Tuesday, December 30, 2014

किसी राशि विशेष में ही ग्रह उच्च क्यों

किसी राशि विशेष में ही ग्रह उच्च क्यों ?

कोई ग्रह किसी राशी विशेष या नक्षत्र में ही क्यों उच्च होता है यह एक विचारणीय प्रश्न है. इसके लिए अलग अलग विद्वानों के अलग अलग मत हैं. चूंकि ज्योतिष शास्त्र वेद अंश है इसीलिए इसकी मौलिक मान्यताएं वेद सम्मत अर्थात अध्यात्मिक पक्ष को लेकर होनी चाहियें. इसी अध्यात्मिक पक्ष को लेकर द्वादश स्थान मोक्ष स्थान निर्धारित किया गया है.

सूर्य मेष राशि के दशम अंश में परमोच्च माना गया है. मेष राशी का दशम अंश अश्विनी नक्षत्र में पड़ता है. अब रोचक बात यह है की क्यों सूर्य किसी और नक्षत्र में उच्च नहीं माना गया. कारण स्पष्ट है सूर्य आत्मा है, वेदों के अनुसार सूर्य समस्त संसार की आत्मा है. अश्विनी नक्षत्र जो की केतु का नक्षत्र है और केतु को ज्योतिष शास्त्र में मोक्ष कारक माना गया है. आत्मा का परम लक्ष्य मोक्ष है, इसीलिये सूर्य मेष राशी में उच्च हो जाता है.

चन्द्र मन का कारक है. यह वृषभ राशी के तृतीय अंश पर उच्च माना गया है. वृषभ राशी का तृतीय अंश कृतिका नक्षत्र अर्थात सूर्य के नक्षत्र में होता है. मन जब आत्मा ( सूर्य ) को प्राप्त कर लेता है तो अपने गंतव्य को पा लेता है अत: यहाँ चंद्रमा उच्चता प्राप्त कर लेता है.

मंगल एक क्षत्रिय वृति वाला ग्रह है. शत्रु ग्रह की राशी मकर में अपने ही नक्षत्र धनिष्ठा में स्थित रहकर अपार सुख पाता है यह उसकी क्षत्रिय प्रवृति को संतुष्टि देता है और वो अपने लक्ष्य यानी शत्रु के घर में विजेता की तरह रहता है.
बुध अपनी ही राशी कन्या में हस्त नक्षत्र में उच्चता पा जाता है क्योंकि बुध बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है. अच्छी बुद्धि के लिए यह आवश्यक है की वो किसी को हानि ना पहुंचाए , उससे किसी का बुरा ना हो. ऐसा तब होता है जब बुद्धि मन और भावना के साथ संतुलन बना लेती है और ये संभव होता है चन्द्र के नक्षत्र हस्त में जो की मन और भावना का प्रतिनिधित्व करता है.

गुरु एक अध्यात्मिक और ज्ञान का पुंज ग्रह है. यह कर्क राशी के अंतर्गत पुष्य नक्षत्र में उच्च होता है. कर्क राशी का स्वामी चंद्रमा और पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि है. यदि ज्ञान भावनात्मक स्थिति में रहता हुआ भी एकांत और वैराग्य की स्थिति प्राप्त कर सके तो ये उसकी परम साधना होगी. अत: यहाँ ये अपनी उच्च स्थिति प्राप्त कर लेता है क्योंकि चन्द्र भावना और शनि एकांतवास और वैराग्य का प्रतिनिधि ग्रह है.

शुक्र विलास का कारक है और ज्ञान से उसे मोह नहीं. शुक्र मीन राशी जो की गुरु की राशी है के अंतर्गत रेवती नक्षत्र जो की बुध का नक्षत्र है में उच्चता प्राप्त कर लेता है. यदि यह विलास का प्रतिनिधि ज्ञान राशी मीन में बुद्ध के नक्षत्र रेवती में जो की सम्यक बुद्धि का प्रतीक है में रहता है तो अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करता है और उच्च हो जाता है.

शनि निर्धनता और अभाव का प्रतीक है. यदि यह विलास राशी तुला जो की शुक्र की राशि है और इस राशी के अंतर्गत गुरु के नक्षत्र विशाखा में विश्राम पाता है तो उच्चता को प्राप्त होता है. यदि यह विलास के वातावरण में भी ज्ञान की स्थिति को सम्भाल लेता है तो यह अपने परम लक्ष्य को पा जाता है और इसकी यही स्थिति इसे यह सब उपलब्ध कराती है

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