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Wednesday, December 26, 2018

अंगारक योग ANGARAK YOG RAHU + MARS IN DIFFERENT HOUSES

🏵️ ।। अंगारक योग   ।।🏵️  

यदि जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ हो अर्थात कुंडली में मंगल राहु का योग हो तो उसे "अंगारक" योग कहते हैं । अगर ये योग बन रहा हो तो सर्वप्रथम तो कुंडली के जिस भी भाव में यह योग बने उस भाव और जिन भावों पर राहु व मंगल की द्रष्टी हो उन भावों को पीड़ित कर देता है और उन भावों से नियंत्रित होने वाले पहलुओं में संघर्ष बने रहते हैं।

कुंडली के 12 भाव में अंगारक योग से होने वाला प्रभाव :-

1-प्रथम भाव में अंगारक योग होने से पेट व लीवर रोग, माथे पर चोट, अस्थिर मानसिकता, क्रूरता और निजी भावनाओं की असंतुष्टि देता है।

2-द्वितीय भाव में अंगारक योग होने से धन में उतार-चढ़ाव, तंगहाली, वाणी-दोष, कुटंभियों से विवाद व सक्की मिजाज बनाता है।

3-तृतीय भाव में अंगारक योग होने से भाई-बहनों-मित्रों से कटु संबंध, वटवारा, अति उत्साही, एवं नास्तिक छल-कपट से सफल होते है।

4-चतुर्थ भाव में अंगारक योग होने से माता को दुख, अशान्ती, क्लेश, मकान में बाधाऐं व भूमि संबंधित विवाद होते हैं।

5-पंचम भाव में अंगारक योग होने से संतानहीनता, संतान से असंतुष्ट, नाजायज प्रेम संबंधों से परेशानी व जुए-सट्टे से लाभ भी हो सकता है।

6-छटम भाव में अंगारक योग होने से कर्जदार, ऋण लेकर उन्नति करने वाला, शत्रुहंता, व्यक्ति खूनी, उग्र परंतु "डा. सर्जन" भी बन सकता है।

7-सप्तम भाव में अंगारक योग होने से दुखी-विवादित वैवाहिक जीवन, नाजायज संबंध, हिंसक जीवन साथी, कामातुर, विधवा या विधुर होना परंतु सांझेदारी में धोका भी मिल सकता है।

8-अष्टम भाव में अंगारक योग होने से  आरोप-अपमान, धन-हानि, घुटनों से नीचे दर्द रहना, चोटें लगना, सड़क दुर्घटनाऐं के प्रबल योग बनते हैं। परंतु पैत्रिक संपती मिलने और लुटाने के प्रवल योग भी बनते हैं।

9-नवम भाव में अंगारक योग होने से उच्च शिक्षा में बाधाऐ, भाग्यहीन, वहमी, रूढ़ीवादी व तंत्रमंत्र में लिप्त, पित्र-श्रापित, संतान से पीडित होते हैं। तथा बहुत ही परेशानियों का सामना करते हैं।

10-दशम भाव में अंगारक योग होने से परंपराओं को तोडने वाले, पित्र संमत्ती से बंचित, माता-पिता की भावनाओं को आहत करने वाले परंतु ऐसे व्यक्ति अति कर्मठ, अधिकारी, मेहनतकश, स्पोर्टमेन व आत्यधिक सफल हो सकते है।

11-एकादश भाव में अंगारक योग होने से, गर्भपात, संतान में विकलांगता, अनैतिक आय, व्यक्ति चोर, धोखेबाज़ होते हैं। पंरंतु प्रापर्टी से लाभ हो सकता है।

12-द्वादश भाव में अंगारक योग होने से अपराधी प्रवृत्ति, वलात्कारी, जबरन हक जमाने वाले और अहंकारी हो सकते हैं। परंतु आयात-निर्यात, विदेशी व्यापार एवं  रिश्वतख़ोरी से लाभ प्राप्त होता है ।

Saturday, September 02, 2017

Parts of a horoscope कुण्डली के भाग

कैसे बनती है एक कुण्डली , जो पूर्व जन्म के कर्मो का लेखा जोखा होती है !!!

पंचांगः
ज्योतिष सिखने के लिए पंचांग का ज्ञान होना परम आवश्यक है।

पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार।

इन पाँच अंगो के माध्यम से ग्रहों की चाल
की गणना होती है।

तिथिः
कुल तिथियाँ 16 होती है,जो पंचांग में कृष्ण पक्ष व
शुकल पक्ष के अंतर्गत प्रदर्शित होती है,तिथियों के
नाम एकम् द्वितीया, तृतीया,
चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी,
सप्तमी, अष्टमी, नवमी,
दशमी, एकादशी, द्वाद्वशी,
त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और
पूर्णिमा है।

नक्षत्रः
नक्षत्रों की कुल संख्यां 27 होती
है,जिनके नाम इस प्रकार है
अंक नक्षत्र-नक्षत्रस्वामी पद(1,2,3,4)
1 अश्विनी-केतु (चु,चे,चो,ला)
2 भरणी-शुक्र (ली,लू,ले,ला)
3 कृत्तिका-सूर्य (अ,ई,उ,ए)
4 रोहिणी -चंद्र (ओ,वा,वी,वु)
5 मृगशीर्षा-मंगल (वे,वो,का,की)
6 आर्द्रा-राहु (कु,घ,ड.,छ)
7 पुनर्वसु-गुरु (के,को,हा,ही)
8 पुष्य-शनि (हु,हे,हो,ड)
9 अश्लेषा-बुध (डी,डू,डे,डो)
10 मघा-केतु (मा,मी,मू,मे)
11 पूर्बाफाल्गुनी-शुक्र (मो,टा,टी,टू)
12 उत्तरफाल्गुनी-सूर्य (टे,टे,पा,पी)
13 हस्त-चंद्र (पू,ष,ण,ठ)
14 चित्रा-मंगल (पे,पो,रा,री)
15 स्वाति-राहु (रू,रे,रो,ता)
16 विशाखा-गुरु (ती,तू,ते,तो)
17 अनुराधा-शनि (ना,नी,नू,ने)
18 ज्येष्ठा-बुध (नो,या,यी,यू)
19 मूला-केतु (ये,यो,भा,भी)
20 पूर्वाषाढ़ा-शुक्र (भू,धा,फा,ढा)
21 उत्तराषाढ़ा-सूर्य (भे,भो,जा,जी)
22 श्रवण-चंद्र (खी,खू,खे,खो)
23 धनष्ठा-मंगल (गा,गी,गु,गे)
24 शतभिषा-राहु (गो,सा,सी,सू)
25 पूर्वाभाद्रप्रद-गुरु (से,सो,दा,दी)
26 उत्तराभाद्रप्रद-शनि (दू,थ,झ,ञ)
27 रेवती-बुध (दे,दो,च,ची)
यदि 360 डिग्री को 27 से विभाजित किया जाए तो एक
नक्षत्र 13 डिग्री 20 अंश का होता है।

वारः अर्थात दिनों की संख्या सात है, सोमवार , मंगलवार
, बुधवार, वीरवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार।

करणः तिथि के आधे भाग को अर्थात आधी तिथि जितने
समय में बीतती हैं उसे करण कहते है
ये कुल 11 है, जिनके नाम बव, बालव, कौलव तेतिल, गर, वणिज,
विष्टि, शकुनि, चतुष्पद, नाग और किश्तुघ्न है।

योगः सूर्य तथा चन्द्र के राश्यांशो के योग से बनने वाले 27 प्रकार
के योग होते है, जिनके नाम विष्कुम्भ, प्रीति,
आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सिद्ध, सुकर्मा, धृति, शुल,
वृद्धि, धु्रव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतिपात, वरियान,
परिघ, शिव, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र, वैधृति
वैदिक ज्योतिष में मुख्यतः ग्रह व तारों के प्रभाव का अध्ययन
किया जाता है।

पृथ्वी सौर मंडल का एक तरह का
ग्रह है। इसके निवासियों पर सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों का
प्रभाव पड़ता है, ऐसा ज्योतिष की मान्यता है।
पृथ्वी एक विशेष कक्षा में चलायमान है।
पृथ्वी पर रहने वालों को सूर्य इसी में
गतिशील नजर आता है। इस कक्षा के आसपास कुछ
तारों के समूह हैं, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है और
इन्हीं 27 तारा समूहों यानी नक्षत्रों से
12 राशियों का निर्माण हुआ है।

जिन्हें इस प्रकार जाना जाता है।
1-मेष, 2-वृष, 3-मिथुन, 4-कर्क, 5-सिंह, 6-कन्या, 7-तुला,
8-वृश्चिक, 9-धनु, 10-मकर, 11-कुंभ, 12-मीन।
प्रत्येक राशि 30 अंश की होती है।
पूर्ण राशिचक्र 360 अंश का होता है।

ग्रह लिंग विशोंतरी दशा(वर्ष)
सूर्य पुर्लिंग 6 वर्ष
चंद्र स्त्रीलिंग 10 वर्ष
मंगल पुर्लिंग 7 वर्ष
बुध नपुंसक 17 वर्ष
बृहस्पति पुर्लिंग 16 वर्ष
शुक्र स्त्रीलिंग 20 वर्ष
शनि पुर्लिंग 9 वर्ष
राहु पुर्लिंग 18 वर्ष
केतु पुर्लिंग 17 वर्षराहु एवं केतु वास्तविक ग्रह
नहीं हैं, इन्हें ज्योतिष शास्त्र में छायाग्रह माना
गया है।

राशियों का स्वभाव और उनका स्वामी...
राशि स्वभाव राशि स्वामी
मेष चर मंगल
वृषभ स्थिर शुक्र
मिथुन द्विस्वभाव बुध
कर्क चर चंद्र
सिंह स्थिर सूर्य
कन्या द्विस्वभाव बुध
तुला चर शुक्र
वृश्चिक स्थिर मंगल
धनु द्विस्वभाव गुरु
मकर चर शनि
कुंभ स्थिर शनि
मीन द्विस्वभाव गुरु

यदि 360 डिग्री को 12 से विभाजित किया जाए तो एक
राशि 30 डिग्री की होती है।

ग्रहो का कारकत्व

सूर्य - आत्मा ,पिता , मान-सम्मान ,प्रतिष्ठा ,नेत्र ,आरोग्यता
,प्रशासन ,मस्तिक , सुवर्ण ,गेंहू ,शक्ति मानक आदि लाल
वस्तुओं का कारक है

चंद्रमा - माता ,मन ,बुद्धि ,स्त्री ,धन ,चावल ,कपास
आदि श्वेत वस्त्र ,मोती, गला दाई आँख ,बाई आँख
,नाडी तंत्रादि

मंगल - पराक्रम , बल भूमि ,भाई , सेना , अग्नि ,गुड , मुंगा , ताम्र
,चोट , दुर्घटना आदि का कारक है

बुध - यह विद्या ,वाणी ,बुद्धि ,मित्र , सुख , मातुल
,बुध -बांधव ,गणित ,शिल्प ,ज्योतिष ,चाची
,मामी , हरिवस्त्र ,घृत, पन्ना रत्न आदि का कारक है

गुरु -यह विवेक ,बुद्धि ,मित्र , शरीर पुष्टि पुत्र
ज्ञान ,शास्त्र -धर्म ,बड़े भाई ,उदारता ,पुष्प -राग
,पीतवर्ण ,सुवर्ण ,ब्राह्मण ,मंत्री ,
सत्वगुण ,पति,सुख ,पौत्र,पितामह आदि का कारक है

शुक्र- आयु , वाहन ,आभूषणादि ,सांसारिक सुख ,व्यापार,कामसुख
,वीर्य ,चांदी,काव्य -रूचि
,संगीत ,श्वेत ,वस्त्र ,चांदी ,
हीरा,दुग्धादि पदार्थ का कारक है

शनि - आयु ,जीवन ,मुत्युकारक ,सेवक ,दुःख ,रोग
,विपति ,शिल्प ,भैंस, केश ,तिल ,तेल ,नीलम ,लोहाआदि
पदार्थो का कारक है

राहु -सर्प ,लाटरी ,गुप्त -धन ,भुत - बाधा,प्रयास
,तस्करी कम्बल,नारियल ,सप्तधान्य ,गुमेद आदि
पदार्थो का कारक है

केतु - यह गुप्त शक्ति ,कठिन कार्य ,दुख, धूम्ररंग ,अति
पीड़ा ,चर्मरोग ,व्रण, तन्त्र-विद्या,बकरी
,नीच जाती ,कुष्णवस्त्र ,कंबलादि, पदार्थो
का कारक है

जन्म कुंडली में यदि कोई कारक ग्रह शुभ भाव में
पड़ा हो या शुभ ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो कारक ग्रह से संबंधित
सुख की प्राप्ति होगी। जब कोई ग्रह
अशुभ भाव में पड़ा हो अथवा पापी गृह से युक्त या
दुष्ट हो तो उस ग्रह के कारकत्व से संबंधित सुख में
कमी आएगी ।

द्वादश भावो द्वारा विचारणीय विषय
कुंडली में प्रत्येक भाव का अपना अपना महत्व होता
है। इन्ही द्वादश भावो में स्थिति राशियां एवं ग्रह
अपना शुभआशुभ फल प्रगट करते है।

द्वादश भावों में प्रत्येक
भाव में विचारणीय विषयो के संबंध में लिखा है

प्रथम भावः इस भाव में मुख्य रूप से जातक का
शारीरिक गठन ,स्वास्थय ,आयुपरमान,
शारीरिक रूप ,वर्ण, चिन्ह जाती ,स्वभाव
,गुण ,आकृति ,सुख दुखः ,शिर ,पितामह ,जन्म ,प्रारम्भिक
जीवन ,वर्तमान कालादि का विचार किया जाता है लग्न
एवं लग्नेश की स्थिति के बलाबलनुसार जातक स्वास्थ्य
स्वभाव तथा व्यक्तित्व का ज्ञान किया जाता है इस भाव में मिथुन
,कन्या ,तुला ,एवं कुंभ राशि बलवान मानी
जाती है इस भाव का कारक ग्रह सूर्य है।

द्वितीय भावः शरीर की रक्षा
के लिए धन अन्न ,वस्त्र द्रव्य एवं कुटुम्बदि साधनो
की आवश्यकता होती है। इस कारण धन
भाव भी कहते है। भाव से धन संग्रह ,परिवारिक
सुख ,मित्र ,विद्या ,खाद्य पदार्थ ,वस्त्र ,मुख ,दाहिनी
आँख ,नाक ,वाणी ,स्वर संगीत आदि कला
,विद्वता ,लेखन कला ,अर्जित धन ,सम्पति ,सुवर्णदि धातुओं का
क्रयविक्रय आदि का विचार किया जाता है।
द्वितीय भाव को मारक स्थान भी कहते
है इस भाव का कारक ग्रह ब्रहस्पति है।

तृतीय
भावः इस भाव से भाई बहनो का सुख ,सहोदर, पराक्रम ,नौकर-
चाकर ,साहस ,शौर्य, धैर्य, गायन ,भोगाभ्यास
,नजदीकी संबंधियो का सुख ,रेलयात्रा
,दाहिना कान ,हिम्मत ,सेना ,सेवक, माता पिता की मुत्यु
,चाचा ,मामा ,दमा ,खांसी, श्वास, भुजा, कर्ण आदि रोगो का
विचार किया जाता है।तीसरे भाव का कारक ग्रह मंगल
है।

चतुर्थ भावः इस भाव से सुख दुख ,माता ,स्थायी
सम्पति ,मकान ,जायदाद ,भूमि ,सवारी ,चैपाया, मित्र
बन्धु बांधव ,परोपकार के काम ,गृह खेत ,तालाब पानी
,नदी ,बाग ,बगीचा ,मामा ,श्वसुर
,नानी ,पेट , छाती ,आदि के रोग ,गृहस्थ्य
जीवन इस भाव से किया जाता है चंद्रमा व बुध ग्रह
इस स्थान के कारक है

पंचम भावः इस भाव से बुद्धि ,नीति, विद्या ,गर्भ ,संतान
से सुख दुख ,गुप्त मंत्र ,शास्त्र ज्ञान ,विद्धता ,मंत्र सिद्धि ,
विचार शक्ति ,लेखन कला ,लाटरी शेयर आदि आकास्मिक
धन लाभ या हानि ,यश अपयश का सुख प्रबन्धात्मक योग्यता
,पूर्वजन्म की स्थिति ,भविष्य ज्ञान ,आध्यात्मिक
रूचि ,मनोरंजन प्रेम संबंध ,इच्छाशक्ति ,जेठराग्नि ,गर्भाशय ,पेट
,मूत्रसह्यादि संबंधी विकारो का विचार पंचम भाव से
करते है। इस भाव का कारक ग्रह ब्रहस्पति है।

षष्ठ् भाव: इस भाव से शत्रु रोग ,ऋण ,चोरी या
दुर्घटना आदि की स्थिति ,दुष्टकर्म ,युद्ध ,अपयश
,मामा , मौसी ,सौतली माता से सुख दुख
,विश्वासघात ,पाप ,कर्म ,हानि ,शव बन्धुवर्ग से विरोध ,नाभि ,गुदा
स्थान , कमर ,संबंधी रोगो का विचार षष्ट भाव से करते
है शनि व मंगल भाव के कारक माने जाते है

सप्तम भावः इस भाव से स्त्री एवं विवाह सुख ,काम
वासना ,पति पत्नी संबंध ,साझेदारी के काम,
व्यापार में लाभ हानि वाद विवाद, मुकदमा ,कलह ,पितामह , प्रवास
,विदेश गमन ,भाई बहन की संतान ,लघु यात्राएं ,दैनिक
आय ,समझौता ,प्रत्येक शत्रु ,काम विकार ,बवासीर
वस्ति ,जननेन्द्रिय संबंध गुप्त रोगो का विचार किया जाता है इस
केंद्र भाव में वृश्चिक राशि बलवान होती है इसे मारक
स्थान भी कहते है इस भाव का कारक ग्रह शुक्र
है

अष्ट्म भावः इस भाव से मुत्यु के कारण ,आयु ,गुप्तधन
,की प्राप्ति ,विध्न ,पुरातत्व प्रेम ,समुद्रादि द्वारा
दीर्घ यात्राएं ,पूर्व जन्म की
जानकारी मृत्यु के बाद स्थिति, स्त्री से
भूमि धन आदि का लाभ दुर्घटना ,यातना ,गुदा , अंडकोष आदि
गुप्तेन्द्रिय संबंधी गुप्त रोगो एवं कष्टो ,पति या
पत्नी की आयु का मान ,ताऊ ,विघ्न ,दास्य
वर्ग एवं विषम परिस्थितियो का विचार अष्ट्म भाव से किया जाता है

नवम भाव: इस भाव से मानसिक वृति ,धर्म ,दान ,शील
,पुण्य ,तीर्थ यात्रा ,विद्या ,भाग्यो दय ,विदेश यात्रा
,मंत्र सिद्धि ,उत्तम विद्या ,बड़े भाई, पौत्र ,बहनोई ,भावजादि से
संबंध ,धार्मिक पुर्नजन्म प्रवृति संबंधी ज्ञान ,मंदिर
,गुरुद्वारा आदि धर्म स्थल गुरु भक्ति ,यश कीर्ति एवं
जंघा आदि विचार किया जाता है इस भाव का कारक ग्रह सूर्य व गुरु
है।

दशम भावः इस भाव को केंद्र एवं कर्म भाव भी कहते
है इस भाव से पिता का सुख दुख, अधिकार ,राज्य प्रतिष्ठा
,पदोन्नति ,नौकरी, व्यापार, विदेश गमन,
जीविका का साधन ,कार्य सिद्धि नेतृत्व ,सरकार ,सास
,वर्षा ,वायु यानादि, आकाशीय वृतांत एवं घुटनो आदि में
विकारो का दशम से देखा जाता है। दशमभाव में मेष, वृष, सिंह, धनु
(उत्तरार्ध),मकर राशि का पूर्वाद्ध बलवान होता है। दशम भाव के
कारक ग्रह सूर्य ,बुध गुरु ,एवं शनि है।

एकादश भाव: इस भाव से लाभ आय भाई ,मित्र जामाता (जमाई)
,ऐश्वर्य सम्पति ,मोटर -वाहन के सुख ,गुप्तधन, बड़े भाई या
बड़ी बहन ,दांया कान , मांगलिक कार्य, ऐश्वर्य
की वस्तु ,द्वितीय पत्नी एवं
पिंडलियों का विचार 11वें भाव से करते है। इस भाव का कारकग्रह
गुरू है।

दादश भाव: इसको व्यय स्थान व्यय स्थान भी कहते
है इस भाव से धन हानि ,खर्च ,दान ,दंड व्यसन ,रोग, शत्रु
पक्ष से हानि, बाहरी स्थानो से संबंधित नेत्र
पीड़ा, फजूल खर्च ,स्त्री पुरुष, गुप्त
सम्बन्ध, शयन सुख , दुख -पीड़ा बंधन (जेलादि)
,मृत्यु के बाद प्राणी की गति मोक्ष ,कर्ज,
षड्यंत्र ,धोखा ,राजकीय संकट ,शरीर में
पाँव एवं तलुवों आदि का विचार किया जाता है। इस भाव का कारक ग्रह शनि है।

इसके इलावा जातक की जन्म
कुंडली में और भी कुंडलिया
होती है ये वर्गीय कुंडलिया लग्न
कुंडली का विस्तार होती है इन से
भी जातक के जीवन का फलित किया जाता
है इनके नाम इस प्रकार है लग्न कुंडली ,चन्द्र
कुंडली ,सूर्य कुंडली ,होरा
कुंडली , द्रेष्काण कुंडली ,चतुर्थांश
कुंडली , पंचमांश कुंडली , षष्ठांश
कुंडली , सप्तमांश कुंडली , अष्ठमांश
कुंडली , नवमांश कुंडली , दशमांश
कुंडली , एकादशांश कुंडली , द्वादशांश
कुंडली , षोडशांश कुंडली , विशांश
कुंडली , चतुर्विशांश कुंडली , सप्तविशांश
कुंडली , त्रिशांश कुंडली , खवेदांश
कुंडली , अक्ष्वेदांश कुंडली , षष्टयंश
कुंडली के इलावा पाद, उपपाद, मुंथादि का विचार किया जाता
है।

Wednesday, October 07, 2015

HOW TO KNOW WHICH GEM IS RIGHT FOR YOU ? by AstroRrachita

There are 84 categories of gem stones which are popular as per Astrological belief.
The more clearer the stone, it will not give negative effects.
Except Rahu and Ketu gems i.e. Gomedh (Hessonite) and lahsuniya(cat's eye) no other gem can give negative effect. Only its positivity may be reduced or it may be ineffective.
There are 4 groups of planets possible in a horoscope(as per lordship of houses):
Group A : KENDRA -  1,4,7,10
Group B: TRIKONA - 1,5,9
Group C : TRISHDHAY - 3,6,11.....AND 8
Group D : NEUTRAL - 2,12

Group C is the most dangerous group for gem wearing. If any planet signifies 3,6,11,8 the gem related to it must NOT be worn.

RULE FOR GEM WEARING:


  • PAAPI PLANET- If lord of Trishdhay + lord of trikona or kendra
  • KEWAL PAAPI PLANET - If lord of Trishdhay 
  • ATI PAAPI - If lord of Trishdhay + 8th house

  • Also remember that  among Kendra houses 1<4<7<10
which means  1st house is less powerful than  4th house than which is less powerful than 7th house which is less powerful than 10th house. thus 10th house is strongest in kendra houses.

  • Another rule on similar lines is that among Trikona houses 1<5<9 which means that 9th house is most powerful of all Trikona houses.
  • Another rule on similar lines is that among Trishdhay houses 3<6<11 which means 3 is least malefic and 11 the most malefic in modern times of kaliyuga(since desire is the root of all evil)
3,6,11 houses give best results when Naturally malefic planets are posited in them. They take the person to great heights of achievement.
If these malefic planets are exalted then level of achievements comes down as exalted they start giving less malefic results. If a malefic planet is debilitated in Trishdhay house (3,6,11) its the best combination for the individual.

In conclusion when to wear GEM ?
  1. If planet signifies ATI PAAPI HOUSES - NO GEM OF THAT PLANET
  2. If planet signifies KEWAL PAAPI houses - check the forthcoming planetary dasas and antardasas of the native. If all the Upchaya houses / Improvement houses of profession are vibrating he can be suggested to wear stone of that planet. BEWARE that oncoming dasa/antardasa should not signify houses 8, 12 in which case the gem is not to be worn.
  3. If planet signifies PAAPI house then check the twin lordships of that planet. If one rashi or sign is falling in 3,6,11 and the other rashi or sign is falling in 1,4,7,10,5,9 then the MOOL TRIKON SIGN of that planet.  By the above rule of UTTAROTAR BALI check which house is powerful.

 For ILLUSTRATION in this kundali with Capricorn ascendant the gem for Mercury EMERALD can be worn as mercury is holding lordship of houses 6 (Trishdhay) and 9(Trikona).
Its a PAAPI PLANET in this case .
Now since 9 is most powerful of all Trikona houses ( 9>5>1)  this gem can be safely worn by the individual.

Now in this horoscope with Aquarius ascendant while lagan lord is same Saturn we will not suggest to wear EMERALD because Mercury is lord of 8(malefic house and in group of Trishdhay like ) and also a Trikon house . But here 5th TRIKON is less powerful than 9th so it will not be positive for the native. 



In this horoscope Mercury is lord of 9th trikona house which is very positive but the other lordship is falling in 12th house which is a neutral house. In such case check the OCCUPYING PLACE of mercury and check its acoompanying planet. That will decide whether Mercury is positive or negative finally in this horoscope. Suppose its posited with Jupiter which is a functional malefic in this chart then Emerald cannot be suggested.

Apart from accompanying planets(SAHCHARYA) you should also check for which planets are aspecting Mercury (and their lorships) and also in which planet's star or nakshatra Mercury is posited in. This will tell finally whether Mercury stone is suited for the native or not.

NOTE: while considering the gem stone also take care that the bitter enemy of 8th house lord needs to be calculated (for that particular chart) and its stone should not be worn as it reduces the LONGEVITY of the native.

Monday, May 11, 2015

Remedies for Rahu

www.AstroRrachita.in for complete analysis and remedies in ASTROLOGY, TAROT AND VASTU

Rahu

For Rahu related problems and during the dasa or antardasa of Rahu:



1. Worship Bhairava or lord Shiva.

2. Recite the Kalabhairav asthakam.

3. Japa of the rahu beeja mantra: Om bhram bhreem bhroum sah rahave namah, 18000 times in 40 days.

4. Recite the Rahu stotra:
Ardha Kaayam maha veryam chandraditya vimardhanam
Simhika garbha sambhutam tam rahum pranamamyaham.


5. Donate: Udad dal or coconut on Saturday. Order Shanti Daana online

6. Fasting on Saturdays.

7. Pooja: Bhairav or Shiva or Chandi pooja.

8. Wear An 8 mukhi Rudraksha.

9. One of the best remedies for rahu is reciting the first chapter of Durga Saptasati.

Tuesday, December 30, 2014

किसी राशि विशेष में ही ग्रह उच्च क्यों

किसी राशि विशेष में ही ग्रह उच्च क्यों ?

कोई ग्रह किसी राशी विशेष या नक्षत्र में ही क्यों उच्च होता है यह एक विचारणीय प्रश्न है. इसके लिए अलग अलग विद्वानों के अलग अलग मत हैं. चूंकि ज्योतिष शास्त्र वेद अंश है इसीलिए इसकी मौलिक मान्यताएं वेद सम्मत अर्थात अध्यात्मिक पक्ष को लेकर होनी चाहियें. इसी अध्यात्मिक पक्ष को लेकर द्वादश स्थान मोक्ष स्थान निर्धारित किया गया है.

सूर्य मेष राशि के दशम अंश में परमोच्च माना गया है. मेष राशी का दशम अंश अश्विनी नक्षत्र में पड़ता है. अब रोचक बात यह है की क्यों सूर्य किसी और नक्षत्र में उच्च नहीं माना गया. कारण स्पष्ट है सूर्य आत्मा है, वेदों के अनुसार सूर्य समस्त संसार की आत्मा है. अश्विनी नक्षत्र जो की केतु का नक्षत्र है और केतु को ज्योतिष शास्त्र में मोक्ष कारक माना गया है. आत्मा का परम लक्ष्य मोक्ष है, इसीलिये सूर्य मेष राशी में उच्च हो जाता है.

चन्द्र मन का कारक है. यह वृषभ राशी के तृतीय अंश पर उच्च माना गया है. वृषभ राशी का तृतीय अंश कृतिका नक्षत्र अर्थात सूर्य के नक्षत्र में होता है. मन जब आत्मा ( सूर्य ) को प्राप्त कर लेता है तो अपने गंतव्य को पा लेता है अत: यहाँ चंद्रमा उच्चता प्राप्त कर लेता है.

मंगल एक क्षत्रिय वृति वाला ग्रह है. शत्रु ग्रह की राशी मकर में अपने ही नक्षत्र धनिष्ठा में स्थित रहकर अपार सुख पाता है यह उसकी क्षत्रिय प्रवृति को संतुष्टि देता है और वो अपने लक्ष्य यानी शत्रु के घर में विजेता की तरह रहता है.
बुध अपनी ही राशी कन्या में हस्त नक्षत्र में उच्चता पा जाता है क्योंकि बुध बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है. अच्छी बुद्धि के लिए यह आवश्यक है की वो किसी को हानि ना पहुंचाए , उससे किसी का बुरा ना हो. ऐसा तब होता है जब बुद्धि मन और भावना के साथ संतुलन बना लेती है और ये संभव होता है चन्द्र के नक्षत्र हस्त में जो की मन और भावना का प्रतिनिधित्व करता है.

गुरु एक अध्यात्मिक और ज्ञान का पुंज ग्रह है. यह कर्क राशी के अंतर्गत पुष्य नक्षत्र में उच्च होता है. कर्क राशी का स्वामी चंद्रमा और पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि है. यदि ज्ञान भावनात्मक स्थिति में रहता हुआ भी एकांत और वैराग्य की स्थिति प्राप्त कर सके तो ये उसकी परम साधना होगी. अत: यहाँ ये अपनी उच्च स्थिति प्राप्त कर लेता है क्योंकि चन्द्र भावना और शनि एकांतवास और वैराग्य का प्रतिनिधि ग्रह है.

शुक्र विलास का कारक है और ज्ञान से उसे मोह नहीं. शुक्र मीन राशी जो की गुरु की राशी है के अंतर्गत रेवती नक्षत्र जो की बुध का नक्षत्र है में उच्चता प्राप्त कर लेता है. यदि यह विलास का प्रतिनिधि ज्ञान राशी मीन में बुद्ध के नक्षत्र रेवती में जो की सम्यक बुद्धि का प्रतीक है में रहता है तो अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करता है और उच्च हो जाता है.

शनि निर्धनता और अभाव का प्रतीक है. यदि यह विलास राशी तुला जो की शुक्र की राशि है और इस राशी के अंतर्गत गुरु के नक्षत्र विशाखा में विश्राम पाता है तो उच्चता को प्राप्त होता है. यदि यह विलास के वातावरण में भी ज्ञान की स्थिति को सम्भाल लेता है तो यह अपने परम लक्ष्य को पा जाता है और इसकी यही स्थिति इसे यह सब उपलब्ध कराती है

Sunday, November 23, 2014

Shanivaar/ shani dev/saturn remedies

शनिश्चरी अमावस्या 22 को, जानिए 2015 में कब बनेगा ये योग व उपाय

22 नवंबर को अगहन मास की अमावस्या है। ये अमावस्या शनिवार को होने के कारण इस बार शनिश्चरी अमावस्या का योग बन रहा है। धार्मिक मान्यता है कि शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव के उपाय व दान करने से वे प्रसन्न होते हैं। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती, ढय्या व महादशा हो उनके लिए शनिश्चरी अमावस्या के दिन किए गए उपाय व दान विशेष फल प्रदान करने वाले होते हैं।
पिछली बार शनिश्चरी अमावस्या का योग 26 जुलाई, 2014 को बना था, वहीं अगली बार ये योग 18 अप्रैल, 2015 को बनेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही उसे देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं-
1- किसी शनिवार को शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा।
2- शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार को श्रवण नक्षत्र में किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।
3- काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। काली गाय के सिर पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करें फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिला दें। ये उपाय आप कभी भी आपकी इच्छानुसार कर सकते हैं।
 4- प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें। ये उपाय आप हर शनिवार भी कर सकते हैं।
 5- प्रत्येक शनिवार को बंदरों और काले कुत्तों को बूंदी के लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो सकता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
6- शनिवार के एक दिन पहले पहले काले चने पानी में भिगो दें। शनिवार को ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के ता लाब में डाल दें। यह उपाय पूरा एक साल करें। इस दौरान भूल से भी मछली का सेवन न करें।
 7- किसी शनिवार को अपने दाहिने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको बटकर माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से भी शनिदेव का प्रकोप कम होता है।
 8- चोकरयुक्त आटे की 2 रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरी पर शुद्ध घी लगाएं। तेल वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें। इसके बाद दूसरी रोटी भी खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।
9- प्रत्येक शनिवार को शाम के समय बड़ (बरगद) और पीपल के पेड़ के नीचे सूर्योदय से पहले स्नान आदि करने के बाद सरसो के तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।
10- शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें और किसी शनि मंदिर में जाकर शनिदेव से प्रार्थना करें।
 11- शनिवार को एक कांसे की कटोरी में तिल का तेल भर कर उसमें अपना मुख देख कर और काले कपड़े में काले उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, फल, काला कोयला और लोहे की कील रख कर डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को दान कर दें। ये उपाय प्रत्येक शनिवार को भी कर सकते हैं।
12- शनिवार को इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-

कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।। 

अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।
 13- यदि आप पर शनि की साढ़ेसाती, ढय्या या महादशा चल रही हो तो इस दौरान मांस, मदिरा का सेवन न करें। इससे भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
 14- लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर शनिवार को पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।

15- शनिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें व उसकी पंचोपचार से विधिवत पूजन करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे किसी एक मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जाप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा।
 
वैदिक मंत्र- ऊं शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु न:।

लघु मंत्र-  ऊं ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:।

16- किसी शनिवार को भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक लगाकर शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

 17- किसी शनिवार को सवा-सवा किलो काले चने अलग-अलग तीन बर्तनों में भिगो दें। इसके बाद नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर शनिदेव का पूजन करें और चनों को सरसो के तेल में छौंक कर इनका भोग शनिदेव को लगाएं और अपनी समस्याओं के निवारण के लिए प्रार्थना करें। 
इसके बाद पहला सवा किलो चना भैंसे को खिला दें। दूसरा सवा किलो चना कुष्ट रोगियों में बांट दें और तीसरा सवा किलो चना अपने ऊपर से उतारकर किसी सुनसान स्थान पर रख आएं। यह उपाय करने से शनिदेव के प्रकोप में अवश्य कमी होगी।
18- काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनिवार को श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।