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Wednesday, July 06, 2022

सावन के आयुर्वेदिक नियम Do's and don't in monsoon

#सावन__के__आयुर्वेदिक__नियम
इस महीने में नहीं पीना चाहिए दूध, ये चीजें जरूर खाएं

तेज लू-लपट और झुलसा देने वाली तेज गर्मी के बाद बारिश का मौसम बहुत सुहाना लगता है। बारिश के मौसम की ठंडी हवाएं, फुहार और हरियाली माहौल खुशनुमा बना देती हैं। इस मौसम में बरसते पानी को देखते हुए पकौड़ों का लुत्फ उठाने का भी अपना मजा है।

👉🏽 #_आयुर्वेद के नजरिए से देखा जाए तो इस मौसम में जठराग्नि कमजोर रहती है और वात प्रकुपित रहता है। इसलिए आहार-विहार संबंधी नियमों का पालन भी जरूरी होता है। आइए, आज जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार किन चीजों को सावन में खाना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए।
 
▪️ #_न_करें_दूध_का_सेवन - आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। आप सोच रहे होंगे कि भला दूध से क्या नुकसान हो सकता है। दरअसल, सावन में बारिश के कारण हरियाली ज्यादा होती है। मौसम परिवर्तन के कारण हरियाली में जहरीले कीड़ेे-मकोड़ों की भी अधिकता होती है।

सावन के महीने में दूध से बनी चीजों को भी सावन में खाने से मना किया जाता है। सावन के महीने में कच्चा दूध नहीं पीना चाहिए। कच्चा दूध पीने से पित्त और कफ की परेशानी हो सकती है।  

यही कारण है कि गाय या भैंस घास के साथ कई कीड़े-मकोड़ों को भी खा जाते  है। इसलिए दूध हानिकारक हो जाता है। इस समय में दूध के सेवन से वात बढ़ता है, जिसके कारण बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए सावन में दूध नहीं पीना चाहिए। इस कारण दूध गुणकारी कम और हानिकारक ज्यादा हो जाता है।

▪️ #_कच्ची_हरी_सब्जियों_से_दूर_रहें- सावन के महीने में हरी सब्जियों का सेवन वर्जित माना गया है। दरअसल, आयुर्वेद के अनुसार बारिश की हरी सब्जियों में बीमारी फैलाने वाले कीटाणु बहुत अधिक होते हैं। इससे पेट व त्वचा से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं। इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए सावन में हरी सब्जियां नहीं खानी चाहिए।

▪️ #_बैंगन से करें तौबा - सावन के महीने में बैंगन भी नहीं खाना चाहिए। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। 

▪️ #_जरूर_खाएं ये चीजें- आयुर्वेद के अनुसार बारिश में सुपाच्य, ताजा, गर्म और जल्दी पचने वाली चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में पुराना गेहूं, चावल, मक्का, सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मूंग, अरहर की दाल, सब्जियों में लौकी, तुरई, टमाटर। फलों में सेब, केला, अनार, नाशपाती, पके जामुन, देशी आम और घी व तेल में बनी नमकीन चीजें खानी चाहिए। इस मौसम में जामुन खाने के भी अनेक फायदे हैं। जामुन खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है, त्वचा रोग, प्रमेह रोग आदि दूर रहते हैं। भुट्टों का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। वैज्ञानिक तौर पर सावन के महीने में सलाद का सेवन नहीं करना चाहिए। बारिश के मौसम में सब्जियों में बैक्टीरिया पैदा हो जाता है इसलिए कच्ची सब्जियों का खाना वर्जित होता है। खास तौर पर सावन के महीने में मशरुम का सेवन एकदम नहीं करना चाहिए।

▪️ #_सावन के महीने में तली और भुनी चीजें सेहत के लिए नुकसान दायक होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि ऐसी चीजें इस मौसम में खाने से पेट में सूजन आ जाती है और साथ ही पाचन क्रिया भी कमजोर हो जाती है।

Wednesday, May 04, 2022

पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत अपनावे ये घरेलू उपाय_*

*☘️ *_पहचाने अपनी पेट की गर्मी को करें ऐसे उदर शांत  अपनावे ये घरेलू उपाय_*

पेट के रोग और पेट की गर्मी

*हमारे पेट में गर्मी हो रही है, इस बात पता ऐसे लगाएं*

छाती या सीने में जलन होना
सांस लेने में तकलीफ होना
मुंह में खट्टा पानी और खट्टी डकारें आना
घबराहट और उल्टी जैसा महसूस होना
पेट में  जलन और दर्द होना
गले में जलन होना
पेट का फूल जाना (पेट में अफ़ारा होना)
कब्ज होना
सिर दर्द होना
पेट में गैस का बनना

 *पेट को ठंडा रखने के लिए क्या खाएं?*

पेट को ठंडा रखने के लिए हमें सबसे पहले अपने खान-पान के तरीकों में बदलाव लाना होगा. 

*पेट को ठंडा रखने के लिए करें ये उपाय:*

1. केला खाएं:
पेट की गर्मी को शांत करके उसे ठंडा रखने में केला बहुत मदद करता है. केले के पोटेशियम की मात्रा पेट में बनने वाले एसिड को नियंत्रित करती है और केले का पी एच तत्व  एसिड को कम करता है. साथ ही केला, पेट में एक चिकनी पर्त बना देता है जिससे एसिडिटी में कमी आती है. केले का फाइबर पाचन तंत्र को भी दुरुस्त रखता है.

 2. तुलसी के पत्तों का सेवन:
तुलसी के पत्तों का सेवन करने से पेट में पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेट के अतिरिक्त ऐसिड में कमी आती है. इसे खाने से मिर्च-मसाले वाला खाना भी सरलता से पच जाता है. रोज खाने के बाद पाँच-छह तुलसी के पत्ते खाने से एसिडिटी नहीं होती है.

 3. ठंडा दूध पियें:
दूध का कैल्शियम, पेट के एसिड को एब्जॉर्ब करके उसे बहुत आसानी से ख़त्म कर देता है. रोज सुबह एक कप ठंडा दूध पेट को ठंडा रखने का रामबाण इलाज है.

 4. सौंफ खाएं:
खाना खाने के बाद सौंफ का सेवन इसलिए अच्छा माना जाता है क्योंकि सौंफ की तासीर ठंडी होती है जो पेट की जलन और गरमी को शांत करती है. इसलिए अगर एसिडिटी की शिकायत ज्यादा हो तो सौंफ को पानी में उबालकर उसका सेवन करें.

Wednesday, February 16, 2022

पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...

श्री सत्यनारायण व्रत 
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पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?
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आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान  सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है । पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । 
जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें। 

सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है, भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ 
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पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।
सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की। शतानन्दअति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्तिअपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। 

वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ 

(इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुर में प्रवेश) की स्थिति में आए। काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरण किया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की। राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रती थे। वे नियमित रूप से भद्रशीलानदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना करते थे। सत्याचरण ही उनके जीवन का मूल मन्त्र था। दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरण किया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की। साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावती नामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्म के पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चाना से मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुर में श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु के कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामी से झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादन के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिक के मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने  को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावती को अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज तो पूजास्थल पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत:बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की और सत्याचरण का व्रत लिया। सत्यनारायण व्रतकथा के उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापा त्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से स्कंद पुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीन व्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही हो सकता है। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीन थे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिकनएवं राजा तुंगध्वज धन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धन सम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे। पूरी सत्यनारायण व्रत कथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिक हितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरण का व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरण का अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।
केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।
नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।

भगवान सत्यनारायण पूजा सामग्री
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भगवन सत्यनारायण की मूर्ति या फ़ोटो
1 चौकी या पटला तथा उस पर बिछाने के लिए एक मीटर पीला या सफ़ेद कपडा
अबीर
गुलाल
कुमकुम (रोली)
सिंदूर
हल्दी
मोली
धुप
अगरबत्ती
10 ग्राम लौंग
10 ग्राम इलायची
32 सुपारी
चन्दन
500 ग्राम चावल
250 गेहूँ
50 ग्राम कपूर
इत्र
कापूस
गंगाजल
गुलाबजल
गोमूत्र
पञ्च मेवा
5 जनेऊ
1 नारियल
भगवन के वस्त्र
250 ग्राम घी
10 ग्राम पीली राई
5 पान के पत्ते
5 आम के पत्ते
हार फूल तुलसी पत्र
4 केले के खम्बे
250 ग्राम मिठाई
1 लीटर दूध
250 ग्राम दही
100 ग्राम चीनी
50 ग्राम शहद
भगवन के भोग के लिये चूरमा, पंजीरी या हलुआ इत्यादि

हवन प्रकरण (यदि हवन करना हो तो )
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हवन सामग्री
तिल
चावल
जौ
चीनी
घी
नव ग्रह समिधा 2 बण्डल
1 किलो आम की लकड़ी

पूजा के पूर्व की तैयारी
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जिस दिन पूजा करनी हो एक या दो दिन पूर्व ही यतन अनुसार पूजा की सभी सामग्री बाजार से ला कर उसे चेक कर ले ताकि पूजा के समय असुविधा न हो।

पूजन विधि
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श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्तव को बतलाता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।

पूजन का मंडप तैयार करना
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पूर्वाभिमुख हो कर एक चोकी पर पीला कपडा बिछा कर केले के खम्बे को लगा दे उस के बाद चित्रानुसार भगवन श्री सत्यनाराण गणेश नवग्रह कलश षोडश मातृकाएँ वास्तुदेवता की स्थापना करें अष्टदल या स्वस्तिक बनाएं। बीच में चावल रखें। पान सुपारी से भगवान गणेश की स्थापना करें। अब भगवान सत्यनारायण की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या नारायण की प्रतिमा की भी स्थापना करें।
सत्यनारायण के दाहिनी ओर शंख की स्थापना करें। जल से भरा एक कलश भी दाहिनी ओर रखें। कलश पर शक्कर या चावल से भरी कटोरी रखें। कटोरी पर नारियल भी रखा जा सकता है। अब बायी ओर दीपक रखें। केले के पत्तों से पाटे के दोनो ओर सजावट करें।
अब पाटे के आगे एक सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रखें तथा नवग्रह मंडल बनाएं पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाना है। और उस के साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें तथा षोडशमातृका मंडल तैयार करने के बाद पूजन शुरु करें।
प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें। या जितना शक्ति हो उस अनुसार इकठ्ठा कर लें। भगवान की तस्वीर के आगे ये सभी पदार्थ रख दें।

सकंल्प ;
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संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

पवित्रकरण ;
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बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन शुद्धि
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निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।

ग्रंथि बंधन
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यदि यजमान या पूजा करने वाले भक्त सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-

यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्।

आचमन करें
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इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-
ऊँ केशवाय नमः
ऊँ नारायणाय नमः
ऊँ माधवाय नमः
यह मंत्र बोलकर हाथ धोएं
ऊँ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

स्वस्तिवाचन मंत्र
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सबसे पहले स्वस्तिवाचन किया जाना चाहिए।
स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्र्षयो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु।
अब सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमा महेश्वराभ्यां नमः ।
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः ।
कुलदेवताभ्यो नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।
सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्यहा गणाधिपतये नमः।

भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। जनेऊ अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। भगवान नारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें। अब दीपक प्रज्वलित करें। धूप, दीप करें। भगवान गणेश और सत्यनारायण धूप-दीप अर्पित करें। ‘‘ऊँ सत्यनारायण नमः’’ कहते हुए सत्यनारायण का पूजन करें।
अब चावल की ढेरी में नवग्रहों का पूजन करें। अष्टगंध, पुष्प को नवग्रहों को अर्पित करें।

नवग्रहों का पूजन का मंत्र
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ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।
इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें।
अब कलश में वरुण देव का पूजन करें। दीपक में अग्नि देव का पूजन करें।

कलश पूजन
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कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः। इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें।

दीपक
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दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत ।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः।

कथा-वाचन और आरती
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पूजन के बाद सत्यनारायण की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। कथा पूरी होने पर भगवान की आरती करें। प्रदक्षिणा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई, शक्कर का बूरा जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा करा हो। उन सभी पदार्थों का भगवान को भोग अर्पित करें। भगवान का प्रसाद सभी भक्तों को बांटे।

श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में 
श्रीसत्यनारायणव्रत कथा 
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पहला अध्याय ,,एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए. इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं. सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले – हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था. आप सब इसे ध्यान से सुनिए –
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे. यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा. उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए. इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए. वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे.
स्तुति करते हुए नारद जी बोले – हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं. आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है. निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है. नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले – हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो. इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं. हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।

श्रीहरि बोले – हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है. जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो. स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है. आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ।

श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है.
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ.  नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले – दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है. मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए. भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें. गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ। ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें. भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं. इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं. इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है.

।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण।।  
श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
दूसरा अध्याय
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सूत जी बोले ,, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था. भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था. ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा ,, हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला ,, मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ. भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ. हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए. वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो. इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है.
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए. ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा. यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई. वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया. उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला. जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है.
सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।

विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।

बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
तीसरा अध्याय 
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सूतजी बोले ,, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ. पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा – हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएँ।
राजा बोला – हे साधु! अपने बंधु-बाँधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ. राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला – हे राजन ! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए. आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा. मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी. राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुँगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनोंदिन वह ऎसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।
एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा. इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बाँधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें.
राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है?
कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।

।।इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
चतुर्थ अध्याय
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सूतजी बोले ,, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए. उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं. वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले – तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए. कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए. दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी. दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला – मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है. तू मेरी पूजा से विमुख हुआ. साधु बोला – हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ. आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा. मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए. जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया. दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई. प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया. कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई. नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें.
साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई – हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है. यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा. ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है. उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है. इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।

।।इति श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
 
पाँचवां अध्याय
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सूतजी बोले ,, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था. उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया. एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया. वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा. अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया. ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया.
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है. वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया. दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है.
सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा  कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।

श्री सत्यनारायणजी की आरती 
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जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥

भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी... ॥

Tuesday, August 03, 2021

olympic medal ? secret to happiness

#Olympicmusings

Have you noticed that a bronze medalist is generally more happy than a silver medalist at the end of the game.

Its not incidental finding but proven fact in many research studies after studying reactions of silver medalists vs bronze medalists! 

Ideally, a silver medalist should be more happy than the bronze. But, human mind doesn't work like mathematics. 

This happens because of phenomenon of counterfactual thinking. 

A concept in psychology in which there is human tendency to create possible alternatives to life events that have already happened, that would be contrary to what happened.

Sliver medalist thinks, "Oh I couldn't win the gold medal." Bronze medalist thinks, "At least I got a medal."

Silver medal is won after losing, but Bronze medal is won after Winning.

This happens in our life also, we don't appreciate what we have but feel sad with what we don't have. Let's be grateful for our blessings, they far outweigh our problems if we start counting.

Monday, June 29, 2020

Ayurveda tips for Teeth & Gums to be healthy shiny

जाने दांतो का इलाज करने वाले आयुर्वेदिक दंतमंजन के बारे में, जिन्हें आप खुद अपने घर पर ही बना सकते हो।
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सेंधा नमक
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 पिसा हुआ सेंधा नमक को दांतों पर मलते रहने से दांत जड़ों से मजबूत होते हैं। सेंधा नमक दांतों में जमी गंदगी को दूर करता है साथ ही कैमिकल रूप से जमें हुए एसिड़ को भी खत्म करता है।

नींबू का मंजन बनाने का तरीका
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नींबू को आप छाया में सुखा लें फिर इन्हें कूट लें और पाउडर तैयार करें। इस पाउडर को आप दांतों पर मंजन करें। यह दांतों को मोती जैसी चमक दिलवाता है।

बादाम का मंजन कैसे बनाएं
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बादामों के छिलकों को जलाकर उन्हें पीस लें और उसमें थोड़ा सेंधा नमक डालकर मंजन बना लें। इस मंजन के प्रयोग से दांतों की चमक बढ़ती है।

आम का पत्तों का मंजन
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आम के ताजे पत्तों को चबा-चबा कर खाएं और थूकते रहें। नियमित रूप से कुछ दिनों तक करते रहने से दांत जड़ से मजबूत हो जाते है। यदि आम के पत्तों को छांव में सुखाकर उन्हें जला लें फिर उसका चूर्ण बनाकर दांतों पर लगाने से दांतों की उम्र लंबी होती है।

 बेकिंग सोडा
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सेंधा नमक, बेकिंग सोडा, सिरका के साथ फिटकरी को मिला कर दांतों पर मंजन के तौर पर प्रयोग करें।

नारियल का तेल
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कुल्ला तेल से करें यह प्राचीन समय का नुस्खा है जो दांतों की गंदगी को दूर करता है। नारियल तेल से कुल्ला करने से दांत साफ होते हैं।
कुछ देर तक कुल्ला करने के बाद दांतों को मुलायाम और सूखे ब्रश से दांतों को साफ करना चाहिए।

प्राकृतिक तेल का प्रयोग
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दांतों के लिए पुदीने का तेल, दालचीनी का तेल, लौंग का तेल आदि एंटीबैक्टीरियल हैं जिनका इस्तेमाल दांतों की सफाई के रूप में किया जा सकता है।

सरसों का तेल
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दांतों को जड़ से मजबूत करने में सरसों का तेल का प्रयोग करना चाहिए यह भी एक प्राचीन उपाय है। सरसों के तेल में नमक, हल्दी को मिलाकर डेली दांत मांजने चाहिए।

मिट्टी का प्रयोग
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चिकनी मिट्टी को रात को पानी में भिगो कर रखें और सुबह और शाम मसूड़ों पर लगाते रहने से थोड़े ही दिनों में आपके दांत मजबूज हो जाएगें।
यदि मसूड़ों में दर्द और सूजन है तो एलोवेरा और हल्दी का पाउडर को मिलाकर बना हुआ पेस्ट को मसूड़ों पर लगाने से मसूड़े ठीक होते हैं।
पानी से भी ब्रश कर सकते हो। एैसा करने से दांत में फंसे खाने को आराम से निकाला जा सकता है।

दालचीनी 
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दालचीनी मुंह की बदबू को कम करती है साथ ही मुंह में किसी तरह के कीड़े को नहीं लगने देती है। दालचीनी पूरी तरह से एंटी बैक्टीरियल है।

जीरा
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जीरे को हल्की आग में सेक लें और इसका नित्य सेवन करें। यह मुंह की दुर्गन्ध को कुछ ही दिनों में जड़ से खत्म कर देगा।

इन आसान तरीकों से आप अपने घर में ही प्राकृतिक दांतमंजन बना सकते हो। यदि दांत ठीक हैं तो आपकी सेहत भी ठीक हैं।

WWW.ASTRORRACHITA.IN 
Acharya Rrachita Gupta +919958067960

Monday, February 03, 2020

मीन मे शुक्र ग्रह का प्रभाव VENUS IN PISCES transit for all 12 zodiac signs

*शुक्र आज 3 तारीख को  अपनी राशि बदल रहा हैं ओर मीन राशि मे जा रहे हैं जो उस की उच्च राशि हैं*

*शुक्र का मीन राशि में गोचर देगा उच्च राशि के प्रभाव (3 फरवरी, 2020)*

शुक्र को जीवन में सुख सुविधा प्रदान करने वाला मुख्य ग्रह माना गया है। शुक्र के प्रभाव से जीवन में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं की बढ़ोतरी होती है और व्यक्ति अपने जीवन में राज योग भोगता है। प्रेमियों के लिए भी शुक्र देव बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में शुक्र का अपनी उच्च राशि मीन में 3 फरवरी 2020 को गोचर करना कई जातकों के लिए वरदान साबित होने वाला है।

*शुक्र देंगे प्रेमियों को वैलेंटाइन डे उपहार*

इस चलते वैलेंटाइन डे पर कई राशि के जातक अपने प्रियतम संग प्रेम के इस दिवस का आनंद लेते दिखाई देंगे। आपकी सभी सुंदर परियोजनाएँ सही कर्म में होंगी। ऐसे में आप अपने साथी या प्रेमी को खुश करने के लिए उन्हें खाने के लिए बाहर लेकर जा सकते हैं क्योंकि आपका साथी आपको इस विशेष दिन बेहद ख़ास अनुभव कराएगा। इस समय अगर आपको उनके हर वक़्त फ़ोन में लगे रहने से दिक्कत महसूस होती थी तो आपकी ये शिकायत भी इस दौरान दूर होगी। कुल मिलाकर कहें तो शुक्र का मीन में गोचर प्रेमियों के लिए सोने पर सुहागे का कार्य करेगा।

*शुक्र गोचर का समय*

जीवन में सुखों का प्रदाता और प्रेम को बढ़ाने वाला शुक्र ग्रह 3 फरवरी, सोमवार की सुबह 02:13 बजे कुम्भ राशि से निकलकर देव गुरु बृहस्पति के स्वामित्व वाली मीन राशि में प्रवेश कर चुके हैं 
। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र के गोचर की अवधि काफी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसके शुभ प्रभाव से अनेक प्रकार के शुभ कार्य संपन्न होते हैं। मीन राशि में शुक्र के गोचर का प्रभाव सभी बारह राशियों पर देखने को मिलेगा क्योंकि यह शुक्र की उच्च राशि है।

तो आईये जानते हैं कि शुक्र के मीन राशि में गोचर का सभी राशि के जातकों पर कैसा प्रभाव पड़ने की संभावना है:

*यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।*

मेष राशि
आपके लिए शुक्र दूसरे और सातवें भाव के स्वामी हैं और इस गोचर की अवधि में आपके बारहवें भाव में विराजमान हो जाएंगे। इसके परिणाम स्वरूप आपके खर्चों में एकाएक वृद्धि होने लगेगी, जिसका असर आपकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा, लेकिन यह खर्चे आपकी सुख सुविधाओं को बढ़ाने वाले होंगे और आपको खुशी देंगे, जिससे आप आसानी से इस खर्च को वहन कर पाएंगे। आप की आमदनी भी बढ़ेगी आपके व्यापार में विदेशी संपर्कों का आपको लाभ हासिल होगा और धन निवेश के लिए भी यह समय काफी उन्नति दायक साबित होगा। आपको व्यसनों से बचने का प्रयास करना चाहिए। कुछ लोगों को व्यापार के सिलसिले में विदेश जाने का मौका भी मिल सकता है। इसके अलग कुछ ऐसे लोग, जिनका विवाह होने वाला है, उन्हें विवाह के बाद विदेश जाने की संभावना बनेगी। इस दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा क्योंकि अति व्यस्त दिनचर्या और अनियमित खान-पान के कारण आपको स्वास्थ्य कष्ट हो सकते हैं। यह समय धन निवेश करने के लिए अनुकूल रहेगा।

उपायः प्रत्येक शुक्रवार के दिन किसी धार्मिक स्थान पर मिश्री का दान करें।

वृषभ राशि
शुक्र देव आपकी राशि के स्वामी हैं यानि कि आप के पहले भाव के स्वामी होने के साथ-साथ आप के छठे भाव के स्वामी भी हैं। मीन राशि में शुक्र देव के इस गोचर की अवधि में वे आप के ग्यारहवें भाव में जाएंगे, जिसकी वजह से आपकी आमदनी में जबरदस्त इजाफा होगा। आपकी मनोनुकूल इच्छाएं पूरी होंगी और आपको खुशी मिलेगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा और पुरानी चली आ रही किसी बीमारी से मुक्ति मिलेगी। इस दौरान आपकी मित्र मंडली में इजाफा होगा। प्रेम संबंध के मामलों में यह गोचर काफी अनुकूल साबित होगा और आपके प्रेम जीवन को प्रेम से सराबोर कर देगा। आप अपने प्रियतम के साथ बेहतरीन पलों का आनंद लेंगे और आपको खुशी का एहसास होगा। आपकी शिक्षा में वृद्धि होगी और नौकरी के क्षेत्र में भी आपको इस दौरान अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। व्यापार में लाभ होने से आप काफी प्रसन्नता महसूस करेंगे।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन अरंड मूल धारण करनी चाहिए।

मिथुन राशि
मिथुन राशि के स्वामी बुध शुक्र के परम मित्र हैं। आपकी राशि के लिए शुक्र देव पाँचवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आपके दशम भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के प्रभाव से आपके परिवार में सुख शांति की बयार बहेगी। परिवार में ख़ुशियाँ आएँगी। परिवार के लोग कोई नया वाहन खरीदने का विचार करेंगे, जिसमें उन्हें सफलता हासिल होगी। लोगों के बीच प्रेम बढ़ेगा। यदि कार्य क्षेत्र की बात की जाए तो उसमें आपको अच्छे नतीजे मिलेंगे, लेकिन आप अति आत्मविश्वास के शिकार हो सकते हैं, जिसकी वजह से आपका काम बिगड़ सकता है, इसलिए से बचने का प्रयास करें। आपकी वाणी में मिठास बढ़ेगी और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आप का दबदबा बढ़ेगा। अपनी विद्या के बल पर आप अपने कार्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और इस सिलसिले में की गई यात्राएं भी आपके लिए फ़ायदेमंद साबित होंगी। बेवजह की बातों से अपना मन अलग रखें, नहीं तो काम में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करें।

कर्क राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव चौथे भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी होकर गोचर की इस अवधि में आपके नौवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको लंबी यात्राओं पर जाने का मौका मिलेगा। यह यात्राएं आपके सुख और आनंद में वृद्धि करेंगी। आप परिवार के लोगों के साथ या ऑफिस के सहकर्मियों के साथ किसी पिकनिक पर अच्छे रमणीक स्थान पर घूमने जा सकते हैं। आपके मान और सम्मान में बढ़ोतरी होगी। आपकी आमदनी भी बढ़ेगी और लोगों के बीच आपकी पूछ बढ़ेगी। कुछ लोगों को इस दौरान सुदूर स्थान पर जाकर प्रॉपर्टी का लाभ मिलेगा, यानि कि अपने जन्म स्थान से दूर कुछ लोग प्रॉपर्टी बना पाएंगे। इसके अतिरिक्त व्यापार के सिलसिले में आपको जबरदस्त लाभ होने के भी योग बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन चीनी दान में दें।

सिंह राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और दसवें भाव के स्वामी हैं और मीन राशि में गोचर करते हुए आपके आठवें भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने साथ काम करने वाले लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना होगा, अन्यथा आपको अपने पद से विमुक्त किया जा सकता है। इस दौरान अनचाहे ट्रांसफर के भी योग बन सकते हैं। गुप्त सुखों को भोगने की लालसा जागेगी, जिसकी वजह से आप काफी धन भी खर्च करेंगे। हालांकि मर्यादित आचरण करना ही बेहतर रहेगा। भाई बहनों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और यात्राओं में बेवजह का तनाव और खर्चे आपको परेशान करेंगे। अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान आपको इस दौरान रखना चाहिए।

उपायः आप को शुक्रवार के दिन गौमाता को आटे की लोई अपने हाथ से खिलानी चाहिए।

कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों के लिए शुक्र देव आपके दूसरे और नौवें भाव के स्वामी होने के बाद गोचर की इस अवधि में आप के सातवें भाव में प्रवेश करेंगे। इस गोचर के परिणाम स्वरूप आपको अपने दांपत्य जीवन में अनेक सुखों का लाभ मिलेगा आप उत्तम दांपत्य जीवन का सुख भोगेंगे। आपका जीवन साथी आपके लिए लाभ का माध्यम भी बनेगा और आपको इच्छित सुख प्रदान करेगा। आप दोनों के बीच संबंध बेहतर बनेंगे और परिवार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न करेंगे। व्यापार के सिलसिले में इस दौरान आपको जबरदस्त लाभ होने के योग बन रहे हैं, इसलिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं। यात्राओं से आपको लाभ मिलेगा। मान व सम्मान की बढ़ोतरी होगी और जनता की नजर में आपकी छवि बेहतर बनेगी। अपने संचित धन को व्यवसाय में निवेश कर सकते हैं। मानसिक रूप से आप काफी मजबूत रहेंगे और लोगों के प्रति स्नेह की भावना आपके मन में रहेगी, जिससे आप लोगों के प्रिय बनेंगे ।

उपायः शुक्रवार के दिन माता महालक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।

तुला राशि
आपकी राशि के स्वामी शुक्र देव हैं। अर्थात आप के प्रथम भाव के साथ-साथ आपके अष्टम भाव के स्वामी शुक्र देव अपने मीन राशि में गोचर की समय अवधि में आपके छठे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपके खर्चों में यकायक वृद्धि होगी और यह आपकी जेब पर काफी भारी पड़ सकती है, इसलिए आपको काफी सोच समझकर अपना बजट प्लान करना होगा। स्वास्थ्य के मामले में यह समय बेहतर नहीं रहेगा और आपको अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि आपको इस दौरान असंतुलित दिनचर्या के चलते या व्यर्थ खान पान के चलते स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं। ये परेशानियाँ लंबे समय तक चल सकती हैं। धन हानि होने की संभावना रहेगी लेकिन इस दौरान यदि आपका कोई कर्ज़ है तो वह चुकता हो जाएगा, जिससे आपको आर्थिक रूप से कमज़ोरी तो होगी, लेकिन राहत की सांस भी मिलेगी। कार्य क्षेत्र में यह समय आँख और कान खोल कर अपने काम पर फोकस करने का है, तभी आपको अच्छे नतीजे हासिल होंगे। इस समय को बेहतर बनाने के लिए आपको एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा और खूब मेहनत करनी पड़ेगी ।

उपायः आपको उत्तम गुणवत्ता का ओपल रत्न शुक्रवार के दिन चाँदी की अंगूठी में अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।

वृश्चिक राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव सातवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं तथा गोचर की इस अवधि में आप के पांचवे भाव में गोचर करेंगे, जिसकी वजह से आपके प्रेम संबंधों में खुशबू बिखर जाएगी और आपका प्रेम जीवन काफी मजबूती से आगे बढ़ेगा। आप और आपके प्रियतम के बीच की सभी ग़लतफहमियाँ दूर हो जाएंगी और आप प्रेम के बंधन में बंध कर अपने जीवन को एक खुशनुमा राह पर आगे बढ़ाएंगे। इस दौरान आपकी शिक्षा में आपको बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे और आपकी गणना विद्वानों में होगी। अपनी क्रिएटिविटी के कारण आपको सब की प्रशंसा मिलेगी और आपका धन बढ़ेगा। अर्थात् प्रचुर धन लाभ के योग बनेंगे। दोस्तों और विपरीत लिंगी जातको में आप खासे लोकप्रिय हो जाएंगे और आपके सोशल सर्किल में इजाफा होगा। इस समय में आप कोई क्रिएटिव काम करेंगे, जिससे आपको प्रसिद्धि भी प्राप्त होगी। कुछ भाग्यशाली लोगों को इस दौरान संतान प्राप्ति के योग भी बनेंगे। व्यापार के सिलसिले में लाभ प्राप्ति का अवसर आपको अवश्य मिलेगा।

उपायः शुक्रवार को लौंग वाला पान माता महालक्ष्मी को अर्पित करें।

धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए शुक्र महाराज छठे भाव के साथ-साथ ग्यारहवें भाव के स्वामी भी होते हैं और गोचर की इस अवधि में वे आप के चौथे भाव में प्रवेश करेंगे, जिससे परिवार में खुशियाँ आएँगी। कोई अच्छा समारोह या फिर कोई फंक्शन या शुभ कार्य आपके घर में संपन्न होगा, जिसमें अतिथियों के आगमन से घर में हर्ष और उल्लास की स्थिति बनेगी। मेहमानों का आगमन होगा जिसकी वजह से परिवार में नई चेतना और लोगों में एक दूसरे के प्रति स्नेह की भावना बढ़ेगी। कार्य क्षेत्र में भी आपको उत्तम नतीजे प्राप्त होंगे। आपके काम में आपको प्रशंसा मिलेगी और आपकी सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ जाएगी। आपको अनेक प्रकार के सुख मिलेंगे। इस दौरान परिवार में कोई नया वाहन आ सकता है और अपने घर को सजाने संवारने पर भी आप खासा ध्यान देंगे।

उपायः शुक्रवार के दिन किसी महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करें।

मकर राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं और इस प्रकार आपके लिए ये एक योगकारक ग्रह हैं। गोचर की इस अवधि में यह आपके तीसरे भाव में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से आपको अनेक सुखद यात्राओं पर जाना पड़ेगा। गोचर की इस अवधि में आप मौज मस्ती के लिए या मित्रों के साथ घूमने करने के प्लान बनाएँगे, जिससे आपको खूब खुशी का अनुभव होगा और अपने आप को ऊर्जावान महसूस करेंगे। इस दौरान यात्राओं से आपको कुछ नए संपर्क जुड़ेंगे, जो भविष्य में आपके काम आएँगे। प्रेम जीवन में वृद्धि होगी। यदि आप अभी तक सिंगल हैं, तो आपके जीवन में कोई खास व्यक्ति आ सकता है, जिससे आपको प्रेम हो जायेगा। यदि आप विवाहित हैं तो आपकी संतान को इस दौरान प्रगति मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल रहेगा। कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों से आप यदि अपने व्यवहार को बेहतर बनाएँगे तो उससे आपको उनका सहयोग भी समय समय पर मिलता रहेगा और आप तरक्की की राह पर आगे बढ़ेंगे।

उपायः भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें और उन्हें दूर्वांकुर (दूब घास) चढ़ाएँ।

कुंभ राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव आपके चौथे और नौवें भाव के स्वामी होकर योगकारक ग्रह हैं और आपके दूसरे भाव में गोचर की अवधि में विराजमान होंगे। इस गोचर के फल स्वरूप आपको अनेक अच्छे नतीजे मिलेंगे। आप अच्छे भोजन का आनंद लेंगे और स्वादिष्ट व्यंजनों का जी भर कर मजा लेंगे। कोई सुख शांति पूर्ण काम होगा, जिससे घर में रौनक लौट आएगी। इस दौरान भाग्य का आपको पूरा साथ मिलेगा और आपकी योजनाएं आपको धन प्रदान करेंगी। धन संचित करने में भी आपको इस दौरान सफलता मिलेगी और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। यह समय आपको सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी समृद्ध बनाएगा। इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों से भी आपको लाभ होगा और कोई प्रॉपर्टी या फिर वाहन से आपको उत्तम प्रकृति के लाभ के योग बनेंगे। इस प्रकार यह गोचर आपके लिए काफी अनुकूल साबित होगा और आपकी भाग्य वृद्धि के साथ-साथ मान सम्मान में भी बढ़ोतरी लेकर आएगा।

उपायः आपको शुक्रवार के दिन घर की स्त्रियों को कोई सफ़ेद मिठाई खिलानी चाहिए।

मीन राशि
आपकी राशि के लिए शुक्र देव तीसरे और आठवें भाव के स्वामी हैं और गोचर की इस अवधि में आप के प्रथम भाव में विराजमान होंगे। इन दोनों ही भावों के स्वामी होने से आपको शारीरिक तौर पर कुछ परेशानियां झेलनी पड़ेंगी और आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना होगा। वहीं अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे और आपका मन किसी प्रकार के शोध या छुपी हुई बातों को जानने में होगा। आप अपने किसी टैलेंट को समाज के सामने लेकर आएँगे, जिससे आपको मान सम्मान मिलेगा। इस दौरान आपके भाई बहनों से आपको अच्छे लाभ मिलेंगे और वे हर काम में आपके साथ खड़े नजर आएँगे। दांपत्य जीवन के लिहाज से यह समय काफी अनुकूल रहेगा और आप और आपके जीवनसाथी के मध्य प्रेम बढ़ेगा, जिससे आपको दांपत्य सुख की प्राप्ति होगी और व्यापार के सिलसिले में भी लाभ मिलेगा। इसका सबसे अच्छा लाभ यह होगा कि आपके व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ेगा और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे, जिससे आपको उनकी नजर में अपने आप को सिद्ध करने का मौका मिलेगा।

उपायः आपको दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए और मां दुर्गा को लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए।
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Tuesday, August 20, 2019

SWITCHWORDS MAGIC

Switchword is the essence of an experience, condition, or desired result, expressed as a single word. Switchword is "one-word creative declaration," a "one-word affirmation."

Declare, affirm, chant, sing, or even just mentally "intend" the Switchword, and like turning on an electric lamp with a switch, the desired result reliably appears.

TOGETHER is the Master Switchword for a life of heaven on Earth and mastery of any task at hand, 14 Categories: Freedom, Love, Survival, Security, Health, Money, Art, Wisdom, Pleasure, Happiness, the life of action, Self-improvement, Service to humanity, God religion spirituality and enlightenment, James T. Mangan realized TOGETHER was the one-word formula on 10-March-1951 that would manifest all of them in perfect proportion.



1. ACT be a good orator; transition
2. ADD find or increase percentage; enlarge what you have
3. ADJUST create balance; assume or carry a burden; handle uncomfortable or unpleasant conditions

4. ALONE nurture or heal; increase focus on self
5. AROUND gain or improve perspective
6. ATTENTION do detailed work; avoid carelessness
7. BE be at peace and maintain wellness; have good form; dispel loneliness; skill in sports; to be unaffected by ridicule and negative or contrary energy

8. BETWEEN use or enhance telepathy; increase psychic awareness
9. BLUFF dispel fear or nervousness; enhance imagination and dreams
10. BOW dispel arrogance
11. BRING unite with; manifest; make it so; deliver the goods
12. BUBBLE expand beyond perceived limitations; get energized; get excited

13.CANCEL eliminate negativity or unwanted conditions; eliminate, erase or dis-create debt or any kind of negativity, or any unwanted thought or condition; dispel annoyance; to dispel worry; eliminate poverty

14. CANCER calm emotional distress; soften (from astrology’s Cancer the Crab)
15. CARE memorize; remember; retain
16. CHANGE dispel emotional or physical pain; get something out of the eye
17. CHARLTON HESTON stand straight and tall (or use someone you know who stands straight and tall)

18. CHARM manifest your heart’s desires
19. CHLORINE mingle; share yourself; make a difference; blend; become one with
20. CHUCKLE turn on personality
21. CIRCULATE end loneliness; mingle
22. CLASSIC appear cultured, suave

23. CLEAR dispel anger and resentment
24. CLIMB rise; enhance your view point
25. CONCEDE stop arguing, "kiss & make up"
26. CONFESS end aggression

27. CONSIDER be a good mechanic, a fixer of things
28. CONTINUE create or increase endurance; continue swimming
29. COPY have good taste; increase fertility
30. COUNT make money; reduce smoking

31. COVER reduce nervousness; subdue inner excitement
32. CRISP dispel fatigue; feel refreshed; revitalize; enhance; rejuvenate; brighten
33. CROWD dispel disobedience in children, pets or subordinates
34. CRYSTAL clarify the situation, things; look to the future; improve clairvoyance; purify; neutralize; access Universal Knowledge

35. CURVE create beauty; make something beautiful
36. CUT for moderation if tempted to excess; sever ties
37. CUTE think; discern; be sharp-witted; be clever
38. DEDICATE stop clinging

39. DIVINE work miracles or extraordinary accomplishment; increase personal ability
40. DIVINE LIGHT multiply intensity; increase enlightenment; brightly focus positivity
41. DivineORDER anytime you have some organizing or cleaning to do, or packing for a trip, be efficient; clean up a mess; put in optimum order; revamp

42. DO eliminate procrastination
43. DONE create completion; meet a deadline; keep a resolution; build willpower
44. DOWN stop bragging
45. DUCK dispel hypersensitivity
46. ELATE transform a setback into an uplift or benefit

47. FIFTY THREE (53) pay primary concern; take responsibility
48. FIGHT win a competitive game; intensify intents
49. FIND build a fortune
50. FOR promote
51. FOREVER keep a secret

52. FORGIVE eliminate remorse; end desire for revenge
53. FULL optimum level; go beyond; expand capacity
54. GIGGLE get in the mood for writing; enjoy the task at hand
55. GIVE sell; help others
56. GO end laziness; begin; progress

57. GUARD protection of body, spirit or property; preserve personal safety
58. HALFWAY make a long distance seem short
59. HELP eliminate indecision or uncertainty; increase focus
60. HO relax; to reduce tension; to yawn; to sigh
61. HOLD build character

62. HOLE be attractive, appealing
63. HORSE be solid; be strong; gain power
64. HORSESHOE remain steadfast; strengthen the soul; safely move rapidly ahead; increase sturdiness and balance

65. JACK LALANNE enthuse (or use someone you know who is an enthusiast)
66. JUDGE – love to read; increase comprehension 
67. LEARN be youthful; look youthful; rejuvenate
68. LIGHT be inspired; lighten load, mood or stress
69. LIMIT set parameters; keep others from taking advantage of you; back off; stop; regain control

70. LISTEN predict the future; in touch with nature and self
71. LOVE generate, radiate, experience love; acceptance
72. MAGNANIMITY be generous; end pettiness
73. MASK save from harm; shield
74. MONA LISA smile; dispel hate; dispel envy (or someone who represents a smile to you)

75. MOVE increase energy; eliminate tiredness; increase pep; clear inertia
76. NEXT finish lots of meticulous work; repeat; at this time
77. NOW end procrastination; act on good impulse
78. OFF quit an unwanted habit; go to sleep

79. OFFER dispel greed
80. OIL clear friction; smooth; release tension; release resistance; separate
81. ON get new ideas; obtain transportation; nourish ambition; build; produce
82.OPEN release; tolerate; understand; comprehend; free the mind; breathe easier; be artful; dispel inhibitions; allow

83. OVER end frustration
84. PERSONAL publish a successful newspaper or newsletter; be a success
85. PHASE set goals, routine or pattern; improve situation
86. POINT improve eyesight and focus; find direction; decide
87. POSTPONE stop pouting; let it go

88. PRAISE be beautiful; stop being critical; stop fault finding; make yourself handsome
89. PUT build; expand
90. QUIET quiet the ego
91. REACH locate misplaced objects; reach solutions for problems; repair things; find what you’re looking for such as misplaced items like keys, papers, tools, etc., forgotten ideas, information in your mind or memory like names, numbers, etc., solutions to problems; invent; solve problems; remember, recall; retrieve

92. REJOICE – stop being jealous (U)
93. RESCIND – undo; restart; cancel; redo; (similar to Control-Z on a Windows computer you undo – last action) Caution: It may be wise to use BETWEEN, CRYSTAL and LISTEN with RESCIND to avoid possible time loop

94. RESTORE restore fairness; restore honesty
95. REVERSE bury a grudge; stop
96. RIDICULOUS get publicity; center attention on you
97. ROOT dig; discover; grow
98. SAGE dispel evil; dispel negative and contrary energies

99. SAVE stop drinking alcohol and other unwanted habits
100. SCHEME advertise; design; create
101. SHOW be devout; virtuous; moral; give respect
102. SHUT stop looking for trouble
103. SLOW be wise; have patience

104. SOPHISTICATE publish a successful magazine; become a larger success
105. SPEND dress better; be beautiful
106. STRETCH prolong a good feeling or event or sense of well-being; grow intellectually, mentally, spiritually or physically

107. SUFFER handle success; handle prosperity
108. SWEET be soothing to others; be caring
109. SWING have courage; be bold
110. SWIVEL relieve constipation; relieve diarrhea

111. TAKE become a good leader
112. TAP convert; adapt; renovate
113. THANKS stop regretting; release guilt
114. TINY be polite; be kind; be courteous; reduce size; decrease importance
115. TOGETHER master any activity; have it all together; become single-minded

116. TOMORROW eliminate remorse; dispel sorrow
117. UNCLE dispel untogetherness; ward off apartness
118. UNMASK bring into focus; expose; lay bare
119. UP be in high spirits; dispel the blues; dispel inferiority complex
120. WAIT learn a secret

121. WASTE appear rich; show opulence
122. WATCH learn a skill; perfect a skill
123. WHET stimulate; sharpen; hone; refine; finalize
124. WITH be agreeable; compatible; harmonize well with others; immerse in
125. WOMB feel cuddled; be cuddly; be secure; reconnect with Source

The above is a blending of information from:

Kat Miller & Associates http://blueiris.org & http://www.blueiris.biz
James T. Mangan The Secret of Perfect Living
Shunyam Nirav Switchwords – Easily Give to You Whatever You Want in Life

Thursday, July 18, 2019

क्या कहते हैं हमारे शरीर के तिल?

क्या कहते हैं हमारे शरीर के तिल?
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शरीर पर पाए जाने वाले तिलों के ज्योतिषीय फल जानने की हर व्यक्ति में जिज्ञासा रहती है। आज हम तिलों के महत्व व फल पर चर्चा करेंगे।

महिलाओं के शरीर पर तिल
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- महिला के बाईं तरफ मस्तक पर तिल हो तो वह किसी राजा की रानी बनती है। वर्तमान में तो कोई राजा रानी नहीं हैं उसे हम अमीरी से जोडक़र देख सकते हैं। यूं कहा जा सकता है कि जिस महिला के बाईं तरफ मस्तक पर तिल होता है वह धन-दौलत उसके चारों तरफ बिखरी रहती है। उसे हर वो सुख मिलता है जिसकी उसे आशा नहीं होती है। उसका पति उसे अपनी हथेलियों पर रखता है।

- गाल पर बांई तरफ तिल हो तो ऐशो-आराम का सुख मिलता है। उसे धैर्यवान और स्वयं को प्यार करने वाला जीवनसाथी मिलता है। 

- कहा जाता है कि जिस महिला के छाती पर तिल होता है उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। हालांकि विज्ञान इसे नहीं मानता है। स्त्री के दोनों स्तनों पर तिल उसे कामुक बनाता है। उसे प्रेमी या पति से विशेष प्यार मिलता है। बाईं जांघ पर तिल हो तो नौकर-चाकर का सुख मिलता है। दायीं जांघ पर तिल उसे पति की प्राणप्रिया बनाता है। पांव पर तिल हो तो विदेश यात्रा का योग रहता है। कान पर तिल हो तो आभूषण पहनने का सुख मिलता है। मस्तक पर तिल हो तो हर जगह इज्जत मिलती है।

- महिलाओं के शरीर के तीन ऐसे अंग हैं जिन पर तिल होना उनके लिए हानिकारक माना जाता है। जिस महिला के नाक पर तिल होता वह सौंदर्य की अनुपम मूर्ति नजर आती है लेकिन उसमें चूर-चूर कर घमंड और अहम् भरा होता है। जिसके चलते हर शख्स के साथ उनकी अनबन रहती है। इनके उन्हीं लोगों के साथ विचार मिलते हैं जो उनकी जी-हुजूरी करते हैं।

- जिन महिलाओं के कमर और हिप्स के जोड़ पर तिल होता है, वह महिलाएँ ताउम्र अवसाद का शिकार रहती हैं। उनके दिमाग में हर घड़ी अपना अतीत घूमता रहता है, जिसके चलते वे न तो पीहर में और न ही ससुराल में सुख भोग पाती हैं।

- जिन महिलाओं के गुप्तांगों के ऊपर तिल होता है वह हमेशा शारीरिक सुख को लालायित रहती हैं। ऐसी महिलाएं एक से अधिक पुरुषों से यौन संबंध बनाती हैं। जिन महिलाओं के इस स्थान पर तिल पाया जाता है वह कभी भी एक पुरुष से सन्तुष्ट नहीं हो पाती हैं।

पुरुष के शरीर पर तिल... 
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- जिस पुरुष के आंख पर तिल होता है तो वह नायक अर्थात् वह नेतृत्वकर्ता होता है। 

- गाल पर तिल हो तो उसे स्त्री का सुख मिलता है। सिर (मस्तक) पर तिल होता है, वह हर जगह इज्जत पाता है। 

- मुख पर तिल होता है तो उसे बहुत दौलत मिलती है। 

- नीचे के होंठ पर तिल हो तो वह व्यक्ति कंजूस होता है। 

- ऊपर के होंठ पर तिल हो तो धन पाता है तथा चारों तरफ इज्जत मिलती है। 

- कान पर तिल हो तो वह खूब पैसे वाला होता है। 

- गर्दन पर तिल हो तो उस व्यक्ति की लंबी उम्र होती है तथा उसे आराम मिलता है।

- दाहिने कंधे पर तिल हो तो वह व्यक्ति कलाकार होता है। क्षेत्र कोई-सा भी हो सकता। 

- छाती के दाहिनी तरफ तिल हो तो अच्छी स्त्री मिलती है। 

- हाथ के पंजे पर तिल हो तो वह व्यक्ति दिलदार व दयालु रहता है। 

- पांव पर तिल हो तो उस व्यक्ति के विदेश यात्रा का योग बनता है।

- जिस पुरुष के गुप्तांग पर तिल हो वह एक से अधिक स्त्रियों से यौन संबंध बनाता है। ऐसे पुरुष अय्याश प्रवृत्ति के भी होते हैं।

राजेन्द्र गुप्ता

Tuesday, July 09, 2019

Who is a Soul Mate? By Rrachita Gupta Ravera

GENERALLY when a regular person who does not deal too much with spiritual terms hears the word SOUL MATE he gets a very definite flash of a romantic partner.

As part of our common language we refer to our love parteners as soul mates. But actually this is not true.
Much against popular belief, a soul mate is not necessarily your life partener or your love companion. Infact a soul mate cannot be restricted to just a romantic connotation. 

We must understand that soul mate is literally someone who is a partener of your soul purpose for either:
1. A specific karma to be performed
2. A specific time period has to be spent together as decided by fate so that common life experiences can be shared together as per a karmic contract drawn up even before our birth with that person.
Sure , soulmate means someone who your  soul will feel a strange connection, maybe even a yearning to connect with. Out of thousands the radar of your soul will turn towards that person and you will want to be with them.

But that can happen between a father and daughter or an aunt and her niece or even two unlikely persons who later become the best of buddies. You can have a lovely platonic warm hearted and emotionally fulfilling relationship with your soul mate.

Understand that any relation or bond you feel very strongly about in this lifetime is  your soul mate.  They can be your parents, or your children ,or your spouse , or your office colleague,  or even your neighbour.

Infact soul mates can even be animals or birds you feel a strong connection with. They are also souls albeit in a different physical form. But remember its the soul energies contacting and connecting with each other and not the bodily form only.

When we are born into this physical reality, we have an entire procedure of karmic balance sheeting done in the Hall of Judgement.  This tradition has been documented in abcient civilizations such as the Egyptian (hall of death and Osiris), the Jewish (book of Zorah and how many Sephiroth have been traversed in the tree of Life) and even our very own Indian as in Yamraaj sitting with his karma judiciary.

In this divine court the souls who have been travelling over many births now have to settle their karmic debts.  They have to choose their new births and their new parents and their new habitats in a way that the pending karmic debts of previous births are settled to a maximum in this lifetime at least so that as the soul proceeds further in its evolution cycle the baggage of preceding debts becomes lesser and lesser.

The intrinsic responsibility of each soul in its Divine path is to keep shedding this preceding baggage as it moves to merge with the Whilte Light.

It does this by settling the SOUL CONTRACTS of debts and credits it has built up over lifetimes with its soul mates. The same souls keep criss crossing each other during different lifetimes.
It is true that certain karmic connections may draw people towards each other. This does not mean, however, that these will be ideal relationships. The success of these relationships will depend on the maturity and sensitivity with which we approach them.
They may succeed but more often they will be fraught with internal bitterness.

Thus if you meet a person in this lifetime you feel attracted to then pay heed to it. Form a bond or relationship with that person. Your soul may either be repaying his debts then you will feel losses or suffering in the bond. Accept it with peace. Accept it with a feeling of surrender and acceptance.  Once your repayment is done then you can go your seperate ways. Finally released of any obligations to each other. Aaah! The liberation of the soul to seek new partners and settle more scores so that the soul may be light again; it may be pure again. It may be again as the Divine wants it to be for your highest happiness

Accept your soul mates with open arms. They may come as friends to  give you their due or they may come as your enemy to take back from you what you owe them.  You can have hundreds of soul mates in one lifetime so stop looking for just romantic ones.

Ofcourse the romantic soul mate is one of the  most fulfilling BONDS we can have in a birth cycle. Its that person who gives us a sense of completion. There is more harmony than conflict and the souls seem to talk in silent secret language all of its own. There is a deep thirst to unite intellectually, emotionally and physically with this person. Compassion and understanding towards the other flows naturally.  This kind of spiritual UNION is not in every one's cosmic life plan and maturity suggests that one not remain fixated on finding just the romantic soul mate but rather the variety of other soulmates that are also searching for you and trying to gravitate towards you in non romantic roles.
Form all sorts of bonds so that maximum give and take can be done. The more you settle, the faster you can progress in your spiritual life as you rise from the chords holding you chained to earthly obligations.

Meditate.  Mingle. Understand who to give to and who to take from. Surrender to this ultimate divine bahi-khata or karmic ledger. Its all part of your human experience as the travelling soul that you inherently are.

Angel blessings
Rrachita Gupta Ravera

Wednesday, June 26, 2019

सिद्ध लाल किताब टोटके : finance property depression

सिद्ध लाल किताब टोटके :

आज संसार में हर आदमी दुखी है . चाहे अमीर हो या गरीब, बडा हो या छोटा . हर इंसान को कोई न कोई परेशानी लगी रहती है . ज्योतिष में इसके लिए कई उपाय सुझाए गए हैं . जिनको विधि पूर्वक करके हम लाभ उठा सकते हैं .

लाल किताब उत्तर भारत में खास कर पंजाब में बहुत प्रसिद्ध है . अब इसका प्रचार धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है . इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके आसान, सस्ते और सटीक उपाय हैं . इसमें कई उपाय ग्रहों की बजाय लक्षणों से बताये जाते हैं . आपके लाभ के लिए कुछ सिद्ध उपाय निम्न प्रकार से हैं –

1. यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए :
किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए . लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें . उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें . इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें . शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें . जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा .

2. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें :

बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए . सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए . दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए . हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए . उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए . ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है . रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है . 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें . आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा . यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए . पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए . अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है .

3. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो :
इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए . सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें . यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें . लाभ होगा .

4. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय :
सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय . गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए . गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय . यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें . लेकिन….लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे . अवश्य लाभ होगा .

5. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए :
यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें . उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें . इसके साथ ही “ओम आदित्याय नमः ” का जाप करें .

नोट :
1. सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए . अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले .
2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए .
3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है .
4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा .