल क्षमता मजबूत होगी। यात्राओं की संभावना बनेगी। हालाँकि यात्राएं आपको थोड़ा थका जरूर देंगी लेकिन आर्थिक तौर पर लाभदायक साबित होंगी। कार्यक्षेत्र के लिए भी यह गोचर अनुकूल परिणाम देने वाला साबित होगा।

मकर राशि
मकर राशि के लोगों के लिए मंगल सुख भाव अर्थात चतुर्थ तथा आय भाव अर्थात एकादश भाव का स्वामी है। मंगल का गोचर आपकी राशि से दूसरे भाव में होगा, जिससे आपकी आर्थिक उन्नति के दरवाज़े खुलेंगे और कम प्रयासों से ही आर्थिक सफलता प्राप्त होगी तथा आपका सामाजिक स्तर भी ऊंचा उठेगा। इस गोचर का कमजोर पक्ष यह है कि परिवार में तनाव देखने को मिल सकता है और आपकी वाणी में भी कुछ कड़वापन तथा गुस्सा जाहिर तौर पर दिखाई देगा, जिससे आपको कुछ परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं। प्रॉपर्टी के मामले में यह गोचर अनुकूल रहेगा और आपको उससे लाभ होगा। शिक्षा के क्षेत्र में यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं कहा जाएगा और आपकी पढ़ाई में विघ्न पड़ सकते हैं। स्वास्थ्य के मामले में भी अधिक अनुकूलता नहीं रहेगी और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से आप शीघ्र ही बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। इस समय में अधिक तेल मसाले वाला भोजन करने से बचें तथा परिवार में शांति स्थापित करने का प्रयास करें। आपके बड़े भाई बहन आवश्यकता होने पर इस समय में आपकी आर्थिक तौर पर मदद भी करेंगे, जिससे आपके रिश्ते बेहतर बनेंगे। जीवन साथी के स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिल सकती है। उनका ख़ास ख्याल रखें और आवश्यक होने पर डॉक्टर को भी दिखाएं

कुंभ राशि
मंगल का गोचर आपकी राशि से प्रथम भाव में होगा अर्थात आपकी ही राशि में मंगल का गोचर होने से आपको इस गोचर के विशेष प्रभाव मिलेंगे। मंगल आपकी राशि के लिए तीसरे और दसवें भाव का स्वामी है। इस गोचर के प्रभाव से आपके स्वभाव में विशेष परिवर्तन देखने को मिलेंगे। आप स्वभाविक रूप से कुछ गुस्से वाले तथा हठी और जिद्दी हो सकते हैं। वाहन चलाने में भी आपको सावधानी बरतनी अपेक्षित होगी। इस गोचर के प्रभाव से आपके भाई बहनों का सहयोग आपको मिलेगा तथा आप स्वयं आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। आपके कार्यक्षेत्र में भी इस गोचर का अच्छा लाभ आपको प्राप्त होगा। आप अपने काम को बड़ी ही चुस्ती और फुर्ती से समय रहते निपटाएंगे, जिससे प्रशंसा के पात्र बनेंगे। गोचर का यह प्रभाव आपके पारिवारिक जीवन को कुछ परेशान और अशांत करेगा तथा परिवार के बुजुर्गों का स्वास्थ्य पीड़ित हो सकता है, विशेषकर आपकी माताजी बीमार हो सकती हैं। इस गोचर का प्रभाव आपके दांपत्य जीवन पर भी पड़ेगा क्योंकि मंगल की सप्तम दृष्टि आपके दांपत्य भाव पर है, जिसकी वजह से कड़वे वचन और गुस्से के कारण आप दोनों में अहम का टकराव हो सकता है और इसका प्रभाव दांपत्य जीवन को पीड़ित करेगा। इस गोचर के प्रभाव से आपका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है और आप बीमार पड़ सकते हैं, इसलिए विशेष तौर पर स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने से बचें।

मीन राशि
मीन राशि के लोगों के लिए मंगल दूसरे और नवें भाव का स्वामी होता है तथा मंगल का गोचर आपकी राशि से बारहवें भाव में होगा। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको विदेशी स्रोतों से लाभ होगा और आप कार्य विशेष के लिए देश से बाहर गमन कर सकते हैं। यह गोचर विदेशी भूमि पर आपको काफी लाभ दे सकता है। इस गोचर के प्रभाव से आपके दांपत्य जीवन में कुछ चुनौतियाँ आएँगी, जिनका सामना आपको पूरी ही हिम्मत से करना चाहिए क्योंकि आप दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। इस समय में जीवन साथी का व्यवहार आप को आश्चर्यचकित कर सकता है क्योंकि आपको उनसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं होगी। यह गोचर आपके भाई बहनों के लिए भी अधिक अनुकूल नहीं रहेगा, इसलिए उनका ध्यान भी अवश्य रखें। इस गोचर के प्रभाव से आमदनी में सामान्य रूप से इज़ाफा होगा लेकिन खर्चे थोड़े बढ़ सकते हैं। हांलाकि अपने विरोधियों के प्रति आपको परेशान होने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि वह आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएँगे। आप इस समय काल में निवेश करने का विचार कर सकते हैं। आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति थोड़ा चिंतित होना चाहिए क्योंकि नेत्र संबंधित पीड़ा अथवा नींद ना आhना जैसी समस्याएं आपको l गोचर काल में परेशान कर सकती हैं।
Love, light & energy

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

Friday, April 24, 2020

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है।

*आइये जानते है कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है।* 

 *सोना* 

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

 *चाँदी* 

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

 *कांसा* 

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

 *तांबा* 

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

 *पीतल* 

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

 *लोहा* 

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

 *स्टील* 

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।

 *एलुमिनियम* 

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

 *मिट्टी* 

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।

पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है।

जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)

अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

Tuesday, March 17, 2020

हनुमान जी की उपासना Do and Don't

हनुमान जी की उपासना सम्बंधित संशय समाधान

〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
हनुमान जी की उपासना महिलाएं व पुरूष दोनों कर सकते हैं लेकिन बहुत से लोगों का मानना है की महिलाओं को हनुमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो बाल ब्रह्मचारी थे ऐसा मानना गलत है हनुमान जी के लिए सभी महिलाएं बहन, बेटी और पुत्री के समान हैं। वे अपने भक्तों में किसी भी प्रकार का लिंग भेद नहीं करते।

जब राम जी लक्ष्मण और सीता सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं।
 
हनुमान जी ने उत्सुक हो माता सीता से पूछा यह क्या है जो आप मांग में सजा रही हैं। माता सीता ने कहा यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है। इसे मांग में सजाने से मुझे राम जी का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है। यह सुन कर हनुमान जी से रहा न गया ओर उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे इससे तो मेरे प्रभु श्रीराम की आयु ओर लम्बी हो जाएगी ओर वह मुझे अति स्नेह भी करेंगे। सिंदूर लगे हनुमान जी प्रभु राम जी की सभा में चले गए।
 
राम जी ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए। राम जी ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा।
 
हनुमान जी की इस बात को सुनकर राम जी भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया। उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी प्रसन्न रहते हैं।
 
🔹महिलाएं हनुमान जी को सिंदूर नहीं चढ़ाती। वे केवल अपने पति, पुत्र और देवी मां को ही सिंदूर लगा सकती हैं। वे सिंदूर के स्थान पर लाल रंग के फूल चढ़ाएं।
 
🔹हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल लगाने से रोग, शोक और ग्रह दोष समाप्त होते हैं।
 
 🔹अपने जीवन का नियम बना लें की प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में  सिंदूर अर्पित करना ही है ऐसा करने से हनुमान जी सदा आपके अंग-संग रहेंगे और जब भी किसी काम के लिए घर से बाहर निकलने लगें तो उनके चरणों के सिंदूर को अवश्य अपने माथे पर लगाएं। ऐसा करने से अपनी बुद्धि कुशाग्र होगी और अनचाहे संकट टल जाएंगे।
 
 🔹मंगल ग्रह को अपने अनुकुल करने के लिए हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।



Monday, March 09, 2020

our moment is NOW poem

Not tomorrow.
Not later.
Not the distance future that never comes and is always moving forward.

My moment Now.

My moment is NOW to speak up. My moment is NOW to love myself.
My moment is NOW to honor my heart. My moment is NOW to love my beautiful life giving body. My moment is NOW to choose again.
My moment is NOW to believe I can. My moment is NOW to be willing. My moment is NOW to forgive. My moment is NOW to let go.
My moment is NOW to trust. My moment is NOW to believe in all that’s possible. My moment is NOW to start. My moment is NOW to stop. My moment is NOW to listen. My moment is NOW to ask.
My moment is NOW.
My moment is NOW.
My moment is NOW.
I speak it.
I live it.
I love it.
Fully.
My moment is NOW in the big and small.

My moment is NOW.

Grab the moment.
It matters.

Our moment is Now...!!!

रवींद्रनाथ के एक उपन्यास मे प्रेम क्या है

रवींद्रनाथ के एक उपन्यास में एक युवती अपने प्रेमी से कहती है कि मैं विवाह करने को तो राजी हूं, लेकिन तुम झील के उस तरफ रहोगे और मैं झील के इस तरफ।

प्रेमी की बात समझ के बाहर है। वह कहता है: तू पागल हो गई है?  
प्रेम करने के बाद लोग एक ही घर में रहते हैं।
उसने कहा कि प्रेम करने के पहले भला एक घर में रहें, प्रेम करने के बाद एक घर में रहना ठीक नहीं, खतरे से खाली नहीं। एक-दूसरे के आकाश में बाधाएं पड़नी शुरू हो जाती हैं। मैं झील के उस पार, तुम झील के इस पार। यह शर्त है तो विवाह होगा। हां, कभी तुम निमंत्रण भेज देना तो मैं आऊंगी। या मैं निमंत्रण भेजूंगी तो तुम आना। या कभी झील पर नौका-विहार करते अचानक मिलना हो जाएगा। या झील के पास खड़े वृक्षों के पास सुबह के भ्रमण के लिए निकले हुए अचानक हम मिल जाएंगे, चौंक कर, तो प्रीतिकर होगा। लेकिन गुलामी नहीं होगी। तुम्हारे बिना बुलाए मैं न आऊंगी, मेरे बिना बुलाए तुम न आना। तुम आना चाहो तो ही आना, मेरे बुलाने से मत आना। मैं आना चाहूं तो ही आऊंगी, तुम्हारे बुलाने भर से न आऊंगी। इतनी स्वतंत्रता हमारे बीच रहे, तो स्वतंत्रता के इस आकाश में ही प्रेम का फूल खिल सकता है।

एक तो साधारण प्रेम है जिसको तुम जानते हो। इस प्रेम ने तुम्हारे जीवन को नरक बना दिया है। इस प्रेम की बात नहीं कर रहा  प्रेम-पंथ ऐसो कठिन! यह तो कठिन है ही नहीं। यह तो बड़ा सरल है। दुनिया में सभी इसको सम्हाल लेते हैं। इसमें कठिनाई क्या होगी? हर घर में चल रहा है, हर परिवार में चल रहा है, हर व्यक्ति में चल रहा है। यह तो बड़ा सरल है।

इससे ऊंचा एक प्रेम होता है। उसको प्रेम में गिरना नहीं कह सकते। उसको हम कहेंगे: प्रेम में होना, बीइंग इन लव। वह बड़ी और बात है। उसका स्वभाव मैत्री का है। खलील जिब्रान ने ठीक कहा है कि सच्चे प्रेमी मंदिर के दो स्तंभों की भांति होते हैं। बहुत पास भी नहीं, क्योंकि बहुत पास हों तो मंदिर गिर जाए। बहुत दूर भी नहीं, क्योंकि बहुत दूर हों तो भी मंदिर गिर जाए।...देखते हो ये स्तंभ, जिन्होंने च्वांग्त्सु-मंडप को सम्हाला हुआ है? ये बहुत पास भी नहीं हैं, बहुत दूर भी नहीं हैं। थोड़ी दूरी, थोड़े पास। तो ही छप्पर सम्हला रह सकता है। एकदम पास आ जाएं तो छप्पर गिर जाए; बहुत दूर हो जाएं तो छप्पर गिर जाए। एक संतुलन चाहिए।

असली प्रेमी न तो एक-दूसरे के बहुत पास होते हैं, न बहुत दूर होते हैं। थोड़ा सा फासला रखते हैं, ताकि एक-दूसरे की स्वतंत्रता जीवित रहे। ताकि एक-दूसरे की स्वतंत्रता में व्याघात न हो, अतिक्रमण न हो। ताकि एक-दूसरे की सीमा में अकारण हस्तक्षेप न हो।

प्रेम में होने का अर्थ होता है: हम पास भी होंगे इतने कि हमें एक-दूसरे से कोई भय का कारण नहीं, और हम इतने दूर भी होंगे कि हम एक-दूसरे को रौंद भी न डालेंगे, हमारे बीच आकाश होगा। और तुम्हारा निमंत्रण होगा तो मैं आऊंगा, और मेरा निमंत्रण होगा तो तुम मेरे भीतर आओगे। मगर निमंत्रण पर। यह हक न होगा, अधिकार न होगा।

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन !!

Thursday, March 05, 2020

Rahu in horoscope indicates what craving ? an analysis of past birth

*#राहु* in whichever house rahu sits in present horoscope, denotes the area you lost in while in previous birth and you are now born again to reclaim what was taken away from you. Example rahu in 2nd house means  loss of wealth in previous birth so always craving for it now, 10th house loss of identity and stable career so now seeking accomplishments in that field are being craved. 
Rrachita 

राहु एक शरारती ग्रह है। यह इंसान के मन में जन्म जन्मांतरों की एकत्रित की गaई समझ का कारक है। 
यह बहुत गंभीर चिंतन या गहराई का प्रतीक है। यह दिमाग में अचानक कोई ख्याल पैदा करता है। इसलिए राहु की इष्ट देवी सरस्वती को माना गया है। आठवें घर के राहु के बारे में  बातें कही जाती हैं ।ऐसा राहु इंसान को कई तरह के धोखे, भुलावे में डाल सकता है साथ ही यह भी कहा जाता है कि जिसके आठवें घर में राहु हो समय का राजा और विद्ववान उसका आदर करते हैं। राहु का  व्यवहार ऐसा है कि इंसान अपना घर बार छोड़कर कहीं चला जाता है और उसका कोई अता-पता नहीं मिलता, न ही घर छोड़ने का कोई कारण मिलता है।
राहु मतलब आप की कोशिश जिस चीज की आप अपने जीवन मे कमी मह्सुश कर रहे है वो राहु की स्थिति से पता चलता है। कूण्डली  के  जिस भाव मे राहु होगा इसका अर्थ ये है कि उस भाव से सम्बंधित चीजे आप से पिछले जन्म में छीन ली गई थी।
उन्ही चीजों को दुबारा पाने के लिए आप का जन्म हुआ है। जहाँ आप शाम दाम दंड भेद हर चीज़ को use करते है। उसे दुबारा पाने के लिए क्यों कि वो चीजे past लाइफ में  आप से छीन ली गई थी। किसी ने आप के साथ धोखा किया होगा किसी ने आप के साथ चीट किया  होगा।
हमारी जो इच्छाएं जो उमीदें अधूरी छूट जाती है उनी सब चीजों के लिए हमारा जन्म वापस होता है।
ओर तब राहु से पता चलता है। कि आप की  कोनसी इच्छाएं अधूरी रह गई पिछले जन्म से जिस  से आप पाने के लिए इस जन्म में आते है।

उदारण के लिय मान लीजिय की किसी के लग्न चार्ट में राहु 2nd हाउस में बैठा है। 
मतलब आप की जो सोच है वे हमेशा वेल्थी अमीर बनने वाली रहेगी पैसा पैसा 
क्यों कि पिछले जन्म में ये सब आप स छीन लिया गया था  जिस पाने के लिए आप फिंर आये है।
 राहु जिस भाव मे  है  मतलब ये है कि पिछले जन्म में उस भाव की चीजें आप स छीन ली गई थी। ओर जिस से पाने के लिए आप वापस आये है।।
 सिंगला पलवल 
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
उपाय काम क्यू नही करते।
क्यों की करने वाला इसे अलग अलग समय करता है।
बीच में एक आधे दिन का गैप भी हो जाता है।
जो उपाय दिए होते है उनमें से सभी पूरे नहीं करता है।
उपाय केसे करे?
लगातार कम से कम 2 महीने
एक निश्चित समय पर
सभी उपाय करने पर
जब आप उपाय करते है तो नेगेटिविटी देने वाले ग्रह व्यवधान उत्तपन कर सकते है लेकिन फिर भी आप को उपाय पूरे करने है।
फायदा या नुकसान होने पर अपने मार्गदर्शक को सूचित करे
भटकने की आदत का त्याग करे किसी एक पर पूर्ण विश्वास और श्रद्धा रखे।
ज्योतिष कोई चमत्कार नहीं है केवल सही रास्ता दिखाने का कार्य करता है।
आपका फायदा आपकी श्रद्धा विश्वास और भाव पर होता है। बाकी फल देने वाला परमात्मा ही ही है हम केवल माध्यम है 🙏
🙏🌹हम भाग्य के ज्ञाता है
भाग्य विधाता नही।🌹🙏
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Monday, March 02, 2020

होलाष्टक क्या होता है holashtak 3 to 9 march 2020

(होलाष्टक 3मार्च से 9मार्च तक)

होलाष्टक क्या होता है ?

मित्रो होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते है 

यह इस बार 2मार्च से लग जायँगे और 9 मार्च  तक रहेंगे 

यह दिन अच्छे नही माने जाते है और इन दिनों में कोई भी शुभ काम नही किया जाता है 

कहा जाता है इन दिन अगर कोई शुभ काम करो तो उसका फल नही मिलता है 

इसलिए शादी विवाह सगाई नामकरण संस्कार ग्रह प्रवेश महूर्त और जो भी शुभ कार्य होते है उनको नही करना चाहिए 

इसके पीछे बहुत सी कहानियां है 

कहते है कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या इन दिनों ही भंग करने की कोशिश की थी और भगवान शिव ने गुस्से में कामदेव को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्ठमी तिथि को भस्म कर दिया था  तब कामदेव की पत्नी ने भगवान शिव की तपस्या की थी भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवन दान दिया था जिस दिन कामदेव को जीवन दान मिला था वो धुलेंडी बड़ी होली का दिन था 

जो यह आठ दिन है इसमें कामदेव की पत्नी रति विरह की अग्नि में जली थी इसलिए इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम खास तौर पर शादी के विवाह महूर्त नही निकाले जाते है 

कुछ लोगो का यह भी कहना है होली से आठ दिन पहले प्रह्लाद को बहुत यातनाये दी गई थी जिसकी वजह से इन आठ दिन  अच्छे नही माने जाते है यह दिन अशुभ कहे जाते है 

होलाष्टक के पहले दिन जहाँ पर होली का जलाना है वहाँ गोबर की लिपाई की जाती है गंगाजल से उसको शुद्ध किया जाता है और होली के जलने की प्रतीक्षा की जाती है 

और जब होली जल जाती है बुराई का अन्त भी हो जाता है और सभी शुभ कामो के लिए महूर्त खुल जाते है 

होली से आठ दिन पहले इन दिनों में कोई भी शुभ काम हमको नही करना चाहिए कोई नई चीज खरीदने से भी बचना चाहिए 
WWW.ASTRORRACHITA.IN 


🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

Saturday, February 22, 2020

भगवान शिव कौन है ? शिव तो का स्वरूप है भारत का उत्सव है WHO IS THE SHIVA IN SPIRIT ? Some fascinating facts and ancient beliefs in this article.

"शिव तो भारत का आद्य-लोकमनस् का उत्स हैं।
वह आर्य भी है ,अनार्य भी है , वह द्रविड भी है , वह कोलकिरात भी है ।
वह क्या नहीं है ?
वह जितना देवों का है उतना ही असुरों का है ।
शिव मानो भारतीयता की मूर्तिमान व्याख्या हैं ।
इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ? शिव भारत भावरूप हैं ।
पशुपति है ।वह शिव है और रुद्र भी है ।

तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में ।
स्मशानवासी हैं।वह विषपायी हैं।
सबको अमृत बांट कर वह जहर पी जाते हैं।
शिव आदि काल से ही गुरु माने जाते हैं | उनकी चर्चा हो और ताण्डव नृत्य की बात ना हो ऐसा नहीं हो सकता | आम तौर पर तांडव का अर्थ विध्वंस के रूप में ही लिया जाता है | नृत्य की दृष्टि से देखें तो उग्र स्वभाव को दर्शाता हुआ रूद्र तांडव है | वहीँ इसका एक और कोमल रूप, आनंद तांडव कहलाता है | शैव सिद्धांतो के मत में जहाँ शिव को नटराज यानि नृत्य के राजा माना जाता है, वहां तांडव का नाम “तण्डु” नाम से आया हुआ मानते हैं |

मान्यता है कि नाट्य शास्त्र के रचियेता भरत मुनि को #अंगहार और 108 कारणों की शिक्षा तण्डु ने शिव के आदेश पर दी थी | शैव मतों की कई मान्यताएं, नृत्य की मुद्राओं से मिलती जुलती भी हैं | हवाई के कौअई में मौजूद कदवुल मंदिर में नटराज के 108 कारणों की मूर्तियाँ हैं | ठीक ऐसा ही भारत के चिदंबरम मंदिर में भी देखा जा सकता है | वहां भी करीब 12 इंच ऊँची मूर्तियों में सभी 108 #कारणों को दर्शाया गया है | मान्यता ये भी है कि चिदंबरम मंदिर ही वो स्थान है जहाँ नटराज भक्तों के आग्रह पर, पार्वती के साथ, आनंद #तांडव करने आये थे |

भरत के #नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय का नाम “ताण्डव लक्षणम्” है | सभी 32 अंगहार और 108 कारणों की चर्चा इसी अध्याय में है | हाथों और पैरों की विशिष्ट मुद्राओं को कारण कहते हैं | सात या उस से अधिक कारण मिलकर एक अंगराग बनते हैं | कारणों का प्रयोग नृत्य के साथ साथ सम्मुख युद्ध में और द्वन्द युद्ध में भी किया जा सकता है |

ताण्डव पांच मुख्य उर्जाओं की अभिव्यक्ति है | इस से सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह के भावों की अभिव्यक्ति होती है | जहाँ सृष्टि, स्थिति, और संहार विश्व के निर्माण और विध्वंस के द्योतक हैं वहीँ, तिरोभाव और अनुग्रह वो भाव हैं जिनसे जन्म और मृत्यु संचालित होती है |

हिन्दुओं के ग्रन्थ सात मुख्य प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हैं | आनन्द तांडव, त्रिपुर ताण्डव, संध्या ताण्डव, संहार ताण्डव, कालिका ताण्डव, उमा ताण्डव और गौरी तांडव मुख्य प्रकार हैं | आनंद कुमारस्वामी जैसे कुछ विद्वान सोलह प्रकार के ताण्डवों का जिक्र करते हुए कहते हैं, शिव के कितने तांडवों का उनके भक्तों को पता है इसके बारे में निश्चय करना कठिन है |

शिव के ताण्डव का प्रत्युत्तर पार्वती लास्य से देती हैं | पार्वती के नृत्य को सौम्य, भावपूर्ण और कई मुद्राओं में कामोद्दीपक भी माना जा सकता है | लास्य के दो मुख्य प्रकार, जरित लास्य और यौविक लास्य अभी भी आसानी से देखने को मिलते हैं | #ताण्डव का जिक्र कई धर्म ग्रंथों में भी है | सती के अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में कूद जाने पर शिव संताप और क्रोध में रूद्र ताण्डव करते हैं | शिवप्रदोषस्तोत्र के अनुसार जब शिव संध्या ताण्डव करते हैं तो ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, और इंद्र आदि देवता वाद्य यंत्र बजा रहे होते हैं |

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ शिव के तांडव का ही जिक्र आता हो | भगवान् गणेश भी कई मूर्तियों में अष्टभुज, ताण्डव मुद्राओं में दिखते हैं | भागवत पुराण में जब कृष्ण कालिया नाग का दमन करते हैं तो वो उसके फन पर ताण्डव कर रहे होते हैं | ज्यादातर कालिया दमन की पेंटिग और मूर्तियों में आपने यही ताण्डव मुद्रा देखि होगी | यहाँ तक की जैन मान्यताओं में माना जाता है कि इन्द्र ने भी ऋषभ देव के जन्म पर ख़ुशी दर्शाने के लिए ताण्डव नृत्य किया था | स्कन्द पुराण में भी ताण्डव का जिक्र आता है |

शिव के ताण्डव पर आनंद कुमारस्वामी ने एक विस्तृत किताब The Dance of Shiva: Fourteen Indian Essays, के एक अध्याय  "The Dance of Shiva" में विस्तार से लिखा है |

#महाशिवरात्रि भगवान् शिव के ताण्डव और उसके विभिन्न रूपों को याद करने के लिए भी मनाया जाता है |

भगवान् शिव के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों के बारे में आपने कभी न कभी सुना ही होगा | इनमें प्रभु रामेश्वरम् की स्थापना श्री राम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी | जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिव लिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा-
रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: ||
मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव,  माता सती को सुनाने लगे तो बोले के प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी | माता सती के ऐसा कैसे, पूछने पर देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए, उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया- 
रामा: ईश्वरो: य: रामेश्वर: ||
यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

जिस सनातन धर्म के आराध्य भी एक दूसरे का सम्मान करते है, उस हिन्दू समाज के सभी धर्मानुरागियों को #महाशिवरात्रि की शुभकामनायें |
ॐ नमः शिवाय ||

शिव नटराज भी कहे जाते हैं। कहते हैं कि एक बार शिव नृत्य करने लगे तो साथ ही पार्वती भी नृत्य में उनका साथ देने लगीं। समस्या ये हुई की हर ताल पर पार्वती का नृत्य बेहतर होता और शिव हार जाते !

शिव के नृत्य का नाम ज्यादातर लोगों को पता ही है। देवाधिदेव का नृत्य जहाँ तांडवकहलाता है, वहीँ उसका प्रतिरूप जैसा पार्वती का नृत्य लास्य कहा जाता है। देवी के रुकने तक शिव जीत नहीं पाए थे।

अगर कभी, कहीं, किसी जगह, किसी के बोलना बंद ना करने के कारण आप नहीं जीत पाते तो ज्यादा अफ़सोस मत कीजिये। #महाशिवरात्रि ये भी याद दिला देती है कि वामांगी के रुकने से पहले तक, अर्धनारीश्वर भी नहीं जीत पाए थे।

ये कहानी शिव पुराण में आती है और शायद जालंधर नाम के असुर की है। ध्यान रहे, असुर बताया गया है राक्षस नहीं था, कम से कम इस कहानी तक तो नहीं। शक्ति-सामर्थ्य में अक्सर असुर देवों यानि सुरों से ऊपर ही होते थे। असुर ने भी थोड़े ही समय में इन्द्रासन कब्ज़ा लिया और जैसा कि आसुरी प्रवृत्ति होती है वैसे ही उसने भी सोचा कि अब मैं सबसे महान हूँ, तो सभी सबसे अच्छी चीज़ों पर मेरा अधिकार है।

इसी मद में असुर पहुंचा कैलाश पर और शिव के साथ पार्वती को देखकर कहा, सबसे सुन्दर स्त्री पर मेरा अधिकार है, तो लाओ इसे मेरे हवाले करो ! आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान कभी आपका नुकसान नहीं करते। वो सिर्फ आपकी मति भ्रष्ट कर देते हैं, फिर आप अपने शत्रु स्वयं हैं, भगवान को आपका नुकसान करने की जरूरत नहीं। भगवान शिव ने भी असुर के साथ यही किया।

असुर की भूख को पलटा कर उसपर छोड़ दिया ! भगवान शिव से प्रकट हुई वो प्रचंड क्षुधा रास्ते की सभी चीज़ों को निगलती असुर की ओर बढ़ी तो उसने पहले तो इस शक्ति का अपनी शक्तियों से प्रतिकार करने का प्रयास किया। लेकिन उन सभी प्रतिरोधों को निगलता वो जब असुर को लीलने को हुआ तो बेचारा असुर भागा। यहाँ-वहां कहीं शरण नहीं पाने पर बेचारा असुर अपनी मूर्खता पर पछताता आखिर भगवान शिव की ही शरण में पहुंचा और लगा प्राणों की भीख मांगने।

भगवान शिव ने जैसे ही उसे क्षमा करके सबकुछ निगलते पीछे ही आ रही शक्ति को रुकने कहा तो वो दैवी शक्ति बोली भगवान एक तो मुझे इसे ही खाने के लिए ऐसी भूख बना कर पैदा किया ! अब आप मेरा आहार ही छीन रहे हैं ? मैं अब खाऊंगा क्या ? भगवान ने एक क्षण सोचा और कहा, ऐसा करो स्वयं को ही खा जाओ ! आदेश पाते ही उसने पूँछ की ओर से खुद को खाना शुरू किया और अंत में केवल उसका मुख ही बचा। अक्सर हिन्दुओं के मंदिरों के द्वार पर यही मुख दिखता है।

भगवान शिव ने आदेश पालन के लिए स्वयं को खा लेने की उसकी क्षमता के लिए उसके मुख को ‘कीर्तिमुख’ नाम दिया था। उसे देवताओं से भी ऊपर स्थान मिला था।

कहानियां केवल प्रतीक होती हैं और ये कहानी भी खुद को ‘मैं’ को खा जाने की कहानी है। प्रतीक के माध्यम से ये वही कहा गया है जो काफी बाद के दोहे में ‘जो घर बारे आपना, सो चले हमारे साथ’ में कहा गया है। अपने अहंकार को खा जाने का ये आदेश कई बार कई ग्रंथों में कई साधू देते रहे हैं। ये अहंकार का आभाव सबसे आसानी से छोटे बच्चों में दिखेगा, इसी लिए बच्चों के रूप को शिव के पर्यायवाची की तरह भी इस्तेमाल किया जाना दिख जाएगा। दिगंबर, भोले जैसे नाम इसी लिए इस्तेमाल होते हैं।

इसी बच्चों वाले तरीके का इस्तेमाल कई जाने माने विद्वान अभी हाल में #SanskritAppreciationHour में करते हुए भी दिखे हैं। वो लोग पञ्च-चामर छन्द
में रचित शिवताण्डवस्तोत्र सीखने-सिखाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे। जैसे बच्चे किसी चीज़ को पहचाने, समझने के लिए उसे उल्टा पलटा कर तोड़ कर खोल कर देखने लगते हैं बिलकुल वही इसपर भी इस्तेमाल किया गया था। चर्चा अंग्रेजी में थी तो उनके तरीके को हमने सिर्फ हिंदी में कर देने की कोशिश की है। अगर पञ्च-चामर छन्द फ़ौरन याद ना आये तो बचपन में पढ़ी कविता याद कर लीजिये :

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।
~ जय शंकर प्रसाद
ये चार चरणों का वर्णिका छन्द होता है।

अब शिव ताण्डव का पहला श्लोक:
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

‘जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले’ से स्थले का मतलब स्थान, जगह होगा, ‘जल-प्रवाह-पावित’ का अर्थ पवित्र जल का बहना, प्रवाह होगा (शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र तीनों अलग अर्थ के शब्द हैं ध्यान रखिये)। ‘जटा-अटवी-गलत्’ यानि जटाओं के वन से बहती हुई, घनी जटाओं की तुलना वन से की गई जो कि अंग्रेजी के simily जैसा अलंकार है। अटवी का सही अर्थ विहार करने योग्य स्थान होता है, जो अट् धातु से बना है, इसी अट् से पर्यटन बनता है जिसका मतलब घूमने देखने के उद्देश्य से कहीं जाना होता है।

यहाँ ‘गलत्’ सन्धि में जल से मिलकर ‘गलज्’ हो जाता है। ये वर्तमान कृदन्त है जो वर्तमान काल में चल रही क्रिया का बोध कराता है। ‘गले ऽवलम्ब्य’ यानि गले से लटकता हुआ, ‘भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्’ भव्य साँपों की माला, और ‘लम्बिताम्’ एक विशेषण है जो माला के लिए इस्तेमाल किया गया है, जैसे हमलोग अभी भी किसी काम के अटके पड़े होने के लिए लटका हुआ या लम्बित कहते हैं। अगले वाक्य में फिर पीछे से ‘अयम्’ यानि ये ‘डमरु’ जो ‘निनादवत्’ अपनी ध्वनि यानि ‘डमड् डमड् डमड् डमड्’ से पहचाना जा रहा है।

अब यहीं ‘निनादवत्’ के अंत में ‘वत्’ आ रहा है लेकिन सन्धि होते ही वो ‘न्निनादवड्डमर्वयं’ हो जाता है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे भागवत गीता एक साथ जोड़ते ही भगवद्गीता हो जाती है, ‘त’ का ‘द’ जैसा हो जाना। अब इसमें जितना एक श्लोक के साथ सिखाया गया है उतने के लिए हमें पांच-छह बार तो किताबें पलटनी ही पड़ेंगी, लेकिन अच्छी चीज़ ये है कि किसी भी समय में अगर आप कुछ सीखना चाहते हैं तो सीख लेना आसान ही है। पहला कदम होता है अहंकार को खा जाना। मैं नहीं जानता ये स्वीकारना मुश्किल काम है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं है।

अंतिम वाक्य के ‘चकार’ का अर्थ वो कर चुके जैसा होगा, क्या किया वो खुद देखने की कोशिश कीजिये। बाकी शिवरात्रि शिव से जुड़ने के लिए योगियों को प्रिय रही है, अपनी उन्नति के साथ-साथ आप ज्ञान को एक पीढ़ी आगे भी बढ़ा रहे होंगे। अगर आप एक स्तोत्र भी सीखते हैं तो ये संयोग भी उत्पन्न होगा। प्रयास कीजिये !

Sunday, February 16, 2020

मन्त्र जाप का प्रभाव

मन्त्र जाप का प्रभाव 
〰️〰️🌼🌼〰️〰️
 
कलयुग में होने का एक फायदा है की हम मन्त्र जप कर बड़े बड़े तप अनुष्ठान का लाभ पा सकते है। मन्त्र अगर गुरु ने दीक्षा दे कर दिया हो तो और प्रभावी होता है।जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों के द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुँचाने में सक्षम होता है। सदगुरु से मिला हुआ मंत्र ‘सबीज मंत्र’ कहलाता है क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है।मन्त्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है जो मन को उर्ध्व गामी बनाते है।जिस तरह पानी हमेशा नीचे की बहता है उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है अगर उसे मन्त्र जप की तरंग का बल ना मिले।
 कई लोग टीका टिप्पणी करते है की क्या हमें किसी से कुछ चाहिए तो क्या उसका नाम बार बार लेते है ? पर वे नासमझ है और मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान है।
 
मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है। जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका। हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था, किंतु ज्योंहि वह रेख को लाँघने की इच्छा करता त्योंहि उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी।

मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है।

मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं।सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है।
 
जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं, ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धयाँ आने लगती हैं, किन्तु साधक को चाहिए कि इन सिद्धियों के चक्कर में न पड़े, वरन् अंतिम लक्ष्य परमात्म-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे।
 
मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है।मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है।
 
इसलिए रोज़ किसी एक मन्त्र का हो सके उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें.

Sunday, February 09, 2020

What happens after Death? Garuda Puranam glimpses

*So, what happens after death?*

Death is actually a very interesting process!!

*Disconnection of the earth sole chakras*
Approximately 4-5 hours before death, the earth sole chakras situated below the feet gets detached ... symbolizing disconnection from the earth plane!!

A few hours before an individual dies, their feet turn cold. 
When the actual time to depart arrives, it is said that Yama, the God of death appears to guide the soul.

*The Astral Cord*

Death severs the astral cord, which is the connection of the soul to the body. 
Once this cord is cut the soul becomes free of the body and moves up and out of the body.

If the soul is attached to the physical body it occupied for this lifetime, 
it refuses to leave and tries to get into the body and move it and stay in it. 
We may observe this as a very subtle or slight movement of the face, hand or leg after the person has died.

The soul is unable to accept that it is dead. 
There is still a feeling of being alive. 
Since the astral cord has been severed, the soul cannot stay here and is pushed upwards and out of the body. 
There is a pull from above ... a magnetic pull to go up.

*End of the physical body*

At this stage the soul hears many voices, all at the same time. 
These are the thoughts of all the individuals present in the room.

The soul on its part talks to his loved ones like he always did n shouts out "I am not dead" !!

But alas, nobody hears him.

Slowly and steadily the soul realizes that it is dead and there is no way back. 
At this stage, the soul is floating at approx 12 feet or at the height of the ceiling, seeing and hearing everything happening around.

Generally the soul floats around the body till it is cremated. 
So, the next time if you see a body being carried for cremation, be informed that *the soul is also part of the procession* seeing, hearing and witnessing everything and everyone.

*Detachment from the body*

Once the cremation is complete, the soul is convinced that  the main essence of its survival on earth is lost and the body it occupied for so many years has merged into the five elements.

The soul experiences complete freedom, the boundaries it had while being in the body are gone and it can travel anywhere by mere thought.

For 7 days the soul, moves about its places of interest like its favorite joint, morning walk garden, office, etc. 
If the soul is possessive of his money, it will just stay near his cupboard, or if he is possessive of his children, it will just be in their room, clinging on to them.

*By the end of the 7th day,* the soul says bye to his family and moves further upwards to the periphery of the earth plane to cross over to the other side.

*The Tunnel*

Its said that there is a big tunnel here which it has to cross before reaching the astral plane. 
Hence its said that the *first 12 days after death are extremely crucial.* 

We have to carry out the rituals correctly and pray and ask forgiveness from the soul, so that it does not carry negative emotions like hurt, hatred, anger, etc atleast from the near and dear ones.

All the rituals, prayers and positive energy act like food for the soul which will help it in its onward journey. 
At the end of the tunnel is a huge bright light signifying the entry into the astral world.

*Meeting the Ancestors*

On the 11th & 12th day, Hindus conduct homas and prayers and rituals through which the soul is united with its ancestors, close friends, relatives and the guides.

All the passed away ancestors welcome the soul to the upper plane and they greet and hug them exactly like we do here on seeing our family members after a long time.

The soul then along with its guides are taken for a thorough life review of the life just completed on earth in the presence of the *Great Karmic Board.* 
It is here in the pure light that the whole past life is viewed !!

*Life Review*

There is no judge, there is no God here. 
The soul judges himself, the way he judged others in his lifetime. 
He asks for revenge for people who troubled him in that life, he experiences  guilt for all wrongdoings he did to people and asks for self punishment to learn that lesson. Since the soul is not bound by the body and  the ego, the final judgment becomes the basis of the next lifetime.

Based on this, a complete life structure is created by the soul himself, called the blue print. 
All the incidents to be faced, all problems to be faced, all challenges to be overcome are written in this agreement.

In fact the soul chooses all the minute details like age, person and circumstances for all incidents to be experienced.

Example : An individual had severe headache in his present birth, nothing helped him, no medicines, no way out. In a session of past life regression, he saw himself killing his neighbour in a previous birth by smashing his head with a huge stone.

In the life review, when he saw this he became very guilty and  asked for the same pain to be experienced by him by way of a never ending headache in this life.

*Blue print*

This is the way we judge ourselves and in guilt ask for punishment. 
The amount of guilt in the soul, decides the severity of the punishment n level of suffering. 
Hence forgiveness is very vital. 
*We must forgive and seek forgiveness!!* 

Clear your thoughts and emotions, as we carry them forward to the other side too. 
Once this review is done and our blue print for the next life is formed, then there is a cooling period.

*The re-birth*

We are born depending on what we have asked for in the agreement. 
The cooling off period also depends on our urgency to evolve.

*We choose our parents* and enter the mothers womb either at the time of egg formation or during the 4-5th month or sometimes even at the last moment just before birth.

The universe is so perfect, so beautifully designed that the time and  place of birth constitutes our horoscope, which actually is a blue print of this life. 
Most of us think that our stars are bad and we are unlucky but in actuality, they just mirror your agreement.

*Once we are reborn, for around 40 days the baby remembers its past life and laughs and cries by itself without anyone forcing it to.* 
The memory of the past life is completely cut after this and we experience life as though we did not exist in the past.

*The agreement starts..*

Its here that we are completely in the earth plane and the contract comes into full effect. 
We then blame God/people for our difficult situations and  curse God for giving us such a difficult life …

So, the next time before pointing to the Divine, understand that our circumstances are just helping us complete and honor our agreement, which is fully and completely written by us. 
Whatever we have asked for and pre decided is exactly what we receive !!

Friends, relatives, foes, parents, spouses all have been selected by us in the blue print and come in our lives based on this agreement. 
 *They are just playing their parts and are merely actors in this film written, produced and directed by us!!* 

*Do the Dead need healing / prayers / protection ?*

The dead always need serious healing and  prayers for a variety of reasons, the most important one being ... To be free and not earthbound !! ... that is stuck in the earth plane and unable to leave.

There are many reasons for the soul to be earthbound like unfinished business, excessive grief, trauma on death, sudden death, fear of moving on to the astral plane, guilt, one of the most important being improper finishing of last rites and rituals.

The soul feels it needs a little more time to wait and finish before moving on.  This keeps them hovering on the earth plane. 
But the time is limited and it is very very important that they cross over within 12 days to their astral plane of existence, as the entry to the astral world closes a few days after this.

*Earthbound spirits lead a very miserable existence* as they are neither in their actual plane nor in a body to lead an earthly life. 
They may not be negative or harmful but they are stuck and miserable. 
Hence healing and prayers are of utmost importance during this period so that the departed soul crosses over to the designated astral plane peacefully.

Prayers by the whole family is very vital to help the dead cross over. 
The protection of the soul to help it reach its destination in the astral world is achieved through prayers.

*Please Do Not Take Death Lightly ...* 
Now more than ever most souls are stuck on the earth plane due to lack of belief and family neglect.

Finally, for someone who has lost a near and dear one, don’t feel sad ... 
We never die, we live on, death does not end anything, it is just a little break before we meet again !!

(This article has been extracted from ...
*The Garuda Puranam*)

Monday, February 03, 2020

मीन मे शुक्र ग्रह का प्रभाव VENUS IN PISCES transit for all 12 zodiac signs

*शुक्र आज 3 तारीख को  अपनी राशि बदल रहा हैं ओर मीन राशि मे जा रहे हैं जो उस की उच्च राशि हैं*

*शुक्र का मीन राशि में गोचर देगा उच्च राशि के प्रभाव (3 फरवरी, 2020)*

शुक्र को जीवन में सुख सुविधा प्रदान करने वाला मुख्य ग्रह माना गया है। शुक्र के प्रभाव से जीवन में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं की बढ़ोतरी होती है और व्यक्ति अपने जीवन में राज योग भोगता है। प्रेमियों के लिए भी शुक्र देव बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में शुक्र का अपनी उच्च राशि मीन में 3 फरवरी 2020 को गोचर करना कई जातकों के लिए वरदान साबित होने वाला है।

*शुक्र देंगे प्रेमियों को वैलेंटाइन डे उपहार*

इस चलते वैलेंटाइन डे पर कई राशि के जातक अपने प्रियतम संग प्रेम के इस दिवस का आनंद लेते दिखाई देंगे। आपकी सभी सुंदर परियोजनाएँ सही कर्म में होंगी। ऐसे में आप अपने साथी या प्रेमी को खुश करने के लिए उन्हें खाने के लिए बाहर लेकर जा सकते हैं क्योंकि आपका साथी आपको इस विशेष दिन बेहद ख़ास अनुभव कराएगा। इस समय अगर आपको उनके हर वक़्त फ़ोन में लगे रहने से दिक्कत महसूस होती थी तो आपकी ये शिकायत भी इस दौरान दूर होगी। कुल मिलाकर कहें तो शुक्र का मीन में गोचर प्रेमियों के लिए सोने पर सुहागे का कार्य करेगा।

*शुक्र गोचर का समय*

जीवन में सुखों का प्रदाता और प्रेम को बढ़ाने वाला शुक्र ग्रह 3 फरवरी, सोमवार की सुबह 02:13 बजे कुम्भ राशि से निकलकर देव गुरु बृहस्पति के स्वामित्व वाली मीन राशि में प्रवेश कर चुके हैं 
। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र के गोचर की अवधि काफी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसके शुभ प्रभाव से अनेक प्रकार के शुभ कार्य संपन्न होते हैं। मीन राशि में शुक्र के गोचर का प्रभाव सभी बारह राशियों पर देखने को मिलेगा क्योंकि यह शुक्र की उच्च राशि है।

तो आईये जानते हैं कि शुक्र के मीन राशि में गोचर का सभी राशि के जातकों पर कैसा प्रभाव पड़ने की संभावना है:

*यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।*

मेष राशि
आपके लिए शुक्र दूसरे और सातवें भाव के स्वामी हैं और इस गोचर की अवधि में आपके बारहवें भाव में विराजमान हो जाएंगे। इसके परिणाम स्वरूप आपके खर्चों में एकाएक वृद्धि होने लगेगी, जिसका असर आपकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा, लेकिन यह खर्चे आपकी सुख सुविधाओं को बढ़ाने वाले होंगे और आपको खुशी देंगे, जिससे आप आसानी से इस खर्च को वहन कर पाएंगे। आप की आमदनी भी बढ़ेगी आपके व्यापार में विदेशी संपर्कों का आपको लाभ हासिल होगा और धन निवेश के लिए भी यह समय काफी उन्नति दायक साबित होगा। आपको व्यसनों से बचने का प्रयास करना चाहिए। कुछ लोगों को व्यापार के सिलसिले में विदेश जाने का मौका भी मिल सकता है। इसके अलग कुछ ऐसे लोग, जिनका विवाह होने वाला है, उन्हें विवाह के बाद विदेश जाने की संभावना बनेगी। इस दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा क्योंकि अति व्यस्त दिनचर्या और अनियमित खान-पान के कारण आपको स्वास्थ्य कष्ट हो सकते हैं। यह समय धन निवेश करने के लिए अनुकूल रहेगा।

उपायः प्रत्येक शुक्रवार के दिन किसी धार्मिक स्थान पर मिश्री का दान करें।

वृषभ राशि
शुक्र देव आपकी राशि के स्वामी हैं यानि कि आप के पहले भाव के स्वामी होने के साथ-साथ आप के छठे भाव के स्वामी भी हैं। मीन राशि में शुक्र देव के इस गोचर की अवधि में वे आप के ग्यारहवें भाव में जाएंगे, जिसकी वजह से आपकी आमदनी में जबरदस्त इजाफा होगा। आपकी मनोनुकूल इच्छाएं पूरी होंगी और आपको खुशी मिलेगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा और पुरानी चली आ रही किसी बीमारी से मुक्ति मिलेगी। इस दौरान आपकी मित्र मंडली में इजाफा होगा। प्रेम संबंध के मामलों में यह गोचर काफी अनुकूल साबित होगा और आपके प्रेम जीवन को प्रेम से सराबोर कर देगा। आप अपने प्रियतम के साथ बेहतरीन पलों का आनंद लेंगे और आपको खुशी का एहसास होगा। आपकी शिक्षा में वृद्धि होगी और नौकरी के क्षेत्र में भी आपको इस दौरान अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। व्यापार में लाभ होने से आप काफी प्रसन्नता महसूस करेंगे।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन अरंड मूल धारण करनी चाहिए।

मिथुन राशि
मिथुन राशि के स्वामी बुध शुक्र के परम मित्र हैं। आपकी राशि के लिए शुक्र देव पाँचवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आपके दशम भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के प्रभाव से आपके परिवार में सुख शांति की बयार बहेगी। परिवार में ख़ुशियाँ आएँगी। परिवार के लोग कोई नया वाहन खरीदने का विचार करेंगे, जिसमें उन्हें सफलता हासिल होगी। लोगों के बीच प्रेम बढ़ेगा। यदि कार्य क्षेत्र की बात की जाए तो उसमें आपको अच्छे नतीजे मिलेंगे, लेकिन आप अति आत्मविश्वास के शिकार हो सकते हैं, जिसकी वजह से आपका काम बिगड़ सकता है, इसलिए से बचने का प्रयास करें। आपकी वाणी में मिठास बढ़ेगी और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आप का दबदबा बढ़ेगा। अपनी विद्या के बल पर आप अपने कार्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और इस सिलसिले में की गई यात्राएं भी आपके लिए फ़ायदेमंद साबित होंगी। बेवजह की बातों से अपना मन अलग रखें, नहीं तो काम में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करें।

कर्क राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव चौथे भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी होकर गोचर की इस अवधि में आपके नौवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको लंबी यात्राओं पर जाने का मौका मिलेगा। यह यात्राएं आपके सुख और आनंद में वृद्धि करेंगी। आप परिवार के लोगों के साथ या ऑफिस के सहकर्मियों के साथ किसी पिकनिक पर अच्छे रमणीक स्थान पर घूमने जा सकते हैं। आपके मान और सम्मान में बढ़ोतरी होगी। आपकी आमदनी भी बढ़ेगी और लोगों के बीच आपकी पूछ बढ़ेगी। कुछ लोगों को इस दौरान सुदूर स्थान पर जाकर प्रॉपर्टी का लाभ मिलेगा, यानि कि अपने जन्म स्थान से दूर कुछ लोग प्रॉपर्टी बना पाएंगे। इसके अतिरिक्त व्यापार के सिलसिले में आपको जबरदस्त लाभ होने के भी योग बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन चीनी दान में दें।

सिंह राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और दसवें भाव के स्वामी हैं और मीन राशि में गोचर करते हुए आपके आठवें भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने साथ काम करने वाले लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना होगा, अन्यथा आपको अपने पद से विमुक्त किया जा सकता है। इस दौरान अनचाहे ट्रांसफर के भी योग बन सकते हैं। गुप्त सुखों को भोगने की लालसा जागेगी, जिसकी वजह से आप काफी धन भी खर्च करेंगे। हालांकि मर्यादित आचरण करना ही बेहतर रहेगा। भाई बहनों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और यात्राओं में बेवजह का तनाव और खर्चे आपको परेशान करेंगे। अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान आपको इस दौरान रखना चाहिए।

उपायः आप को शुक्रवार के दिन गौमाता को आटे की लोई अपने हाथ से खिलानी चाहिए।

कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों के लिए शुक्र देव आपके दूसरे और नौवें भाव के स्वामी होने के बाद गोचर की इस अवधि में आप के सातवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको अपने दांपत्य जीवन में अनेक सुखों का लाभ मिलेगा आप उत्तम दांपत्य जीवन का सुख भोगेंगे। आपका जीवन साथी आपके लिए लाभ का माध्यम भी बनेगा और आपको इच्छित सुख प्रदान करेगा। आप दोनों के बीच संबंध बेहतर बनेंगे और परिवार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न करेंगे। व्यापार के सिलसिले में इस दौरान आपको जबरदस्त लाभ होने के योग बन रहे हैं, इसलिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं। यात्राओं से आपको लाभ मिलेगा। मान व सम्मान की बढ़ोतरी होगी और जनता की नजर में आपकी छवि बेहतर बनेगी। अपने संचित धन को व्यवसाय में निवेश कर सकते हैं। मानसिक रूप से आप काफी मजबूत रहेंगे और लोगों के प्रति स्नेह की भावना आपके मन में रहेगी, जिससे आप लोगों के प्रिय बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन माता महालक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।

तुला राशि
आपकी राशि के स्वामी शुक्र देव हैं। अर्थात आप के प्रथम भाव के साथ-साथ आपके अष्टम भाव के स्वामी शुक्र देव अपने मीन राशि में गोचर की समय अवधि में आपके छठे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपके खर्चों में यकायक वृद्धि होगी और यह आपकी जेब पर काफी भारी पड़ सकती है, इसलिए आपको काफी सोच समझकर अपना बजट प्लान करना होगा। स्वास्थ्य के मामले में यह समय बेहतर नहीं रहेगा और आपको अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि आपको इस दौरान असंतुलित दिनचर्या के चलते या व्यर्थ खान पान के चलते स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं। ये परेशानियाँ लंबे समय तक चल सकती हैं। धन हानि होने की संभावना रहेगी लेकिन इस दौरान यदि आपका कोई कर्ज़ है तो वह चुकता हो जाएगा, जिससे आपको आर्थिक रूप से कमज़ोरी तो होगी, लेकिन राहत की सांस भी मिलेगी। कार्य क्षेत्र में यह समय आँख और कान खोल कर अपने काम पर फोकस करने का है, तभी आपको अच्छे नतीजे हासिल होंगे। इस समय को बेहतर बनाने के लिए आपको एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा और खूब मेहनत करनी पड़ेगी ।

उपायः आपको उत्तम गुणवत्ता का ओपल रत्न शुक्रवार के दिन चाँदी की अंगूठी में अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।

वृश्चिक राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव सातवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आप के पांचवे भाव में गोचर करेंगे, जिसकी वजह से आपके प्रेम संबंधों में खुशबू बिखर जाएगी और आपका प्रेम जीवन काफी मजबूती से आगे बढ़ेगा। आप और आपके प्रियतम के बीच की सभी ग़लतफहमियाँ दूर हो जाएंगी और आप प्रेम के बंधन में बंध कर अपने जीवन को एक खुशनुमा राह पर आगे बढ़ाएंगे। इस दौरान आपकी शिक्षा में आपको बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे और आपकी गणना विद्वानों में होगी। अपनी क्रिएटिविटी के कारण आपको सब की प्रशंसा मिलेगी और आपका धन बढ़ेगा। अर्थात् प्रचुर धन लाभ के योग बनेंगे। दोस्तों और विपरीत लिंगी जातको में आप खासे लोकप्रिय हो जाएंगे और आपके सोशल सर्किल में इजाफा होगा। इस समय में आप कोई क्रिएटिव काम करेंगे, जिससे आपको प्रसिद्धि भी प्राप्त होगी। कुछ भाग्यशाली लोगों को इस दौरान संतान प्राप्ति के योग भी बनेंगे। व्यापार के सिलसिले में लाभ प्राप्ति का अवसर आपको अवश्य मिलेगा।

उपायः शुक्रवार को लौंग वाला पान माता महालक्ष्मी को अर्पित करें।

धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए शुक्र महाराज छठे भाव के साथ-साथ ग्यारहवें भाव के स्वामी भी होते हैं और गोचर की इस अवधि में वे आप के चौथे भाव में प्रवेश करेंगे, जिससे परिवार में खुशियाँ आएँगी। कोई अच्छा समारोह या फिर कोई फंक्शन या शुभ कार्य आपके घर में संपन्न होगा, जिसमें अतिथियों के आगमन से घर में हर्ष और उल्लास की स्थिति बनेगी। मेहमानों का आगमन होगा जिसकी वजह से परिवार में नई चेतना और लोगों में एक दूसरे के प्रति स्नेह की भावना बढ़ेगी। कार्य क्षेत्र में भी आपको उत्तम नतीजे प्राप्त होंगे। आपके काम में आपको प्रशंसा मिलेगी और आपकी सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ जाएगी। आपको अनेक प्रकार के सुख मिलेंगे। इस दौरान परिवार में कोई नया वाहन आ सकता है और अपने घर को सजाने संवारने पर भी आप खासा ध्यान देंगे।

उपायः शुक्रवार के दिन किसी महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करें।

मकर राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं और इस प्रकार आपके लिए ये एक योगकारक ग्रह हैं। गोचर की इस अवधि में यह आपके तीसरे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको अनेक सुखद यात्राओं पर जाना पड़ेगा। गोचर की इस अवधि में आप मौज मस्ती के लिए या मित्रों के साथ घूमने करने के प्लान बनाएँगे, जिससे आपको खूब खुशी का अनुभव होगा और अपने आप को ऊर्जावान महसूस करेंगे। इस दौरान यात्राओं से आपको कुछ नए संपर्क जुड़ेंगे, जो भविष्य में आपके काम आएँगे। प्रेम जीवन में वृद्धि होगी। यदि आप अभी तक सिंगल हैं, तो आपके जीवन में कोई खास व्यक्ति आ सकता है, जिससे आपको प्रेम हो जायेगा। यदि आप विवाहित हैं तो आपकी संतान को इस दौरान प्रगति मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल रहेगा। कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों से आप यदि अपने व्यवहार को बेहतर बनाएँगे तो उससे आपको उनका सहयोग भी समय समय पर मिलता रहेगा और आप तरक्की की राह पर आगे बढ़ेंगे।

उपायः भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें और उन्हें दूर्वांकुर (दूब घास) चढ़ाएँ।

कुंभ राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव आपके चौथे और नौवें भाव के स्वामी होकर योगकारक ग्रह हैं और आपके दूसरे भाव में गोचर की अवधि में विराजमान होंगे। इस गोचर के फल स्वरूप आपको अनेक अच्छे नतीजे मिलेंगे। आप अच्छे भोजन का आनंद लेंगे और स्वादिष्ट व्यंजनों का जी भर कर मजा लेंगे। कोई सुख शांति पूर्ण काम होगा, जिससे घर में रौनक लौट आएगी। इस दौरान भाग्य का आपको पूरा साथ मिलेगा और आपकी योजनाएं आपको धन प्रदान करेंगी। धन संचित करने में भी आपको इस दौरान सफलता मिलेगी और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। यह समय आपको सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी समृद्ध बनाएगा। इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों से भी आपको लाभ होगा और कोई प्रॉपर्टी या फिर वाहन से आपको उत्तम प्रकृति के लाभ के योग बनेंगे। इस प्रकार यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल साबित होगा और आपकी भाग्य वृद्धि के साथ-साथ मान सम्मान में भी बढ़ोतरी लेकर आएगा।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन घर की स्त्रियों को कोई सफ़ेद मिठाई खिलानी चाहिए।

मीन राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और आठवें भाव के स्वामी हैं और गोचर की इस अवधि में आप के प्रथम भाव में विराजमान होंगे। इन दोनों ही भावों के स्वामी होने से आपको शारीरिक तौर पर कुछ परेशानियां झेलनी पड़ेंगी और आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना होगा। वहीं अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे और आपका मन किसी प्रकार के शोध या छुपी हुई बातों को जानने में होगा। आप अपने किसी टैलेंट को समाज के सामने लेकर आएँगे, जिससे आपको मान सम्मान मिलेगा। इस दौरान आपके भाई बहनों से आपको अच्छे लाभ मिलेंगे और वे हर काम में आपके साथ खड़े नजर आएँगे। दांपत्य जीवन के लिहाज से यह समय काफी अनुकूल रहेगा और आप और आपके जीवनसाथी के मध्य प्रेम बढ़ेगा, जिससे आपको दांपत्य सुख की प्राप्ति होगी और व्यापार के सिलसिले में भी लाभ मिलेगा। इसका सबसे अच्छा लाभ यह होगा कि आपके व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ेगा और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आपको उनकी नजर में अपने आप को सिद्ध करने का मौका मिलेगा।

उपायः आपको दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए और मां दुर्गा को लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹