Wednesday, November 28, 2018

ज्योतिष मे राहु ग्रह

ज्योतिष मे राहु ग्रह।

राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,पौराणिक कथा के अनुसार राहु की माता का नाम सुरसा था,और जब हनुमान जी सीताजी की खोज के लिये समुद्र पार कर रहे थे तो देवताओं ने हनुमानजी की शक्ति की परीक्षा के लिये सुरसा को भेजा था । सुरसा को छाया पकड कर आसमानी जीवों को भक्षण करने की शक्ति थी,हनुमान जी की छाया को पकड कर जैसे ही सुरसा ने उन्हे अपने भोजन के लिये मुंह में डालना चाहा उन्होने अपने पराक्रम के अनुसार अपनी शरीर की लम्बाई चौडाई को सुरसा के मुंह से दो गुना कर लिया,आखिर तक जितना बडा रूप सुरसा अपने मुंह का बनाने लगी और उससे दोगुना रूप हनुमानजी बनाने लगे,जब कई सौ योजन का मुंह सुरसा का हो गया तो हनुमानजी ने अपने को एक अंगूठे के आकार का बनाकर सुरसा के पेट में जाकर और बाहर आकर सुरसा को माता के रूप में प्रणाम किया और सुरसा की इच्छा को पूरा होना कहकर सुरसा से आशीर्वाद लेकर वे लंका को पधार गये थे। पौराणिक कथाओं के ही अनुसार सुरसा को अहिन यानी सर्पों की माता के रूप में भी कहा गया है। जब कभी राहु के बारे में किसी की कुंडली में विवेचना की है तो कहने से कहीं अधिक बातें कुंडली में देखने को मिली है। राहु चन्द्रमा के साथ मिलकर अपना रूप जब प्रस्तुत करता है तो वह अपनी शक्ति और राशि के अनुसार अपने को कैमिकल के रूप में प्रस्तुत करता है। तरल राशि के प्रभाव में वह बहता हुआ कैमिकल बन जाता है गुरु रूपी हवा के साथ मिलकर वह गैस के रूप में अपनी योग्यता को प्रकट करने लगता है,शनि रूपी पत्थर के साथ मिलकर वह सीमेंट का रूप ले लेता है,और वही शनि अगर पंचम भाव में होता है तो अनैतिकता की तरफ़ ले जाने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगता है। शुक्र के साथ आजाने से राहु का स्वभाव असीम प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगता है और बुध के साथ मिलकर वह केलकुलेशन के मामले में अपनी योग्यता को कम्पयूटर के सोफ़्टवेयर की तरह से सामने हाजिर हो जाता है। सूर्य के साथ मिलकर राज्य की तरफ़ उसका आकर्षण बढ जाता है और जब राहु और सूर्य दोनो ही बलवान होकर पंचम नवम एकादस में अपनी युति राज्य की कारक राशि में स्थान बनाते है तो बडा राजनीतिक बनाने में राहु का पहला प्रभाव ही माना जाता है। मिथुन राशि में राहु का प्रभाव व्यक्ति के अन्दर भाव के अनुसार प्रदर्शित करने की कला को देता है और धनु राहु में राहु अपनी नीचता को प्रकट करने के बाद बडे बडे अनहोनी जैसे कारण पैदा कर देता है और व्यक्ति की जीवनी को आजन्म और उसके बाद भी लोगों के लिये सोचने वाली बात को बनाने से नही चूकता है।

राहु का असर तब और देखा जाता है जब व्यक्ति क नवें भाव में जाकर वह पुराने संस्कारों को तिलांजलि देने के कारकों में शामिल हो जाता है और जिस कुल या समाज में जातक का जन्म होता है जिन संस्कारों में उसकी प्राथमिक जीवन की शुरुआत होती है उन्हे भूलने और समझ मे नही आने के कारण जब वह धन भाग्य और न्याय वाली बातों तथा ऊंची शिक्षाओं अथवा अपने समाज के विपरीत समाज में प्रवेश करने के बाद उसे सोचने के लिये मजबूर होना पडता है। शनि के घर में राहु के प्रवेश होने के कारण तथा व्यक्ति की लगन में होने पर राहु शनि की युति अगर महिला की कुंडली में हो तो शरीर को ढककर चलने के लिये अपनी सोच को देता है और जब वह सप्तम स्थान में चन्द्रमा के साथ अपनी युति बना लेता है जो आजन्म जीवन साथी की सोच को समझने के प्रति असमर्थ बना देता है। राहु को अगर मंगल की युति मुख्य त्रिकोण में मिलती है तो जातक को आजीवन प्रेसर वाले रोग मिलते है। और खून के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन वाली बीमारी मिलती है,महिलाओं की कुंडली में राहु अगर दूसरे भाव में होता है तो अक्सर झाइयां मुंहासे और चेहरे को बदरंग बनाने से नही चूकता है तथा पुरुष के चेहरे वाली राशि में होता है तो जातक को दाडी बढाने और चेहरे पर तरह तरह के बालों के आकार बनाने में बडा अच्छा लगता है। लगन का मंगल राहु क्षत्रिय जाति से अपने को सूचित करता है,मंगल की सकारात्मक राशि वृश्चिक राशि में अपना प्रभाव देने के कारण वह मुस्लिम संप्रदाय से अपनी युति को जोडता है और चन्द्रमा की राशि कर्क को वह अपनी मोक्ष और धर्म के प्रति आस्थावान बनाता है। गुरु राहु मंगल की युति से जातक को सिक्ख सम्प्रदाय से जोडता है और केतु के साथ शनि के होने से वह ईशाई सम्प्रदाय से सम्बन्धित बात को भी बताता है,बुध के साथ केतु के होने से राहु व्यापार की कला में और खरीदने बेचने के कार्यों में कुशलता देता है।

राहु को सम्भालने के लिये जातक को मंगल का सहारा लेना पडता है। मंगल तकनीक है तो राहु विस्तार अगर विस्तार को तकनीकी रूप में प्रयोग में लाया जाये तो यह अन्दरूनी शक्ति बडे बडे काम करती है। वैसे तो झाडी वाले जंगल को भी अष्टम राहु के लिये जाना जाता है लेकिन उन्ही झाडियों को औषिधि के रूप में प्रयोग करने की कला का अनुभव हो जाये तो जंगल की झाडियां भी तकनीकी कारणों से काम करने के लिये मानी जा सकती है। शनि के अन्दर राहु और केतु का प्रवेश हमेशा से माना जाता है,शनि को अगर सांप माना जाये तो राहु उसका मुंह है और केतु उसकी पूंछ जब भी शनि को कोई कारण जीवन के लिये पैदा करना होता है तो वह हमेशा के लिये समाप्त या हमेशा के लिये विस्तार करवाने के लिये राहु का प्रयोग करता है और उसे केवल झटका देकर बढाने या घटाने की बात होती है तो वह केतु का प्रयोग करता है। सूर्य को समाप्त करने के बाद जो सबसे पहले कारण पैदा होता है वह आसमान की तरफ़ जाने वाला प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करने के लिये माना जाता है। जैसे सूर्य को लकडी के रूप में जाना जाता है और जब सूर्य (लकडी) मंगल (ताप) और गुरु (हवा) का सहारा लेकर जलाया जाता है तो राहु धुंआ के रूप में आसमान में ऊपर की ओर जाते हुये अपनी उपस्थिति को दर्शाता है।

राहु को रूह का भी रूप दिया जाता है अगर यह अष्टम स्थान में वृश्चिक राशि का है तो यह शमशानी आत्मा के रूप में जाना जाता है.इस स्थान का राहु या तो कोई ऐसी बीमारी देता है जिससे जूझने के लिये जातक को आजीवन जूझना पडता है और धर्म अर्थ काम और मोक्ष के कारणों से दूर करता है या घर के अन्दर अपनी करतूतों से शमशानी क्रियायें आदि करने या खुद के द्वारा सम्बन्धित कारणों को समाप्त करने के बाद खाक में मिलाने के जैसा व्यवहार करता है,पैदा होने के पहले भी माता बीमार रहती है पिता को तामसी भोजनों पर विस्वास होता है और जातक के पैदा होने के बाद आठवीं साल की उम्र से कोई शरीर का रोग अक्समात लग जाता है जो आजीवन साथ नही छोडता है।

राहु की अन्य ग्रहों से युति का फल।

1. राहु + सूर्य की युति
सूर्य और राहु दो ऐसे ग्रह हैं जो एक दूसरे से विपरीत होते हुए भी अनेक प्रकार से समान हैं | दोनो ही ग्रह दार्शनिकता और राजनीति के कारक भी हैं | कुडंली मे दोनो की युति ग्रहण योग का निर्माण करती है | यह युति जिस भाव मे बनती है उसके फलो को न्यून करती है | परन्तु ऐसा जातक जिसकी कुंडली मे यह योग होता है वे राजनैतिक सफलता प्राप्त करता है | मेरे अनुभव मे यह आया है कि यदि यह योग 9,10,11 भाव मे बनता है तो ऐसे व्यक्ति राजनीति मे सफल होते देखे गए हैं | शायद यह इसलिए हुआ कि राहु और सूर्य दोनो ही राजनीति, प्रभुत्व एवं सत्ता के कारक ग्रह हैं
2. राहु + चंद्र की युति
राहु और चंद्र दो विपरीत ग्रह परन्तु अनेक प्रकार से समान भी हैं | दोनो ही धन तथा यात्रा के ग्रह हैं | इन दोनो की युति ग्रहण योग का निर्माण करती है जो कि मानसिक बेचैनी का कारण बनती है | इस युति पर यदि बुध की दूषित दृष्टि हो तो त्वचा रोग होता है | परन्तु इस प्रकार के परिणाम लगनस्थ राहु + चंद्र के होने से देखे गए हैं | इस योग के शुभ परिणाम भी आते हैं | अतः इस योग के होने से ज्यादा घबडाने की आवश्यकता नही है | यदि यह युति 3, 7 व 9 भावो मे हो तो यात्राएं करनी पडती हैं | इस योग मे यदि गुरु की शुभ दृष्टि हो तो ऐसे जातक का जीवन शीशे के समान पारदर्शी एवं निष्पक्ष होता है | 11वें भाव मे यदि यह युति शुभ प्रभाव लेकर बैठी हो तो अचानक धन लाभ भी होता है | इसी प्रकार चंद्र यदि चतुर्थेश होकर राहु के साथ 12वें भाव मे युति बनाए तो विदेश यात्रा से इंकार नही किया जा सकता |
3.मंगल + राहु की युति
मंगल और राहु एक दूसरे के शत्रु ग्रह हैं परन्तु साहस,पराक्रम, शत्रु, षडयंत्र, झगडे, विवाद जैसे विषयो मे इनकी समानता है | कुंडली मे इनकी युति अंगारक योग का निर्माण करती है | जिसके फलस्वरुप कुंडली धारक का व्यक्तित्व अतिक्रोधी, कठोर, दुःसाहसी और षडयंत्रकारी होता है | प्रायः इस योग के गलत परिणाम 1, 2, 3, 4, 7, 8 व 12 भाव मे देखने को मिलते हैं | 5 भाव मे यह युति सत्ता पक्ष से लाभ दिलाती है | 6 भाव मे यह युति सर्जन बना सकती है | 9,10,11 भाव मे यह युति राजनीति मे सफलता व प्रभुता संपन्न बनाती है |
बुध + राहु युति
बुध और राहु की युति होने से जडत्व योग बनता है | यह योग जातक को सामन्यतः चालाक बनाता है | यदि इस युति पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक अनेक भाषाओं का ज्ञाता होता है तथा बडी चालाकी से अपने कार्यो को सफल कर लेता है | यदि यह योग 1 तथा 6 भाव मे बनता है तो लाइलाज वीमारी देता है | 4 तथा 5 भाव मे यह योग शिक्षा मे विघ्न देता है | 2 व 11 भाव मे अनावश्यक खर्च देता है | 3 भाव मे संबधियो से व 7 भाव मे जीवन साथी से मतभेद देता है | 9 भाव मे यह युति जातक को नास्तिक बनाती है | 10 भाव मे होने से जातक नीतिगत फैसले लेने मे अपने आपको असफल पाता है | 12 भाव मे यह युति शैय्या सुख मे कमी करता है | इस प्रकार विभिन्न भावो मे जडत्व योग अशुभ ही परिणाम देता है परन्तु गुरु की इस योग पर दृष्टि होने से राहत की अपेक्षा की जा सकती है | यदि बुध अस्त न हो तथा बुध केन्द्रेश या त्रिकोणेश हो कर केन्द्र या त्रिकोण पर जडत्व योग बनाए तो यह योग राजयोग कारक होता है तथा जातक बडी चालाकी से अपने समस्त कार्यो को संपादित करता हुआ सफलता के शिखर पर पहुँच जाता है | यदि गुरु का सपोर्ट मिला तो सोने मे सुहागा |
4.गुरु + राहु की युति
गुरु +राहु की युति चांडाल योग का निर्माण करती है। जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रहों की युति होती है, वह परंपरा विरोधी और आध्यात्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। ऐसी स्थिति में राहु गुरु के सात्विक और शुभ गुणों को कम कर देता है। जिस जातक की कुंडली में लग्न में गुरु राहु की युति होती है वह नास्तिक, पाखंडी तथा धार्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। धन भाव में यह योग दरिद्रता का सूचक माना जाता है। किंतु यही युति यदि पंचम, नवम अथवा केंद्र भावों में हो तो ऐसा जातक ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता होता है। तृतीय, सप्तम में धार्मिक यात्राएं तथा दशम, एकादश भाव में राजनीति में सफलता मिलती है। ऐसी स्थिति में यदि राहु गुरु के नक्षत्र में भी हो तो ऐसा जातक सफल राजनेता हो सकता है। एकादश तथा द्वादश भावों में यदि यह युति है तो ऐसा जातक तंत्र साधना अथवा तांत्रिक कार्यों के द्वारा भी धनार्जन करता है। चांडाल योग का निर्माण करती है। जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रहों की युति होती है, वह परंपरा विरोधी और आध्यात्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। ऐसी स्थिति में राहु गुरु के सात्विक और शुभ गुणों को कम कर देता है। जिस जातक की कुंडली में लग्न में गुरु राहु की युति होती है वह नास्तिक, पाखंडी तथा धार्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। धन भाव में यह योग दरिद्रता का सूचक माना जाता है। किंतु यही युति यदि पंचम, नवम अथवा केंद्र भावों में हो तो ऐसा जातक ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता होता है। तृतीय, सप्तम में धार्मिक यात्राएं तथा दशम, एकादश भाव में राजनीति में सफलता मिलती है। ऐसी स्थिति में यदि राहु गुरु के नक्षत्र में भी हो तो ऐसा जातक सफल राजनेता हो सकता है। एकादश तथा द्वादश भावों में यदि यह युति है तो ऐसा जातक तंत्र साधना अथवा तांत्रिक कार्यों के द्वारा भी धनार्जन करता है।
5.शुक्र + राहु की युति
राहु के साथ यदि शुक्र लग्न में है तो ‘क्रोध योग’ का निर्माण होता है। यह योग जातक को क्रोधी स्वभाव का स्वामी बनाकर आजीवन लड़ाई-झगड़े एवं विवाद का कारण बनता है, जिसके फलस्वरूप जातक को अपने कटु स्वभाव के कारण अपने जीवन में अनेकानेक नुकसान उठाने पड़ते हैं। शुक्र और राहु एक दूसरे के परम मित्र ग्रह हैं। शुक्र प्रेम, विवाह, सौंदर्य, घुंघराले बाल एवं श्याम वर्ण इत्यादि का कारक ग्रह है। राहु भी गुप्त संबंधों एवं प्रेम संबंधों का कारक है। व्यक्ति को श्याम वर्ण ही देता है। कुंडली में दोनों ग्रहों की युति जातक को विपरीत लिंग के प्रति स्वाभाविक आकर्षण प्रदान करती है। यदि शुक्र राहु की युति पति पत्नी दोनों की कुंडली में सप्तम भाव में है तो वैवाहिक जीवन में कष्ट एवं संबंध विच्छेद का कारण भी बनती है। ऐसे जातक के अन्यत्र संबंध अवश्य ही बनते हैं।
6.शनि + राहु की युति
शनि के साथ राहु की युति को ज्योतिष में ‘नन्दी योग’ के नाम से जाना जाता है। यह युति जिस भाव में बनती है उस भाव से संबंधित कष्ट एवं जिस भाव पर दृष्टि डालती है उससे संबंधित शुभ फल प्रदान करती है। इस योग के फलस्वरूप जातक को सुख, वैभव एवं समृद्धि भी प्राप्त होती है। शनि राहु की युति पर यदि मंगल का प्रभाव भी आ जाये तो ऐसा जातक साधारणतया क्रूर एवं आतंकवादी प्रवृत्ति का होता है। यह युति यदि लग्न में आ जाये तो ऐसा जातक हत्या या आत्महत्या का प्रयास भी कर सकता है। लग्न में शनि$राहु के फलस्वरूप क्षीण स्वास्थ्य, द्वितीय भाव में धनाभाव, तृतीय भाव में संबंधियों से विरोध, चतुर्थ में माता के लिये अशुभ, पंचम में सफलता मंग कमी, षष्ठ भाव में रोग, सप्तम में जीवन साथी से वैमनस्य, अष्टम में पैतृक संपत्ति प्राप्त करने में अड़चने, नवम में निर्बल भाग्य, दशम में व्यवसाय में परेशानी, एकादश में लाभ कम तथा द्वादश भाव में भी वैवाहिक सुख में कमी होती है।