Wednesday, September 27, 2017

पाच (5 sacred Hindu items) वस्तु,जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र

पाच वस्तु ऐसी हे ,जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है....
उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
        वमनं शवकर्पटम् ।
  काकविष्टा ते पञ्चैते
        पवित्राति मनोहरा॥

1. उच्छिष्ट —  गाय का दूध ।
       गाय का दूध पहेले उसका बछडा पीकर उच्छिष्ट करता है।फिर भी वह पवित्र ओर शिव पर चढता हे ।

2. शिव निर्माल्यं -
               गंगा का जल
      गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधी शिव जी के मस्तक पे आई नियमानुसार शिव जी पर चढायी हुइ हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है.

3. वमनम्—
       उल्टी — शहद..
      मधुमख्खी जब फूलो का रस लेके अपने छल्ले पे आती है , तब वो अपने मुख से उसे निकालती है ,जिससे शहद बनता है ,जो पवित्र कार्यो मे लिया जाता है.

4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र
      धार्मिक कार्यो को संपादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है , रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है , पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी किडें को उबलते पानी मे डाला जाता है ,ओर उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट फिर भी पवित्र है ।

5. काक विष्टा— कौए का मल
   कौवा पीपल वगेरे पेडो के फल खाता है ,ओर उन पेडो के बीज अपनी विष्टा मे इधर उधर छोड देता है ,जीसमे से पेडोकी उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड उगते नहि हे बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है ,फिर भी पवित्र है।

Thursday, September 21, 2017

Remedies for ACNE, BACK ACHE, ACIDITY, BAD BREATH , ANAEMIA

*Acne*

1. Orange peel pounded well with water applied to effected acne area helps cure acne.

2. Cucumber leaves or grated pieces applied to the acne.

3. Rub the pimple( acne) with a fresh cut clove of garlic.

4. Drink atleast 1 litre of water a day of impart a healthy glow to skin.

5. Paste of fenugrek (methi) leaves applied overnight on acne and washed off next morning.
[9/21, 17:35] Bhumika Modi: *Asthama*

1. Juice of 1 clove of garlic with a tsp of honey should be taken twice a day.

2. 1/2 a tsp of hing and 50 ml sesame oil and a pinch of camphor are mixed and applied on the chect to cure the congestion.

3. A tsp full each of ginger paste, betal and garlic juice are mixed and 1 tsp of it can be taken trice a day.

4. Equal portion of tulsi juice and honey is best remedy for it.

5. Onion juice is good to intake.
[9/21, 17:35] Bhumika Modi: *Acidity*

1. Consuming fresh mint juice on regular basis helps curing acidity.

2. Drink atleast half a litre of water in the early morning when you are on empty stomach.

3. Banana, cucumber and watermelon cures acidity.

4. Yogurt is known to be as excellent remedy for acidity.

5. Chewing a few basil (tulsi) leaves cures acidity.
[9/21, 17:35] Bhumika Modi: *Anaemia*

1. Green vegetables and dairy products need to be taken.

2. Eat oranges and drink lemon juices.

3. Have water stored in a copper vessel overnight every morning.

4. Soak the black sesame seeds in some water for two to three hours and then grind them into a paste. Have this with a teaspoon of honey every day.

5. Eat a handful of raisins and one or two dates for breakfast or as a mid-meal snack
 
[9/21, 17:35] Bhumika Modi: *Backache*

1. Limejuice serves as an excellent home remedy for backache. Squeeze the juice of 1 lemon and add common salt in it. Drink it 2 times a day. It will act as a great back pain reliever.

2. Applying garlic oil on the back gives immense relief from back pain. Take about 10 small garlic cloves and fry them in oil on low flame. You can either use sesame oil, coconut oil or mustard oil. Fry till the garlic turns light brown. Let the oil prepared from garlic cool completely. Thereafter apply it on back and keep it for about 3 hrs. In a couple of days you will feel the magical effects.

3. Apply some ginger paste on the affected area, followed by eucalyptus oil.

4. Grind together 1 cup each of poppy seeds (khus khus) and rock candy (misri).Consume two teaspoons of this mixture twice daily, followed by a glass of milk.

5. Massaging your back with an herbal oil can help your muscles relax and relieve pain. You can use any herbal oil such as eucalyptus oil, almond oil, olive oil or coconut oil. Heat the oil until warm and massage it gently over the aching area.
[9/21, 17:35] Bhumika Modi: *Bad Breath*

1. Drink plenty of water and swish cool water around in your mouth. This is especially helpful to freshen “morning breath.”

2. Chew a piece of lemon or orange rind for a mouth- freshening burst of flavor. (Wash the rind thoroughly first.) The citric acid will stimulate the salivary glands—and fight bad breath.

3. Wash mouth with neem bark powder dissolved in water a couple of times a day.

4. Green cardamom is good mouth freshner.

5. The gargles of cold decoction of Aloe Vera mixed with honey can helps a lot.

Saturday, September 02, 2017

Parts of a horoscope कुण्डली के भाग

कैसे बनती है एक कुण्डली , जो पूर्व जन्म के कर्मो का लेखा जोखा होती है !!!

पंचांगः
ज्योतिष सिखने के लिए पंचांग का ज्ञान होना परम आवश्यक है।

पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार।

इन पाँच अंगो के माध्यम से ग्रहों की चाल
की गणना होती है।

तिथिः
कुल तिथियाँ 16 होती है,जो पंचांग में कृष्ण पक्ष व
शुकल पक्ष के अंतर्गत प्रदर्शित होती है,तिथियों के
नाम एकम् द्वितीया, तृतीया,
चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी,
सप्तमी, अष्टमी, नवमी,
दशमी, एकादशी, द्वाद्वशी,
त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और
पूर्णिमा है।

नक्षत्रः
नक्षत्रों की कुल संख्यां 27 होती
है,जिनके नाम इस प्रकार है
अंक नक्षत्र-नक्षत्रस्वामी पद(1,2,3,4)
1 अश्विनी-केतु (चु,चे,चो,ला)
2 भरणी-शुक्र (ली,लू,ले,ला)
3 कृत्तिका-सूर्य (अ,ई,उ,ए)
4 रोहिणी -चंद्र (ओ,वा,वी,वु)
5 मृगशीर्षा-मंगल (वे,वो,का,की)
6 आर्द्रा-राहु (कु,घ,ड.,छ)
7 पुनर्वसु-गुरु (के,को,हा,ही)
8 पुष्य-शनि (हु,हे,हो,ड)
9 अश्लेषा-बुध (डी,डू,डे,डो)
10 मघा-केतु (मा,मी,मू,मे)
11 पूर्बाफाल्गुनी-शुक्र (मो,टा,टी,टू)
12 उत्तरफाल्गुनी-सूर्य (टे,टे,पा,पी)
13 हस्त-चंद्र (पू,ष,ण,ठ)
14 चित्रा-मंगल (पे,पो,रा,री)
15 स्वाति-राहु (रू,रे,रो,ता)
16 विशाखा-गुरु (ती,तू,ते,तो)
17 अनुराधा-शनि (ना,नी,नू,ने)
18 ज्येष्ठा-बुध (नो,या,यी,यू)
19 मूला-केतु (ये,यो,भा,भी)
20 पूर्वाषाढ़ा-शुक्र (भू,धा,फा,ढा)
21 उत्तराषाढ़ा-सूर्य (भे,भो,जा,जी)
22 श्रवण-चंद्र (खी,खू,खे,खो)
23 धनष्ठा-मंगल (गा,गी,गु,गे)
24 शतभिषा-राहु (गो,सा,सी,सू)
25 पूर्वाभाद्रप्रद-गुरु (से,सो,दा,दी)
26 उत्तराभाद्रप्रद-शनि (दू,थ,झ,ञ)
27 रेवती-बुध (दे,दो,च,ची)
यदि 360 डिग्री को 27 से विभाजित किया जाए तो एक
नक्षत्र 13 डिग्री 20 अंश का होता है।

वारः अर्थात दिनों की संख्या सात है, सोमवार , मंगलवार
, बुधवार, वीरवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार।

करणः तिथि के आधे भाग को अर्थात आधी तिथि जितने
समय में बीतती हैं उसे करण कहते है
ये कुल 11 है, जिनके नाम बव, बालव, कौलव तेतिल, गर, वणिज,
विष्टि, शकुनि, चतुष्पद, नाग और किश्तुघ्न है।

योगः सूर्य तथा चन्द्र के राश्यांशो के योग से बनने वाले 27 प्रकार
के योग होते है, जिनके नाम विष्कुम्भ, प्रीति,
आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सिद्ध, सुकर्मा, धृति, शुल,
वृद्धि, धु्रव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतिपात, वरियान,
परिघ, शिव, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र, वैधृति
वैदिक ज्योतिष में मुख्यतः ग्रह व तारों के प्रभाव का अध्ययन
किया जाता है।

पृथ्वी सौर मंडल का एक तरह का
ग्रह है। इसके निवासियों पर सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों का
प्रभाव पड़ता है, ऐसा ज्योतिष की मान्यता है।
पृथ्वी एक विशेष कक्षा में चलायमान है।
पृथ्वी पर रहने वालों को सूर्य इसी में
गतिशील नजर आता है। इस कक्षा के आसपास कुछ
तारों के समूह हैं, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है और
इन्हीं 27 तारा समूहों यानी नक्षत्रों से
12 राशियों का निर्माण हुआ है।

जिन्हें इस प्रकार जाना जाता है।
1-मेष, 2-वृष, 3-मिथुन, 4-कर्क, 5-सिंह, 6-कन्या, 7-तुला,
8-वृश्चिक, 9-धनु, 10-मकर, 11-कुंभ, 12-मीन।
प्रत्येक राशि 30 अंश की होती है।
पूर्ण राशिचक्र 360 अंश का होता है।

ग्रह लिंग विशोंतरी दशा(वर्ष)
सूर्य पुर्लिंग 6 वर्ष
चंद्र स्त्रीलिंग 10 वर्ष
मंगल पुर्लिंग 7 वर्ष
बुध नपुंसक 17 वर्ष
बृहस्पति पुर्लिंग 16 वर्ष
शुक्र स्त्रीलिंग 20 वर्ष
शनि पुर्लिंग 9 वर्ष
राहु पुर्लिंग 18 वर्ष
केतु पुर्लिंग 17 वर्षराहु एवं केतु वास्तविक ग्रह
नहीं हैं, इन्हें ज्योतिष शास्त्र में छायाग्रह माना
गया है।

राशियों का स्वभाव और उनका स्वामी...
राशि स्वभाव राशि स्वामी
मेष चर मंगल
वृषभ स्थिर शुक्र
मिथुन द्विस्वभाव बुध
कर्क चर चंद्र
सिंह स्थिर सूर्य
कन्या द्विस्वभाव बुध
तुला चर शुक्र
वृश्चिक स्थिर मंगल
धनु द्विस्वभाव गुरु
मकर चर शनि
कुंभ स्थिर शनि
मीन द्विस्वभाव गुरु

यदि 360 डिग्री को 12 से विभाजित किया जाए तो एक
राशि 30 डिग्री की होती है।

ग्रहो का कारकत्व

सूर्य - आत्मा ,पिता , मान-सम्मान ,प्रतिष्ठा ,नेत्र ,आरोग्यता
,प्रशासन ,मस्तिक , सुवर्ण ,गेंहू ,शक्ति मानक आदि लाल
वस्तुओं का कारक है

चंद्रमा - माता ,मन ,बुद्धि ,स्त्री ,धन ,चावल ,कपास
आदि श्वेत वस्त्र ,मोती, गला दाई आँख ,बाई आँख
,नाडी तंत्रादि

मंगल - पराक्रम , बल भूमि ,भाई , सेना , अग्नि ,गुड , मुंगा , ताम्र
,चोट , दुर्घटना आदि का कारक है

बुध - यह विद्या ,वाणी ,बुद्धि ,मित्र , सुख , मातुल
,बुध -बांधव ,गणित ,शिल्प ,ज्योतिष ,चाची
,मामी , हरिवस्त्र ,घृत, पन्ना रत्न आदि का कारक है

गुरु -यह विवेक ,बुद्धि ,मित्र , शरीर पुष्टि पुत्र
ज्ञान ,शास्त्र -धर्म ,बड़े भाई ,उदारता ,पुष्प -राग
,पीतवर्ण ,सुवर्ण ,ब्राह्मण ,मंत्री ,
सत्वगुण ,पति,सुख ,पौत्र,पितामह आदि का कारक है

शुक्र- आयु , वाहन ,आभूषणादि ,सांसारिक सुख ,व्यापार,कामसुख
,वीर्य ,चांदी,काव्य -रूचि
,संगीत ,श्वेत ,वस्त्र ,चांदी ,
हीरा,दुग्धादि पदार्थ का कारक है

शनि - आयु ,जीवन ,मुत्युकारक ,सेवक ,दुःख ,रोग
,विपति ,शिल्प ,भैंस, केश ,तिल ,तेल ,नीलम ,लोहाआदि
पदार्थो का कारक है

राहु -सर्प ,लाटरी ,गुप्त -धन ,भुत - बाधा,प्रयास
,तस्करी कम्बल,नारियल ,सप्तधान्य ,गुमेद आदि
पदार्थो का कारक है

केतु - यह गुप्त शक्ति ,कठिन कार्य ,दुख, धूम्ररंग ,अति
पीड़ा ,चर्मरोग ,व्रण, तन्त्र-विद्या,बकरी
,नीच जाती ,कुष्णवस्त्र ,कंबलादि, पदार्थो
का कारक है

जन्म कुंडली में यदि कोई कारक ग्रह शुभ भाव में
पड़ा हो या शुभ ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो कारक ग्रह से संबंधित
सुख की प्राप्ति होगी। जब कोई ग्रह
अशुभ भाव में पड़ा हो अथवा पापी गृह से युक्त या
दुष्ट हो तो उस ग्रह के कारकत्व से संबंधित सुख में
कमी आएगी ।

द्वादश भावो द्वारा विचारणीय विषय
कुंडली में प्रत्येक भाव का अपना अपना महत्व होता
है। इन्ही द्वादश भावो में स्थिति राशियां एवं ग्रह
अपना शुभआशुभ फल प्रगट करते है।

द्वादश भावों में प्रत्येक
भाव में विचारणीय विषयो के संबंध में लिखा है

प्रथम भावः इस भाव में मुख्य रूप से जातक का
शारीरिक गठन ,स्वास्थय ,आयुपरमान,
शारीरिक रूप ,वर्ण, चिन्ह जाती ,स्वभाव
,गुण ,आकृति ,सुख दुखः ,शिर ,पितामह ,जन्म ,प्रारम्भिक
जीवन ,वर्तमान कालादि का विचार किया जाता है लग्न
एवं लग्नेश की स्थिति के बलाबलनुसार जातक स्वास्थ्य
स्वभाव तथा व्यक्तित्व का ज्ञान किया जाता है इस भाव में मिथुन
,कन्या ,तुला ,एवं कुंभ राशि बलवान मानी
जाती है इस भाव का कारक ग्रह सूर्य है।

द्वितीय भावः शरीर की रक्षा
के लिए धन अन्न ,वस्त्र द्रव्य एवं कुटुम्बदि साधनो
की आवश्यकता होती है। इस कारण धन
भाव भी कहते है। भाव से धन संग्रह ,परिवारिक
सुख ,मित्र ,विद्या ,खाद्य पदार्थ ,वस्त्र ,मुख ,दाहिनी
आँख ,नाक ,वाणी ,स्वर संगीत आदि कला
,विद्वता ,लेखन कला ,अर्जित धन ,सम्पति ,सुवर्णदि धातुओं का
क्रयविक्रय आदि का विचार किया जाता है।
द्वितीय भाव को मारक स्थान भी कहते
है इस भाव का कारक ग्रह ब्रहस्पति है।

तृतीय
भावः इस भाव से भाई बहनो का सुख ,सहोदर, पराक्रम ,नौकर-
चाकर ,साहस ,शौर्य, धैर्य, गायन ,भोगाभ्यास
,नजदीकी संबंधियो का सुख ,रेलयात्रा
,दाहिना कान ,हिम्मत ,सेना ,सेवक, माता पिता की मुत्यु
,चाचा ,मामा ,दमा ,खांसी, श्वास, भुजा, कर्ण आदि रोगो का
विचार किया जाता है।तीसरे भाव का कारक ग्रह मंगल
है।

चतुर्थ भावः इस भाव से सुख दुख ,माता ,स्थायी
सम्पति ,मकान ,जायदाद ,भूमि ,सवारी ,चैपाया, मित्र
बन्धु बांधव ,परोपकार के काम ,गृह खेत ,तालाब पानी
,नदी ,बाग ,बगीचा ,मामा ,श्वसुर
,नानी ,पेट , छाती ,आदि के रोग ,गृहस्थ्य
जीवन इस भाव से किया जाता है चंद्रमा व बुध ग्रह
इस स्थान के कारक है

पंचम भावः इस भाव से बुद्धि ,नीति, विद्या ,गर्भ ,संतान
से सुख दुख ,गुप्त मंत्र ,शास्त्र ज्ञान ,विद्धता ,मंत्र सिद्धि ,
विचार शक्ति ,लेखन कला ,लाटरी शेयर आदि आकास्मिक
धन लाभ या हानि ,यश अपयश का सुख प्रबन्धात्मक योग्यता
,पूर्वजन्म की स्थिति ,भविष्य ज्ञान ,आध्यात्मिक
रूचि ,मनोरंजन प्रेम संबंध ,इच्छाशक्ति ,जेठराग्नि ,गर्भाशय ,पेट
,मूत्रसह्यादि संबंधी विकारो का विचार पंचम भाव से
करते है। इस भाव का कारक ग्रह ब्रहस्पति है।

षष्ठ् भाव: इस भाव से शत्रु रोग ,ऋण ,चोरी या
दुर्घटना आदि की स्थिति ,दुष्टकर्म ,युद्ध ,अपयश
,मामा , मौसी ,सौतली माता से सुख दुख
,विश्वासघात ,पाप ,कर्म ,हानि ,शव बन्धुवर्ग से विरोध ,नाभि ,गुदा
स्थान , कमर ,संबंधी रोगो का विचार षष्ट भाव से करते
है शनि व मंगल भाव के कारक माने जाते है

सप्तम भावः इस भाव से स्त्री एवं विवाह सुख ,काम
वासना ,पति पत्नी संबंध ,साझेदारी के काम,
व्यापार में लाभ हानि वाद विवाद, मुकदमा ,कलह ,पितामह , प्रवास
,विदेश गमन ,भाई बहन की संतान ,लघु यात्राएं ,दैनिक
आय ,समझौता ,प्रत्येक शत्रु ,काम विकार ,बवासीर
वस्ति ,जननेन्द्रिय संबंध गुप्त रोगो का विचार किया जाता है इस
केंद्र भाव में वृश्चिक राशि बलवान होती है इसे मारक
स्थान भी कहते है इस भाव का कारक ग्रह शुक्र
है

अष्ट्म भावः इस भाव से मुत्यु के कारण ,आयु ,गुप्तधन
,की प्राप्ति ,विध्न ,पुरातत्व प्रेम ,समुद्रादि द्वारा
दीर्घ यात्राएं ,पूर्व जन्म की
जानकारी मृत्यु के बाद स्थिति, स्त्री से
भूमि धन आदि का लाभ दुर्घटना ,यातना ,गुदा , अंडकोष आदि
गुप्तेन्द्रिय संबंधी गुप्त रोगो एवं कष्टो ,पति या
पत्नी की आयु का मान ,ताऊ ,विघ्न ,दास्य
वर्ग एवं विषम परिस्थितियो का विचार अष्ट्म भाव से किया जाता है

नवम भाव: इस भाव से मानसिक वृति ,धर्म ,दान ,शील
,पुण्य ,तीर्थ यात्रा ,विद्या ,भाग्यो दय ,विदेश यात्रा
,मंत्र सिद्धि ,उत्तम विद्या ,बड़े भाई, पौत्र ,बहनोई ,भावजादि से
संबंध ,धार्मिक पुर्नजन्म प्रवृति संबंधी ज्ञान ,मंदिर
,गुरुद्वारा आदि धर्म स्थल गुरु भक्ति ,यश कीर्ति एवं
जंघा आदि विचार किया जाता है इस भाव का कारक ग्रह सूर्य व गुरु
है।

दशम भावः इस भाव को केंद्र एवं कर्म भाव भी कहते
है इस भाव से पिता का सुख दुख, अधिकार ,राज्य प्रतिष्ठा
,पदोन्नति ,नौकरी, व्यापार, विदेश गमन,
जीविका का साधन ,कार्य सिद्धि नेतृत्व ,सरकार ,सास
,वर्षा ,वायु यानादि, आकाशीय वृतांत एवं घुटनो आदि में
विकारो का दशम से देखा जाता है। दशमभाव में मेष, वृष, सिंह, धनु
(उत्तरार्ध),मकर राशि का पूर्वाद्ध बलवान होता है। दशम भाव के
कारक ग्रह सूर्य ,बुध गुरु ,एवं शनि है।

एकादश भाव: इस भाव से लाभ आय भाई ,मित्र जामाता (जमाई)
,ऐश्वर्य सम्पति ,मोटर -वाहन के सुख ,गुप्तधन, बड़े भाई या
बड़ी बहन ,दांया कान , मांगलिक कार्य, ऐश्वर्य
की वस्तु ,द्वितीय पत्नी एवं
पिंडलियों का विचार 11वें भाव से करते है। इस भाव का कारकग्रह
गुरू है।

दादश भाव: इसको व्यय स्थान व्यय स्थान भी कहते
है इस भाव से धन हानि ,खर्च ,दान ,दंड व्यसन ,रोग, शत्रु
पक्ष से हानि, बाहरी स्थानो से संबंधित नेत्र
पीड़ा, फजूल खर्च ,स्त्री पुरुष, गुप्त
सम्बन्ध, शयन सुख , दुख -पीड़ा बंधन (जेलादि)
,मृत्यु के बाद प्राणी की गति मोक्ष ,कर्ज,
षड्यंत्र ,धोखा ,राजकीय संकट ,शरीर में
पाँव एवं तलुवों आदि का विचार किया जाता है। इस भाव का कारक ग्रह शनि है।

इसके इलावा जातक की जन्म
कुंडली में और भी कुंडलिया
होती है ये वर्गीय कुंडलिया लग्न
कुंडली का विस्तार होती है इन से
भी जातक के जीवन का फलित किया जाता
है इनके नाम इस प्रकार है लग्न कुंडली ,चन्द्र
कुंडली ,सूर्य कुंडली ,होरा
कुंडली , द्रेष्काण कुंडली ,चतुर्थांश
कुंडली , पंचमांश कुंडली , षष्ठांश
कुंडली , सप्तमांश कुंडली , अष्ठमांश
कुंडली , नवमांश कुंडली , दशमांश
कुंडली , एकादशांश कुंडली , द्वादशांश
कुंडली , षोडशांश कुंडली , विशांश
कुंडली , चतुर्विशांश कुंडली , सप्तविशांश
कुंडली , त्रिशांश कुंडली , खवेदांश
कुंडली , अक्ष्वेदांश कुंडली , षष्टयंश
कुंडली के इलावा पाद, उपपाद, मुंथादि का विचार किया जाता
है।

Friday, September 01, 2017

We are all connected in universe

एक चूहा एक व्यापारी के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे  ने देखा कि उस व्यापारी ने और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं. चूहे  ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है.
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी. ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर  को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है.
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया.
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है.
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा
.
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था.
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस व्यापारी की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डंस लिया.
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने वैद्य को बुलवाया. वैद्य ने उसे कबूतर  का सूप पिलाने की सलाह दी.
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था ।
खबर सुनकर उस व्यापारी के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन मुर्गे को काटा गया.
कुछ दिनों बाद उस व्यापारी की पत्नी सही हो गयी… तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे  को काटा गया..
चूहा दूर जा चुका था…बहुत दूर ……….

अगली बार कोई आप को अपनी समस्या बातये और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है तो रुकिए और दुबारा सोचिये….

समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है…

अपने-अपने दायरे से बाहर निकलिये.
स्वयंम तक सीमित मत रहिये. .
समाजिक बनिये…
और राष्ट्र धर्म के लिए एक बनें..

Om Sai Ram

Ganpati visarjan muhurat 2017 गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त

जाने गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी का पर्व 5 सितंबर तक चलेगा।
विसर्जन का सुबह का मुहूर्त- 09:32 बजे- 14:11 अपराह्न तक।

दोपहर का मुहूर्त(शुभ) = 15: 44 बजे- 17:17 बजे तक।

शाम का मुहूर्त(प्रयोग) = 20:17 अपराह्न - 21: 44 बजे तक।

रात का मुहूर्त = 23:11 बजे तक।

जलझूलनी एकादशी washing Krishna's clothes

जलझूलनी एकादशी है।
      ***************
क्यों और कब मनती हैं डोल ग्यारस :-
 
डोल ग्यारस पर्व भादौ मास के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। कृष्ण जन्म के 11वें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था।

इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप मे मनाया जाता है, आगे-

ग्यारस हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसारभाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की   एकादशी को कहा जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु करवट
बदलते हैं, इसीलिए यह 'परिवर्तनी एकादशी' भी कही जाती है। इसके अतिरिक्त यह एकादशी 'पद्मा एकादशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से भी जानी जाती है। इस तिथि को व्रत करने से वाजपेय यज्ञका फल
        मिलता है।
महत्त्व
****
इस तिथि पर भगवान विष्णु के वामन अवतार कि पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढोतरी होती है। डोल ग्यारस के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोये थे। इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है। मंदिरों में इस दिन भगवान विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। इस अवसर पर भगवान के दर्शन करने के लिये लोग सैलाब की तरह उमड़ पड़ते हैं। इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
लाभ-
इस तिथि को व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस  एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि- "जो इस दिन कमल नयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत और पूजन किया,उसने ब्रह्मा, विष्णु,
 सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।" इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको 'परिवर्तिनी एकादशी' भी कहा जाता है।

         !! जय श्री कृष्ण !!