हमारे शास्त्रों ने लोभ को ही समस्त पाप वृत्तियों का कारण कहा है। महापुरुषों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि,
कामी तरे क्रोधी तरे, लोभी की गति नाहीं
अर्थात कामी के जीवन में भी बदलाव सम्भव है, क्रोधी व्यक्ति भी एक दिन परम शांत अवस्था को प्राप्त कर सकता है मगर लोभी व्यक्ति कभी अपनी वृत्तियों का हनन कर इस संसार सागर से टार जाए यह असम्भव है।
जिस व्यक्ति की लोभ और मोह वृत्तियाँ असीम हैं उस व्यक्ति को कहीं भी शांति नहीं मिल सकती। बहुत कुछ होने के बाद भी वह खिन्न, रुग्ण, और परेशान ही रहता है। लोभी अर्थात वो मनुष्य जिसे वहुत कुछ पाने की ख़ुशी नहीं अपितु थोडा कुछ खोने का दुःख है। अत: बहुत लोभ से बचो यह आपको बहुत पापों से बचा लेगा।